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खानाबदोश ख्वाहिशें

जयंती

प्रकाशक : सामयिक प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :191
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7933
आईएसबीएन :9788171381753

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उपन्यास में निधि और शिवम से प्रारंभ हुई कथा के साथ-साथ मुंबई शहर में संघर्ष की कड़ियां ऐसे जुड़ती चली गई हैं कि आप जिज्ञासा में अंत तक बंधे पढ़ते चले जाएंगे...

Khanabadosh Khwahishein - A Hindi Book - by Jayanti

मम्मी ने जानकर उसे पांचवीं में कॉन्वेंट स्कूल से निकालकर सरकारी स्कूल में पढ़ाया था। उसका मन था, जेवियर्स में कॉलेज करने का, पर मां ने पढ़वाया निर्मला निकेतन में। मां कहां चाहती थी कि वह सही समझे, सोचे और निर्णय ले। बस अपने जैसा बना दिया। लेकिन क्या वह मम्मी जैसी बनना चाहती थी। क्या सोचती थी वह अपनी मां के बारे में जो जिंदगी भर एक सुरक्षित छांव के लिए भटकती रह गई। मम्मी-पापा के तनाव भरे आपसी रिश्तों ने उस पर क्या प्रभाव डाला? उसका और बहन का जन्म क्या मम्मी-पापा के आपसी लगाव का नतीजा था या बस, दो बेटियां हो गईं, अपने आप जीने के लिए।

उपन्यास में निधि और शिवम से प्रारंभ हुई कथा के साथ-साथ मुंबई शहर में संघर्ष की कड़ियां ऐसे जुड़ती चली गई हैं कि आप जिज्ञासा में अंत तक बंधे पढ़ते चले जाएंगे। निधि, क्योंकि नेहा जैसी लड़की नहीं है कि मम्मी अपनी पसंद के लड़के से उसकी शादी कर निश्चिंत हो सकें। तो फिर क्या किया निधि ने? क्या वह अपनी ख्वाहिशें पूरी कर सकी?
जयंती ने कथा के अनुरूप ऐसी भाषिक लय बांधी है कि जहन में रस बराबर बना रहता है।

खानाबदोश ख्वाहिशें


शमा गहरा रही थी। निधि ने धीरे-से शिवम से पूछा, ‘‘अब?’’
वह झल्ला गया, ‘‘अब क्या? मुझे क्या पता?’’

निधि चुप रही, पिछले दो घंटे से वे दोनों यूं ही चुपचाप बैठे थे। उसने साड़ी का पल्लू समेट लिया। शिवम के हाथों से पल्लू सरक गया। उसने कुछ नहीं कहा। निधि उठना चाहती थी। आज ही सुबह दीदी और जीजाजी दिल्ली से आए थे। मम्मी ने कहा था–ऑफिस से आते समय पनीर लेती आना। धीरज को पनीर के कोफ्ते बहुत पसंद हैं। हां, जल्दी आना। मेरी मदद कर देना। ये नहीं कि नौ बजे पर्स झुलाती आ रही हो।

निधि एकदम से तनाव में आ गई। शिवम से वह कहना चाहती थी कि उसे घर जाना है। अब तो 7.10 की चैंबूर लोकल भी चली गई होगी। अगली लोकल है सात बजकर पचास मिनट पर। चैंबूर पहुंचेगी साढ़े आठ बजे। वो भी अगर बिना रुके चली, तब। नहीं तो भगवान ही मालिक है।

नरीमन पाइंट पर अब सिर्फ तमाशाई रह गए थे। शिवम ने अचानक कहा, ‘‘निधि, मुझे कुछ रुपए चाहिए।’’ उसने चौंककर उसकी तरफ देखा। दो ही दिन पहले तो उसे पांच सौ रुपए दिए थे। इतनी जल्दी खर्च हो गए?

