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धर्मवीर भारती और अन्धा-युग

श्री राकेश

प्रकाशक : प्रकाशन केन्द्र, लखनऊ प्रकाशित वर्ष : 1995
पृष्ठ :97
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5589
आईएसबीएन :00000

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अन्धा-युग की लोचना में महाभारत के सन्दर्भ में आधुनिक अन्धी प्रवृत्तियों का उद्घाटन है

Daramver Bharti Aur Andha Yog

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

स्वकथन

अंधा युग में डॉ. भारती ने युद्ध परिपेक्ष्य में आधुनिक जीवन की विभीषिका का चित्रण किया है। कृष्ण ने धृतराष्ट्र को समझाया था कि मर्यादा मत तोड़ो। टूटी हुई मर्यादाएं सारे कौरव वंश को नष्ट कर देंगी। वह धृतराष्ट्र अंधा था और उसकी संवेदनाएँ बाहरी यथार्थ या सामाजिक मर्यादा ग्रहण करने में असमर्थ थीं, इसलिए स्वार्थ का अंधापन छा गया। इस अंधेपन ने संस्कृति को ह्रासोन्मुख बना दिया और पूरे युग को महाविनाश के कगार पर खड़ा कर दिया। युद्ध में मौलिक विनाश के साथ-साथ मानवीय जीवन को ध्वस्त कर दिया। अनेक आस्थायें टूट गईं। आधुनिक युग में दो विश्व युद्धों में अंधी प्रवृत्तियों द्वारा विश्व में यह विनाश हुआ। अंधेपन से उत्पन्न युद्धों के उपरान्त एक महान विघटनकारी संस्कृति का निर्माण हुआ। जिसमें कुंठा, निराशा, पराजय, अनास्था, प्रतिशोध, आत्मघात और पीड़ा व्याप्त हो गई।

अंधा-युग की आलोचना में महाभारत के संदर्भ में आधुनिक अंधी प्रवृत्तियों का ही उद्घाटन है। इस आलोचनात्मक पुस्तक में सारी प्रवृत्तियों और काव्य-नाटक की दृष्टि से समीक्षा प्रश्नोत्तर रूप में प्रस्तुत की गई है। अन्त में मूल पाठ सहित व्याख्याएँ भी दी गई हैं। आशा है कि परीक्षार्थियों के लिए यह पुस्तक उपयोगी सिद्ध होगी।

-राकेश


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काव्य-नाटक (गीति-नाट्य) का स्वरूप तत्त्व और विकास



प्रश्न 1. काव्य-नाटक (गीति-नाट्य) की परिभाषा और स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।


1.स्वरूप और परिभाषा

उत्तर—काव्य-नाटक का स्वरूप- - काव्य-नाट्य नाटक और काव्य की एक मिली-जुली विधा है। इसमें काव्य और नाटक दोनों के तत्वों का समन्वय रहता है। हिंदी में इस विधा को गीति-काव्य, काव्य-नाटक, दृश्य-काव्य आदि कई नामों से पुकारा जाता है। आज काव्य भी छन्द मुक्त होकर नाटक के समीप आ गया है। डॉ. दशरथ ओझा इसे ‘गीति-नाट्य’ ‘गीति-रूपक’, ‘काव्य-रूपक, संगीत रूपक’, ‘गीति-नाटक के पर्याय के रूप में प्रयुक्त करते हैं। सर्वाधिक उपयुक्त नाटक काव्य नाटक है। डी. एस. इलियट, वैष्ठ एच. क्लार्क, जे. इसाक. जी. फ्रीडले, सी. इसल. एच. सी. बार्कर आदि ने काव्य-नाटक विधा को ‘‘Poetic Drama’’ कहा है। भारत-भूषण का ‘अग्रिलीक’ प्रकाश दीक्षित का ‘टयु’ धर्मवीर भारती का ‘अंधा-युग’ काव्य-नाटक ही है।

