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नन्हे इन्द्रधनुष

पुष्पा सक्सेना

प्रकाशक : प्रथम प्रकाशन गृह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7188
आईएसबीएन :81-88441-21-5

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नन्हे इन्द्रधनुष के नाम समर्पित इन नाटकों द्वारा बच्चों की शक्ति, उनकी सोच को नई दिशा देने का प्रयास किया गया है...

Nanhe Indradhanush - A Hindi Book - by Pushpa Saxena

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

अनुक्रम


१. सुन्दर जोकर
२. नन्हे इन्द्रधनुषों का सपना
३. एक चिंगारी नन्ही-सी
४. लव-कुश
५. एक दिन के लिए बच्चों का प्रशासन
६. हमारी भी सुनिए

सुन्दर जोकर

[मंच पर दो लड़कियाँ वार्तालाप कर रही हैं।]

रिंकी : अरे सोनू, कल तुम कहाँ थी ? क्लास में तुम्हारे बिना मेरा एकदम मन नहीं लगता। टीचर भी पूछ रही थीं।
सोनू : कल मेरी मौसी आई थी, हम उनके साथ सर्कस देखने गए थे। बड़ा मजा आया।
रिंकी : मैं भी मम्मी से कितने दिनों से कह रही हूँ सर्कस चलो, वह जाती ही नहीं। सर्कस में खूब बड़े शेर, हाथी थे न सोनू। कल मेरे घर के सामने सर्कस का एक हाथी आया था और पेड़ के पत्ते खा रहा था।

सोनू : अरे बस शेर ही क्या, घोड़े, भालू सभी तो थे। जानती हो एक तोता छोटी-सी साइकिल चला रहा था, झूले पर आदमी कलाबाजियाँ खा रहे थे। सच, बड़ा मजा आया रिंकी।
रिंकी : मेरा भी बहुत मन करता है सर्कस जाऊँ सोनू ! सर्कस में जोकर भी होगा न ?
सोनू : हाँ, हाँ, पूरे चार जोकर थे। मौसी ने एक जोकर को तो शाम को घर पर भी बुलाया है। तू चल मेरे साथ, वह आ ही गया होगा। तुझे भी मिला दूँगी।

रिंकी : सच ? पर उस जोकर को तू कैसे जानती है, सोनू ?
सोनू : मैं नहीं, उस जोकर को तो मौसी जानती है। वही बताएँगी।
वह गाना भी खूब अच्छा गाता है। उसकी लम्बी-सी नाक और बड़ा-सा पेट था, हम खूब हँसे थे उसे देखकर।
रिंकी : चल सोनू, जल्दी चलें। कहीं जोकर पहले न पहुँच जाए।
सोनू : चलो रिकीं, मौसी ने जल्दी आने को कहा भी था।

[दोनों का प्रस्थान, मंच पर मौसी खड़ी प्रतीक्षा कर रही है। सोनू-रिंकी का प्रवेश]

रिंकी : नमस्ते मौसी। लगता है बाहर खड़ी हमारा ही इन्तजार कर रही थीं।
मौसी : अरे रिंकी ! आओ, सोनू कहाँ है ? देखो, यह मीतू कब से इन्तजार कर रही है।
रिंकी : मौसी हम तो सर्कस के जोकर से मिलने आए हैं, उसे देखकर बहुत हँसी आती है। हाँ मीतू, तूने कभी जोकर पास से देखा है ?
मीतू : मैं भी तो उसी से मिलने आई हूँ। बस, सर्कस में दूर से ही जोकर देखा है। मुझे तो सोनू ने बताया आज यहाँ जोकर आ रहा है, तो मैं भी आ गई।

रिंकी : अरे मौसी से कहना चाहिए जल्दी से जोकर से मिलाएँ। सोनू, कहां है जोकर ? (घंटी की आवाज)
जोकर : ये लीजिए बच्चों को हँसाने वाला, गुब्बारे खाने वाला जोकर सुन्दर हाजिर है। (लड़कियाँ हँसती हैं)
रिंकी : पर सुन्दर जोकर, तुम्हारे तो न लम्बी-सी नाक है, न बड़ा-सा पेट, तुम तो एकदम हमारे जैसे हो।
सोनू : हाँ सुन्दर जोकर, कल सर्कस में तो तुम उल्टी साइकिल पर बैठे थे, गाना गा रहे थे। और हाँ, मुँह पर कित्ता सारा पाउडर लगाए हुए थे ?
सुन्दर : वो तो बच्चों, हँसने के लिए मैंने वैसी शक्ल बना रखी थी।
रिंकी : जोकर सुन्दर, क्या तुम भी झूले पर झूल सकते हो ? शेर से लड़ाई कर सकते हो ?

सोनू : हाँ रिंकी, कल सर्कस में देखा था जोकर सुन्दर ने शेर को लड़ाई में हरा दिया और घोड़े पर खड़े होकर घोड़ा भी दौड़ाया था।
मीतू : सुन्दर जोकर, हमें भी घोड़े पर चढ़ना सिखाओगे ?
सुन्दर : हाँ-हाँ नीतू, तुम सबको घोड़े पर चढ़ना सिखाऊँगा, पर पहले घोड़ा लाना होगा, हाँ भई मौसी कहाँ हैं ? मैं तो हलवा-पूरी खाने आया हूँ।
सोनू : अरे, तुम्हें कैसे पता जोकर ? मौसी अच्छा हलवा बनाती है ?
मौसी : आओ सुन्दर बेटा, मैंने पहले ही तुम्हारे लिए हलवा बना रखा है। आओ बच्चों, तुम सब भी आ जाओ। पहले हलवा खा लो फिर अपने सुन्दर जोकर से बातें करना।
रिंकी : मौसी, आप सुन्दर जोकर को कैसे जानती हैं ?

