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कहानी संग्रह >> खुली छतरी

खुली छतरी

भावना शेखर

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7974
आईएसबीएन :9788126722662

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संग्रह की प्रायः सभी कहानियाँ द्रष्टा को ‘नॉन जजमेंटल’ होने और पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर जीवन को परखने को कहती हैं।

Khuli Chhatari by Bhavna Shekhar

जीवन के विविध प्रसंगों में कई बार धारणाएँ ध्वस्त होती हैं, भ्रान्तियाँ भग्न होती हैं, नवीन अनुभव नवनिष्कर्षों को गढ़ते हुए कभी मनुष्य को संतप्त करते हैं तो कभी चमत्कृत। ऐसे में जीवन-सरणि पर विचरते कुछ किरदारों की केंचुल उतरने लगती है - उनकी विद्रूपता झलकने लगती है तो कुछ किरदार साँचा तोड़ नवरूप धरते दिखाई देते हैं। नवरूपता ही नहीं, अपरूपता भी जीने का सलीका सिखाती है।

पुस्तक की प्रायः सभी कहानियाँ द्रष्टा को ‘नॉन जजमेंटल’ होने और पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर जीवन को परखने को कहती हैं।

नारी है तो अभिशप्त है, पुरुष है तो परुष है, दलित है तो पीड़ित है, वेश्या है तो चरित्रहीन है, गुंडा है तो भ्रष्ट है - ये पूर्वाग्रह बहुत बार भ्रम साबित होते हैं। ‘निरापद’, ‘वो युधिष्ठिर’, ‘गणिका’, ‘कबूतरी’, ‘दबंग’, ‘देवभूमि’ आदि पुस्तक की अधिकांश कहानियाँ इस बात को प्रतिबिम्बित करती हैं। सफेदपोशी में कालिख की डुगडुगी तो सभी बजाते हैं पर कालिमा की भी उजास है - इसे स्वीकारना और तलाशना ही जीवन का मर्म है।

पर कुछ अनुभूतियाँ कालनिरपेक्ष सत्य की तरह अकाट्य होती हैं। सूरज-चाँद-सितारों की तरह सनातन प्रतीत होती हैं, जैसे अपनी माँ सबसे सुन्दर और अपना घर सबसे बड़ा स्वर्ग है। संवेदना ने जिस कुरूप चेहरे को सदा हिकारत से देखा, वही एक दिन सुन्दरता की मिसाल बन गया।

परदेस गए बेटे का वियोग बूढ़े माँ-बाप को कैसे सालता है - ‘अपना घर अपना आसमान’ इस पीड़ा का आईना है, ‘खुली छतरी’ बाल मनोविज्ञान का चित्रण करती है तो ‘सज़ा’ आदर्श नारी के मिथक को तोड़कर उसके सहज रूप में संवेग और आवेग, प्यार और प्रतिकार की सृष्टि करती है।

अनब्याही माँ बनना, बलात्कार को मात्र दुर्घटना मानना, स्त्री द्वारा लीक तोड़कर शठे शाठयं समाचरेत् की परिपालना - समाज के ये नए मूल्य कहानियों में उजागर हुए हैं।


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