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यंत्र शक्ति के चमत्कार

रमेशचन्द्र श्रीवास्तव

प्रकाशक : भगवती पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :168
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6284
आईएसबीएन :81-7775-023-2

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यह पुस्तक ‘यंत्र-शक्ति के चमत्कार’ वास्तव में यंत्रों के चमत्कारिक प्रभाव को देखने, परखने और अनुभव करने के बाद पूर्ण वैज्ञानिक आधारों से प्रमाणित है।

Yantra Shakti Ke Chamatkarr by Rameshchandra Shrivastva-A Hindi Book

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

यंत्र शक्ति के चमत्कार

यंत्रों की ज्योमितिक संरचना का वैज्ञानिक विवेचन

1.    यंत्रों में चुम्बकत्व शक्ति होती है इसीलिये यंत्रों में आकर्षण की आपार शक्ति होती है।
2.    पिण्ड में यंत्र-यंत्र में पिण्ड और बाहर-भीतर पानी, जान सके तो जान ले प्राणी मत बन अज्ञानी.....।
3.    यंत्र सबके लिए हैं क्योंकि सभी एक महायंत्र से प्रसूत है और वह महायंत्र महामाया का संरचना का एक अंग है-महाब्रह्माण्ड। उसका कण-कण एक-एक यंत्र है और हर कण स्वयं में एक शक्ति पुज्ज है।
4.    यंत्रों का दैनिक जीवन में उपयोग-मानव का कल्याण करता है और उसे मुक्त का सुख देकर मुक्ति मार्ग प्रशस्त करता है।
5.    यंत्र शक्ति के गूढ़तम रहस्यों का सरल विवेचन प्रस्तुत करती यह पुस्तक हर वर्ग के पाठकों को नई प्रेरणा के साथ नई दिशा भी प्रदान करेगी।

ज्योतिष तंत्र सम्राट
रमेश चन्द्र श्रीवास्तव का


सम्पूर्ण जीवन धर्म, ज्योतिष, तंत्र-मंत्र एवं अध्यात्म को समर्पित है। पाठकों के लिये यह नाम अब किसी परिचय या ख्याति का मोहताज नहीं रहा। अपनी खोजी दृष्टि स्वाध्याय एवं वैज्ञानिक की तर्कसंगत सम्पत्ति से रमेश चन्द्र श्रीवास्तव ने ज्योतिष एवं तांत्रिक जगत में अपना विशिष्ट स्थान बना रखा है। इसलिए इस भौतिक किन्तु वैज्ञानिक युग का हर पाठक इनके विचारों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। आप स्वयं इस पुस्तक को एक अनमोल रत्न समझेंगे, यह हमारा विश्वास है।  


