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उपासना एवं आरती >> हनुमान तंत्रम्

हनुमान तंत्रम्

कमल प्रकाश अग्रवाल

प्रकाशक : भगवती पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :212
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 765
आईएसबीएन :00000

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इस पुस्तक में हनुमान के जीवन के प्रमुख घटनाओं का विवरण है। रामचरित मानस में ‘सुन्दरकाण्ड’ का नाम ‘हनुमानकाण्ड’ होना चाहिये था, परन्तु तुलसी बाबा ने हनुमान के पुराने नाम ‘सुन्दर’ पर ही रचा ताकि सुन्दरकाण्ड ‘सत्यं शिवं सुन्दरं की तरह ’सुन्दर’ ही सबको प्रिय लगे।

Hanuman Tantram -A Hindi Book by Kamal Prakash Agarwal

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

1. हनुमानजी इस धरती पर अजर और अमर हैं। हर दिन हर पल अपने भक्तों के प्राण हैं।
2. श्री हनुमाजी की लीला एवं शक्ति अपरम्पार है। हनुमान जी ऐसे देवता हैं जिनको यह वरदान प्राप्त है जो भी भक्त हनुमान जी ऐसे देवता हैं जिनको यह वरदान प्राप्त हैं जो भी भक्त हनुमान जी की शरण में आयेगा उसका कलियुग कुछ भी नहीं बिगाड़ पायेगा।
3. आज यदि कोई शीघ्रता से प्रसन्न होने वाला है तो व हनुमान जी ही हैं जिन भक्तों ने पूर्ण भाव एवं निष्ठा से हनुमान जी की भक्ति की है, उनके कष्टों को हनुमान जी ने शीघ्र ही दूर किया है। ऐसे भक्तों को जीवन में कभी भी कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता उनके संकटों को हनुमान जी स्वयं हर लेते हैं।
4. गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज के कथानुसार उनकी सेवा में कोई विशेष प्रयास करना नहीं पड़ता। ये गुणगान करने, नमस्कार करने, स्मरण करने तथा नाम जपने मात्र से प्रसन्न होकर सेवकों का अभीष्ट हितसाधन सम्पन्न करने को सदैव तत्पर रहते हैं। जिसके हृदय में इनकी विकराल मूर्ति निवास कर लेती है, स्वप्न में भी उसकी छाया के पास भी संताप-पाप निकट नहीं आ सकते।

समर्पण

परम पयस्विनी साधिका
ब्रह्म ज्ञानी
‘सरस्वती’
तारिणी (तारा)
को ज्ञान-वैराग्य दायिनी
ममता और स्नेह
की उस नारी मूर्ति को,
हनुमान की माता अज्जनि
(तपस्वियों को बल देने वाली देवी भैरवी)
को शत-शत प्रणाम करते
अनन्त जिज्ञासु और पिपाशु
मन को सागर सी गहराई
में डुबकी लगाने
तथा संसार के कष्टों से मुक्ति हेतु
गुं गुरुभ्यो नमः।
गं गणपतये नमः ।
ऐं हीं क्लीं चामुण्डाये बिच्चै।
ऊँ हीं घृणि सूर्यादित्य ऊँ।
ऊँ श्री पञ्च वदनाय अञ्जनेयाय मनः।

अपनी बात

हनुमान तंत्रम् के बारे में-

ऊँ पूर्ण परात्पर भगवान हनुमान, अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरू) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्यरूपी वन को ध्वंस करने के लिये अग्नि स्वरूप ज्ञानियों में अग्रगण्य, सम्पूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथ जी के प्रिय, भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूँ।


प्रनवउँ पवन कुमार खल बन पावक ग्याल घन।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर ।।

रामचरित मानस में सुन्दरकाण्ड का नाम होना चाहिये था, परन्तु तुलसी बाबा ने हनुमान के पुराने नाम ‘सुन्दर’ पर ही रचा ताकि सुन्दरकाण्ड ‘सत्यं शिवं सुन्दरं की तरह ’सुन्दर’ ही सबको प्रिय लगे।

