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प्रेम की भूतकथा

विभूति नारायण राय

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7737
आईएसबीएन :978-81-263-1835

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‘प्रेम की भूतकथा’ मसूरी के इतिहास में लगभग विलुप्त हो चुके एक विचित्र घटना-क्रम से उत्पन्न एक अत्यन्त पठनीय उपन्यास...

Prem ki Bhootkatha - A Hindi Book - by Vibhuti Narayan Rai

‘प्रेम की भूतकथा’ मसूरी के इतिहास में लगभग विलुप्त हो चुके एक विचित्र घटना-क्रम से उत्पन्न अत्यन्त पठनीय उपन्यास है। एक शताब्दी पहले मसूरी में माल रोड पर एक केमिस्ट की दुकान में काम करनेवाले जेम्स की हत्या हुई थी। जेम्स की हत्या के लिए उसके दोस्त सार्जेन्ट मेजर एलन को दोषी पाया गया। 1910 में एलन को फाँसी हुई। लेकिन क्या सचमुच एलन अपने दोस्त जेम्स का हत्यारा था ! क्या जेम्स की क़ब्र पर अंकित यह वाक्य ठीक है, ‘मर्डर्ड बाई द हैंड दैट ही बीफ्रेंडेड’। ऐसे अनेक प्रश्नों और उनके बहुतेरे आयामों की पड़ताल करता उपन्यास ‘प्रेम की भूतकथा’ हिन्दी कथा साहित्य में एक अनोखी रचना है। अनोखी इसलिए क्योंकि इस रहस्यगाथा के सूत्र एक प्रेमकथा में निहित हैं। यह प्रेमकथा है मेजर एलन और मिस रिप्ले बीन की।

हत्या की तारीख़ 31 अगस्त 1909 का पूरा विवरण एलन से कोई नहीं जान सका। न पुलिस और न फ़ादर कैमिलस। फ़ादर के सामने एलन ने जैसे नीमबेहोशी में कहा, ‘आप जिसे प्यार करते हैं उसे रुसवा कर सकते हैं क्या?’ अपनी फाँसी से पहले एलन ने एक काग़ज़ पर लिखा था, ‘नो रिग्रेट्स माई लव।’ एलन के एकान्त में समाप्त सी मान ली गयी एक संक्षिप्त किन्तु समृद्ध-सम्पन्न प्रेमकथा का उत्खनन विभूति नारायण राय ने बहुआयामी भाषा और अनूठे शिल्प के माध्यम से किया है। एलन और रिप्ले बीन के बीच उपस्थित प्रेम को पढ़ना एक दुर्निवार आवेग से साक्षात्कार करना है।

‘प्रेम की भूतकथा’ में विभूति नारायण राय ने एक ताजा कथायुक्ति की सफल प्रयोग किया है। निकोलस, कैप्टन यंग और रिप्ले बीन के भूत कथानक का विस्तार करते हुए उसे तर्कसंगत निष्पत्तियों तक पहुँचाते हैं। एक गहरे अर्थ में यह समय के दो आयामों का संवाद है। समय के सामने मिस रिप्ले का भूत स्वीकार करता है, ‘लड़की कायर थी। कितना चाहती थी कि चीखकर दुनिया को बता दे कि एलन हत्यारा नहीं है पर डरती थी।’ विक्टोरियन नैतिकता के विरुद्ध रिप्ले बीन का यह दबा-दबा विलाप वस्तुतः किसी भी समय और समाज में सक्रिय प्रेम विरोधी नैतिकताओं के कठघरे में खड़ा कर देता है।

मानव मन की जाने कितनी अन्तर्ध्वनियों को शब्दबद्ध करता प्रस्तुत उपन्यास समकालीन हिन्दी कथा साहित्य में निश्चित रूप से महत्त्वपूर्ण माना जायेगा।

विभूति नारायण राय

जन्म : 28 नवम्बर, 1950।
शिक्षा : मुख्य रूप से बनारस और इलाहाबाद में। 1971 में अँग्रेजी साहित्य में एम.ए.।
1975 से भारतीय पुलिस सेवा के सदस्य।
प्रकाशन : पाँच उपन्यास - ‘घर’, ‘शहर में कर्फ्यू’, ‘किस्सा लोकतन्त्र’, ‘तबादला’, ‘प्रेम की भूतकथा’; ‘एक छात्र नेता का योजनामचा’ (व्यंग्य), ‘कम्बेटिंग क्मयूनल कान्फ्लिक्ट’ (शोध); ‘भारतीय पुलिस और सांम्प्रदायिक दंगे’ (साम्प्रदायिक दंगों पर शोध)। कमतियाँ अँग्रेज़ी, उर्दू, पंजाबी, बांग्ला, मराठी और कन्नड़ में अनूदित।
सम्पादन : ‘कथा साहित्य के सौ बरस’, हिन्दी की महत्त्वपूर्ण पत्रिका ‘वर्तमान साहित्य’ का 20 वर्षों तक सम्पादन।
सम्मान : ‘इन्दु शर्मा अन्तर्राष्ट्रीय कथा सम्मान’ (लन्दन), ‘उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा सम्मानित सफदर हाशमी सम्मान’।
सम्पर्क : कुलपति, महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, 16 पंचटीला, वर्धा (महाराष्ट्र)।


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