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मेन आर फ्रॉम मार्स, विमेन आर फ्रॉम वीनस

जॉन ग्रे

प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :154
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7176
आईएसबीएन :9788186775486

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वह सब कुछ जो पुरुष महिलाओं के बारे में जानना चाहते हैं और महिलायें पुरुषों के बारे में...

Men are from Mars, Women are from Venus - A Hindi Book - by John Grey

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्रस्तावना

मेरी बेटी लॉरेन को पैदा हुये सिर्फ़ सात दिन ही हुये थे। मैं और मेरी पत्नी बॉनी बुरी तरह थके हुये थे। हर रात लॉरेन हमें सोने नहीं देती थी। बॉनी को दर्द की दवा लेना पड़ती थी। चलने-फिरने में भी उसे दिक़्क़त होती थी। पाँच दिन तक घर पर उसकी देखभाल करने के बाद मैंने सोचा कि अब उसकी हालत पहले से सुधर गयी है और इसलिये मैं ऑफिस चला गया।

जब मैं ऑफ़िस में था, तो बॉनी की दर्द की गोलियाँ ख़त्म हो गईं। बजाय इसके कि वह ऑफ़िस में फोन करके मुझे बताती, उसने मेरे भाई से गोलियाँ लाने के लिये कहा, जो उसके हालचाल पूछने गया था। भाई भूल गया और लौटकर नहीं आया। नतीजा यह हुआ कि पूरे दिन बॉनी दर्द से कराहती रही और अकेले ही बच्ची को सँभालती रही।

जब मैं लौटा तो वह बुरी तरह दुखी थी। मैंने सोचा शायद वह अपनी तकलीफ़ के लिये मुझे ज़िम्मेदार ठहरा रही थी। मुझे लगा वह अपनी परेशानियों के लिये मुझे दोष दे रही थी। उसने कहा, ‘मैं पूरे दिन दर्द से तड़पती रही... मेरी दर्द की गोलियाँ ख़त्म हो गयी थीं। मैं बिस्तर से उठ नहीं सकती और किसी को मेरी परवाह नहीं है !’’
मैंने रक्षात्मक अंदाज़ में कहा, ‘‘तुमने मुझे फोन क्यों नहीं किया ?’’

उसने जवाब दिया, ‘‘मैंने तुम्हारे भाई से गोलियाँ लाने के लिये कहा था, परंतु वह भूल गया ! मैं सारा दिन उसके लौटने का इंतज़ार करती रही। मैं इसके सिवा कर भी क्या सकती थी ? मैं तो बिस्तर से हिल भी नहीं सकती। मैं बहुत अकेली महसूस कर रही हूँ ?’’
इस बिंदु पर मैं फट पड़ा। उस दिन मेरा पारा भी चढ़ा हुआ था। मैं इसलिये गुस्सा था क्योंकि जब मुझे उसके दर्द का पता ही नहीं था, फिर वह मुझे दोष क्यों दे रही थी ? कुछ कटु शब्द कहने के बाद मैं दरवाज़े की तरफ़ बढ़ा। मैं थका हुआ था, चिड़चिड़ा था और मैं और ज़्यादा शिकायतें नहीं सुनना चाहता था। हम दोनों ही अपना आपा खो चुके थे।
फिर ऐसा कुछ हुआ जिसने मेरी ज़िंदगी बदल दी।

बॉनी ने कहा, ‘‘ज़रा, ठहरो, प्लीज़, मुझे छोड़कर मत जाओ। इसी वक़्त तो मुझे तुम्हारी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। मैं दर्द से तड़प रही हूँ। मैं कई दिनों से सोयी नहीं हूँ। प्लीज़ मेरे पास बैठकर मेरी बात सुनो।’
मैं एक पल ठहर गया, उसने कहा, ‘‘जॉन ग्रे, तुम बड़े मतलबी दोस्त हो, तुम केवल अच्छे वक़्त के साथी हो। जब तक मैं अच्छी और प्यारी बॉनी हूँ, तब तक तो तुम मेरे आगे-पीछे घूमते रहते हो, परंतु जब मैं परेशान या दुखी होती हूँ, तो तुम मुझे छोड़कर चल देते हो।’’

