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उपन्यास >> समंदर

समंदर

मिलिंद बोकील

प्रकाशक : शशि प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 6647
आईएसबीएन :9788191012101

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मिलिंद बोकिल के मराठी उपन्यास का हिन्दी रूपान्तरण ‘समंदर’ (अनुवादक - पद्मजा घोरपड़े)

Samandar - A Hindi Book by Milind Bokil

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

समंदर केवल बड़ी-बड़ी नदियों की पहचान निगल कर ही विशाल आकार ग्रहण नहीं करता बल्कि समंदर को समंदर बनाने में गाँव-घर, गली-मोहल्लों से बहकर नदी और फिर समंदर में मिलने वाली जलधाराओं का भी योगदान होता है। इन्सानी ज़िन्दगी में जब मन की विशाल खाई को लम्बे दाम्पत्य जीवनानुभवों की हजारों-हजार मीठी-नमकीन बूँदें भरती हैं, तो मन के लबरेज समंदर में कभी धीमी-धीमी ख़ूबसूरत ज्वार-भाटा-सी आसमान छूने की कोशिश करती लहरें और कभी सुनामी उठती है। जो इन बूँदों के स्वाद को पहचान लेता है, इन लहरों की भाषा को समझ और मंशा को भाँप लेता है, उसके मन के समंदर पर फिर हजारों-हजार कमल अपनी ख़ुशबू बिखेरते खिले होते हैं।

समंदर में निम्नमध्यवर्गीय परिवार में पला-बढ़ा भास्कर और एक चाल में पली-बढ़ी नंदिनी का दाम्पत्य जीवन सहज ही शुरु होता है। उनका एक बच्चा राजू है। लेकिन धीरे-धीरे भास्कर नौकरी से आगे बढ़कर व्यवसाय करने लगता है। फिर वह पानी साफ़ करने की मशीन बनाने की कंपनी का मालिक बनता है। भास्कर अपने व्यवसाय में इतना डूब जाता कि अनजाने ही नंदिनी से एक दूरी-सी बन जाती है। हालाँकि भास्कर यही सोचता कि वह नंदिनी और राजू के जीवन में किसी तरह की कमी नहीं आने देगा।

नंदिनी जो स़िर्फ घर सम्भाल रही होती है उसे अकेलापन लगातार अपनी गिरफ्त में लेता है। हालाँकि वह इससे बचने को किताबें पढ़ती है। बुक क्लब से जुड़ी है। वहाँ कई साथी उसके मित्र हैं और राजोपाध्ये तो उसका ख़ास दोस्त है।

नंदिनी चूँकि पढ़ती ख़ूब है, दोस्तों से बहस ख़ूब करती है। उसमें नए-नए विषयों को परत दर परत जानने की ललक बढ़ती है। भास्कर और नंदिनी साथ-साथ होकर भी समझ के अलग-अलर छोर पर खड़े नज़र आते हैं और दोनों के बीच राजोपाध्ये आ जाता है। भास्कर और नंदिनी प्रौढ़ावस्था के जिस मुकाम पर है वहाँ इस संबंध पर ज़्यादा विचार-विमर्श न किया जाता हो, लेकिन भास्कर चूँकि अब और ज़्यादा पैसे के लालच में फँसा नहीं रहना चाहता और सिर्फ़ नंदिनी को प्रेम करना चाहता है जो उसके दिल में समंदर की तरह हिलोर रहा है। वे दोनों एक ख़बसूरत रिसार्ट पर जाते हैं, ख़ूबसूरत कॉटेज में ठहरते हैं और शुरु करते हैं जीवन को नए सिरे से समझने की कोशिशें। समंदर में उपन्यासकार ने उच्चमध्यवर्गीय जीवन जीने वाले लोगों के मन को परत दर परत उघाड़ा है। इस उपन्यास को पढ़कर यह भी समझा जा सकता है कि एक ही समय में इन्सानी जिंदगी में किस-किस स्तर पर क्या-क्या और कैसे-कैसे घटित हो रहा है? मनुष्य जीवन और उसके मन को समझने की कलात्मक उहापोह है - मिलिंद बोकिल का समंदर। अनुवाद की भाषा भी मक्खन है।

- सत्यनारायण पटेल

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