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सफल प्रबंधन की पहली शर्त टीम वर्क और कुशल नेतृत्व

विजय जोशी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6364
आईएसबीएन :81-288-1789-2

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सफल प्रबंधन के जो समाधान इस पुस्तक में दिए गए हैं वे भारत में बुद्धिमत्तापूर्ण एवं बेहतर प्रबंधन की महती आवश्यकता को पूरा करने में सफल सिद्ध होंगे...

Safal Prabhandhan Ki Pahli Shart Team work

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

आने वाले समय में भारत में विनिर्माण के क्षेत्र में प्रबंधन का रोल बहुत ही निर्णायक सिद्ध होगा और यही पूरे देश के कल्याण तथा समृद्धि कि दिशा तय करेगा। वस्तुतः अधिकांश भारतीय कंपनियों द्वारा पिछले कई वर्षों से इस दिशा में पर्याप्त रूप से न तो कोई अध्ययन किया गया है और न ही अभ्यास।
बी.एच.ई.एल. ने एक सुप्रबंधित संस्थान के रूप में बहुत ख्याति अर्जित की है। इसलिए यह सर्वथा उचित ही है कि विजय जोशी, महाप्रबंधक, बी.एच.ई.एल. इस क्षेत्र में अपने दीर्घ आयु अनुभवों को एक पुस्तक में समाहित करते। किताब में सहज तथा सरल प्रबंध को जो महत्त्व दिया गया है वह मुझे विशेष रूप से अच्छा लगा।
प्रायः अनावश्यक व जटिल अवधारणाओं द्वारा प्रबंधन के सिद्धांतों को कठिन बना दिया जाता है। इससे प्रबंधकों को अपनी दक्षता तथा विवेक द्वारा उत्कृष्ट परिणाम प्राप्त कर सकने के बजाय असमंजस की स्थिति से रूबरू होना पड़ता है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि सफल प्रबंधन के जो समाधान इस पुस्तक में दिए हुए हैं वे भारत में बुद्धिमत्तापूर्ण एवं बेहतर प्रबंधन की महती आवश्यकता को पूरा करने में सफल सिद्ध होंगे।

मार्क टुली
(सुप्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय पत्रकार एवं लेखक)

अपनी बात

लोक कथाओं का देश है भारत। मूक प्राणी भी मानव मन को सार्थक संदेश दे सकते हैं, इसे जातक कथाओं व पंचतंत्र ने सिद्ध किया है। इनमें व्यक्ति, काल या स्थान से अधिक महत्त्व तो उस शाश्वत विचार का होता है जिसकी वाहक ये होती हैं। ये कथाएं एक अद्भुत संदेश वाहक तथा अविस्मरणीय दस्तावेज हैं। जो बात लंबे चौड़े आख्यान या व्याख्यान के माध्यम से नहीं समझाई जा सकती, उसे एक छोटे से सटीक उदाहरण से बड़ी आसानी से समझाया जा सकता है।

हर आगे आनेवाला समय अपनी चुनौतियां साथ लाता है। कुशल प्रबंधन आज की सबसे महती आवश्यकता है। अनुभव के विशाल भंडार में से-सार सार को गहि रहे, थोथा देई उड़ाय की तर्ज पर यदि तत्व निकालकर उसे किसी सामायिक उदाहरण के माध्यम से समझाया जा सके तो मेरी राय में यह प्रयास किसी हद तक तो अभिनव व अनूठा कहा ही जा सकता है।

ऐसी ही एक कोशिश इस पुस्तक के माध्यम से की गई है। तीन दशक से अधिक के सेवाकाल के दौरान प्राप्त अनुभव को यदि थोड़ा भी सार्थक समझा जा सके और किसी के काम आ सके तो यह मेरा सौभाग्य होगा। इन सब में नया कुछ भी नहीं है। बिखरे मोती की माला बनने का सुख भी किसी प्रार्थना से कम नहीं होता और इस समय मैं उसी सुख को पूरी शिद्दत के साथ अनुभव कर रहा हूँ।
सभी सुख चाहते हैं
सभी स्वस्थ रहना चाहते हैं
सभी कार्य में सफल होना चाहते हैं
सभी समृद्ध और संपन्न बनना चाहते हैं
सभी प्रसिद्धि चाहते हैं
सभी तनावमुक्त होना चाहते हैं
तो !
कल जो चला गया, उसे भूल जाइए
कल जो आने वाला है, उसकी चिंता मत कीजिए
जो वर्तमान है उसका सरलता, सहजता, दृढ़ता और आत्मविश्वास के साथ सामना कीजिए।