काव्य नाटक की परिभाषा- -विभिन्न विद्वानों ने काव्य-नाटक की परिभाषा निम्नलिखित प्रकार की है-‘‘काव्य नाटक वस्तुता: न तो हर तरफ से बन्द नाटक है और न ही नाटकीय कविता। यह एक ऐसा नाटक होता है, जो विषयवस्तु और स्वरूप विधान दोनों में ही पूर्णरूपेण काव्यात्मक एवं नाटकीय होता है-कविता के लिए पूर्णतया अपेक्षित सौन्दर्य और विचारात्मकता से युक्त गद्य में एक अभिनव नाटक होता है।

-प्रो. चैण्डलर


जिसे हम सही तौर पर एक काव्य-नाटक कहते हैं वह विधि-विधानों से युक्त काव्य और नाटक दोनों रूपों में समान रूप से सन्तुष्ट होता है।
--एच. जी. नाइकट


‘‘काव्य-नाटक काव्य-तत्त्व और रूपक तत्त्व का संगम है। काव्यत्व के काव्य-नाटक में मानव-जीवन के राग-तत्त्व बड़ी सफलता से उभरकर आते हैं। नाटक-तत्त्व इसका वाहन स्वरूप निर्मित करता है। नाटक तत्त्व कथानक का निर्माण करता है। घटनाएँ और संघर्ष देता है। पात्रों की सृष्टि करता है और काव्य तत्त्व इसमें अनुभूतियों का दान देता है।

--काव्य नाटककार सिद्धार्थ कुमार




निष्कर्ष—

उपर्युक्त परिभाषाओं के विश्लेषण के आधार पर काव्य-नाटक में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं।
1.     काव्य-नाटक में काव्य-तत्त्व और नाटक-तत्त्व का समन्वय होता है।
2.     अनुभूतियों का नाटकीय प्रकाशन होता है।
3.     बहिर्जगत को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता।
4.     विषय-वस्तु काव्यात्मक एवं नाटकीय होती है।
5.     रूप विधान पूर्णरूप से काव्यात्मक एवं नाटकीय होता है।
6.     काव्यात्मक विषय-वस्तु अभिनय होती है।
7.     कथानक में नाटकीयता और घटनाओं का संघर्ष अनिवार्य होता है।


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हिंदी-काव्य-नाटक का विकास



प्रश्न 2. हिदी काव्य-नाटक का संक्षिप्त विकास प्रस्तुत कीजिए।
प्रश्न 3. हिंदी काव्य-नाटक के विकास में ‘अंधा युग’ काव्य-नाटक के स्थान और महत्त्व का मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर-

प्रारम्भिक काव्य नाटक


भारतेन्दु से पूर्व नाटकों की रचना पद्य में ही होती थी बीच-बीच में गद्य का प्रयोग भी कर दिया जाता था। इनको काव्य-नाटक का प्रारम्भिक रूप कहा जा सकता है भारतेन्दु के कई नाटक रूपक ही हैं उनका ‘चंद्रावली’ नाटिका एक सफल काव्य रूपक का उदाहरण है।


प्रसाद जी के काव्य-नाटक


प्रसाद का ‘एक घूँट’ हिंदी का प्रथम  काव्य-नाटक है। इसका प्रकाशन सन् 1915 ई. में हुआ यह तुकान्त छन्द में लिखा गया है। इसे प्रारम्भिक काव्य-नाटक के रूप में ही महत्त्व प्राप्त है। निराला जी का ‘पंचवटी-प्रसंग’ सन् 1936 में पंत का ज्योत्सना काव्य-नाटक सामने आया परन्तु इनमें काव्य-तत्त्व की प्रधानता और नाटक-तत्त्व् का अभाव है। अत: इनको काव्य-नाटक के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।