मौसी : यह एक लम्बी कहानी है। तुम्हारा सुन्दर जोकर पहले मेरा पड़ोसी था।
सोनू : माँ जी आप तो आगरे में रहती थीं पर सुन्दर जोकर तो राँची में रहता है।
मौसी : हाँ सोनू, मैं भी तो पहले आगरे में ही रहती थी। इसके माता-पिता की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई और पिता ने दूसरा विवाह कर लिया। सौतेली माँ सुन्दर को बहुत मारती थी, भूखा रखती थी।
रिंकी : सुन्दर जोकर, तब तुम बहुत रोते थे न ?

मौसी : हाँ रिकीं, सुन्दर सचमुच बहुत रोता था। एक दिन सुन्दर दोस्तों के साथ सर्कस देखने गया था।
सोनू : सर्कस के पैसे तुम्हें कहाँ से मिले ? सुन्दर जोकर, तुम्हारी माँ ने तो नहीं दिए होंगे ?
मौसी : सर्कस के पैसे सुन्दर के एक दोस्त ने दिए थे पर सौतेली माँ ने इसके पिता से कह दिया कि सुन्दर ने पैसे घर से चोरी किए। बस, इसके पिता ने भी बेचारे को घर से निकाल दिया। उसके बाद तो कल इसे सर्कस में ही देखा, आगे की कहानी तो सुन्दर ही सुनाएगा।

रिंकी : सोनू झूठ बोलना तो पाप होता है फिर सुन्दर की मम्मी ने झूठ क्यों बोला ?
सोनू : बहुत गन्दी थी सुन्दर की माँ, रिंकी।
रिंकी : तो तुमने अपने पापा को सच-सच क्यों नहीं बताया ?
सुन्दर : बताया तो, पर पिताजी ने विश्वास ही नहीं किया।
मौसी : कितनी बेरहमी से पीटा था तुझे... खाल उधेड़ डाली थी।

सुन्दर : हाँ मौसी, सच, उस दिन की मार आज तक याद है क्योंकि पिताजी ने घर ही से निकाल दिया जबकि मेरी कोई गलती नहीं थी। जब मुझे घर से निकाल दिया तो समझ में नहीं आया कि क्या करूँ। रोता-रोता जा रहा था कि एक आदमी ने मुझे प्यार से रोक कर रोने का कारण पूछा। मैंने उसे सारी कहानी सुना दी। वह आदमी सर्कस में काम करता था। वही मुझे अपने मालिक के पास ले गया। सर्कस के मालिक ने बहुत समझाया कि मैं घर लौट जाऊँ, पर मैं घर लौटने को तैयार नहीं था। बस उस दिन से उन्हीं के साथ हूँ।
रिंकी : सुन्दर भइया, तुम्हें घर की तो बहुत याद आती होगी ?

सुन्दर : हाँ रिंकी, घर तो सभी को प्यारा होता है, पर कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जिन्हें घर से प्यार नहीं मिल पाता।
सोनू : सुन्दर भइया, तुम्हें सर्कस में कैसा लगता है ?
सुन्दर : सच कहूँ सोनू तो घर का प्यार मुझे इसी सर्कस में आकर मिला है। यहाँ सर्कस में काम करने वाले एक परिवार की तरह रहते हैं। हम छोटे बच्चे सब भाई-बहन की तरह रहते हैं। बड़े लोग हमें अपने बच्चों-सा प्यार करते हैं।
मीतू : सुन्दर भइया, सर्कस के शेर, हाथी देख कर तुम्हें डर नहीं लगता ?
सुन्दर : नहीं मीतू, पहले तो डर लगता था पर अब तो वे सब मेरे दोस्त हैं। जानवर को अगर प्यार करो तो वह भी तुम्हें खूब प्यार करेगा।

रिंकी : अच्छा सुन्दर भइया, तुम जोकर बनते हो तुम्हारे लम्बी नाक बड़ा-सा पेट अजीब-सा दिखता है, सब तुम पर हँसते हैं, तुम्हें बुरा नहीं लगता ?
सुन्दर : नहीं रिकीं। जब लोग हँसते हैं तो मुझे बहुत खुशी होती है। जिन्दगी में मैं कभी नहीं हँस पाया, जब छोटे बच्चे और बड़े मुझ पर हँसते हैं तो लगता है मैं ही हँस रहा हूँ।
मीतू : सुन्दर भइया, आपको झूले पे झूलना, घोड़े पर चढ़ना किसने सिखाया ?

सुन्दर : सर्कस में स्कूलों की तरह मास्टर होते हैं, उन्होंने ही सिखाया। शुरू में तो डर लगता था, पर अब तो खेल लगता है।
सोनू : सुन्दर भइया, क्या हम भी घोड़े पे खड़े होकर घोड़ा दौड़ा सकते हैं ?
सुन्दर : जरूर, पर सोनू जैसे तुम्हें पढ़ाई में मेहनत करनी होती है, वैसे ही घोड़ा दौड़ाने के लिए भी रोज अभ्यास करना पड़ेगा।

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