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अकबर बीरबल विनोद

गिरिराजशरण अग्रवाल

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :167
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6945
आईएसबीएन :81-288-0150-3

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अकबर बीरबल विनोद

Akbar Birbal Vinod - A Hindi Book - by Girirajsharan Agarwal

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

पूर्व प्रसंग

भारतीय इतिहास और साहित्य में अनेक ऐसी विशिष्ट प्रतिभाओं का उल्लेख है, जिन्होंने अपनी बुद्धि, चतुराई और प्रत्युत्पन्नमति का परिचय देते हुए, अपने ज्ञान का सिक्का जमाया है।
दक्षिण में तेनालीराम और उत्तर भारत में बीरबल ऐसे ही प्रतिभासंपन्न पुरुष हुए हैं, जिनके किस्से और कहानियाँ अत्यधिक प्रसिद्ध हैं और वे हमें बरबस सोचने और उसके बाद हँसने पर विवश कर देते हैं।
कई बार तो तेनालीराम और बीरबल के किस्से परस्पर इतने मिल गए हैं कि हमें आभास ही नहीं होता कि वास्तव में ये किससे संबंधित हैं।
बादशाह अकबर के दरबार के रत्न बीरबल अत्यधिक व्यवहार-कुशल ईमानदार और विवेकबुद्धि से संपन्न इंसान थे, अपनी बुद्धि के बल पर उन्होंने अकबर बादशाह के दरबार में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया। उनके ज्ञान और प्राप्त सम्मान के कारण अन्य दरबारी उनसे ईर्ष्या करते थे और अनेक बार उन्हें नीचा भी दिखाने का प्रयास भी करते थे, किंतु बीरबल अपनी हाज़िरजवाबी तथा प्रवीणता के कारण बार-बार उनके प्रहारों से बच निकलते थे।
ऐसा कहा जाता है कि कई बार बीरबल की अनुपस्थिति से दरबार सूना-सूना लगता था और बादशाह अकबर भी उदास हो जाते थे।
इन्हीं बीरबल की हाज़िरजवाबी का एक उदाहरण है प्रस्तुत पुस्तक, जिसमें बीरबल ने विभिन्न अवसरों पर अनेक समस्याओं को भी हल किया है
आपको यह पुस्तक कितनी रोचक लगी, इसका निर्णय तो आप ही करेंगे, बस हमें तो आपके पत्रों की प्रतीक्षा है।
डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल

