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ईश्वर का दूसरा रूप है माँ

तरुण इन्जीनियर

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :143
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7245
आईएसबीएन :978-81-288-2131

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माँ के प्यार जैसा दुनिया में कुछ नहीं है। इसलिए दुनिया की हर माँ को मेरा सलाम !...

Ishwar Ka Doosra Roop Hai Ma - A Hindi Book - by Tarun Engineer

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

माँ तुझे सलाम

पूरे विश्व में औरत को शक्ति का रूप माना गया है। धर्मशास्त्रों में भी स्त्री को जो सर्वोच्च सम्मान दिया गया है, वह माँ का है। इसीलिए जिसने भी पुरुषों को जन्म देने वाली माँ को गलत निगाह से देखा है, वह हमेशा पतन की तरफ गया है। यही कारण है कि माँ बनना औरत का सबसे बड़ा सौभाग्य होता है और मातृत्व से महिलाओं की प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। परन्तु भारतीय समाज में एक महिला को तब तक अधूरा समझा जाता है, जब तक की वह मातृत्व का सुख प्राप्त नहीं कर लेती। इसीलिए हर परिवार चाहता है कि विवाह के बाद जल्दी से जल्दी बहू माँ बन जाए। क्योंकि प्रकृति कहती है कि हर माँ अपने परिवार को वारिस सौंपे, ताकि आने वाले समय में उनकी पीढ़ियाँ बढ़ती जायें।
हिन्दू धर्म में भी मातृ-वंदना का गुणगान किया गया है तथा हर नारी को आदर और सम्मान से माँ पुकारना इस संस्कृति की पहचान बन गया है। सिर्फ एक माँ ही होती है, जो अपने बच्चों की गलतियों को माफ करती है और उसे गलत रास्ते पर जाने से रोकती है। लेकिन माँ को यह क्षमाशीलता का गुण प्रकृति ने दिया है। इसलिए हम कह सकते हैं कि माँ त्याग, क्षमा और निःस्वार्थ सेवा की देवी होती है फिर माँ और बच्चे का रिश्ता एक अटूट बंधन में बंध जाता है, जो दिन-प्रतिदिन मजबूत होता जाता है।
‘मातृदेवो भव’ इस धरती पर सबसे बड़ी देवी है। गर्भ के धारण करने के बाद से लेकर सामर्थ होने तक माँ बच्चे के लिए जो कुछ करती है, उसको शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता। बचपन में मेरी माँ मुझसे पृछती थी–

किंस्पिद गुरूतरां भसेः

यानी धरती से भारी वस्तु क्या है ?
तब मेरा उत्तर होता था : –

माता गुरूतरा भमेः

यानी माँ की गरिमा पृथ्वी से भी भारी है। क्योंकि पृथ्वी सब सहती है। उसे खोदिये-कोड़िये, उस पर थूकिये, कुछ भी कीजिए, सब कुछ चुपचाप सहती रहती है। लेकिन वह जड़ तत्व है। परन्तु माँ तो चेतन है, फिर भी वह सब कुछ सहती है। इसलिए माँ के ऋण से मुक्त होना किसी भी व्यक्ति के लिए असंभव है।

माँ सुख में, दुःख में, हर हाल में अपने बच्चे के साथ सीना तान तक खड़ी होती है। माँ अमीर की हो या गरीब की, माँ तो माँ होती है। लेकिन अब समय बदल चुका है, हालात बदल चुके हैं और इसके साथ ही आज की नारी भी बदल चुकी है। जो कभी कुशल गृहणी थी, आज वह ‘करियर वुमैन’ बन गई है। जबकि कुछ तो ‘सुपर वुमैन’ भी बन गयी हैं। इतना सब होने के बाद भी माँ का प्यार हर युग में बराबर रहा है। परन्तु वह अब युवा दिखने की चाहत में, आत्मनिर्भर होकर बिना किसी रोक-टोक के जिन्दगी जीना चाहती है। अपना सामाजिक दायरा बढ़ाना चाहती है। परन्तु जब सारे रिश्ते-नाते टूट जाते हैं, तब वह अपने बच्चों को अपने आँचल में छिपा कर रोती है। उनका पालन-पोषण करती है। लेकिन ‘आधुनिक होने के बाद भी वह अपनी ममता से मुँह नहीं मोड़ पायी।
कहते हैं कि भगवान हर समय बच्चों के पास नहीं रह सकते और उन्होंने इसी कमी को पूरा करने के लिए माँ का सृजन किया है। यही वजह है कि आपको दुनिया में प्रेमिका मिल जायेंगी, दोस्त मिल जाएंगे ! लेकिन माँ जैसा प्यार कहीं नहीं मिल सकता।
तभी तो किसी शायर ने कहा है–

काशी देखी, मथुरा देखा और देखा हरिद्वार।
नासिक घूमा, गया घूमा और घूमा सारा संसार।।
चंडी पूजी, मन्सा पूजी और पूजा माता का दरबार।
लेकिन कोई तीर्थ नहीं है ऐसा, जैसा माँ का प्यार।।

यानी माँ के प्यार जैसा दुनिया में कुछ नहीं है। इसलिए दुनिया की हर माँ को मेरा सलाम ! परन्तु इस सलाम को माँ तक पहुंचाने के लिए मुझे पूरे 5 साल लगे। कभी प्रिंट मीडिया का सहारा लिया, तो कभी इंटरनेट का, तब जाकर यह पुस्तक पूरी हो सकी।
क्योंकि मैं माँ का ऐसा चेहरा आपके सामने लाना चाहता था, जिसमें आपकी माँ का प्रतिबिम्ब भी साफ नजर आए। परन्तु इस रिसर्च में मैं कहाँ तक सफल हुआ ? यह आपको बताना है ताकि पुस्तक का अगला संस्करण आपकी कल्पना के अनुसार बन सके।
मुझे आपके फोन और ई-मेल का इन्तजार रहेगा...!!!

तरुण इन्जीनियर

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