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जीवनी/आत्मकथा >> सुनीता विलियम्स

सुनीता विलियम्स

रचना भोला, संजय भोला

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :77
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5634
आईएसबीएन :81-288-1644-6

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सुनीता विलियम्स के अंतरिक्ष अनुभवों व कीर्तिमानों के विवरण से सजी यह पुस्तक युवा पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक का कार्य अवश्य करेगी।

Antariksha Mein Adbhut Prayas Sunita Viliyams a hindi book by Racfna Bhola, Sanjay Bhola - अन्तरिक्ष में अद्भुत प्रयास सुनीता विलियम्स - रचना भोला, संजय भोला

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

अंतरिक्ष यात्रा का नाम लेते ही स्वर्गीया कल्पना चावला का चेहरा सामने आ जाता है, जिन्हें भारत की प्रथम महिला अंतरिक्ष यात्री होने का गौरव प्राप्त हुआ। कोलंबिया अंतरिक्ष यान दुर्घटना ने उन्हें हमसे छीन लिया। उनका सपना अधूरा रह गया तथा समस्त अंतरिक्ष जगत में चुप्पी-सी छा गई।
उनके अधूरे सपने को साकार करने के लिए भारतीय मूल की अमरीकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स पांड्या सामने आईं। सुनीता के पिता श्री दीपक पांड्या, भारत के गुजरात राज्य से संबंध रखते हैं। सुनीता अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र पर कदम रखने वाली पहली भारतीय महिला हैं। उन्होंने किसी भी महिला द्वारा अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा लंबा समय बिताने व अंतरिक्ष वॉक (स्पेस वॉक का रिकार्ड भी बनाया है। सुनीता ने स्पेस मैराथन का रिकॉर्ड बनाने के साथ-साथ अंतरिक्ष प्रयोगशाला में ऐसे कई परीक्षण भी किए, जो भावी अंतरिक्ष यात्रियों के लिए लाभदायक सिद्ध होंगे। सुनीता ने इस साहसिक अभियान में रुचि दिखाकर यह प्रमाणित कर दिया कि महिलाएँ भी पुरुषों से किसी तरह कम नहीं, वे बड़े से बड़े लक्ष्य को साकार करने का साहस रखती हैं।
इस पुस्तक में हमने सुनीता की ‘धरती से अंतरिक्ष’ तक की यात्रा के अनुभवों को संजोया है। चूँकि उनके विषय में अधिक प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं थी अतः समाचार-पत्रों, वेबसाइटों तथा अन्य स्रोतों से मिली जानकारी के आधार पर ही प्राप्त अनुभवों को कथोक्रम में पिरोकर इसे पुस्तकाकार दिया। हम उन सभी स्रोतों के आभारी हैं, जिन्होंने प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से हमारी सहायता की।
डायमंड पाकेट बुक्स के निदेशक श्री नरेंद्र कुमार जी ने सदैव ऐसी प्रेरणादायक पुस्तकों को प्रोत्साहन दिया है, जिससे देशव्यापी किसी भी कार्य क्षेत्र में सफलता की ऊंचाइयों को छूने की प्रेरणा पा सकें। यह पुस्तक भी उन्हीं प्रयासों में से एक है। आशा करते हैं कि सुनीता विलियम्स के अंतरिक्ष अनुभवों व कीर्तिमानों के विवरण से सजी यह पुस्तक युवा पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक का कार्य अवश्य करेगी।

रचना भोला ‘यामिनी’
संजय भोला ‘धीर

एक अधूरा सपना...