फिर वह थोड़ा ठहरी और मैंने देखा उसकी आँखों में आँसू भरे हुये थे। उसने कहा, ‘‘अभी मैं कष्ट में हूँ। मेरे पास तुम्हें देने के लिये कुछ नहीं है, इसी वक़्त मुझे तुम्हारी सबसे ज़्यादा जरूरत है। प्लीज़ यहाँ आओ और मुझे थामो। तुम्हें कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है। मैं सिर्फ़ इतना चाहती हूँ कि तुम मुझे बाँहों में ले लो। प्लीज़, मुझे छोड़कर मत जाओ।’’
मैंने उसे अपनी बाँहों में ले लिया। वह मेरे कंधे पर सिर रखकर रोती रही। कुछ मिनट बाद उसने मुझे धन्यवाद दिया कि उसके मुश्किल समय में मैं उसे अकेला छोड़कर नहीं गया था।

उसी क्षण मैंने प्रेम का सच्चा अर्थ समझना शुरू किया–बिना शर्त का प्रेम। मैं अपने आपको अच्छा प्रेमी समझा करता था, परंतु शायद मेरी पत्नी सही कहती थी। मैं मतलबी इन्सान था, मैं केवल अच्छे वक़्त का साथी था। जब तक वह ख़ुश और बढ़िया रहती थी, मैं उसे बदले में प्रेम देता था। परंतु जब वह नाख़ुश या अपसेट रहती थी, मुझे ऐसा लगता था जैसे वह मुझे दोष दे रही है और फिर मैं या तो बहस करने लगता था या उससे दूर चला जाता था।
उस दिन पहली बार मैं उसे छोड़कर नहीं गया। मैं ठहर गया और इससे मुझे बहुत अच्छा महसूस हुआ। जब उसे सचमुच मेरी ज़रूरत थी, तब मैं उसे प्रेम दे रहा था। यही तो सच्चे प्रेम का अर्थ था। जब मुझे रास्ता दिखा दिया गया, तो मेरे लिये प्रेम करना कितना आसान हो गया।

मैं यह अपने आप क्यों नहीं समझ पाया ? उसे सिर्फ़ यह चाहिये था कि मैं उसे बाँहों में ले लूँ ताकि वह मेरे कंधे पर सिर रखकर रो सके। शायद दूसरी महिला अपने आप समझ जाती कि बॉनी को क्या चाहिये था। परंतु चूँकि मैं एक पुरूष था इसलिये मुझे यह पता नहीं था कि छूना आलिंगन करना, बाँहों में लेना, उसकी बात सुनना उसके लिये इतना ज़्यादा महत्वपूर्ण था। मेरे और उसके बीच के अंतर को जान लेने के बाद हमारे बीच के संबंध और मधुर हो गये।

इससे मुझे इस बात की प्रेरणा भी मिली कि मैं इस विषय पर शोध करूँ कि पुरुष स्वभाव और महिला स्वभाव में क्या अंतर होते हैं। सात साल के शोध के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि पुरूष अलग तरह से सोचते हैं, महिलायें अलग तरह से और दोनों के बीच विवाद अक्सर इसी कारण होते हैं क्योंकि दोनों को ही अपनी भिन्नताओं का पता नहीं होता।
जब मैंने सेमिनारों में इस बारे में विस्तार से बताया तो हजारों शादियाँ टूटने से बच गईं। लोग मुझे धन्यवाद देते हैं कि मैंने उनकी शादी टूटने से बचा ली। सच तो यह है कि प्रेम के कारण उनकी शादी बच गई, परंतु यह भी सच है कि अगर उन्हें अपोज़िट सेक्स के सोचने के तरीक़े की जानकारी नहीं होती, तो उनमें निश्चित रूप से तलाक़ हो जाता।
हालाँकि सभी इस बात पर सहमत हैं कि पुरुषों और महिलाओं में भिन्नता होती है, परंतु वे कितने भिन्न होते हैं, यह ज़्यादातर लोग नहीं जान पाते। मैंने 25000 लोगों के सर्वें के बाद यह खोज ही लिया कि महिला और पुरुष कितने और किस तरह भिन्न होते हैं।

