लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> विश्व धर्म सम्मेलन

विश्व धर्म सम्मेलन

लक्ष्मीनिवास झुनझुनवाला

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7988
आईएसबीएन :81-7315-494-5

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

307 पाठक हैं

सन् 1893 में शिकागो में आयोजित सुप्रसिद्ध विश्व धर्म सम्मेलन

Vishva Dharma Sammelan by Laxminiwas Jhunjhunwala

सन् 1893 में शिकागो में आयोजित सुप्रसिद्ध विश्व धर्म सम्मेलन तथा उसमें स्वामी विवेकानंदजी द्वारा प्रस्तुत उद्गारों पर केन्द्रित श्री लक्ष्मी निवास झुनझुनवाला कृत पुस्तक ‘विश्व धर्म सम्मेलन’ को पढ़ने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। स्वामीजी की सुविख्यात शिकागो वक्तृता के विषय में सामान्य जानकारी तो समस्त देशवासियों को है, किंतु श्री झुनझुनवाला ने स्वामीजी की अमेरिका यात्रा की पृष्ठभूमि एवं तैयारी के साथ-साथ विश्व धर्म सम्मेलन की दैनंदिन गतिविधियों के बारे में जो रोचक एवं ज्ञानवर्धक सूचना इस पुस्तक में उपलब्ध कराई है, वह निस्संदेह दुर्लभ एवं उपयोगी है।

इसके बाद यह प्रस्ताव पारित किया गया - ‘‘यहाँ बहुधा यह कहा गया है और मैं भी यह कहता रहा हूँ कि हम लोगों ने विगत सत्रह दिनों में जैसा आयोजन देखा है ऐसा अब इस पीढ़ी को तो उनके जीवनकाल में पुनः देखने काअवसर नहीं प्राप्त होगा; पर जिस प्रकार के उत्साह व शक्ति का संचार इस सम्मेलन ने किया है, लोग दूसरे धर्म-सम्मेलन के स्वप्न देखने लगे हैं, जो इससे भी अधिक भव्य व लोकप्रिय होगा। मैंने अपनी बुद्धि लगाई है कि अगले धर्म-सम्मेलन के लिए उचित स्थान कौन सा हो। जब मैं अपने अत्यन्त नम्र जापानी भाइयों को देखता हूँ तो मेरा मन कहता है कि पैसिफिक महासागर की शांति में स्थित टोकियो शहर में अगला धर्म-सम्मेलन किया जाए, पर मैं आधे रास्ते रुकने के बजाय सोचता हूँ कि अंग्रेजी शासन के अधीन भारतवर्ष में ही यह सम्मेलन हो। पहले मैंने बंबई शहर के लिए सोचा, फिर सोचा कि कलकत्ता अधिक उपयुक्त रहेगा, पर फिर मेरा मन गंगा के तट की प्राचीन नगरी वाराणसी पर जाकर स्थिर हो गया, ताकि भारत के सबसे अधिक पवित्र स्थल पर ही हम मिलें।’’

‘‘अब यह भव्य सम्मेलन कब होगा? हम आज यह निश्चित कर विदा ले रहे हैं कि बीसवीं सदी में अगला भव्य सम्मेलन वाराणसी में होगा तथा इसकी अध्यक्षता भी जॉन हेनरी बरोज ही करेंगे।’’


प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book