प्रसाद जी के ‘करुणालय’ के पश्चात् मैथिलीशरण गुप्त के ‘अनघ’ ‘तिलोत्तमा’ और ‘चन्द्रहास’ आदि सामने आते हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इनको रूपक कहा है। परन्तु करुणालय की तरह ही ‘अनघ’ ‘तिलोत्तमा’ और ‘चन्द्रहास’ को भी काव्य-नाटक ही माना जा सकता है। गुप्त जी के ये तीनों काव्य-नाटक सन् 1906 से लेकर सन् 1915 तक के हैं।
सन् 1918 में निम्नलिखित काव्य-नाटक सामने आये-

1.     सियाराम शरण गुप्त–उन्मुक्त और कृष्णाकुमारी;
2.     हरिकृष्ण-प्रेमी-स्वर्ण-विहान;
3.     भगवतीचरण वर्मा--तारा; तथा
4.     उदयशंकर भट्ट-मत्स्यगंधा, विश्वामित्र, राधा।

उपर्युक्त रचनाओं में उन्मुक्त कृष्णाकुमारी, और स्वर्ण-विहान, अनघ के समान ही आज काव्य-नाटक है। ‘तारा’ में पाप-पुण्य की समस्या को मनोवैज्ञानिक ढंग से रखा गया है। ‘समस्या’ धार्मिक की दृष्टि से यह एक सफल काव्य-नाटक है। ‘मत्स्यगंधा’, ‘विश्वामित्र’ और ‘राधा’ तीनों भाव नाटक है। इनकी कथावस्तु प्रतीकात्मक है। इनमें नारी के प्रेम को चिरन्तन समस्या का आधार बनाया गया है।


छायावादी-युग के काव्य-नाटक


रेडियो की लोकप्रियता प्रचार-प्रसाद ने काव्य-नाटक की विधा को गति प्रदान की सन् 1964 तक पंत का रेडियो से सम्पर्क रहने के कारण इनके तीन काव्य-नाटक संग्रह प्रकाशित हुए।

1.     शिल्पी- शिल्पी, अप्सरा, ध्वंशावेशेष।
2.     रजत-शिखर- रजत-शिखर, उत्तर रावी, फूलों का देश, शुभ्र पुरुष।
3.     सौवर्ण-सौवर्ण, स्वप्न और सत्य दिग्विजय। शिल्पी कलाकार का सौंदर्य निखरा है। और अप्सरा में सौन्दर्य का प्रकाशन है।

पंत जी के काव्य-नाटक नाटकत्व के अभाव में असफल हैं। इनको सफल गीति-नाट्य नहीं कहा जा सकता ‘गहन-चिन्तन’ बोझिल दार्शनिक विचारों ने इनके नाटकत्व को हानि पहुँचायी है।
‘दिनकर जी का ‘मगध-महिमा’ काव्य-नाटक है। इसमें अतीत के वैभव का विशद चित्रण है। श्री आरतीप्रसाद सिंह ने ‘मदनिका’ और ‘धूप-छाँह’ दो काव्य-नाटक लिखे। सन् 1960 में धर्मवीर भारती में ‘अंधायुग‘ तथा ‘सृष्टि का आखिरी आदमी’ काव्य-नाटक प्रकाशित हुए। गिरजा कुमार माथुर के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में काव्य-नाटक प्रकाशित हुए, जैसे-कल्पान्तर, दंगा, राम, धाराद्वीप, व्यक्ति मुक्त, स्वर्णकी, अमर है आलोक आदि।

इन्दुमती कालिदास की कथा पर आधारित एक मौलिक काव्य-नाटक है। माथुर जी ने इन काव्य नाटकों में जीवन की अनेक समस्याओं को चित्रित किया है। समस्याओं को प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त किया है।

छटे दशक तक भगवती चरण वर्मा के-‘कर्ण’, ‘महाकाल’, और ‘द्रौपदी’, काव्य-नाटक प्रकाशित हुए, आरतीप्रसाद सिंह ने ‘इन्द्रधनुष’ ‘स्वप्न साकार हुआ’, ‘मधुकर श्याम हमारे चोर‘, राखियां बँधाओ भैया’ ‘कच’, ‘देवयानी’, ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’
‘श्याम सलोना’ ‘ऋतुराज’ आदि कवि की प्रेरणा ‘अहिंसा परमोधर्माः’, ‘समर्पण की बेला’, ‘चल धरती पर स्वर्ग उतारने’ आदि आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से प्रसारित हो चुके हैं।

