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आमीन एक नन की आत्मकथा

सिस्टर जेस्मी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :164
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7703
आईएसबीएन :978-0-143-06710

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कॉन्वेंट के अंदर की ज़िंदगी की निर्भीक और दिल को दहला देने वाली दास्तान...

Amen Ek Nun ki Atmkatha - A Hindi Book - by Sister Jesme

31 अगस्त, 2008 को सिस्टर जेस्मी ने ‘कॉन्ग्रीगेशन ऑफ़ मदर ऑफ़ कार्मेल’ छोड़ दिया। उनका कहना है कि धर्माधिकारियों द्वारा उन्हें विक्षिप्त क़रार दिए जाने के प्रयासों ने उनके सामने और कोई रास्ता नहीं छोड़ा था। भारत में लिखी गई अपनी तरह की इस पहली पुस्तक में एक नन के रूप में सिस्टर जेस्मी की तैंतीस साल की ज़िंदगी के अनुभवों का बेबाक ब्योरा है।

कैथोलिक मत में गहरी आस्था रखने वाले एक अच्छे परिवार की, ज़िंदगी से भरपूर और खिलंदड़े स्वभाव की जेस्मी सत्रह साल की उम्र में जूनियर कॉलेज में आयोजित एक रिट्रीट (धार्मिक एकांतवास) में भाग लेने के बाद धार्मिक जीवन की ओर आकर्षित हुई। कॉन्वेंट में सात साल तक एक नन के रूप में काम करने के बाद सिस्टर जेस्मी वहां पनपती अनेक बुराइयों के बारे में ख़ामोश रहने पर मजबूर किए जाने पर हताश हो उठीं। कॉलेज में दाख़िले के लिए चंदा लिए जाने के रूप में भ्रष्टाचार व्याप्त था; कुछ पादरियों और ननों के बीच और कुछ ननों के आपस में भी जिस्मानी संबंध थे; वर्ग-भेद था–जिसकी वजह से चेडुथियों (ग़रीब और अल्पशिक्षित नन) को तुच्छ काम करने पड़ते थे। इतना ही नहीं, पादरियों और ननों को मिलने वाली सुख-सुविधाओं में भी बहुत ज़्यादा फ़र्क़ था।

जेस्मी को अंग्रेज़ी साहित्य में डॉक्टरेट करने, साहित्य सिनेमा और कॉलेज के छात्रों को पढ़ाने के अपने शौक़ को पूरा करने की अनुमति दी गई थी। उन्होंने इस विश्वास के साथ कि सौंदर्य-चेतना आध्यात्मिकता को बढ़ाती है, छात्रों को क्लासिक फ़िल्मों से भी रूबरू करवाया। मगर जिन मुसीबतों को उन्हें झेलना पड़ता था, उनकी वजह से ये आनंद फीके पड़ गए।

आध्यात्मिक और संवेदनशील आमीन चर्च में सुधार लाने की एक अपील है और एक ऐसे समय में सामने आई है, जब ननों और पादरियों को लेकर चर्च की चिंताएं बढ़ रही हैं। यह आत्मकथा कॉन्वेंट की चारदीवारी के बाहर रहकर भी नन की तरह जीवनयापन करती जेस्मी की जीज़स और चर्च में अटूट निष्ठा और आस्था पर मुहर लगाती है।

Amen: The Autobiography of a Nun, Sister Jesme
अनुवाद: शुचिता मीतल

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