‘‘क्या हुआ, ऐसे क्या देख रही हो? तू जानती है ना, कल मेरा ऑडिशन है। सोच रहा हूं, एक नई शर्ट ले लूं। बोल क्या कहती है? देख ये शर्ट, स्साली एकदम पुरानी दिख रही है। ऐ निधि, मैं तुझे लौटा दूंगा सारे पैसे, तेरे लिए ही तो कर रहा हूं मैं यह सब।’’ शिवम की आवाज मुलायम थी। निधि पिघल गई। वाकई उसी के लिए तो इतनी जहमत उठा रहा है शिव। वरना वह तो छह महीने पहले मुंबई छोड़कर जाने को तैयार था। आसान नहीं है यहां रहकर स्ट्रगल करना। कितनी अच्छी आवाज है इसकी। एक बार चांस मिल जाए, तो नेक्स्ट उदित नारायण यही होगा, उसका शिवम…

निधि ने पर्स खोलकर देखा। पांच सौ का एक नोट, सौ के तीन नोट और छुट्टे मिलाकर हजार रुपये होंगे। उसने सौ का नोट अलग रखा। बाकी रुपये शिव को पकड़ा दिए। उसने बिना देखे अपनी पैंट की जेब में रख लिए।
‘‘मैं चलूं?’’ निधि ने धीरे से पूछा।
‘‘क्या जल्दी है? मैं भी चल रहा हूं ना…तू पूरी बात तो बता। तू कुछ बता रही थी न रूपदत्त के बारे में…क्या हुआ?’’

निधि ने कुछ नहीं कहा। रूपदत्त का प्रसंग आते ही उन दोनों में लड़ाई छिड़ जाती है। उससे गलती हो गई, जो शाम को शिवम से मिलते ही उसने जिक्र कर दिया था कि सुबह जब वह घर से निकली, तो उसे रूपदत्त दिख गया था। शिवम जान-बूझकर लगभग हर दिन उसका नाम ले ही लेता है। निधि से लड़ता है। निधि रुआंसी हो जाती है, रोने लगती है, तो उसे मजा आता है। रोज ही…फिर अंत में…‘‘तू नहीं जानती, मैं तुझे कितना चाहता हूं। डर लगता है कि कहीं मुझे छोड़ कर तू उसके पास ना चली जाए। नहीं जाएगी ना…बोल…’’ फिर निधि उसे हर तरह से दिलासा देती है कि वह उसे छोड़कर किसी के साथ कभी नहीं जाएगी। शिवम उसके मुंह से रोज यही सुनना चाहता है।

‘‘बोल!’’
‘‘क्या?’’ उसने धीरे-से पूछा। फिर खुद ही सिर हिला दिया, ‘‘कुछ नहीं शिवम। बस…मुझे घर जाना है। बताया था ना, दिल्ली से नेहा दीदी और उनके हजबैंड आए हैं। मम्मी ने…’’

शिवम खीझ गया, ‘‘फिर से मम्मी…एक तरफ तो तुम कहती हो कि मम्मी से बगावत करोगी, मम्मी-मम्मी करना था, तो मेरे से इश्क क्यों किया? तुम बोर हो एकदम। तुम नहीं जाओगी अभी, कहीं भी नहीं। मैं स्साला कल को लेकर कितना टेंशन में हूं, पता नहीं।’’


‘‘कितनी खरखराने लगी है शिवम की आवाज। क्या करेगा कल? इस आवाज में गाना गाएगा? संगीतकार उमा-शंकर ने बड़ी मुश्किल से यह चांस दिया है। शिवम भी तो कम नहीं। कोरस में नहीं गाना चाहता, गाने की डबिंग भी नहीं करना चाहता। पिछले छह साल से मुंबई में है। पहले किसी ऑर्केस्ट्रा में गाता था, कुछ साल से वह भी नहीं कर रहा। कहता है, ज्यादा गाने से गला फट जाएगा। कुमार शानू को देख, गला कैसा हो गया है। पहले होटलों में इतना गाया कि अपना गला चौपट कर लिया। गायक वो नहीं जो दो-चार रुपल्ली के लिए कहीं भी गा दे।

शिवम को बड़ा गायक बनना है। बस एक ब्रेक मिलने की देर है। एक दिन की बात है। शायद वह दिन कल ही आ जाए। निधि को अंदर से झुरझुरी हो आई। उसका शिवम बहुत जल्द एक नामी गायक बन जाएगा और वह अपने शिवम की प्रेरणा होगी। वह उसका चेहरा देखकर गाया करेगा, उसके लिए गाया करेगा। इस सोच से वह थरथरा-सी गई। शिवम ध्यान से उसका चेहरा देख रहा था। निधि की चुप्पी उसे अखर गई। उसने छेड़ा, ‘‘बता ना। कुछ कह रही थी ना तुम, रूपदत्त…’’