सिद्धार्थ कुमार-- ‘सृष्टि की साँझ’, और अन्य काव्य-नाटक ‘सृष्टि की साँझे’, ‘लौह देवता’ ‘संघर्ष’, ‘विकलाँगों का देश’ ‘बादलों का देश’, आदि सिद्धार्थ कुमार के सभी काव्य-नाटक रेडियो और रंगमंच की दृष्टि से सफल हैं।

अन्य काव्य-नाटक—सन् 1960 के पश्चात् डॉक्टर प्रभाकर माचवे के ‘रामगिरि’ एवं ‘विन्ध्याचल’ सफल काव्य-नाटक नयी धारा में पटना से प्रकाशित हुए। श्री गुप्त के ‘कजरारे बादल‘, ‘झूम रहा वृन्दावन’ आदि, केदारनाथ मिश्र के ‘प्रभात’, ‘काल-दहन’, ‘स्वर्णोदय’, ‘रामसिंहासन’ आदि, लक्ष्मीनारायण लाल के सूखा-सरोवर’, ‘पूर्णिमा का अंधकार’, जानकी वल्लभ शास्त्री के ‘पाषाणी पंचाली’, ‘तमाशा’, भारत-भूषण अग्रवाल का काव्य-नाटक ‘समुद्र और सेतु’, ‘अग्निलीक’ आदि प्रसिद्ध काव्य-नाटक सामने आये। प्रकाश दीक्षित का मृत्यु नये टेकनीक की दृष्टि से प्रसिद्ध काव्य-नाटक है। आज काव्य-नाटक की विधा प्रगति पर है। काव्य-नाटक और गीति-नाट्य परस्पर पर्यायवाची हो गये हैं।


      धर्मवीर भारती का ‘अन्धा युग’


काव्य-नाटकों में धर्मवीर भारती का ‘अन्धा युग’ बहुत चर्चित काव्य-नाटक है। यह सर्वथा नया प्रयोग है। इसमें कृष्ण, अश्वत्थामा को आज के अन्धायुग के चिन्तन के रूप में प्रस्तुत किया गया है। कृष्ण के स्वर्गारोहण के साथ द्वापर-युग समाप्त होता है। और अन्धा युग (कलियुग) आ जाता है। ‘अंधायुग’ की कथा महाभारत युद्ध के अट्ठारहवें की रात्रि तथा कृष्ण के स्वर्गारोहण की कथा है। धृतराष्ट्र आदि पात्र प्रतीकात्मक हैं। जो अंधायुग की वेदना को स्पष्ट करते हैं।


उत्तर एक दृष्टि में

(हिंदी में काव्य-नाटक का विकास)
1.     पहला काव्य-नाटक भारतेन्दु की ‘चन्द्रावली’ नाटिका।
2.     इसके पश्चात् प्रसाद जी का ‘करुणालय’।
3.     मैथिली शरण गुप्त के ‘अनघ’ ‘तिलोत्तमा’, ‘चन्द्रहास’
4.     सियारामशरण गुप्त-उन्मुक्त और कृष्णाकुमारी
5.     हरिकृष्ण प्रेमी-स्वर्ण-विहान
6.     भगवती चरण वर्मा-तारा
7.     उदयशंकर-मत्स्यगंधा, विश्वामित्र
8.     छायावादी युग-के काव्य नाटक
9.     दिनकर जी का ‘मगध महिमा’              
10.    अन्य अनेक काव्य नाटक
11.    धर्मवीर भारती का ‘अंधायुग’
12.    सिद्धार्थ कुमार के काव्य-नाटक
13.    आरतीप्रसाद सिंह आदि के काव्य-नाटक
14.    अंधायुग सर्वश्रेष्ठ काव्य-नाटक


