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जीवनी/आत्मकथा >> भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल

भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल

कुमार पंकज

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :125
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5658
आईएसबीएन :81-288-1683-7

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भव्य एवं गरिमामयी व्यक्तित्व के बावजूद अपनी जनसाधारण छवि वाली सुश्री प्रतिभा पाटिल का जीवन विवरण...

Bharat Ki Pratham Mahila Rashtrapati Pratibha Pati a hindi book by Kumar Pankaj - भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल - कुमार पंकज

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भव्य एवं गरिमामयी व्यक्तित्व के बावजूद अपनी जनसाधारण की छवि वाली सुश्री प्रतिभा पाटिल का भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति के रूप में सामने आना हमारे देश के इतिहास में विशेष महत्त्व की घटना है।
मैंने सोचा भी न था कि देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद की मैं दावेदार बनूंगी। मैं नहीं जानती कि आगे क्या होगा और न ही मैं तनाव में हूँ। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनाने के लिए मैं सोनिया और लेफ्ट की आभारी हूँ।

प्रतिभा पाटिल

आधी आबादी की प्रतिभा


प्रतिभा ताई को मैं सिर्फ इतना जानता था कि वह राजस्थान की राज्यपाल हैं। जिस दिन राष्ट्रपति पद के लिए उनकी उम्मीदवारी का चयन किया गया उस दिन मेरे पास कई फोन आए। कोई पूछ रहा है कि इतना तो मालूम है किसी महिला का चयन किया गया है लेकिन नाम नहीं पता चल रहा है। क्या आपको पता है मैं सिर्फ इतना ही कह पाया कि ‘‘मैं अभी पता करके बताता हूं।’’ फिर एक दूसरा फोन आया कि तीन महिलाओं का नाम है जिनमें मोहसिना किदवई, निर्मला देशपांडे और प्रतिभा पाटिल का नाम है। आप जरा पता कर लें कि इसमें कौन नाम है। मैंने तुरन्त कांग्रेस मुख्यालय फोन लगाकर पता किया तो पता चला कि राजस्थान की राज्यपाल प्रतिभा देवीसिंह पाटिल को यूपीए ने अपना उम्मीदवार बनाया है। जहां-जहां से फोन आया था मैंने उन सबको बताया कि राष्ट्रपति पद के लिए राजस्थान की राज्यपाल प्रतिभा देवीसिंह पाटिल को यूपीए ने अपना उम्मीदवार बनाया है।

कई लोग यह भी सवाल करने लगे कि प्रतिभा पाटिल कौन ? यह सवाल भी लाजिमी था क्योंकि प्रतिभा पाटिल राष्ट्रीय राजनीति से ज्यादा सरोकार नहीं रखती थीं। राज्यसभा की उपसभापति रहीं, लोकसभा सदस्य रहीं लेकिन राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में उन्होंने अपनी वह छाप नहीं छोड़ी जो छोडनी चाहिए।
लेकिन यूपीए ने जब उम्मीदवार बना दिया तब चारों तरफ यह चर्चा दौड़ गई कि अब देश में पहली बार महिला राष्ट्रपति बनेगी। बनना भी चाहिए आधी आवादी की वकालत करने वाले लोगों के लिए गर्व की बात होनी चाहिए कि आजादी के 60 दशक के बाद देश में एक महिला राष्ट्रपति बनने जा रही है। क्योंकि वोटों का समीकरण बिल्कुल प्रतिभा पाटिल के पक्ष में था और शुरू से ही यह हो गया था कि प्रतिभा पाटिल ही चुनाव जीतेंगी इसमें कोई शक या सुबहा की गुंजाइश ही नहीं बची थी।
मैंने भी तुरंत उन नारीवादी महिलाओं को फोन लगाकर बधाई दी जो नारीवाद की वकालत करती हैं। वह भी खुशी के मारे फूली नहीं समां रही थीं क्योंकि पहली बार देश में महिला राष्ट्रपति के लिए इतने व्यापक स्तर पर चर्चा छिड़ गई थी। सवाल लोगों की जुबान पर था प्रतिभा पाटिल ही क्यों ? लेकिन इस सवाल का एक ही जवाब मेरे शब्दों में कि प्रतिभा क्यों नहीं ? आखिर वह एक महिला हैं,
लंबा राजनीतिक अनुभव है। कोई दाग नहीं है, अपने राजनीतिक काल में उन्होंने कभी हार नहीं मानी। जो कुछ भी किया उसमें उन्हें सफलता हाथ लगती गई लेकिन प्रमुख विपक्षी दल राजग को प्रतिभा रास नहीं आयीं सो उन्होंने गड़े मुर्दे उखाड़ने का काम शुरू कर दिया। जैसे ही प्रतिभा पाटिल के नाम की घोषणा हुई भाजपा की ओर से बयान आने लगा कि वह योग्य उम्मीदवार नहीं हैं। लेकिन इन सबके ऊपर उठकर यह देखा जाना चाहिए था कि उनके व्यक्तिगत जीवन में किसी प्रकार का आरोप है तो उसे यह मानकर नहीं देखा जाना चाहिए कि वह व्यक्ति भी वैसा ही है जैसा कि उसका परिवार। लेकिन मीडिया में प्रतिभा पाटिल छा गईं।
उनकी उम्मीदवारी की घोषणा के बाद इलेक्ट्रॉनिक समाचार चैनलों, अखबारों ने उनके बारे में बढ़ाकर दिखाना लिखना शुरू किया। आजाद भारत के इतिहास में पहली बार राष्ट्रपति पद को लेकर लोगों के अंदर एक उत्सुकता देखी जा रही थी। लोग उम्मीदवार की घोषणा होने से पूर्व ही कयास लगा रहे थे कि कौन बनेगा राष्ट्रपति। डॉ. कलाम ने दुबारा चयन की बात भी चल रही थी।