‘‘उसका नाम भी मत लो मेरे सामने।’’ निधि अपनी सोच में खलल पड़ता देख भन्ना गई।
‘‘बनो मत। मुझे सब पता है। रूपदत्त…वो स्साला, क…मी…’’ शिवम की आवाज फट-सी गई, ‘‘तुम्हें देखा है मैंने, उसके साथ लगी रहती थी।’’
निधि का चेहरा कुम्हला गया। रोज की तरह उसने दलील दी, ‘‘तुमसे मिलने से पहले ना शिवम, तब से क्या एक दिन भी गई हूं उसके साथ?’’

रूपदत्त…नहीं निधि प्यार नहीं करती थी उससे। एक ही दफ्तर में काम करते थे दोनों पहले, जान-पहचान हो गई, एक-दो बार होटल चले गए, रीगल में पिक्चर देखने चले गए। रूपदत्त जरूर उससे कहता रहता था हर दिन कि निधि उससे शादी कर ले। निधि ने कभी हां नहीं कहा, ना भी नहीं कहा। जिंदगी में पहली बार किसी पुरुष के आकर्षण का केंद्र बनी थी वह, उसे अच्छा लगा था। रूपदत्त चिड़चिड़ा-सा था, व्यक्तित्वहीन-सा। बात करता तो एक तरफ से झुककर हिलने लगता था। वह बंगाली, लेकिन पला-बढ़ा कानपुर में था। शिवम जब उसके साथ उसके कमरे में रहने लगा, निधि की उससे मुलाकात हुई, रूपदत्त ने शिवम के सामने शेखी बघारी थी, निधि को मिलाने से पहले कि वह उसकी गर्लफ्रेंड है।

निधि ने वडा-पाव स्टॉल पर पहले पहल शिवम को देखा था। रूपदत्त के साथ ही उससे मिली थी वह। शिवम उसे पहली नजर में अलग लगा…अच्छा लगा। लंबा कद, बढ़ी दाढ़ी, छोटे लेकिन बेतरतीब बाल। कोई तो बात थी उसमें। निधि से बहुत अदब से मिला। पहली बार मन हुआ कि वह खुद आगे बढ़कर किसी पुरुष से मिल ले। अपने दिल की बात कहे। शिवम अलग है। रूपदत्त कभी शिवम नहीं हो सकता था।

फिर पता नहीं कैसे वह शिवम के करीब आ गई। बहुत जल्दी। जैसे उसे उसी की प्रतीक्षा थी।
अचानक शिवम की आवाज तेज हो गई, ‘‘जब भी सोचता हूं मैं उसके और तुम्हारे बारे में, मरे बदन में आग लग जाती है। मैंने देखा है तुम दोनों को बस स्टैंड पर। मेरे सामने…छि :! तुम बदचलन हो। पता नहीं, मैंने तुममें क्या देखा।’’

उसने निधि को जोर का धक्का दिया। वह तैयार नहीं थी। एकदम से गिर पड़ी। कोहनी में खरोंच आ गई। शिवम कहे जा रहा था, ‘‘सच बताओ निधि, तुम्हारा उसके साथ कितना गहरा संबंध था? तुमने उसे कितना पास आने दिया था? मुझे तो लगता है, आज भी तुम उससे मिलती हो?’’