दो शब्द आपसे  



‘मंत्र-शक्ति के चमत्कार’ और ‘मंत्र-साधना’ शीर्षक आपसे मेरी पुस्तकें पढ़ी और जी खोलकर आलोचना, समालोचना एवं भूरि-भूरि प्रशंसा भी की। ढेर सारे पत्र पाठकों के, आपके विचारों को सँजोये हुए, प्राप्त हो रहे हैं और आशा है, प्राप्त होते रहेंगे।
आपकी, पाठकों की प्रतिक्रिया मेरे लिए उत्साह वर्धक रही, शायद इसीलिए यह पुस्तक शीघ्र लिखने की प्रेरणा मिली और शीघ्र ही लिखकर पूर्ण कर दी। मंत्र-शक्ति के चमत्कार’ को लिखने में पूरा एक वर्ष लग गया था। इसलिए पाठक शिष्य मित्रगण भी निराश हो चुके थे। और मेरे प्रकाशक श्री राजीव अग्रवाल जी भी किन्तु मैं न उस समय निराश हुआ था और न हताश। पाठकों के बार-बार पत्र आते थे तो उत्तर दे देता था,- ‘‘लेखन कार्य चल रहा है।’’ श्री राजीव जी के पत्र एवं फोन का भी यही एक उत्तर देता था, परन्तु समय की एक सीमा होती है। वर्ष बीत जाय और लेखक पुस्तक का नाम विज्ञापित करके भी पुस्तक न लिख पाये, प्रकाशक प्रकाशित न कर पाये, यह कदापि अच्छा नहीं होता।
किन्तु मैं विवश था। ‘माँ शारदा’ की मर्जी के बिना एक बिन्दु भी लिखा नहीं जा सकता था। ‘माँ’ की लीला भी विचित्र है। जब वे मेरी लेखनी में विराजमान होती हैं। तब अपनी पूजा करने का अवसर भी नहीं देती। इसलिए जीवन में अपने वजन से ज्यादा पृष्ठ लिखे है– माँ ने लिखवाये हैं।
पूर्णता तो मान ली जाती है या किसी सीमा तक हो जाती है परन्तु सम्पूर्णता नहीं हो पाती क्योंकि सम्पूर्णता, तो मात्र एक ही में है। वह है- ‘परमेश्वरी, जगदम्बिका, माँ महामाया, महाशक्ति’।
इसलिए ‘मंत्र-शक्ति के चमत्कार’ में सम्पूर्णता लाने की लाख चेष्टा करने पर भी सम्पूर्णता नहीं आ पाई। हां पूर्णता लाते-लाते पुस्तक का आकार इतना बड़ा हो गया कि उसको दो भागों में बाँटना पड़ा। एक मंत्र-शक्ति के चमत्कार’ और दूसरा -‘मंत्र साधना’।
श्री राजीव अग्रवाल जी (भगवती पॉकेट बुक्स) का स्वर अब भी कानों में गूँज रहा है। जब- ‘मंत्र-शक्ति के चमत्कार’– की पूरी पाण्डुलिपि उनके पास पहुँची तो स्वाभाविक था उसका अवलोकन करना। एक वर्ष तक लेखक ने वास्तव में कुछ परिश्रम किया या यों ही टरकाता रहा- सोचना मनोवैज्ञानिक था, किन्तु, कुछ अध्याय पढ़ते ही उन्हें खुशी हुई कि मैंने कुछ विशेष शोध कर लिखा है, लीक से हटकर लिखा है।
‘‘सन्तोष का फल मीठा होता है, रमेश जी ! अब मेरी समझ में आ गया।’’ फोन पर बधाई दी।
मैंने पूछा -‘‘अरे भाई कैसी लगी मेरी साल भर की मेहनत ?’’
‘‘उत्तम ! बहुत अच्छी लगी पुस्तक। मैने यंत्रों पर ऐसी पुस्तक अभी तक नहीं देखी, न पढ़ी। वास्तव में, यह आपके मंत्र –शक्ति के चमत्कार हैं। आपकों बारम्बार बधाई हो।’’
मैंने उन्हें भी बधाई दी और कहा कि अब मां की कृपा रही तो शीघ्र ही कई पुस्तकें प्रकाशनार्थ दूँगा और उसी वायदे के अनुसार, माँ शारदा की कृपा पाकर यह पुस्तक- ‘यंत्र-शक्ति के चमत्कार’- कुछ महीनों के अन्तर में ही पूर्ण हो गयी। वर्ष के अन्तर ही मैंने माँ की कृपा से कई पुस्तकें पाठकों को भेंट की हैं।

यह पुस्तक ‘यंत्र-शक्ति के चमत्कार’ वास्तव में यंत्रों के चमत्कारिक प्रभाव को देखने, परखने और अनुभव करने के बाद पूर्ण वैज्ञानिक आधारों से प्रमाणित है।
मेरे पाठक जानते है कि मैं प्रत्येक आध्यात्मिक विषयों को, सम्पूर्ण धर्म एंव अध्यात्म को पूर्ण वैज्ञानिक दृष्टि से देखता हूँ, परखता हूँ, चिन्तन-मनन-अध्ययन एवं स्वाध्याय करता हूं तब पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करता हूँ क्योंकि विश्वास है कि हमारा अध्यात्म हमारा धर्म पूर्णतया वैज्ञानिक है। यही नहीं बार-बार लिखता रहा हूँ कि जहाँ विज्ञान की समस्त सीमाएँ समाप्त हो जाती हैं, वहीं से हमारा अध्यात्म प्रारम्भ होता है।

