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कला-संगीत >> बाँसुरी सम्राट हरिप्रसाद चौरसिया

बाँसुरी सम्राट हरिप्रसाद चौरसिया

सुरजीत सिंह

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7900
आईएसबीएन :978-81-7315-734

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यह पुस्तक सभी महत्त्वाकांक्षी युवा कलाकारों के लिए प्रेरणास्रोत और महान बाँसुरी-वादक के लिए प्रशस्ति लेख है...

Banshuri Samrat Hari Prasad Chaurasiya - A Hindi Book - by Surjit Singh

सुरजीत सिंहजी का यह प्रयास इसलिए प्रशंसनीय है क्योंकि इसमें उन्होंने हरिजी के संपूर्ण व्यक्तित्व, उनके अंदर के कलाकार और एक अच्छे मानव के पूप में उनके व्यवहार को बड़ी कलात्मकता के साथ प्रस्तुत किया है।

—पं. जसराज

विश्वविख्यात बाँसुरीवादक पं. हरिप्रसाद चौरसिया बहुमुखी प्रतिभा के कलाकार हैं। उनके पूरे संगीत को, अद्भुत व्यक्तित्व को और बाँसुरी के क्षेत्र में उनके योगदान को एक पुस्तक के रूप में प्रस्तुत करके सुरजीत सिंहजी ने सहारनीय प्रयास किया है।

—शिवकुमार शर्मा

मेरी शुभकामना है कि सुरजीत सिंहजी द्वारा लिखित हरिजी के संगीतमय जीवन की यह आकर्षक गाथा युवाओं को अपना लक्ष्य पूरी शिद्दत, परिश्रम, अनुशासन और निष्ठा के साथ हासिल करने के लिए प्रेरित करेगी।

—अन्नपूर्णा देवी

सुरजीत सिंहजी की पुस्तक एक ऐसे हलके-फुलके व दिलचस्प लहजे में लिखी गई है, जो चौरसिया के जीवन के औपचारिक लिखित वृत्तांत के स्थान पर आपसी गपशप व बातचीत अधिक लगती है। चौरसिया की संगीत प्रतिभा व उनके जीवन की कहानी बतानेवाली यह पुस्तक अत्यंत पठनीय है।

—श्याम बेनेगल

यह पुस्तक सभी महत्त्वाकांक्षी युवा कलाकारों के लिए प्रेरणास्रोत और महान बाँसुरी-वादक के लिए प्रशस्ति लेख है।

—विक्रम घोष

अतीत के पुनर्सृजन का एक प्रामाणिक प्रयास। यह पुस्तक पाठकों को महान् संगीतज्ञ के प्रारंभिक काल से अंतर्राष्ट्रीय ख्याति तक की जीवन-यात्रा से परिचित कराती है।

—डॉ. विद्याधर व्यास

इकहत्तर की देहरी पर कदम रखने से बेहतर अपनी जिंदगी पर मुड़कर देखने का समय और क्या होगा ! इस पुस्तक में पं. हरिप्रसाद चौरसिया अपनी जीवन-कथा अपने चिर-प्रशंसक व संगीत अनुरागी सुरजीत सिंह को जैसी है, जैसी थी, वैसी ही सुनाते हैं। संस्मरणों और घटना-वृत्तांतों से भरपूर इस पुस्तक में उनके एक पहलवान के पुत्र से संगीतज्ञ होने तक की यात्री का विवरण अत्यंत रोचक शैली में है। आगे जारी रहते हुए यह वृत्तांत बताता है कि कैसे वह आकाशवाणी के स्टाफ आर्टिस्ट से फिल्म स्टूडियो के वाद्य-संगीतज्ञ, संगीत निर्देशक और फिर अंतरराष्ट्रीय गुरु बने। बाँसुरी जैसे साधारण साज को शास्त्रीय संगीत समारोहों का अनुपम वाद्य बनानेवाले कलाकार की जीवन-यात्रा का सर्वथा पठनीय वृत्तांत। संगीत इतिहास के एक महत्त्वपूर्ण अंश का मूल्यवान् दस्तावेज।

हसनी हॉलैंड


कहावत है कि जिस नगरी पर आपका दिल आ जाए, वही आपकी घर है।

भारत सरकार का मैरून जैकेटवाला डिप्लोमेटिक पासपोर्ट, अमेरिकी सरकार द्वारा दिया गया ग्रीन कार्ड, नीदरलैंड्स सरकार द्वारा दिया गया ‘निवासी’ का दर्जा, सैन फ्रांसिस्को शहर में मनाया जानेवाला ‘चौरसिया दिवस’ और बाल्टीमोर शहर की मानद नागरिकता ये कुछ ऐसी चीजें हैं, जो सुनिश्चित करती हैं कि पद्मविभूषण पं. हरिप्रसाद चौरसिया दुनिया में कहीं भी अपने धर्म बाँसुरी का प्रदर्शन, अभ्यास और प्रचार-प्रसार कर सकते हैं। वह भारतीय शास्त्रीय संगीतकारों की उस विरल प्रजाति के सदस्य भी हैं, जिन्होंने दुनिया की लगभग सभी सरकारों को कर का भुगतान किया है।

