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बच्चों के नाम

विमला पाटिल

प्रकाशक : रूपा एण्ड कम्पनी प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :98
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 6632
आईएसबीएन :81-7167-285-X

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फेमिना नामक पत्रिका की सम्पादिका श्रीमती विमला पाटिल द्वारा संकलित चार हज़ार से अधिक भारतीय नाम।

Bachchon Ke Naam

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

लड़के का नाम रखना हो या लड़की का, इस पुस्तक से आप को सहायता मिलेगी। इसमें लगभग 4000 नाम दिए गए हैं, सुन्दर से, प्यारे से। किसी में धर्म का पुट है तो कोई कवितामय है, कोई देवी देवताओं और ऋषियों मुनियों का नाम था तो कोई आजकल के फैशन का।
संकलन किया है महिलाओं की प्रमुख पत्रिका फैमिना की सम्पादिका श्रीमती विमला पाटिल ने। वे अंग्रेजी के अतिरिक्त, पांच भारतीय भाषाएं जानती हैं और दो प्यारे प्यारे बच्चों की मां हैं।

बच्चों के नाम

बच्चे के जन्म के साथ ही उसके लिए एक सुन्दर-से नाम की खोज शुरू हो जाती है। माता-पिता अपने मित्रों और सगे-संबंधियों से तो पूछते ही हैं, रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों में उल्लिखित नामों और देवी-देवताओं के नामों की याद भी करने लगते हैं जिससे कि बच्चे के लिए उपयुक्त नाम रखा जा सके। वह नाम किसी गुण विशेष का परिचायक हो सकता है, उसमें सौन्दर्य बोध का पुट हो सकता या वह धर्म पर आधारित हो सकता है। जो पुस्तक आप पढ़ने जा रहे हैं, उसमें लेखिका ने बीसियों ग्रन्थों से चार हज़ार से अधिक भारतीय नाम चुने हैं। नाम वर्णानुक्रम में हैं और आप इसे देख कर कोई भी सुन्दर-सा नाम अपने बच्चे के लिए चुन सकते हैं जो कुल नाम या किसी परम्परा का परिचायक है।
उचित नाम का बड़ा महत्त्व है क्योंकि वह आयु-पर्यन्त काम आएगा। इस पुस्तक में से आप कोई भी चुन लीजिए, वह उपयुक्त ही होगा। श्रीमती विमला पाटिल आजकल फेमिना नामक पत्रिका की सम्पादिका है। रूपा एंड कंपनी उनकी पाक कला पर लिखी गई पुस्तक दाल-रोटी पहले ही प्रकाशित कर चुकी है।

प्रस्तावना

यह कोई नहीं जानता कि मनुष्य, बल्कि पशु पक्षियों के, नामकरण की प्रथा कैसे चली। सबसे तर्क-संगत कारण तो यह दीखता है कि आग की खोज के बाद जब घुमन्तु मानव ने जंगलों के सबसे अच्छे और सुरक्षित भागों को अपनी बस्तियां बसाने के लिए चुन लिया तो कबीले के प्रत्येक व्यक्ति की पहचान के लिए एक नाम की आवश्यकता पड़ी, यद्यपि प्रारम्भ में वे नाम प्रतीकात्मक ही थे। यह भी संभव है कि इन घुमन्तु कबीलों का सबसे पहले जो नाम अच्छे लगे वे पशु पक्षियों वन के देवी-देवताओं, जल-देवों अथवा अन्य इष्ट देवों के नाम थे।