यंत्रो की वैज्ञानिकता पर एक शोध है यह पुस्तक। इसीलिए इसका नाम है- यंत्र-शक्ति के चमत्कार। ऐसा नाम चमत्कार को नमस्कार करने के लिए अपार शक्ति देखी है। देखी ही नहीं प्रयोग कर अनुभव की है। अनुभव ही नहीं वरन अनुभव करके चमत्कृत भी हुआ हूँ। इसीलिए इसे चमत्कार ही समझ रहा हूँ, कह रहा हूँ।
किन्तु मंत्रों की पुस्तक की तरह यंत्रों की पुस्तक का आकार भी वृहद हो गया, इसलिए इसे भी दो पुस्तकों में बाँटना होगा- यंत्र-शक्ति के चमत्कार’ और यंत्र-साधना’। प्रयास करने पर भी एक पुस्तक में यंत्रों सम्बन्धी समस्त विवरण समायोजित नहीं किया जा सकता था, क्योंकि यंत्रों की वैज्ञानिकता एवं रहस्यों के साथ यंत्रों की साधनाएं देना भी आवश्यक था। फिर यंत्रों के चित्र भी परम आवश्यक थे। यंत्रों के चित्रों ने स्थान बहुत घेरा। अतः आकार वृहद हो जाना स्वाभाविक था। यंत्रों के चित्र बड़े ही दुर्लभ हैं। अन्य पुस्तकों में ऐसे चित्रो नहीं मिलते, अतः पाठकों का हित-चिन्तन कर अच्छे से अच्छे और दुर्लभ चित्र दे रहा हूँ।

एक बात का पाठक विशेष ध्यान रखेंगे कि यंत्रों का जो स्वरूप चित्रों में दिया हुआ है वैसा ही स्वरूप भोजपत्र तथा धातु-पत्र में आदि में अंकित करें-करायें, क्योंकि रेखाओं, कोणों, वलय, त्रिभुज आदि का अपना विशिष्ट महत्व होता है। साथ ही अंकों को भी देवनागरी लिपि, हिन्दी के अंक, संख्या के रूप में प्रयुक्त करें। पुस्तक में यंत्रों के बीच में जो अंक लिखे गये हैं वे कुछ हिन्दी अंकों में और कुछ अंग्रेजी अंकों में लिखे गये हैं। इस भूल के लिए विज्ञ पाठकों से क्षमा याचना करते हुए मैं निवेदन करता हूं कि निर्मित करें। ऐसा करने पर ही यंत्र अपने मूल स्वरूप में बन सकेगा और सिद्ध होने पर अपना पूर्ण प्रभाव प्रदर्शित कर सकेंगा।

ज्यामितीय रेखाओं तथा अंकगणितीय अंकों का अपना विशिष्ट महत्व होता है और उन्हीं दोनों के संयोजक का चमत्कारिक प्रभाव यंत्र-शक्ति के द्वारा दर्शिता होता है। अतः भारतीय, हिन्दीं अंकों, भाषा आदि का ही प्रयोग करना उचित होगा।

इस पुस्तक को पड़-समझकर आप ‘यंत्र-साधना’ नामक अवश्य पढ़ेंगे, समझेंगे और उसमें दी गयी यंत्रों-साधनाओं में से कुछ साधनाएं अवश्य करेंगे।

पुस्तक आपके हाथों में है और मेरा विश्वास है कि पाठकों से ज्यादा अच्छा आलोचक कोई नहीं होता है। अस्तु आप मेरे पाठक हैं और आप ही मेरे आलोचक भी हैं।
मुझे प्रशंसा नहीं चाहिए, बधाई नहीं चाहिए अलोचना चाहिए। पढ़िये और मनन कीजिए प्रयोग कीजिए फिर कमियाँ खोजिये और मुझे सुझाइये ताकि मैं अपने इस पुस्तक के अगले संस्करण में कुछ सुधार कर सकूँ, क्योंकि मेरा विश्वास है-


निन्दक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय।
बिन साबुन, पानी बिना, निर्मल करै स्वभाव।।


