लोगों की राय

उपन्यास >> वरःमिहिर

वरःमिहिर

घनश्याम पाण्डेय

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :320
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7717
आईएसबीएन :9788126318766

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

79 पाठक हैं

वरःमिहिर के गौरवशाली व्यक्तित्व-कृतित्व को औपन्यासिक शिल्प में प्रस्तुत करती एक महत्त्वपूर्ण कृति...

Varahmhir - A Hindi Book - by Ghanshyam Pande

आचार्य वरःमिहिर ईसा की पाँचवीं छठी शताब्दी के महान वैज्ञानिक एवं गणितज्ञ रहे हैं। कापित्थक (उज्जैन) में उनके द्वारा विकसित गणितीय विज्ञान का गुरुकुल सात सौ वर्षों तक अद्वितीय रहा। वरःमिहिर बचपन से ही अत्यन्त मेधावी और तेजस्वी थे। अपने पिता आदित्यदास से परम्परागत गणित एवं ज्योतिष सीखकर इन क्षेत्रों में व्यापक शोध कार्य किया। उनके कार्यों की एक झलक समय मापक घट यन्त्र, इन्द्रप्रस्थ में लौहस्तम्भ के निर्माण और ईरान के शहंशाह नौशेरवाँ के आमन्त्रण पर जुन्दीशापुर नामक स्थान पर वेधशाला की स्थापना के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उपन्यास को बोझिल न बनाने के उद्देश्य से गणितीय गणनाओं का समावेश नहीं है, परन्तु यत्र-तत्र उनकी गणितीय उपलब्धियों की ओर इंगित किया गया है। वरःमिहिर का मुख्य उद्देश्य गणित एवं विज्ञान को जनहित से जोड़ना था। वस्तुतः ऋग्वेद काल से ही भारत की यह परम्परा रही है। वरःमिहिर ने पूर्णतः इसका परिपालन किया है। ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी के महान भारतीय गणितज्ञ एवं वैज्ञानिक वरःमिहिर के गौरवशाली व्यक्तित्व-कृतित्व को औपन्यासिक शिल्प में प्रस्तुत करती एक महत्त्वपूर्ण कृति। भारत के प्रसिद्ध विवेक-संपुष्ट और स्वाभिमान-सम्मत अतीत का एक ऐसा आख्यान जो तार्किकता और हार्दिकता का अत्यन्त पठनीय संगम है।

डॉ. घनश्याम पाण्डेय

प्रारम्भ से ही गणित में गहन अभिरुचि। सन् 1960 में सागर विश्वविद्यालय से एम.एस-सी. (गणित) तथा 1963 में जेकोबी श्रेणी की अभिसारिता एवं संकलनीयता पर गहन शोध करके विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से पी-एच. डी. एवं 1968 में डी. एस-सी. की उपाधि प्राप्त की।

हंगेरियन विज्ञान अकादमी, बुडापेस्ट में विजिटिंग प्रोफेसर, फुलब्राइट फेलो (नार्थ-वेस्टर्न यूनिवर्सिटी, शिकागो, यू.एस.ए.) तथा भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (राष्ट्रपति निवास, शिमला) के फेलो रहे हैं। 15 वर्ष गणित विभाग, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में आचार्य एवं अध्यक्ष तथा 6 वर्ष तक भारतीय गणित इतिहास परिषद के अध्यक्ष रहे। गणित की प्रसिद्ध जर्मन पत्रिका ‘Zentralblatt fur Mathematik’ (Berlin) में शोध-पत्रों के समीक्षक तथा 10 वर्ष तक ‘Vikram Mathematical Journal’ के सम्पादक रहे हैं।

देश-विदेश की लब्धप्रतिष्ठ शोध-पत्रिकाओं में लगभग 64 शोध-पत्र तथा उच्च गणित पर 5 पुस्तकें प्रकाशित। एक अन्य पुस्तक ‘Acharya Verahmihira & Development of Mathematics’ भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान द्वारा प्रकाशाधीन।
‘वरःमिहिर’ (उपन्यास) हिन्दी साहित्य में लेखन की प्रथम कृति।

सम्प्रति : हारमोनिक अनैलिसिस, सन्निकटन के सिद्धान्त, व्यापकीकृत फलन, गणित के इतिहास एवं वृहद आर्थिक विश्लेषण के कुछ आयामों पर शोधरत।

सम्पर्क : 105, सन्त नगर, उज्जैन (मध्य प्रदेश)


प्रथम पृष्ठ

लोगों की राय

No reviews for this book