इस पुस्तक में दिये गये सभी सिद्घांत आजमाये हुये हैं। 25000 लोगों में से 90 प्रतिशत लोगों को इस पुस्तक में अपनी झलक दिखी। अगर आप इस पुस्तक को पढ़ते समय सिर हिला रहे हों और कह रहे हों, ‘‘हाँ, आप मेरे बारे में ही बात कर रहे हैं,’’ तो आप अकेले नहीं हैं। इस पुस्तक से हजारों लोगों को लाभ पहुँचा है, और आपको भी पहुँच सकता है।
बहुत सारे लोग अपने वैवाहिक जीवन में संघर्ष करते रहते हैं। उनके जीवन में इतना तनाव, द्वेष और झगड़ा सिर्फ़ इसलिये होता है। क्योंकि वे एक-दूसरे को नहीं समझ पाते। हालाँकि वे अपने पार्टनर से प्रेम करते हैं, परंतु जब तनाव होता है तो वे नहीं जानते कि ऐसे समय माहौल को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है। जब आप यह जान लेंगे कि महिलायें किस तरह सोचती हैं, व्यवहार करती हैं, किस तरह प्रतिक्रिया करती हैं तो आप उनसे बेहतर रिश्ता बना सकेंगे।

पुरुष और महिलायें न सिर्फ़ अलग-अलग तरीक़ों से बोलते हैं बल्कि वे अलग-अलग तरीक़ो से सोचते, महसूस करते, देखते, प्रतिक्रिया करते, प्रेम करते, तारीफ़ करते हैं। ऐसा लगता है जैसे वे अलग-अलग ग्रहों से आये हैं, उनकी भाषायें अलग हैं और उन्हें अलग-अलग चीज़ों की ज़रूरत होती है।
भिन्नताओं को समझ लेने के बाद हमारे लिये अपोज़िट सेक्स को समझना आसान हो जाता है। हमारी ग़लतफ़हमियाँ दूर हो जाती हैं। हम सामने वाले से जो अपेक्षायें रखते हैं, उनमें भी सुधार हो जाता है जब आप यह जान लेते हैं कि सामने वाला आपसे उतना ही अलग है जितना कि कोई दूसरे ग्रह का प्राणी, तो आप उसे बदलने की कोशिश नहीं करते, बल्कि निश्चिंत होकर उसके साथ सहयोग करते हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस पुस्तक में आपको हर जगह वैवाहिक समस्याओं को सुलझाने के प्रैक्टिकल तरीके मिलेंगे। विवाह में समस्यायें तो रहेंगी, क्योंकि पुरुष मंगल ग्रह से आये हैं और महिलायें शुक्र ग्रह से आयी हैं। परंतु अगर आप अपने बीच के अंतर को समझ लें तो आपकी आधी समस्यायें तो अपने आप ही दूर हो जायेंगी।
इस पुस्तक के बारे में इकलौती आलोचना यही हुई, ‘‘काश आपने हमें यह पहले बताया होता !’’
इस पुस्तक को लिखने का मेरा लक्ष्य यही है कि आपका विवाह सुखमय हो, शांतिपूर्ण हो। यह ज़रूरी है कि सुखी विवाहों की संख्या बढ़े और तलाक़ों की संख्या घटे–क्योंकि हमारे बच्चे बेहतर दुनिया में जीने योग्य हैं।


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