वह कुछ बोल नहीं पाई। आंखों में आंसू तिर आए। स्वाभिमान को ठेस लगने से आंसू! शिवम क्यों कभी नहीं उसे भूलने नहीं देता कि वह उससे पहले रूपदत्त नाम के एक शख्स के साथ जुड़ी थी, चाहे जिस स्तर पर। कैसे कहे कि मन से वह सिर्फ उसकी है। रूपदत्त तो सिर्फ एक कवच था, जो उसे अपने आपको बचाने में कहीं साथ देता।

रूपदत्त से वह क्यों जुड़ी, उसे खुद नहीं पता। सिर्फ यह साबित करने के लिए कि उसकी माँ उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती या अपने उस पापा को सबक सिखाने के लिए, जो अब इस दुनिया में नहीं रहे। निधि के मन की वह गांठ आज तक नहीं खुली, जो बचपन से उसने कसकर मन के एक कोने में बांध रखी थी।

शिवम को बताया था उसने…अपने पापा के बारे में, मम्मी के बारे में। बचपन की उन काली-अंधेरी रातों के बारे में, जब वह बिस्तर पर अपने बगल में लेटी नेहा दीदी के हाथों को कसकर पकड़कर सोने की कोशिश करती थी। पापा आज फिर घर देर से आए हैं। मम्मी शोर मचाते हुए लड़ रही है। कह रही है कि मार्था जोसेफ को देख लेगी, मार देगी उसे। पापा चुपचाप जूते उतारकर किचन में चले गए हैं। तवे पर रोटी गर्म करने लगे हैं। मम्मी पीछे से आकर फिर कुछ कह रही है। मार्था…पापा ने प्लेट में रोटी लगा ली है। कड़ाही खाली है। सब्जी खत्म। पापा ने रोटी के ऊपर नमक डाल लिया है। खाने को हुए कि मम्मी ने कप उठाकर दीवार पर दे मारा है।

पापा की आंख में शायद चोट लग गई। मम्मी है कि चिल्लाए जा रही है। निधि आंखें मींचकर पड़ी है बिस्तर पर। बस उसी की आंख खुलती है पापा के घर आते ही। नेहा सोती रहती है। दस साल की है निधि और उससे छह साल बड़ी नेहा। मम्मी इतना गुस्सा क्यों करती हैं? हर समय? पता नहीं कैसे कपड़े पहने रहती हैं? बेतरतीब, उलझी-सी रहती हैं। बस तभी सजती हैं, जब किसी फिल्म के प्रीमियर में जाना होता है। पापा की किसी फिल्म में। पापा आते हैं पर्दे पर, दो-तीन मिनट के लिए, किसी के हाथों पिटते हैं, फिर गायब हो जाते हैं। निधि को अच्छा नहीं लगता पापा को इस तरह से देखना। मम्मी कुछ नहीं कहतीं। पापा को जब थोड़ा-बहुत काम मिलता है, तो अपने लिए सोने का कोई गहना खरीद लेती हैं। चैंबूर का घर भी शायद तभी लिया था, जब एक फिल्म में पापा कुछ बड़े रोल में दिखे थे।

शिवम ने कहा था, ‘‘तुम बिल्कुल अपने पापा पर गई हो, वही आशिक मिजाज…’’
निधि को बहुत बुरा लगा। वह अपने पापा की तरह नहीं। पापा को रिश्ते की समझ नहीं थी। पापा ने ना अपनी बीवी से प्यार किया, ना बेटियों से और ना शायद अपनी प्रेमिका से। वे तो मजबूरी में बीवी के साथ रहते थे। निधि कैसे बताए शिवम को, कि पापा ने उसे सिर्फ असुरक्षा दी है। दस साल की एक बच्ची को जिंदगी में सिर्फ डरना सिखाया है। पापा प्यार करते थे, पर पता नहीं किससे? मार्था से या शब्बी से? शब्बी…उनके घर काम करने आती थी। शब्बी के निश्चेष्ट चेहरे पर खून की लकीर, जमीन पर बिखरे बाल और थोड़ा-सा बढ़ा हुआ पेट।

निधि ने झुरझुरी ली। वे दिन कभी उसका पीछा नहीं छोड़ते। घबराकर वह उठ खड़ी हुई। सुबह से दिन अच्छा नहीं गुजरा था। वह दफ्तर जाने के लिए घर से निकली, वहीं नौ नंबर के बस स्टॉप पर रूपदत्त मिल गया। इन दिनों वह बेलार्ड एस्टेट में किसी कंपनी में काम करने लगा था। उसने उसे देख लिया, तेजी से वह स्टेशन की रोड पर लपकी। वह उसके पीछे-पीछे आ गया।

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