रॉटरडम वह नगरी है, जिस पर हरिप्रसाद का दिल आ गया।
सन् 1992 से वह घर से दूर उनका घर रहा है। ऐसी जगह, जहाँ वह गण्मान्य लोगों के साथ उठते-बैठते हैं, छात्र उन्हें सम्मान और श्रद्धा की नजर से देखते हैं, सहकर्मी उनकी प्रशंसा करते हैं और दोस्त उनके प्रति बहुत अच्छा भाव रखते हैं।

वह अपनी मातृभूमि से इतने अलग देश में इतना प्रभाव कैसे छोड़ सकते हैं ? क्या चीज उन्हें कामयाब बनाती है ? वह क्यों हॉलैंड से प्यार करते हैं और बदले में हॉलैंड भी उन्हें प्यार देता है ? जिन कुछ सप्ताह मैं उनके साथ वहाँ रहा, मुझे कई प्रश्नों के उत्तर मिल गए।

नीदरलैंड्स एक छोटा, लेकिन बहुत ही खूबसूरत देश है। आप अपने आपको वहाँ की नदियों, नहरों, जल-मार्गों, फूलों, मछली पकड़ने की नावों और दोस्ताना लोगों के साथ प्यार में पड़ने से नहीं रोक सकते। आप एक्सीलरेटर पर दबाव बढ़ाए बिना पाँच घंटों से कम समय में देश के आर-पार जा सकते हैं। सबकुछ बगल में है। इस धरती पर पं. हरिप्रसाद चौरसिया की सबसे पसंदीदा जगहों में से है क्यूकेनहॉफ गार्डन, जो अपने अंतहीन ट्यूलिप की पंक्तियों से दुनिया भर के पर्यटकों को आकृष्ट करता है। एम्सटरडम देश की राजधानी है, हेग उसका प्रशासनिक केंद्र और राजसी परिवार का घर तथा रॉटकडम व्यावसायिक केंद्र।

डच जीवन में रॉटरडम का एक अद्वितीय स्थान है। जहाँ 162 राष्ट्रीयताओं के साथ विविध संस्कृतियों का मेल देखने को मिलता है। यह हॉलैंड का सबसे आधुनिक शहर है, जिसे सन् 1940 में लुफ्तवाफ द्वारा बम विस्फोट का शिकार बनने के बाद पुनर्निमित किया गया था। इसकी पाँच तेल रिफाइनरियों में 120 मिलियन टन पेट्रोलियम पदार्थों का उत्पादन होता है। तैरती सूखी गोदियों और 280 क्रेनों में 370 मिलियन टन जहाजी माल इसे दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बंदरगाह बनाता है। मास नदी शहर को उत्तर दक्षिण दो भागों में बाँटती है। नदी के नीचे शहर के दोनों भागों को जोड़नेवाली मास सुरंग है, जिसका मोटर चालक और साइकिल सवार उपयोग करते हैं। इरासमम पुल, जिसे प्यार से ‘द स्वान’ कहते हैं और जिसे बनाने में 365 मिलियन गिल्डर्स (यह यूरो से पहले बना था) की लागत आई थी, का वास्तुशिल्प अद्वितीय सौंदर्य का एक नमूना है। यूरोमस्ट, क्यूबिक मकान और पेंसिल बिल्डिंग भविष्यवादी डच वास्तुशिल्प के दूसरे उदाहरण हैं। अमेरिकी शैली का ‘व्हाइट हाउस’ सन् 1898 में अपने निर्माण के समय यूरोप की पहली गगनचुंबी इमारत थी।

बहुमंजिली इमारतें और सेंट्रल स्टेशन के पास वाहनों की कतार एक चहल-पहलवाले महानगर का प्रभाव देता है, लेकिन शहर में अन्य जगह का ट्रैफिक रविवार की सुबह-सुबह कोलकाता, मुंबई या नई दिल्ली के ट्रैफिक के बराबर है। उसकी बसें, ट्राम, ट्रेन और हवाई जहाज उसे पूरे यूरोप से जोड़ते हैं। निश्चित रूप से दुनिया के इस सबसे अधिक साइकिलोंवाले देश में बाइकवालों के लिए रास्ते रिजर्व हैं। एशियाई शहरों के विपरीत, जहाँ साइकिल चलाने में प्रतिष्ठा कम होती है, यहाँ पर अमीर और शिक्षित लोग उसे ऑटोमोबाइल के प्रदूषण के इक इको फ्रैंडली विकल्प के रूप में देखते हैं।