विजय जोशी

प्रबंधन का मनोविज्ञान
(Psychology of Management)

नेतृत्व (Leadership) व टीम वर्क (Team Work) एक दूसरे के पूरक हैं या यूं कहा जाय कि एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। उन्हें एक दूसरे से अलग करके नहीं देखा जा सकता। नेतृत्व के बगैर कोई भी समूह दिशाहीन भीड़ भर रह जाएगा जिसका अपना कोई लक्ष्य, अस्तित्व एवं प्रयोजन नहीं जबकि समूह विहीन नेतृत्व शून्य का शिखर है। किसी भी योजना को मूर्त रूप प्रदान करने या उसके सफल कार्यान्वयन (Implementation) के लिए सहभागी आवश्यक हैं जबकि योजना (Planning) के लिये नेतृत्व अनिवार्य।

इसलिये सफल प्रबंधन की पहली शर्त यही है कि दोनों पक्ष एक दूसरे के महत्त्व को समझें तथा अपने अहम (Ego) का परित्याग करते हुए कार्य की सफलता के लिए कदम से कदम मिलाकर साथ-साथ चलें। इसका एक श्रेष्ठ व सुंदर उदाहरण है राष्ट्रीय या सार्वजनिक समारोहों के दौरान होने वाली परेड जहाँ पर पूरा दल कदम से कदम मिलाकर मंच के सामने से गुजरता है। ऐसी स्थिति में काम के दौरान एक लय उभरती है जो अद्भुत आनंद प्रदान करती है तथा कार्य एक उद्देश्य (Mission) का स्वरूप धारण कर लेता है।

सामूहिक उत्तरदायित्व
(Collective Responsibility)

हम सबने आर्केस्ट्रा देखा है, जहां सब अलग अलग वाद्य यंत्रों में अपने कौशल से संगीत की एक ऐसी स्वर लहरी उपजाते हैं कि सारे श्रोता उसके रस में सराबोर हो बह जाते हैं। नेतृत्व एक छोटी सी डंडी के इशारे से एक वृहद आयोजन के भव्य सारगर्भित समारोह में बदल देता है। कल्पना कीजिए यही समूह अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं व प्रसिद्धि के फेर में यदि नेतृत्व की परवाह किए बगैर वाद्य अपने ढंग से बजाने लगे तो क्या होगा। व्यक्तिगत रूप से श्रेष्ठतम होने के बावजूद वे एक कर्कश वातावरण के जनक हो जाएंगे।

त्याग दें अहम्
(Surrender your Ego)


इसलिए यह समझना बेहद जरूरी है कि जब आप समूह में कार्य करते हैं तो आपको अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के फेर से ऊपर उठकर कार्य की सफलता के हित में अपने अहम की तिलांजलि देकर नेतृत्व के निर्देश को खुले मन से स्वीकारना होगा।
एक व्यक्ति के रूप में आप भले ही बेहद बुद्धिमान, कुशाग्र व कार्य कुशल हों लेकिन जब तक आप सामूहिक (Collective) कार्य का कौशल नहीं अपनाएँगे आपकी सार्थकता के समक्ष प्रश्न चिह्न लगा रहेगा।
मुखिया मुख सों चाहिये (Role of leadership) नेतृत्व का उत्तरदायित्व परिवार के मुखिया के समान है।
परिवार में सबकी रुचि, प्रतिभा, बुद्धि अलग-अलग होती है व उसे उन सबके साथ सामंजस्य बनाकर सबको साथ लेकर परिवार को प्रगति के पथ पर आगे और आगे ले जाना होता है। यही बात शत प्रतिशत समूह के मामले में भी लागू होती है। जब तक उनमें आपसी प्रेम, सद्भाव व सहयोग का वातावरण निर्मित नहीं होगा, न तो वे एक सूत्र में बंध पाएंगे और न ही आगे बढ़ सकेंगे। सारे सदस्य बिखरे हुए मोती के सदृश्य हैं, धागा बनकर सबको एक सूत्र में बांधने की क्षमता व सामर्थ्य नेतृत्व को स्वयं में पैदा करने का जज्बा व इच्छा शक्ति होना ही चाहिए। जिन खोजा तिन पाइयां-यही नेतृत्व का मूल मंत्र है। बगैर बुद्धि, परिश्रम, धैर्य व प्रेम के लक्ष्य प्राप्ति दुरूह है।

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