1 फरवरी 2003, सारा देश भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला समेत सात अंतरिक्ष यात्रियों के सकुशल धरती पर उतर आने की दुआएँ माँग रहा था। हर जगह पहले से ही उनके स्वागत की तैयारियाँ की जा रही थीं।
अमरीकी अंतरिक्ष शटल कोलंबिया, 16 दिवसीय अंतरिक्ष अभियान को पूरा कर धरती पर लौट रहा था। इस अभियान में अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने अपने प्राणों को संकट में डालकर ऐसे अनेक शोध किए थे, जिन्हें पृथ्वी पर कर पाना संभव नहीं था। इस मिशन में मानव शरीर पर अंतरिक्ष का प्रभाव, कीट पतंगों पर अंतरिक्ष की भारहीनता का प्रभाव व कैंसर कोशिकाओं की समीक्षा आदि अनेक नवीन शोध किए गए।
नासा बड़ी बेताबी से अपने शटल व उसके यात्रियों की सकुशल वापसी के लिए प्रतीक्षारत था। भारत में भी उमंग की लहर फैली हुई थी क्योंकि इस अभियान में भारत की बेटी ‘कल्पना चावला’ भी शामिल थीं जिन्हें सब ‘के.सी.’ कहकर पुकारते थे।
कल्पना का जन्म, 1 जुलाई सन् 1961 में करनाल (हरियाणा) के श्री बनारसी लाल चावला जी के यहाँ हुआ। करनाल जैसे छोटे से नगर से अंतरिक्ष तक की यात्रा करने वाली कल्पना चावला पर पूरे देश को गर्व था। तभी तो सभी देशवासी टी.वी. पर नजरें गड़ाए, एक-एक पल का समाचार देख रहे थे।
कल्पना के परिवार जन एक रात पहले ही फ्लोरिडा पहुँच गए थे जहाँ कल्पना का अंतरिक्षयान कोलंबिया पहुँचने वाला था। उसी भीड़ में कल्पना के पति जीन-पियरे हैरीसन भी शामिल थे। कल्पना के पिता जी यानी ‘भाजी’ भी अपनी बेटी से मिलने को आतुर थे।
हरियाणा के करनाल शहर में तो उत्सव जैसा माहौल था। चूँकि करनाल में ही कल्पना का बचपन बीता और करनाल के टैगोर निकेतन से ही अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की। उस विद्यालय के सभी छात्र, कल्पना चावला की सकुशल वापसी के उत्सव को मनाने के लिए एकत्र थे।
डॉ. कल्पना के पिता ने 28 जनवरी 2003 को कल्पना से अंतरिक्ष में बात की। नाशा की वीडियो कांफ्रेंस द्वारा उन्हें यह सुविधा प्राप्त हुई। निश्चय ही यह उनके जीवन के लिए स्वर्णिम पल थे, जब उन्हें अंतरिक्ष में बैठी कल्पना से बात करने का अवसर मिला। किसने सोचा था कि छोटे से शहर में पली-बढ़ी कल्पना की उड़ान इतनी ऊँची हो जाएगी कि वह एक दिन पूरे विश्व में एक जाना-पहचाना नाम बन जाएगी।
कल्पना इससे पहले भी एक बार अंतरिक्ष में जा चुकी थीं। गुरुत्वाकर्षण विषय में विशेषज्ञता के कारण ही उसका चयन किया गया। जब वे 19 नवम्बर, 1997 को स्पेश शटल कोलंबिया द्वारा अंतरिक्ष की परिक्रमा के लिए निकलीं तो इसी दौरान उनके स्पेस शटल का एक हिस्सा ‘स्पार्टन’ अपने मुख्य भाग से अलग हो गया। डॉ. कल्पना ने अपनी सूझ-बूझ व बुद्धिमत्ता के साथ अपने दो सहकर्मियों की सहायता से, 3000 पौंड के उस हिस्से को यान से जोड़ने में सफलता प्राप्त की। उनकी इस सफलता पर नासा के मुख्य प्रशासक श्री डेनियल गोल्डेन ने कहा-
‘‘अंतरिक्ष अत्यंत जटिल विष है। स्पेस शटल से अलग हुए हिस्से को दोबोरा जोड़ने में डॉ.कल्पना चावला ने जिस सूझ-बूझ धैर्य व साहस का परिचय दिया है वह बहुत सराहनीय है।’’