एक नाव की सवारी या ‘फास्ट फेरी’ से डॉरड्रेख्त पहुँचा जा सकता है, जहाँ हॉफक्वार्टर इतिहास, कला और विज्ञान का मिलन बिंदु है। हॉफ का स्टेटन हॉल आकस्मिक रूप से देश का पालना और नीदरलैंड्स के वर्तमान राज्य का जन्मस्थान बन गया, जब सन् 1572 में प्रिंस विलियम ऑफ ऑरेंज को हॉलैंड और जीलैंड के वाइसराय के रूप में मान्यता दी गई थी। यह अलोकप्रिय स्पेनिश शासन के खिलाफ जारी संघर्ष में एक महत्त्वपूर्ण वर्ष था, जब बहुसंख्यक प्रोटेस्टेंट डच अपने कैथोलिक शासकों के दमन के शिकार थे।

एक पुराने डच शहर शीडम तक पंद्रह मिनट की ट्राम यात्रा के बाद पहुँचा जा सकता है, जो आधुनिक रॉटरडम में खो गया लगता है। अगर आप इनमें से किसी शहर के निवासी हैं, तभी आप इन दोनों के बीच का अंतर बता सकते हैं, हालाँकि शीडम को ध्यान से देखने पर रॉटरडम से बिलकुल भिन्न उसकी पहचान और चरित्र का पता चलता है। दुनिया की पाँच सबसे बड़ी पवन चक्कियाँ शीडम में हैं, साथ ही यहाँ एक चॉकलेट फैक्टरी और एक जेनेवर संग्रहालय है (जिन को डच में ‘जेनेवर’ कहते हैं)। यहीं पर इस राष्ट्रीय डिस्टिल्ड उत्पाद का जन्म हुआ और यह पूरे देश का गौरव बन गया।

कला में रुचि रखनेवालों के लिए यहाँ करने को बहुत कुछ है। अंतरराष्ट्रीय काव्य उत्सव दुनिया भर के कवियों को रॉटरडम ले आता है। अपनी कविताओं को पढ़ने के लिए आपको कम-से-कम छह महीने पहले आमंत्रित किया जाना होता है। अगर आपने अपनी कृति का पाठ यहाँ पर किया है तो आप निश्चित रूप से कविता की दुनिया में एक अहम स्थान रखते हैं।

नॉर्थ सी जाज उत्सव यूरोप का सबसे बड़ा समारोह है। जुलाई 2007 में आयोजित समारोह में दर्जनों कलाकार शामिल हुए, जिनमें कुछ सुपर स्टार हैं, जैसे–मैके टाइनर, जॉन स्कोफील्ड, रॉन कार्टर, लैरी कार्लटन, स्टीले डैन, पॉल अंका और चिक कोरिया। पश्चिमी शास्त्रीय संगीत के प्रेमियों के लिए रोमांटिक म्यूजिक फेस्टिवल पसंदीदा समारोह है, जिसमें विभिन्न स्थानों पर विविध आयोजन होते हैं।

अपनी मातृभूमि से ज्यादा जुड़ाव महसूस करनेवाले भारतीय के लिए भी यहाँ बहुत कुछ है। मिलान मेला भारतीय भोजन और संगीत का उत्सव है, जहाँ भारतीय कपड़ों और कलाकृतियों के स्टॉल लगते हैं। दीवाली में लोगों के घरों में मिट्टी के दीये जलते हैं और रोशनी के जुलूस निकाले जाते हैं। रंगों के त्योहार होली के एक दिन पहले होलिका-दहन होता है। रामलीला और रथ-यात्रा को भी उत्साह से मनाया जाता है।

यह वह स्थान है, जिसे हरिप्रसाद अपना दूसरा घर कहते हैं। अब इस पुस्तक के पर्यटक सूचना सहायता केंद्र या वी. वी. वी. (जिसका उच्चारण डच फे. फे. फे. करते हैं) बनने से पहले हरिप्रसाद चौरसिया पर वापस लौटते हैं।

वह पहली बार सन् 1971 में हॉलैंड गए थे और तब उनकी प्रतिष्ठा लगातार बढ़ती गई, जिसके कारण कंजर्वेटरी में उनकी नियुक्ति कर दी गई। ऐसा भी लगता है कि वह अपने रास्ते पर हमेशा सही लोगों से मिले हैं। उन्हें वहाँ सबसे अधिक पानी और फूलों ने आकृष्ट किया। उन्हें इस बात से सबसे अधिक सहजता महसूस हुई कि हर कोई अंग्रेजी बोलता, या कम-से-कम समझता था। वहाँ की जलवायु बहुत बढ़िया थी, लोगों का व्यवहार दोस्ताना था और विदेशियों का स्वागत होता था। वह दुःखी होकर कहते हैं, ‘‘अब स्थिति बहुत अलग है। 9/11 और एशियाई लोगों द्वारा ऐसे आतंकवाद के बाद हमें (भारतीयों को) अब उतना सम्मान नहीं मिलता।’’