3 वाक्य-नाटक के तत्व



प्रश्न 4. काव्य-नाटक के तत्त्व बताइये।

उत्तर—काव्य-नाटक के तत्त्व--

‘हिंदी साहित्य कोश के अनुसार काव्य-नाटक के निम्नलिखित तत्त्व हैं—
1.    प्रस्तावना
2.    कथा
3.    संवाद
4.    गीत
5.    नर्तन
पाश्चात्य साहित्य शास्त्रियों के अनुसार काव्य-नाटक के निम्नलिखित तत्त्व हैं-
1.    अन्तर्जीवन
2.    बहिर्जीवन
3.    विषय-वस्तु योजना
4.    वैयक्तिकता
5.    पौराणिक तथा ऐतिहासिक कथाएँ
6.    आधुनिक जीवन
7.    भावमय पात्र योजना (चरित्र-चित्रण)
8.    कथोपकथन
9.    भाषा शैली—छन्द योजना मुक्त छंद, बिम्ब-विधान, प्रतीक विधान।

काव्य-नाटक परिचय की देन है प्रो. चैण्डर ने काव्य-नाटक की परिभाषा निम्न प्रकार दी है-

‘‘वह न तो हर तरफ से बन्द नाटक है और न ही नाटकीय कविता यह एक ऐसा नाटक होता है जो विषय-वस्तु और स्वरूप विधान दोनों में ही पूर्णरूप से काव्यात्मक एवं नाटकीय होता है। दूसरे शब्दों में कविता के लिए पूर्णतया आयोजित सौन्दर्य और विचारात्मकता से युक्त पद्य में एक अभिनय नाटक होता है। सच्चा काव्य-नाटक केवल छन्दोवद्धता से ही भरा-पुरा नहीं होता, बल्कि इसमें पद्य नाटककार की वस्तु व्यंजना के लिए अनिवार्य एवं अपरिहार्य अंग बनकर आता है।

उपर्युक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि काव्य-नाटक काव्यात्मक और रूपकत्व का संगम होता है। इसमें काव्य-जीवन के राग-तत्त्व बड़ी स्पष्टता से उभरकर आते हैं। नाटक तत्त्व इसका ब्राह्म-स्वरूप निर्मित करता है। नाटक-तत्त्व कथानक का निर्माण करता है घटनाएँ देता है, संघर्ष देता है, पात्रों की सृष्टि करता है और काव्य तत्त्व इमसें अनुभूतियों का दान देता है। उपर्युक्त विश्लेषण के अनुसार काव्य-नाटक के तत्त्व निम्नलिखित हैं--

1.    अन्तर्जीवन-काव्य-नाटक की विषय-वस्तु मनुष्य के तीव्र मनोभाव अथवा भावात्मक सत्य पर केंद्रित रहती है। काव्य-नाटक का केन्द्रीय तत्त्व मानव का अन्तर्जीवन है। काव्य-नाटक सामान्य तथा बहिर्जीवन की उपेक्षा कर सीधे मानव-जीवन की गहराइयों तक पहुँचने की चेष्टा करता है।

-एयर कृमकों

2.बहिर्जीवन-काव्य-नाटक में बहिर्जीवन का वर्णन गौण ही रहता है। इसमें अन्तर्जीवन के अंकन के द्वारा ही बहिर्जीवन की व्यंजना होती है। ‘अन्तर्जीवन के काव्यात्मक प्रतिपादन के द्वारा ही बहिर्जीवन की सशक्त अभिव्यंजना होती है।

-क्रीट्स

विषय वस्तु—विषय वस्तु के गठन में नाटकीय कौतूहल प्रारम्भ से लेकर अन्त तक बना रहता है। कथानक में वर्णात्मकता के स्थान पर भाव व्यंजना का महत्त्व रहता है। भावान्वित पूर्णरूप से बनी रहती है।