प्रथम भारतीय महिला अंतरिक्ष यात्री कल्पना, 16 जनवरी, 2003 को अन्य वैज्ञानिकों के साथ अंतरिक्ष गईं। इस यात्रा में डॉ. कल्पना के अभियान का थीम—‘‘स्पेस रिसर्च एंड यू’’ (अंतरिक्ष अनुसंधान व आप) थी। वह यान लगातार दिन-रात एक प्रयोगशाला की तरह काम कर रहा था।
फ्लोरिडा स्थित अंतरिक्ष केंद्र पर खड़े परिजनों की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। टी.वी. स्क्रीन पर कोलंबिया स्पेश शटल एक सफेद लकीर जैसा दिखाई दे रहा था। अंतरिक्ष में उड़ान भरने वाले सात वैज्ञानिकों के अतिरिक्त इस मिशन में, केनेडी अंतरिक्ष केंद्र के 70 अन्य वैज्ञानिक भी शामिल थे, जो नियंत्रण कक्ष में शटल उतारने की प्रक्रिया में योगदान दे रहे थे।
मौसम बिलकुल साफ था किंतु अंतरिक्ष से वायुमंडल में प्रवेश करते ही सब कुछ तबाह हो गया। उस समय कोलंबिया यान की गति 20100 कि.मी. प्रतिघंटा थी। उसे अंतरिक्ष से वायुमंडल में प्रवेश करते समय दो एस टर्न लेने थे परंतु इसी दौरान एक ऐसी दुर्घटना घटी जिसने सबके दिल दहला दिए। यह हादसा पृथ्वी से करीब 40 मील ऊपर हुआ था। विमान के बाएँ विंग पर लगी तापरोधी प्रणाली की टाइल्स गिरने के कारण ऐसा हुआ।
1 फरवरी 2003 को भारतीय समयानुसार शाम 6 :45 पर कोलंबिया अंतरिक्ष की कक्षा से पृथ्वी के लिए रवाना हुआ। 7:23 पर हाइड्रोलिक सिस्टम के ताप की गणना करने वाले उपकरण से नासा का संपर्क टूट गया। इसी तरह एक दो मिनट के भीतर अन्य उपकरणों से भी नासा का संपर्क टूटने लगा। शाम 7:30 बजे 62140 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कोलंबिया का संपर्क बिलकुल टूट गया। कुछ लोगों को ऐसा लगा मानो कोलंबिया के टुकड़े गिर रहे हों। कुछ ही मिनटों के बाद टेक्सास के ऊपर जोरदार धमाका सुनाई दिया। काँच के दरवाजे व खिड़कियाँ चटक गए। केप केनेवरल में सुबह के 8 बजे थे। धरती पर उतरने के करीब 16 मिनट पूर्व यान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। बाद में पता चला कि कोलंबिया के छोटे-छोटे टुकड़े 190 कि.मी. के क्षेत्र में बिखर गए थे।
सभी को ऐसा लग रहा था कि कहीं कोई अनहोनी घट गई है। हालांकि नासा अधिकारी काफी समय तक शांत रहे। उन्होंने दुर्घटना की खबरें मिलने के बावजूद शटल से संपर्क साधने की कोशिश की लेकिन वहाँ से जवाब देने के लिए कोई नहीं बचा था।
आखिर में, एक घंटे बाद अंतरिक्ष केंद्र में लगा झंडा आधा झुका दिया गया। यान चालक दल के परिवारों को केनेवरल में बुलाया जाने लगा। कल्पना के परिवार वाले तो अब तक स्तब्ध थे। उनकी बिटिया, 6 अंतरिक्ष वैज्ञानिकों सहित, अंतरिक्ष में ही विलीन हो चुकी थी। करनाल में स्कूली बच्चों की खुशियों से गूँजता माहौल शोक में बदल गया।
भारत सरकार की ओर से निश्चित समारोहों पर रोक लगा दी गई। स्थान-स्थान श्रृद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किए गए। कल्पना के पिता के पास संबंधियों के फोन आने लगे। सब एक ही बात जानना चाहते थे—‘‘क्या कल्पना....?’’
कल्पना के पिता ने अपनी डबडबाई आँखें पोंछीं और कहा—नहीं, कल्पना कहीं नहीं गई। कल्पना तो अमर हो गई। बस उसका सपना अधूरा रह गया। आज नहीं तो कल, भारत की ही कोई बेटी, इस अधूरे सपने को साकार करेगी हमारे देश का नाम रोशन करेगी। तभी और केवल तभी मेरी कल्पना की आत्मा को शांति मिलेगी।