ज्यों-ज्यों समय बीतता गया, मानव अपनी बुद्धि और भावनाओं के प्रति अधिक सचेत होता गया और उसे नाम-करण की आवश्यकता के साथ-साथ किसी नाम विशेष के लिए तर्क की आवश्यकता महसूस होने लगी। मानव की संवेदना, अहम्, आत्म-विश्वास और स्वचेतना का विकास हुआ और उसने सहानुभूति, सुन्दरता, प्यार और स्नेह जैसी कोमल भावनाओं की अनुभूति प्राप्त की। इन सब बातों ने मिलकर उसकी अपनी दुनिया और अन्य मानवों के प्रति उसका दृष्टिकोण बदल दिया। अब मानव को मात्र जीवित रहने की चिंता नहीं थी। उसने अन्न और फल उगाने शुरू कर दिए थे और इस कारण उसके पास प्राकृतिक सौन्दर्य को देख कर चकित होने, हर सुगन्धित फूल, पंख फड़फड़ाती चिड़िया, नदी की कल-कल तथा प्रत्येक प्राकृतिक घटना को एक नाम देने का अवकाश था। उसके देवता भी अब अधिक सुन्दर होने लगे और उसके दिमाग में उनका सुन्दर, सुकुमार आकार उभरने लगा। धीरे-धीरे मानव जिज्ञासु और सौन्दर्य का पुजारी बन गया।

उसकी विकसित होती संवेदनशीलता संभवत: उन नामों में परिलक्षित हुई, जो उसने अपनी पत्नी और बच्चों के रखे। लड़कियों के नाम पक्षियों, फूलों, देवियों, और अन्य स्त्री-सुलभ गुणों के आधार पर रखे गये और लड़कों के नाम देवताओं, वीरता, गौरव और आनन्द जैसी विशेषताओं के आधार पर रखे गये।
जब परिवार व्यवस्था का विकास हुआ तो हर परिवार के लिए एक कुल नाम की प्रथा भी चल पड़ी जिसका आधार गांव या कबीला हो सकता था। कई बार नाम उस पेशे के आधार पर रखे जाते थे जिससे व्यक्ति अपना जीवन-यापन करता था।

भारत में जाति-प्रथा, कई विदेशी आक्रमणों और पिछले कुछ दशकों में संचार व्यवस्था के विकास के साथ-साथ कुल नामों की व्यवस्था काफी जटिल हो गई है। शिक्षा के कारण बहुत-सी निषिद्ध बातें अब होने लगी हैं और प्रगतिशील प्रकृति के लोग अपने बच्चों के नाम बड़ी सावधानी से रखने लगे हैं। संभवत: इसी कारण दुलार के छोटे नामों का प्रचलन भी शुरू हुआ।

आज भी भारतीय समाज में रूढ़िवादी व्यक्ति किसी व्यक्ति के कुल-नाम से यह पता लगा सकते है कि उसकी जाति, धर्म, पेशा या मूल स्थान कौन-सा है। आज भी फूलों, पक्षियों और देवी-देवताओं के नामों पर रखे जाते हैं। अभिजात वर्ग में विदेशों के समान लड़के-लड़कियों के नाम उनके ख्याति प्राप्त पूर्वजों के नाम पर रखे जाते हैं। जन-साधारण तो अपनी शिक्षा, चेतना, संवेदनशीलता, कुल-परम्परा या केवल पसन्द के आधार पर बच्चों के नाम रखते हैं।

बच्चे के एक से अधिक नाम रखने का भी प्रचलन है। मूल नाम तो जन्म लग्न के आधार पर रखा जाता है। दूसरे नाम बड़े-बूढ़े या परिवार के मित्र रखते हैं। लड़के का नाम तो आयु-पर्यन्त वही रहता है लेकिन लड़की का नाम उसके विवाह के बाद ससुराल वाले बदल देते हैं।

नाम-करण संस्कार बच्चे के जन्म के बारह दिन के भीतर किया जाता है। उसके पालने को फूलों से सजाया जाता है और नामकरण की खुशी में मिठाई या गुड़ बांटा जाता है। भारत का समाज मुख्य रूप से पुरुष-प्रधान है इस कारण लड़के के नाम के समय अधिक-धूम-धाम रहती है।