धोबी और कुम्हार

आगरा शहर में एक धोबी और एक कुम्हार पास-पास रहते थे।
एक दिन कुम्हार ने मिट्टी के बहुत सारे बर्तन बनाए। उसने उन बर्तनों को सुखाने के लिए धूप में रख दिया और आराम करने घर के अंदर चला गया।
तभी वहाँ दो गधे आए। वे आपस में झगड़ने लगे। इस कारण कुम्हार के सारे बर्तन टूट गए। वह लाठी लेकर बाहर आया। उसने अपनी लाठी को घुमाया और एक गधे पर जोर से मारा।
गधा ढेंचू-ढेंचू का शोर मचारा हुआ बाहर की ओर भागा। इस पर कुम्हार का पड़ोसी दौडकर आया और बोला, ‘अरे, अरे ! यह क्या करते हो ? यह मेरा गधा है।’
कुम्हार ने नाराज होकर कहा, ‘तो क्या हुआ ? इसने मेरे सारे बर्तन चूर-चूर कर दिए हैं।’
धोबी बोला, ‘तुम मेरे गधे को पीटते क्यों हो ? तुम्हारे बर्तन टूट गए हैं। तुम उनके पैसे ले लो।’
कुम्हार ने सोचा—‘इस धोबी ने सबके सामने मेरी इज्जत उतार दी। मैं इस बच्चू को ऐसा मजा चखाऊँगा कि यह भी याद करेगा।
दूसरे दिन सुबह-सुबह कुम्हार बादशाह अकबर के दरबार में पहुँचा। उसने बादशाह को आदाब किया और बोला, ‘जहाँपनाह, मैं अदना-सा कुम्हार हूँ। आपके शहर में रहता हूँ।’
अकबर —‘बताओ, तुम्हें क्या परेशानी है ?
कुम्हार—‘जहाँपनाह ! मैं एक जरूरी बात बताने के लिए आया हूँ।’
अकबर—‘तो फिर जल्दी बताओ।’
कुम्हार—‘जहाँपनाह ! मेरा एक दोस्त फारस गया था। वह कुछ दिन पहले ही वापस आया है। उसने बताया—वहाँ आपके नाम का डंका बजता है। आपकी बड़ी इज्जत है वहाँ। मगर ....!’
यह कहकर कुम्हार चुप हो गया।
अकबर ने पूछा, ‘हाँ, आगे बताओ। बात पूरी करो।’
कुम्हार बोला, ‘मगर आगरा के हाथियों के बारे में उनका खयाल अच्छा नहीं है।’
अकबर ने आश्चर्य-भरे स्वर में पूछा, ‘हाथियों के बारे में ! तुम क्या कहना चाहते हो ?’
‘जी हाँ हुजूर ! उनका कहना है कि हमारे हाथी बड़े गंदे और काले हैं। हुजूर शाही हाथियों को तो साफ-सुथरा होना चाहिए।’ कुम्हार ने बात पूरी की।
‘बात तुम्हारी ठीक है, कुम्हार।’ अकबर बोले।
‘और हुजूर। मेरे दोस्त ने बताया कि फारस के शाह के हाथीखाने में सारे हाथी दूध की तरह सफेद हैं।’
अकबर ने समझ लिया कि यह कोई चालबाज आदमी है। फिर भी उन्होंने पूछा, ‘मगर फारस के शाह अपने हाथियों को इतना साफ-सुथरा कैसे रखते हैं ?’
कुम्हार ने उत्तर दिया, ‘सीधी-सी बात है हुजूर ! इस काम के लिए उन्होंने बढ़िया धोबियों की पूरी फौज लगा रखी है।’
‘तो हम भी शहर के तमाम धोबियों को इस काम पर लगाए देते हैं।’ अकबर ने कहा।
इस पर कुम्हार बोला, ‘जहाँपनाह ! शहर का एक बेहतरीन धोबी मेरे पड़ोस में रहता है। वह अकेला इस काम के लिए काफी है।’
अकबर ने मन-ही-मन सोचा—तो यह अपने पड़ोसी को फँसाना चाहता है। लेकिन उन्होंने कहा, ‘ठीक है, हम उसी को बुला लेते हैं।’
अकबर के आदेश पर धोबी को दरबार में हाजिर किया गया। वह डर के कारण काँप रहा था। उसने डरते हुए कहा, ‘जहाँपनाह! हुजूर !
अकबर ने आदेश दिया, ‘देखो, हमारे हाथीखाने के सारे हाथी काले हैं। तुम्हें इन्हें धोकर सफेद करना है।’
‘जी हुजूर !’ धोबी बोला।
उसके सामने एक हाथी लाया गया। वह सुबह से शाम तक उसे धोता रहा। किंतु काला हाथी सफेद न हो सका। निराश होकर वह अपने घर की ओर चल पड़ा। उसने सोचा, यह सब उस कुम्हार की करतूत है। पर मैं करूँ तो क्या करूँ ?
तभी उसे बीरबल आते हुए दिखाई दिए। वह हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। बीरबल ने पूछा, ‘क्या हुआ भाई ! इस तरह मुँह लटकाए क्यों खड़े हो ?’
कुम्हारा ने सारी घटना बताई। बीरबल ने उसकी सारी परेशानी सुनी और उसके कान में कुछ कहा।
दूसरे दिन धोबी हाथीखाने में पहुँचा। कुछ देर बाद अकबर भी वहाँ पहुँच गए। उन्होंने हाथी को देखा और धोबी से बोले, ‘यह हाथी तो वैसा का वैसा ही है। जरा भी सफेद नहीं हुआ। तुम कल दिनभर क्या करते रहे ?’
धोबी ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘परवरदिगार, बात यह है...।’
‘हाँ, क्या बात है ?’ अकबर ने पूछा।
‘हुजूर, अगर कोई बड़ा-सा बरतन हो, जिसमें यह हाथी खड़ा हो सके तो काम आसान हो जाएगा।’ धोबी ने बताया।
अकबर ने आदेश दिया कि हाथी के खड़े होने के लिए बड़ा बर्तन बनवाया जाए। बर्तन बनाने का काम उसी कुम्हार को सौंपा गया।
एक हफ्ते बाद कुम्हार बर्तन लेकर हाजिर हुआ। मन-ही-मन वह सोच रहा था—धोबी का बच्चा समझता होगा कि मैं फँस जाऊँगा। अब देखता हूँ, धोबी कैसे बचेगा ?
अकबर ने बर्तन को देखा और आदेश दिया, ‘हाथी को बर्तन में खडा किया जाए।’
जैसे ही हाथी को बर्तन में खड़ा किया गया, बर्तन चूर-चूर हो गया। अकबर ने नाराज होकर कहा, ‘क्यों रे, यह कैसा बर्तन बनाया है ? यह तो एक बार में ही टूट गया। जल्दी से दूसरा बर्तन बनाकर ला।’
कुम्हार बर्तन बनाकर लाता रहा और वह बार-बार टूटता रहा। आखिर वह बादशाह के पैरों में गिर पड़ा, ‘हुजूर मुझे माफ करें। मैंने बहुत बड़ी गलती की है।’
इस पर अकबर ने धोबी से कहा, ‘धोबी, मैं जानता था कि यह तुम्हें फँसाना चाहता है। पर तुमने इसकी चाल का मुँहतोड़ जवाब दिया। हम तुम्हें इनाम देंगे।
धोबी हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। उसने कहा, ‘जहाँपनाह ! इनाम के असली हकदार तो बीरबल जी हैं। उन्हीं ने मुझे यह तरकीब सुझाई थी।’
बादशाह अकबर ने बीरबल की ओर देखा। बीरबल धीमे-धीमे मुस्करा रहे थे।
अकबर बोले, ‘बीरबल, तुम हमारे दरबार के अनमोल रत्न हो। तुम गरीबों के रक्षक भी हो।

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