भारत का गौरव-सुनीता विलियम्स


22 जून 2007, शुक्रवार का दिन। आज एक बार फिर पूरा देश टी.वी पर नजरें गड़ाए बैठा है। आज भारत की ही एक पुत्री सुनीता विलियम्स, अपनी अंतरिक्ष यात्रा से लौट रही है।
आज भी कल्पना के पिता नम आँखों से ही मन ही मन प्रार्थना कर रहे हैं। अंतर केवल इतना है कि उस दिन वह बिटिया से मिलने अंतरिक्ष केंद्र गए थे और आज टी.वी. पर सारा समाचार देख रहे हैं।
सुनीता विलियम्स, करनाल की कल्पना के अधूरे सपने को साकार करने जा रही हैं। देश में हर जगह उनकी सलामती की दुआएँ मांगी जा रही हैं। खराब मौसम के चलते यान की लैंडिंग टल चुकी है, जिससे सभी का मन आशंकित हो उठा है।
करनाल के टैगोर बाल निकेतन स्कूल में बच्चे सहित शहर के लोग प्रार्थना कर रहे हैं। बच्चों के मुख पर यही शब्द है—‘‘सुनीता दीदी सलामत लौटना ! ओ गॉड ! हमारी दीदी की रक्षा करना।’’
दरअसल उनका डर बेबुनियाद नहीं है। उस दिन भी वे सब कल्पना दीदी के लौटने की खुशी में मग्न थे कि सब कुछ एक ही झटके में बिखर गया था। उनकी कल्पना दीदी अपनी चिर-परिचित मुस्कान के साथ धरती पर लौटने के बजाए अंतरिक्ष में ही खो गई थी। बस सबके मन में एक ही बात ही—कहीं वक्त अपने-आप को दोहरा न दे।
वैसे सभी के मन में यह विश्वास भी है कि उनकी दुआएँ व कल्पना दीदी की प्रेरणा, सुनीता के मार्ग की सारी बाधाएँ हटा देगी।
कल्पना के रूप में जो अपूर्णीय क्षति हुई थी, उसे तो कोई नहीं भर सकता किंतु सुनीता की वापसी से उन घावों पर मरहम अवश्य लग जाएगा।
कल्पना के परिजनों की आँखों में बेटी को खोने का गम तो है ही किंतु सुनीता बेटी की सकुशल वापसी के लिए ईश्वर से प्रार्थना भी कर रहे हैं।

मानवता का धर्म

टैगोर बाल निकेतन में औपचारिक रूप से कोई आयोजन न होने के बावजूद सैकड़ों लोग वहाँ पहुँच रहे हैं। स्कूल की ही एक छात्रा सिमरन कल्पना का अभिनय कर रही है। यहाँ धर्म, जाति, पूजा-पद्धति; सब एक हो गए हैं। कल्पना चावला की स्मृति में भी गीत गाए जा रहे हैं।
अंबर, गीत, नितिन, गौतम, पलक, महिमा, अर्जुन व महक, शायद ही कोई ऐसा बच्चा होगा जो सच्चे दिल से दुआ न माँग रहा हो।




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