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सेवा के लिए

विनोद सक्सेना

प्रकाशक : आशा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :24
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6190
आईएसबीएन :00000

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प्रस्तुत है पुस्तक सेवा के लिए इसमें तीन कहानियाँ संकलित हैं........

Seva Ke Liye-A Hindi Book y Vinod Saxena

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भूल समझ में आई

कमला अभी तेरह साल की है लेकिन उसके शरीर से लगता है—जैसे सोलह साल से कम न हो लम्बाई खूब पकड़ गई। हाथ-पांव भी मोटे हो गए। परन्तु उसका पहनावा नहीं बदला। शरीर पर वही दो कपड़े। फ्राक की लम्बाई उसके आधे पैरों को अवश्य ढंके रहती।

रोजाना स्कूल जाना। घर का छोटा-मोटा काम करना। और बच्चों के बीच खेलना उसे अभी भी अच्छा लगता है। कभी मन हुआ, तो पास के ही उप स्वास्थ्य केन्द्र में रह रही विमला के पास बैठ आना। विमला स्वास्थ्य कार्यकर्ता है।
विमला कमला से बड़ी थी लगभग दस साल। परन्तु उससे वह ऐसे घुल मिल गई थी, जैसे—साथ की सहेली हो। दोनों बैठ जातीं, तो घंटों बातें करतीं। अम्मा के बुलाने पर ही कमला घर जाती। इस बीच चाय का एक दौर चल जाता। कभी कमला चाय बनाती, तो कभी विमला। कप वगैरह धोकर रखती कमला ही। कभी-कभी कोई कप टूट जाता या विकलांग हो जाता। लेकिन अम्मा जैसी डाँट नहीं खानी पड़तीं विमला इतना अवश्य कहती—कमला ! कैसे काम करती हो ? ऐसे ही ससुराल जाकर करोगी, तो सास क्या कहेगी ?

ससुराल और सास का नाम सुन कमला नीचे को सिर कर लेती। जवाब कुछ नहीं देती। इस बात पर कभी कभी वह मुस्करा भर देती। चेहरा गुलाबी हो जाता।
दो दिन हो गए। विमला के पास कमला नहीं आई। सामने की जगह में बच्चों के साथ खेलती भी नहीं दिखी। कहां गई ? क्या बीमार हो गई ! मामा के यहां चली गई ? विमला दरवाजे पर खड़ी सोच रही थी। बच्चे सामने खेल रहे थे। लड़के और लड़कियाँ भी। एक-दूसरे को छूते पकड़ते। कभी-कभी एक दूसरे को चपेट कर पकड़ भी लेते। इस पकड़ और चपेट में किसका अंग कहां लगे, खेल-खेल में इस बात को कोई ध्यान नहीं देता। और ध्यान आ भी जाए, तो खेल की क्रिया में होता यह सब।
कमला तीसरे दिन कमला के घर आई।

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