हनुमान जी की उपासना भारत में कोने-कोने से लेकर सम्पूर्ण एशिया (जावा-सुमित्रा’ लंका, थाई, मारीशस, बर्मा अफगानिस्तान, जापान आदि) से लेकर यूरोप व समस्त विश्व में होती है।
सप्तऋषि जिन्हें वरदान प्राप्त है कि चिरंजीवी रहेंगे- (अश्ववत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, शक, कृपाचार्य परशुराम) इनमें से एक हनुमान है। तंत्र शास्त्र के अनुसार सात करोड़ राम मंत्रों का जाप करने के बाद कहीं साधकों को हनुमान दिखाई देते हैं। हनुमान वेग में वायु देवता तथा गति में गरुड़ देवता के सक्षम हैं। भगवान के उत्तर दिशा के पार्षद कुबेर की गदा इन पर रहती है जिसमें अधर्म करने को दण्ड देने के अधिकारी हैं। इनकी गदा संग्राम में विजय दिलाने वाली हैं अतः साधकों को धर्मच्युत व्यवहार के लिए मारुति की गदा का भी ध्यान व पूजन अभीष्ट है। यदि साधक स्वयं (अनुचित) मार्ग से हनुमान की प्रार्थना करता है तो कभी साधना सफल नहीं होगी। यदि साधक मृत्युतुल्य कष्ट से ग्रस्त हो, तो मंगलमूर्ति का ध्यान हाथ में संजीवनी का पहाड़ लिये, साथ में सुषेण वैद्य का भी ध्यान करना चाहिये।


दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।

यह हमेशा याद रखें कि हनुमत सिद्ध के लिये राम उपासना की बहुत आवश्यकता है। क्योंकि भगवान राम के अयोध्या से साकेत को प्रणाम करते है समय हनुमान को आदेश दिया था कि तुम मेरी कथा का प्रचार-प्रसार करते हुये मेरे भक्तों के समीप रहो, कल्पपर्यन्त पृथ्वी पर निवास करते रहो। अतः जहाँ भी रामकथा होती है वहाँ के समीप रहो, कल्पपर्यन्त पृथ्वी पर निवास करते रहो। अतः जहाँ भी रामकथा होती है वहां अपने लूक्ष्म शरीर से उपस्थित रहते हैं। तुलसी बाबा ने इनके सान्निध्य से ही रामकथा मानस पूरी की। साधक और साधिकाओं, प्रेमी-प्रेमिकाओं को एक विचित्र और अनुभव सत्य बात यह है कि जो भी व्यक्ति इन क्षेत्रों में आगे बढ़ते हैं वह माता अंजनी की कृपा से ही। हनुमान जी की माता परम तपश्विनी परम, पतिव्रतास पति की आज्ञा से ही वायु पुत्र पवनपुत्र का जन्म हुआ था। इनके मंत्र-तन्त्र अलग से गोपनीय रूप से उपलब्ध हैं।

हनुमान जी के रौद्र रूप जिससे लंका दहन किया, जिससे सीता की खोज की तथा वटुक रूप जिससे सुग्रीव की राम से मित्रता कराई, हनुमान का वैद्यक रूप जिससे संजीवन लाकर लक्ष्मण जी जीवित हुये। इनका भी ध्यान करना चाहिये।

इन्होंने अपने गुरु सूर्य से वेद रहस्य अर्थशास्त्र दर्शन, औषधि शास्त्र, ज्योतिष आदि की शिक्षा ग्रहण की। प्रस्तुत पुस्तक में ज्योतिष का सबसे सरल व आसान तरीका न जिसमें गणना की आवश्यकता है न अन्य कुछ केवल श्री राम स्मरण तथा हनुमान वन्दना के साथ केवल श्रद्धा तब देखिये साक्षात् हनुमान जी का चमत्कार। अहंकार को नष्ट करने तथा मित्रता कराने में श्री गुरु हनुमान ही सहायक हैं। पंचमुख-एकादश मुख हनुमान के मंत्र गरुड़ के चमत्कारी मंत्र भी हैं।