4.    वैयक्तिकता—काव्य-नाटक में वैयक्तिक भावात्मक स्थितियों का निरूपण रहता है। अतिशय वैयक्तिकता भी नहीं होनी चाहिए। व्यक्तिगत भावना के निरूपण के साथ में वास्तविकताओं की भी अभिव्यक्ति होनी चाहिए।

5.    पौराणिक तथा ऐतिहासिक कथाएँ—काव्य-नाटक में कथावस्तु पौराणिक तथा ऐतिहासिक गौरव-गाथाओं के क्षेत्र से ली जाती है। रोनाल्ड पोकॉक के अनुसार काव्य-नाटक की सशक्त शैली में निम्नलिखित तीन प्रमुख विशेषताएँ मानी हैं—

1.    पुराण की कथा केन्द्र हैं;
2.    चरित्रों में सशक्त मनोवैज्ञानिक वास्तविकता हो; तथा
3.    कलात्मक मानसिक चित्र प्रस्तुत किये गये हों।

6.    आधुनिक जीवन---आधुनिक काव्य-नाटकों में पौराणिक अथवा ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में समसामयिक समस्याओं को प्रस्तुत किया जाता है। धर्मवीर भारती, भारत-भूषण अग्रवाल आदि ने पौराणिक कथाओं के आधुनिक जीवन को अपने काव्य-नाटकों में सफलता से अंकित किया है।

7.    चरित्र-निर्माण—काव्य-नाटक में पात्रों के मानसिक संघर्ष के चित्रण को विशेष महत्त्व दिया जाता है। काव्य-नाटक में पात्रों की संख्या कम होती है। पात्र प्रतीक मात्र न होकर सजीव व्यक्तित्व वाले होते हैं। काव्य-नाटक में पात्रोंकी सृष्टि भावमय होती है। वह भावमय सृष्टि इस प्रकार करता है कि पात्र वास्तविक जीवन की अभिव्यक्ति में समर्थ होते हैं। ‘अग्निलीक’ में सीता, और ‘मृत्यु’ हमारे सामने वास्तविक मनुष्य के ही रूप में आते हैं।

8.    कथोपकथन—काव्य-नाटक में संवाद छन्दात्मक पदों या मुक्त-छन्द कविता में होते हैं। संवाद पात्रों की मानसिक उथल-पुथल एवं अनुभूतियों को उभारते हैं। कथोपथनों में पद्य-योजना पात्रों की प्रकृति और चरित्रगत विशेषताओं को स्पष्ट करती है। काव्य-नाटक में अभिव्यक्ति संवादों ही के माध्यम से होती है।

9.    भाषा-शैली—काव्य-नाटक की भाषा शैली में छन्द-विधान, बिम्ब-विधान, प्रतीक विधान और चित्रोमय भाषा-विधान आवश्यक है। काव्य-नाटक में मुक्त छन्द का प्रयोग होता है। धर्मवीर भारती, भारत-भूषण अग्रवाल सिद्धार्थ कुमार प्रकाश दीक्षित आदि ने अपने काव्य नाटकों में मुक्त छन्द ही का प्रयोग किया है। काव्य-नाटक में काव्य-चित्रों, प्रतीकों एवं रूपकों की सहायता से सूक्ष्म भावों की अभिव्यक्ति होती है। माला प्रवाह, छन्दमयता, और लय-पूर्णता के कारण बिम्ब अथवा चित्र अधिक तीव्र और स्पष्ट हो जाता है।


उत्तर एक दृष्टि में

1.    काव्य-नाटक –काव्य नाटक में कवित्व और नाटकीय तत्वों का समन्वय होता है।
2.    काव्य-नाटक के तत्व:-
(i)    अन्तर्जीवन;
(ii)    बहिर्जीवन;
(iii)    विषय-वस्तु;
(iv)    वैयक्तिकता;
(v)    पौराणिक तथा ऐतिहासिक कथाएँ;
(vi)    आधुनिक जीवन;
(vii)    चरित्र-चित्रण;
(viii)    कथोपकथन; तथा
(ix)    भाषा-शैली।


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