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हास्य-व्यंग्य >> चक्रधर चमन में

चक्रधर चमन में

अशोक चक्रधर

प्रकाशक : राजपाल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :182
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8016
आईएसबीएन :9788170289616

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हास्य-व्यंग्य-व्यंजित अति मनरंजित गद्यपचीसी...

Chakradhar Chaman Mein (Ashok Chakradhar)

हास्य रस को नौ रसो में श्रेष्ठ माना जाता है। शायद इसलिए कि जब हम हंसते हैं तो उन चंद पलों के लिए अपने जीवन की सभी परेशानियों और झमेलों को भूल जाते हैं और केवल हंसी के सागर में डूब जाते हैं। यही एक रस है जो मनुष्य को जानवरों से भिन्न करता है। केवल आदमी ही हंसना जानता है, सही मायने में जीवन को भरपूर जीने का मज़ा वही उठाता है।

अशोक चक्रधर हिन्दी जगत के जाने-माने लेखक, कवि और नाटककार हैं लेकिन उनकी प्रमुख पहचान एक व्यंग्य-लेखक के रूप में हुई। यह पुस्तक उनके व्यंग्यात्मक लेखों का एक गुलदस्ता है।

चाहे कोई साधारण-सी रोजमर्रा की बात या घटना हो, लेकिन जब हास्य-व्यंग्यकार अशोक चक्रधर उस पर व्यंग्य की स्याही में डूबी अपनी कलम चलाते हैं तो वही घटना अनूठी और यादगार बन जाती है। जीवन के चमन में से चुनी हुई कुछ ऐसी ही घटनाओं के व्यंग्यात्मक फूल इस पुस्तक में प्रस्तुत हैं।


क्रम

  • चक्रधर चमन में आ जाओ रे
  • चक्रधर चमन में आचमन
  • बाजरे की बाली पर बरखा की बूँद
  • तू भी रह और महंगाई को भी रहने दे
  • क्या हुआ जो स्पिनर का हाथ स्पिन कर गया?
  • दिल और दिमाग के बाँध टूट गए हैं
  • नासमझी की समझदारी
  • अब जय हो कौ नयौ अन्तरा लिख!
  • ट्वैंटी-टेन के लिए खट्टे-मीठे बैन
  • राजनीति कौ रस-विमर्श
  • पानी रे, पानी!... अन्दाज़े बयाँ लासानी
  • हर फिक्र धुँए में नहीं उड़ती... न चुटकी में
  • होली के हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर

  • चक्रधर चमन में आ जाओ रे



    हैलो, तो क्या आप जानते हैं कि एक है हसीना, जिसका नाम सुनते ही हर उम्र के यौवन को आ जाता है पसीना, विश्व में सबसे आकर्षक दिखने वाला एक एशियाई नगीना है, जिससे घबराती हैं प्रियंका, दीपिका,विद्या बालन और करीना, पचपनवें फिल्मफेयर पुरस्कारों की प्रबल दावेदार अभिनेत्री प्रवीना, क्या आप जानते हैं उसका नाम है कैटरीना?

    यह प्रश्न आपसे नहीं पूछा गया। फोन पर कैटरीना कैफ के निजी सचिव ने मुझसे पूछा था। मैंने कहा - कैसी बात करते हैं बन्धु ! कमजोर आई साइट को लोगों ने भी उसे देखने के लिए चश्मे के नम्बर ठीक कराए हैं। उनकी ‘न्यूयार्क’ मैंने दिल्ली में देखी। अपना आशय बताइए।

    वे बोले - ‘कैटरीना जी हिन्दी सीखने के लिए बहुत दिनों से एक अच्छे अध्यापक की तलाश में हैं। किसी ने बताया कि आप आजकल दो-दो बड़ी संस्थाओं के उपाध्यक्ष हैं, वहाँ अच्छा काम न कर पा रहे हों तो एक अच्छा काम यही कर दीजिए कि कैटरीना जी को हिन्दी सिखा दीजिए। हमें पता चला है कि उन पदों पर तो आपको कोई पैसा मिलता नहीं, कैटरीना जी आपको मनचाहा धन दे देंगी। अगली फ्लाइट से आ जाइए।’

    मैंने कहा - ‘अपनी कैटरीना जी से बात तो कराओ।’....


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