हनुमान जी पूर्ण ब्रह्म ही हैं, इस बात में कोई शंका किसी को भी उत्पन्न नहीं होनी चाहिये। हनुमान जी इस बात के प्रतीक हैं कि कोई भी वस्तु छोटी नहीं हो सकती, प्रत्येक जीव-जन्तु मानव-पशु का भी पूर्ण अस्तित्व है, लंका विध्वंस में हनुमान द्वारा किसी भी संकट में किसी भी तंत्र के षट्यकर्म में हनुमत् उपासना मंत्र आदि हैं। ‘‘ध्यावहुँ बिपद बिदारन सुवन समीर।’’
हनुमान जी में पूज्यपिता पवनदेव के 49 स्वरूपों का, त्रिदेवों का, आद्याशक्ति, महाशक्तियों, मूल प्रकृति, पंच महाभूत, ग्रह नक्षत्र, देवी-देवता, गंधर्व-यक्ष-किन्नर, अप्सराओं, दैत्य-दानव-राक्षसों, नाग, ऋषि-मुनि, वेदशास्त्र, कला विधाओं, सब जीव वृक्ष वनस्पतियों का अंश समावेश हैं। इनकी पूजा के साथ माता अन्नपूर्णा एवं वाममार्गी साधक भगवती छिन्नमस्ता की भी उपासना करनी चाहिये। अर्द्धनारीश्वर का अवतार होने के कारण सांख्य के अनुसार पूर्णरूपेण है।
हनुमान ज्योतिषम् प्राचीन हस्तलिखित दुर्लभ ग्रंथ के आधार पर ही है। पहले केवल ज्योतिष का ग्रंथ ही निकालने का विचार लेकिन मेरे मित्रों ने सलाह दी कि मारुति नंदन जी पर एक वैज्ञानिक शोधपूर्ण लेख भी दिया जाना चाहिये तो अन्य आवश्यकताएँ एवं दुर्लभ सामग्री भी जोड़ दी। इस पुस्तक में क्रम उपासना का तांत्रिक महत्व भी रखता है। पुस्तक पूर्ण ग्रंथ तो नहीं है, परन्तु अधिक से अधिक सामग्री वर्णित है।

पुस्तक पाठकों के हाथ में है, प्रतिक्रिया के बिना इसमें मैं स्वयं कोई संशोधन नहीं कर सकता। पुस्तक में भगवान राम और उनके परिवार के भी मंत्र आदि है। मुझे तो केवल रामभक्तों का चरण रज तथा रामभक्त हनुमान का आशीर्वाद।
क्षमा याचना सहित-साक्षात्गुरु हनुमान के चरणों में शत-शत नमन सहित।


-डॉ० कमल प्रकाश अग्रवाल


1
उपासना एवं मंत्र



श्रीरामोपासना के पूर्व श्रीहनुमत्-उपासना की अनिवार्यता

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम् ।।

भारत में कहीं भी कोई भी ऐसा भगवान का मन्दिर नहीं होगा, जहाँ श्री हनुमान जी की प्रतिमा न हो। भगवान् श्री राम की आवरण-पूजा भी हनुमानजी को बिना पूजे सम्पूर्ण नहीं मानी जाती। वैसे पृथक (स्वतन्त्र) रूप से भी मन्दिरों में एकमात्र इन्हीं की पूजा होती है। हमारे देश में तो सम्भवतः प्रत्येक कूप (कुँआ) खनन के समय सर्वप्रथम हनुमानजी की स्थापना करके तथा बजरंगबली की जय का उच्चारण करके ही कार्यारम्भ किया जाता है। किसकी शक्ति है जो इनके मन्दिरों, मूर्तियों की संख्या बता सके। यदि वास्तविक रूप से सच कहा जाये तो श्रीराम भगवान से भी अधिक रूप में प्रत्यक्ष देव श्रीहनुमान जी की पूजा-उपासना होती है घोर नास्तिक है वे भी हनुमान जी के अस्तित्व को स्वीकार करते घबराते हैं।

वैसे तो ये साक्षात् रुद्रावतार होने के नाते श्रीरामोपासना के परमाचार्य है। इनकी कृपा बिना श्रीराम की उपासना में किसी को अन्तरंगता प्राप्त नहीं हो सकती। राम-भक्ति के तो यो भण्डारी एवं संरक्षक ठहरे।

दूसरे, गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज के कथनानुसार इनकी सेवा में कोई विशेष प्रयास करना नहीं पड़ता। ये गुणगान करने नमस्कार करने, स्मरण करने तथा नाम जपने मात्र से प्रसन्न होकर सेवकों का अभीष्ट हितसाधक सम्पन्न करने को सदैव तत्पर रहते हैं।
‘जिनके, हृदय में इनकी विकराल मूर्ति निवास कर लेती है, स्वप्न में भी उसकी छाया के पास भी संताप-पाप निकट नहीं आ सकते।’

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