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भाग्यनगर का क़ैदी

तेजपाल सिंह धामा

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7778
आईएसबीएन :9788121614559

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एक शोधपरक ऐतिहासिक कथा...

Bhagyanagar ka Qaidi Nizam Hydrabad - A Hindi Book - by Tejpal Singh Dhama

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

निज़ाम हैदराबाद विश्व का न केवल सबसे धनवान आदमी था, वरन् तत्कालीन भारत में वह सर्वाधिक शक्तिशाली शासक भी था। उसकी अपनी निजी वायुसेना तक थी, जिसने विश्वयुद्ध में मित्र देशों की भरपूर सहायता की थी ! उसने आज़ादी के तुरन्त बाद भारत संघ में विलय होने से क्यों इनकार किया ? वह पाकिस्तान में क्यों मिलना चाहता था... जबकि वह रक्त से हिन्दू था, उसका वास्तविक पिता हिन्दू था... फिर विवश हो सरदार पटेल के सामने उन्होंने हथियार क्यों डाले ? इतिहास के इन्हीं रहस्यों से पर्दा उठाने वाली एक शोधपरक ऐतिहासिक कथा।

तेजपाल सिंह धामा मूलरूप से पत्रकार हैं। लेकिन मुख्य रूप से उनका रूझान ऐतिहासिक विषयों के लखन पर है। ‘हमारी विरासत’ (शोध-ग्रंथ) उनकी प्रसिद्ध रचना है। अब तक उनके 16 ऐतिहासिक उपन्यास, 5 काव्य संग्रह, 1 महाकाव्य और विविध विषयों की कुछ अन्य पुस्तकें छप चुकी हैं। इन्हें अनेक साहित्यिक एवं सामाजिक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।

भाग्यनगर का क़ैदी निज़ाम हैदराबाद

भाग्यलक्ष्मी ! नेनु नीकु चाला प्रेमचेस्ता।’’1 उस युवक ने बड़ी ही आशा भरी दृष्टि से पूछा।
‘‘निजम ने राजा !’’ भाग्यलक्ष्मी ने कहा, ‘‘अय्यो रामा ! नाकू चाला सिग्गू ओस्तुनई।’’2
‘‘हाय, इतनी शरम !’’
‘‘और बेरशरम हो जाऊं क्या ?’’ भाग्यलक्ष्मी ने कहा, ‘‘लड़की विवाह से पहले ही तो शरमाती और उसके बाद तो...।’’ ‘‘वर जीवनभर पछताता है,’’ युवक ने कहा, ‘‘लेकिन मैं ऐसा लड़का नहीं कि विवाह के बाज जीवनभर पछताऊं !’’
‘‘तुम कोई निज़ाम हो क्या ?’’

‘‘और नहीं तो क्या ?’’ उस युवक ने कहा, ‘‘मैं निज़ाम ही तो हूं।’’
‘‘क्या ?’’ भाग्यलक्ष्मी की आंखें आश्चर्य से फटी-की-फटी रह गईं, ‘‘नुव्वु निजम चेपतुन्नावा ?’’3
‘‘खुदा कसम !’’

‘‘खुदा कसम ?’’ भाग्यलक्ष्मी ने कहा, ‘‘अर्थात् तुम म्लेच्छ हो, तुमने मुझसे प्रेम करके मेरा धर्म भ्रष्ट किया ?’’
‘‘एक सम्राट ने तुमसे प्रेम किया और तुम कहती हो कि तुम्हारा धर्म भ्रष्ट हो गया’’, उस युवक ने कहा, ‘‘तुम्हें तो गर्व होना चाहिए कि तुम्हें उसने चाहा है, जिसको पाने के लिए हैदराबाद रियासत की लाखों हसीनाएं दिन में भी सपने देखा करती हैं।’’

‘‘देखा करती होंगी, लेकिन मैं उनमें से नहीं हूं। मैं एक आर्य कन्या हूं और आर्य कन्या अपने शरीर, मन और प्रेम से ज्यादा धर्म को महत्व देती है।’’
‘‘ओह ! समझा। लेकिन मेरी प्रियतमा प्रेम के आगे धर्म को महत्व नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि जहां प्रेम है, धर्म की कल्पना भी वहीं संभव है।’’
‘‘धर्म कोई कल्पना नहीं, वह तो शाश्वत सत्य है।’’

‘‘तो क्या तुम मुझसे निकाह नहीं पढ़ोगी ?’’
‘‘निकाह और तुमसे ?,’’ भाग्यलक्ष्मी ने कहा, ‘‘यदि तुम हिन्दू होते तो तुमसे विवाह अवश्य कर लेती, लेकिन अब संभव नहीं।’’ फिर उसने क्रोध में कहा, ‘‘तुमने मुझसे धोखा किया है।’’
‘‘कैसा धोखा ?’’

‘‘तुमने अपना धर्म छिपाकर मेरे साथ विश्वासघात किया है।’’
‘‘भाग्यलक्ष्मी, प्रेम करने वालों का कोई धर्म नहीं होता, प्रेम तो अपने आप में एक धर्म है।’’
‘‘अपनी दार्शनिकता अपने पास रखो और आइंदा मुझसे मिलने की कोशिश नहीं करना।’’
‘‘मगर माग्यलक्ष्मी, मैं तुम्हारे बिना जिंदा नहीं रह सकता।’’

‘‘अच्छा ही होगा !’’
‘‘क्या धर्म को तुम प्रेम से बढ़कर समझती हो ?’’
‘‘हां, धर्म के आगे मेरे लिए प्रेम कुछ नहीं, प्रेम तो मिट्टी की इस काया से किया जाता है। यह काया तो नश्वर है, लेकिन धर्म तो मेरी आत्मा में जन्म-जन्मांतर के संस्कारों से पोषित है, इसलिए इसे त्यागा नहीं जा सकता।’’4

‘‘एक बात कहूं भाग्यलक्ष्मी ?’’
‘‘मैं तुमसे अब कोई बात नहीं करना चाहती।’’
‘‘लेकिन मेरी बात सुनो तो, ‘‘उसने फिर कहा, ‘‘यदि मैं हिन्दू धर्म अपना लूं, तो क्या तुम मुझसे विवाह कर लोगी।’’
‘‘किसी मुसलमान को हिन्दू नहीं बनाया जा सकता है।’’

‘‘क्यों नहीं बनाया जा सकता, ‘‘उसने पूछा, ‘‘जब हिन्दू को मुसलमान बनाया जा सकता है, तो मुस्लिम को हिन्दू क्यों नहीं बनाया जा सकता ?’’
‘‘इसका जवाब मेरे पास नहीं है ?’’
‘‘तो किसके पास है ?’’

‘‘काशी के पंडितों के पास।’’
‘‘ठीक है तो मैं काशी के पंडितों के पास जाकर ही पूछूंगा कि मैं मुसलमान से हिंदू कैसे बन सकता हूं।’’
‘‘जाओ पूछो और यदि उन्होंने तुम्हें हिन्दू बना दिया, तो मैं तुमसे विवाह अवश्य कर लूंगी।’’

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