इसके अलावा डा. कर्ण सिंह, सुशील कुमार शिंदे, शिवराज पाटिल, प्रणव मुखर्जी से लेकर कई ऐसे नाम सामने आए जिस पर सहमति नहीं बन पायी। यहां तक कि राजग उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत को सर्वसम्मति से राष्ट्रपति बनाए जाने की बात करता रहा। लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने साफ तौर पर सर्वसम्मति की बात को ठुकरा दिया था। उनका साफ तौर पर कहना था कि राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हो। उनका चयन सही था और बिल्कुल सही।
खैर चयन के बाद जिस तरह के आरोप प्रत्यारोप का दौर चला उसे भला कैसे भुलाया जा सकता है। मीडिया में बयानबाजी शुरू हो गई।
कई ऐसे लोग बाहर आकर प्रतिभा पाटिल पर आरोप लगाने लगे जो अभी तक सोए हुए थे। मीडिया ने सबकी बातों को गंभीरता से लिया। यह नहीं था कि मीडिया एक तरफा रिपोर्टिंग कर रहा था। अगर प्रतिभा पाटिल पर आरोप लगे तो उसे भी उतनी ही प्राथमिकता दी गई जितनी प्राथमिकता प्रतिभा पाटिल के समर्थकों को दी गयी। मीडिया की भूमिका बिल्कुल निष्पक्ष थी।

हर पक्ष को पूरी ईमानदारी के साथ रखा गया। यूपीए और एनडीए ने कोई कसर आरोप और बचाव में नहीं छोड़ी। यह बात भी तय हो चुकी थी कि अब प्रतिभा पाटिल को देश का राष्ट्रपति बनने से कोई रोक नहीं सकता।
वोटों का समीकरण प्रतिभा पाटिल के पक्ष में था और नारीवादी महिलाएं इस बात की ओर इशारा करने लगी कि अब पहली बार महिला राष्ट्रपति लेकिन कुछ महिलाओं ने प्रतिभा पाटिल का विरोध भी किया। इसकी वजह तो वही बता सकती हैं

जिन्होंने महिला उम्मीदवार का ही विरोध करना शुरू किया। लेकिन आधी आबादी को खुश इस बात पर होना चाहिए कि पहली बार उन्हें देश के सर्वोच्च पद पर बैठने का मौका मिल रहा है। जिस दिन प्रतिभा पाटिल ने राष्ट्रपति पद के लिए राजग उम्मीदवार भैरोसिंह शेखावत को हराया। जैसे ही खबर मीड़िया के जरिए लोगों तक पहुंची। प्रतिभा पाटिल के समर्थक खुशी से झूम उठे।
तभी मेरे पास एक फोन आया कि पंकज भैया आए प्रतिभा पाटिल पर एक किताब लिखिए क्योंकि पहली बार कोई महिला देश के सर्वोच्च पद पर पहुंची है। यह फोन मेरे बड़े भाई तुल्य राजेश थरेजा का था। उन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया कि आप प्रतिभा पाटिल के ऊपर लिखिए। पहले तो मैं संशय में था कि देश के सर्वोच्च पद पर विराजमान होने जा रही महिला के बारे में भला मैं क्या लिखूंगा। मुझे तो ज्यादा पता भी नहीं था कि प्रतिभा पाटिल का पिछला जीवन क्या रहा है ? बस पता था तो इतना कि प्रतिभा पाटिल सर्वोच्च पद पर विराजमान हो गईं और जो कुछ अखबारों में पढ़ने को मिला वही सारी बातें पता थी। प्रतिभा पाटिल के जीत का जश्न जब साउथ एवेन्य के उनके आवास पर मनाया जा रहा था तो मुझे भी वहां जाने का मौका मिला।

