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नेहरू बाल पुस्तकालय >> सहेली

सहेली

सुरेखा पाणंदीकर

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6226
आईएसबीएन :81-337-4788-8

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‘‘गुलाबो, चंपा, रज्जो, चलो जल्दी-जल्दी पुगन-पुगाई करें, और फिर छप्पर पानी (लुकन-छुपाई) खेलें।’’ सोहनी ने कहा।...

Saheli A Hindi Book by Surekha Parandikar

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

बीर सिंह को सबक

‘‘गुलाबो, चंपा, रज्जो, चलो जल्दी-जल्दी पुगन-पुगाई करें, और फिर छप्पर पानी (लुकन-छुपाई) खेलें।’’ सोहनी ने कहा।
‘‘हां, हां, आज खेलने में मजा आयेगा। छुट्टी भी है और मौसम भी कितनी अच्छा हो रहा है ! चलो,’’ गुलाबो ने कहा।
लड़कियां तीन-तीन करके, एक-दूसरे का हाथ पकड़ ‘एक-दो-तीन’ करके पुगतीं और जो निकल जाती वह खुश हो कर उछलती।

आखिर में गुलाबो, सोहनी और निम्मो ने पुगाई की। सोहनी आखिर तक नहीं निकल पायी थी। छपराना पड़ेगा—यह सोचकर कर सोहनी घबरा रही थी क्योंकि उसके साथ उसकी पक्की सहेली मोहिनी थी जब उस पर बाजी आती और अन्य लड़कियों को पकड़ने भागती तो मोहिनी भी साथ भागती और छुपी हुई लड़कियां को सूंघ –सूंघकर ढूंढ़ निकालती। फिर अन्य लड़कियां उससे लड़ने लगतीं।

‘‘मैं निकल गयी, निकल गयी,’’ सोहनी चिल्लाई। निम्मो पर बाजी आयी। सभी ने तालियां बजाकर निम्मो को चिढ़ाया और कहा, ‘‘चल, आंखें बंद कर। छपरी बन जा और हमें यानी पानी को ढूंढ़।’’ खेल चल रहा था कि फर फर....फर फर...करते अपने स्कूटर को लेकर बीर सिंह उनको डराने आ पहुंचा। लड़कियां डरकर भागने लगीं तो वह ‘‘हा...हा...’’ कर हंसने लगा। धूल उड़ रही थी। इस भगदड़ में निम्मो गिर गयी। उसे चोट लगी और वह रोने लगी।

‘‘बीर सिंह, क्यों बदतमीजी कर रहे हो ?’’ बाहर निकल सोहनी चिल्लाई, पर वह कहां मानने वाला था ! उसने सोहनी के पीछे स्कूटर मोड़ा।’’ बीर सिंह रुक जा, वरना मोहनी को पीछे लगा दूंगी’’, सोहनी इधर-उधर भागकर उसे चकमा देते हुए बोली।

‘‘अरे जा, तेरी ऊंटनी से कौन डरता है ? मेरे स्कूटर के सामने वह क्या करेगी !’’


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