वहाँ उनके शुरुआती संपर्कों में सितार वादक दर्शन कुमारी थीं, जो कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की स्नातक और पंजाब विश्वविद्यालय से कला में स्नातकोत्तर थीं। उन्हें सन् 1971 में एक ग्रीक दंपती द्वारा भारतीय संगीत सिखाने के लिए एथेंस आमंत्रित किया गया था। उन्होंने पाया कि स्थानीय लोगों को भारतीय शास्त्रीय संगीत की अवधारणा को समझने में मुश्किल होती है। संगीत-प्रेमी होने के बावजूद उन्हें शास्त्रीय संगीत का आलाप वाला हिस्सा पसंद नहीं था और जैसे ही लय शुरू होती थी, वे उठकर नाचना शुरू कर देते थे। एथेंस में अमेरिका एक्सप्रेस के लोगों द्वारा बताए जाने पर वह एम्सडर्टम पहुँची जहाँ उन्हें तुरंत रॉयल ट्रॉपिकल, इंस्टीट्यूट में संगीत की शिक्षा देने का काम मिल गया। जल्द ही उनके सितार गुरु जमालुद्दीन भरतिया भी वहाँ पहुँच गए।

वह पहली बार सन् 1972 में हॉलैंड के टी.वी. एवं रेडियो रिकॉर्डिंग सेंटर हिलवर्सम में हरिप्रसाद चौरसिया से मिलीं। वह और शिवकुमार शर्मा डच रेडियो के लिए रिकॉर्डिंग कर रहे थे और उन्हें एक तानपुरा वादक की जरूरत थी। दर्शन कुमारी वहाँ अपने गुरु की एक रिकॉर्डिंग के लिए तानपुरा बजा रही थीं। हरिप्रसाद ने स्वयं उनसे बात की और तानपुरा पर उनका साथ देने का अनुरोध किया। स्वाभाविक रूप से वह रोमांचित हो उठीं। उस दिन संयोग से हुआ परिचय समय के साथ एक गहरी मित्रता में बदल गया।

सन् 1973 में उन्होंने त्रिवंती विद्यापीठ के ध्वज के तहत हरिप्रसाद, शिवकुमार शर्मा और दूसरे संगीतकारों को हॉलैंड व यूरोप के दूसरे भागों में कॉन्सर्ट टूर्स के लिए आमंत्रित करना शुरू किया। यह स्थान उन्होंने व जमालुद्दीन भरतिया ने शुरू किया था और संस्थापक अध्यक्ष पं. रवि शंकर ने उसका नामकरण किया था। सन् 1974 में जॉन आइलर्स भी उनके साथ शामिल हो गए और नवगठित स्तकतिंग इंडिया म्यूजिक तथा त्रितंत्री विद्यापीठ द्वारा हॉलैंड में कॉन्सर्ट का आयोजन किया जाता था।

उन्होंने ढाई दशकों तक पूरे हॉलैंड, बेल्जियम, जर्मनी, स्विटजरलैंड और इटली ने उन सभी को सफल बना दिया। हालाँकि हरिप्रसाद, शिवकुमार और जाकिर हुसैन के कॉन्सर्ट अब भी खचाखच भरे होते हैं, परंतु सन् 1990 के दशक के अंत तक संख्या में थोड़ी गिरावट आई। इसके अलावा सरकार द्वारा कॉन्सर्ट सब्सिडियों में कटौतियों की वजह से अब वह आयोजकों के लिए उतना लाभदायक नहीं रहा। इस सबके अलावा कैंसर के बाद अवसाद की वजह से जॉन आइलर्स ने सन् 1999 में यह संस्थान छोड़ दिया। आखिरकार 17 सितंबर, 2004 को कैंसर ने उनकी जान ले ली।

’70 से ’80 के दशक तक हरिप्रसाद की प्रसिद्ध खूब बढ़ी। वह अन्य स्थानों के अलावा नियमित रूप से रॉयल ट्रॉपिकल इस्टीट्यूट और मोज़ेज़ एन ऐरन कर्क (चर्च को डच में ‘कर्क’ कहते हैं) में प्रस्तुति देते रहे। उनके प्रशंसकों की संख्या विशाल थी। उन्हें नियमित सुननेवालों में प्रिंस क्लाउस थे, जो नीदरलैंड्स में गैर-पाश्चात्य या ‘विश्व’ संगीत के सबसे महान संरक्षकों में एक थे। उनको पहली पंक्ति में बैठकर चौरसिया के कॉन्सर्ट का आनंद उठाते देखा जा सकता था।

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