नव-जात शिशु और उसकी मां को कपड़े, आभूषण और खिलौने आदि उपहार के रूप में दिए जाते हैं। परिवार की सबसे अधिक आयु की वृद्धा चुना हुआ नाम बच्चे के कान में फूंकती है। नगरों में बच्चे का जन्म और उसका नाम नगर-पालिका के दफ्तर में लिखाया जाता है। बच्चों को जो नाम दिया जाता है उसके अतिरिक्त उसके दुलार के नाम होते हैं या परिवार में परंपरा के अनुसार उसे ‘‘दादा’’, ‘‘भाई साहब’’, या ‘‘अन्ना’’ कह कर पुकारा जाता है।
आज-कल परंपरागत नाम बहुत लोकप्रिय हो गए हैं और इसलिए लोग प्राचीन ग्रन्थों का मन्थन करके नाम खोजते हैं। वेद हों या उपनिषद्, रामायण हो या महाभारत या कोई अन्य प्राचीन साहित्यिक ग्रन्थ, सभी का सहारा लिया जाता है। मैंने स्वयं इस पुस्तक के लिए संस्कृत के शब्दाकोषों, दुर्गा सप्तशती, गणेश कवचम्, विष्णु सहस्रनाम, रामायण और महाभारत का परायण किया है। प्रत्येक नाम के कई अर्थ होते हैं परन्तु मैंने सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण और सर्वमान्य अर्थ ही इस पुस्तक में दिए हैं। जो माता-पिता अपने बच्चों के लिए असाधारण परन्तु सादर नाम रखना चाहते हैं उन्हें उन्हें इस पुस्तक में बड़ी सहायता मिलेगी। यदि इस पुस्तक से नाम चुनने या नए नामों का आविष्कार करने में पाठकों को सहायता मिले तो मैं समझूंगी कि मेरा श्रम व्यर्थ नहीं गया।

विमला पाटिल

निवेदन

इस पुस्तक में दिए गए अधिकतर नाम संस्कृत-मूल के हैं। मुझे इस बात का आभास है कि प्रत्येक नाम के कई रूप हो जाते हैं। उदाहरण के लिए चन्द्र (चन्द्रमा) चन्द्र भानु, चन्द्रकेतु, चन्द्रकान्त, चन्द्रमोहन, श्रीचन्द्र, चन्द्र किरण भी हो सकता है।
यदि किसी स्त्री का नाम चन्द्र हो तो उसका रूप बदल कर चन्द्रकला, चन्द्रबाला या चन्द्रलेखा भी हो जाता है।
बहुत-से मानक-स्थानीय प्रत्यय और उपसर्ग हैं जिनके योग से एक ही नाम के असख्य रूप हो सकते हैं। साधारण उपसर्ग हैं- श्री, सु आदि और प्रत्यय हैं- कुमार, देव, रंजन, चन्द्र आदि।
कई नाम अलग-अलग क्षेत्रों में अपना रूप बदल लेते हैं। उदाहरण के लिए विमला बंगला में बिमला बन जाता है, दक्षिण भारत में विमला ही रहता है और महाराष्ट्र में विमल हो जाता है।
रवीन्द्र बंगला में रबिन्द्र हो जाता है, दक्षिण भारत में रवीन्द्रन और पंजाब में रबिन्दर।
राजेन्द्र पंजाब में राजिन्दर बन जाता है और दक्षिण भारत में राजेन्द्रन।
इस प्रकार के रूप-भेद और प्रादेशिक भेद असंख्य हैं इसलिए मैंने केवल संस्कृत पर आधारित नाम ही दिए हैं। सभी नामों के साधारण रूप दिए गए हैं।
उदाहरण के लिए सवित्र सूर्य को कहते हैं और यह नपुंसक लिंग है लेकिन मैंने इसका स्त्रीलिंग रूप सविता ही इस पुस्तक में दिया है। क्षेत्रों के अनुसार नामों की वर्तनी बदल जाती है और फिर नामों की कोई भी सूची ऐसी नहीं हो सकती जिससे कुछ छूट न गया हो। पाठक चाहें तो ऐसे नाम मुझे प्रकाशक के माध्यम से भेज सकते हैं जो मैंने इस पुस्तक में शामिल नहीं किए। मैं अगले संस्करण में उन्हें शामिल करके इसे और अधिक सम्पूर्ण बनाने की चेष्टा करूंगी।
विमला पाटिल


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