एक बात और कहना चाहता हूँ कि मैं पुस्तकें विद्वानों के लिए, सन्तो के लिए तांत्रिकों के लिए नहीं लिखता और न पुस्तक इस को ही उनके लिए लिखा है। यह पुस्तक भी अन्य पुस्तकों की तरह साधारण, सहज पाठकों के लिए लिखी गयी है। यदि कुछ पाठक भी इस पुस्तक से अपना भौतिक, आध्यात्मिक जीवन सुधार सकें। तो अपने को धन्य समझूँगा।
हाँ मैं आपको इतना विश्वास अवश्य दिलाता हूँ कि यंत्रों में अलौकिक शक्तियाँ पूर्णतयः होती हैं और जब शक्तियों को सिद्ध कर जागृत कर दिया जाता है, तब वह अपने मूल स्वरूप में अवतरित होकर साधक हो उसका अभीष्ठ सिद्ध करने में उसकी सम्पूर्ण मनोकामना पूर्ण करने में सहायता होती हैं। मैंने तमाम यंत्रों की साधना की है और उनका उपयोग जन-हितार्थ आप में न जाने कितने ही पाठकों पर किया गया है। परिणाम कल भी अनुकूल मिले थे, आज भी अनुकूल मिल रहे हैं और भविष्य में भी अनुकूल मिलेगे।

अतः आप भी पूर्ण विश्वास और श्रद्धा के साथ इस पुस्तक में दिये गये यंत्रों का प्रयोग, उनकी साधना अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए कर सकते हैं।

और अन्त में, आपकों मां की कृपा का यह प्रसाद समर्पित कर रहा हूँ, क्योकि इसमें मेरा कुछ नहीं है जो कुछ है, माँ की कृपा का प्रसाद है।

‘तेरा तुझको अर्पित क्या लागे है मोरा’

मुझे आपके कटु पत्रों की प्रतीक्षा रहेगी।

आपका स्नेही
रमेशचन्द्र श्रीवास्तव

1
विषय प्रवेश


प्रत्येक मानव अपने जीवन की रक्षा –सुरक्षा के लिए अनादि काल से अत्यन्त हैरान एवं परेशान रहा है। समय-समय पर वह स्वयं अपनी तथा अपने परिवार के लोगों की ही नहीं, वरन् परिवार से जुड़े पशु-पक्षियों के लिए भी वयग्र रहा है। उसकी व्यग्रता स्वाभाविक एवं आवश्यक थी। इस भौतिक एवं प्राकृतिक जगत में जिसने भी जन्म लिया है उसे सबसे पहला और अन्तिम भय स्वयं के अस्तित्व का होना चाहिए और इसी अस्तित्व की लड़ाई युग-युगान्तरों से होती आ रही है और जीवन के अन्त तक या कहें इस दृष्टि के अन्त तक बनी रहेगी। जहाँ व्यक्ति के अस्तित्व का प्रश्न आता है वहाँ उसके जीवन से जुड़ी हर वस्तु के अस्तित्व का, उसकी रक्षा का सफल उठ खड़ा होता है, जिसे हम किसी भी काल या युग में नकार नहीं सकते।  

प्रथम पृष्ठ

    अनुक्रम

  1. विषय-प्रवेश
  2. यंत्र क्या है ?
  3. यंत्र-शक्ति क्या है ?
  4. मानव शरीर में चक्र-यंत्र एवम् पिण्ड यंत्र के चमत्कार
  5. ॐ चमत्कारी यंत्र है
  6. स्वास्तिक यंत्र का महत्त्व
  7. स्वास्तिक यंत्र के चमत्कार
  8. यंत्रों का आकार-प्रकार
  9. भावना एवं संकल्प-शक्ति
  10. यंत्र-सिद्धि के विविध शुभ मुहूर्त
  11. यंत्रों का महत्त्व एवं उपयोगिता
  12. सिद्ध यंत्रों में चुम्बकीय शक्ति होती है
  13. महानिशा में यंत्र-साधना
  14. यंत्र सिद्धि की विधि
  15. चमत्कारिक दस महाविद्या यंत्र
  16. ग्रह शान्ति के यंत्र-मंत्र
  17. धन प्रदाता विविध यंत्र
  18. चमत्कारी पंचदशी यंत्र
  19. चमत्कारी बीसा यंत्र
  20. जीवन-रक्षक यंत्र
  21. महिला उपयोगी यंत्र
  22. चमत्कारी शाबर यंत्र

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