मैंने देखा कि देश की जानी-मानी शख्सियतें वहां पहुंच रही हैं। बधाइयों का ताता लगा हुआ है। वहां जाकर थोड़ा सा यह लगा कि नहीं, इस खुशी को मैं शब्दों में व्यक्त करूंगा। मैंने राजेश थरेजा को फोन लगाया और कहा कि सर मैं किताब लिखूंगा उन्होंने कहा कि जो भी मदद हो मैं करूंगा। फिर मैंने कांग्रेस के युवा नेता मुकेश बाबा को फोन लगाकर कहा कि बाबा मुझे प्रतिभा पाटिल पर किताब लिखनी है आप मेरी क्या मदद करोगे। संयोग से मुकेश प्रतिभा जी के साथ उनके घर में (साउथ एवेन्यू का फ्लैट जो उन्हें मिला था) ही विराजमान थे। उन्होंने तुरंत कहा जो भी मदद कहिए मैं करूंगा कोई दिक्कत नहीं है। आप किताब लिखिए।

थोड़ी ही देर बाद बाबा प्रतिभा जी के बारे में कुछ छपी सामग्री लेकर आ गये। मेरा उत्साह दुगना हो गया कि नहीं, मुझे किताब लिखने में मदद मिल जाएगी। मैंने तुरंत डायमंड प्रकाशक के श्री नरेन्द्र कुमार जी को फोन लगाया और कहा कि मैं प्रतिभा पाटिल पर किताब लिखना चाहता हूं उन्होंने तुरंत कहा कि इससे अच्छी बात क्या हो सकती है। आप किताब लिखिए मैं छापने के लिए तैयार हूं लेकिन जल्दी। क्योंकि उनको मेरी कमजोरी पता थी कि मैं कहता हूं जल्दी कर दूंगा लेकिन कर नहीं पाता।
खैर श्री नरेन्द्र जी को जिस दिन मैंने कहा उसके बाद जब तक किताब उनके हाथ नहीं आ गयी तब तक उनका फोन लगातार मेरे पास आता रहा कि किताब का काम कहां तक पहुंचा। मैं जितना भी कर पाया उसकी जानकारी उन्हें दे देता। इस किताब को लिखने में सबसे ज्यादा परेशानी संदर्भ जुटाने में हुई क्योंकि प्रतिभा पाटिल के बारे में बहुत सी सामग्री बिखरी हुई थी। मैंने समाचार पत्र, पत्रिकाओं, इंटरनेट, लाइब्रेरी आदि को खंगालना शुरु किया। जितनी भी सामग्री मिली मैंने लिखना शुरु कर दिया।

मैंने मीडिया में जो बाते आयीं उसको भी इस पुस्तक में समाहित किया है। मैं आभारी हूं उन समाचार पत्रों, लेखकों का जिनकी सामग्री मैंने इस पुस्तक में दिया है। मैं आभारी हूं उन सभी संवाददाताओं, लेखकों, कॉलमनिस्टो का जिन्होंने प्रतिभा जी के बारे में ज्यादा से ज्यादा और रुचिकर सामग्री उपलब्ध करायी। कुछ विवाद भी रहे, मैंने उन विवादों को भी इस पुस्तक में स्थान दिया है

देश की पहली महिला राष्ट्रपति को लेकर क्या सोच रही। मीडिया में किस प्रकार की बातें आयी। उन्हें देने के पीछे प्रमुख कारण यही था कि दोनों पक्ष पुस्तक में समाहित हो। मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता बृजमोहन श्रीवास्तव जी से इस पुस्तक को लेकर लंबी चर्चा हुई उन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया कि नहीं शीघ्र इस काम को पूरा कीजिए। जो भी मदद होगी वह करेंगे। उन्होंने मेरा हौसलाअफजाई करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। बड़नगर (उज्जैन) के पूर्व विधायक वीरेन्द्र सिंह सिसौदिया के प्रति आभार व्यक्त करता हूं।

अंत में मैं पुन: आभार प्रकट करता हूं राजेश थरेजा, मुकेश बाबा, बृजमोहन श्रीवास्तव, वीरेन्द्र सिंह सिसौदिया और सबसे अभिन्न मित्र ममता तिवारी का जिनके लगातार मिल रहे प्रोत्साहन से यह किताब पूरी हो सकी। डायमंड प्रकाशन के नरेन्द्र कुमार को भला कैसे भूल सकता हूं जो मेरे लिए सदैव मार्गदर्शक की तरह तैयार रहते हैं।

कुमार पंकज

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