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जर्मन लोककथाएँ

ब्रूडर्स ग्रिम

प्रकाशक : विद्या विहार प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5347
आईएसबीएन :81-85828-98-9

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जर्मन की लोककथाओं का हिन्दी अनुवाद...

German Lok Kathayen

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्रस्तुत पुस्तक जर्मनी की प्रसिद्ध लोककथाओं के हिंदी अनुवाद का संकलन है। प्रख्यात जर्मन लेखक ब्रूडर ग्रीम की इन प्रसिद्ध लोककथाओं को हिंदी में प्रस्तुत करने का मुख्य उद्देश्य भारतीय पाठकों का जमर्नी की संस्कृति, वहाँ की परंपराओं तथा लोक-जीवन की रोचक जानकारी प्रदान करना है।
यह पुस्तक पाठकों को जर्मनी की भौगोलिक, सामाजिक ऐतिहासिक व सांस्कृतिक जानकारी तो प्रदान करेगी ही, उनका मनोरंजन भी करेगी।

प्रस्तावना

प्रस्तुत लोककथाएँ जर्मन भाषा की प्रसिद्ध लोककथाओं का हिंदी अनुवाद अपने देश के हिंदी पाठकों तक पहुँचाने का एक विनम्र प्रयास है।
ग्रीम ब्रदर्स ने उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ में पहली बार जर्मनी में जनसाधारण में प्रचलित लोककथाओं को लिखित रूप में प्रस्तुत किया और इसे ‘कींडर मेरशैन’ का नाम दिया। वे कथाएँ, जो पहले घर-घर में नानी, दादी या बड़े-बुजुर्गों द्वारा बच्चों को सुनाई जाती थीं, ग्रीम ब्रदर्स ने अथक प्रयास कर अपने देश के सभी पाठकों के मनोरंजन का साधन बनाईं। उन्हीं ग्रीम ब्रदर्ज द्वारा लिखित कुछ प्रसिद्ध लोककथाओं का हिंदी में अनुवाद करने का मेरा मुख्य उद्देश्य देश के बच्चों को जर्मनी में प्रचलित लोककथाओं से परिचित कराना तथा यह भी बताना है कि हिंदी लोककथाओं और जर्मन लोककथाओं में कितनी समानता है। भारतीय बच्चों की भाँति जर्मन बच्चे भी लोककथाओं में गहरी रुचि रखते हैं। भारतीय लोककथाओं की भाँति जर्मन लोककथाएँ भी मनोरंजनपूर्ण और शिक्षाप्रद होती हैं।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि प्रस्सुत लोककथाएँ हिंदी पाठकों का मनोरंजन करने के साथ-साथ मार्गदर्शन करने में सहायक सिद्ध होंगी और मेरा यह प्रयास सार्थक होगा।

निर्मल गुप्ता

सिंड्रेला

एक छोटे से शहर में एक अमीर आदमी रहता था। उसकी पत्नी प्रायः बीमार रहती थी। एक बार वह बहुत बीमार पड़ी तो उसे लगा कि वह अब नहीं बचेगी। उसने अपनी इकलौती बेटी सिंड्रेला को अपने पास बुलाया और प्यार से समझाया, ‘मेरी प्यारी बच्ची, तू सदा ईमानदारी और अच्छे बने रहना। अच्छे और सच्चे आदमी की मदद भगवान् भी करता है। इसलिए ईश्वर सदा तेरे साथ रहेगा। मैं भी स्वर्ग से तेरा ध्यान रखूँगी और जब तुझे जरूरत होगी, मैं तेरे आस-पास ही रहूँगी।’ इतना कहकर उस महिला ने सदा के लिए आँखें मूँद लीं। सिंड्रेला अपनी माँ की मृत्यु पर बहुत रोई, क्योंकि अब रोने के अलावा और कोई चारा उसके पास नहीं था। वह रोज अपनी माँ की कब्र पर जाती, उसपर फूल चढ़ाती और जी भरकर रोती।

ऐसे ही दिन गुजरते गए। सर्दियों में जब उसकी माँ की कब्र बर्फ से ढक गई तब भी वह बच्ची उस जगह पर रोज जाती, कब्र के ऊपर की बर्फ साफ करती, उसपर फूल चढ़ाती और अपनी माँ के लिए आँसू बहाती।
एक साल भी नहीं बीत पाया था कि उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली। उसकी सौतेली माँ की भी दो बेटियाँ थीं। वे दोनों देखने में तो सफेद थीं, पर दिल से बहुत काली थीं। वे दोनों बहनें अपनी सौतेली बहन सिंड्रेला से बहुत चिढ़ती थीं। जब कभी भी मौका मिलता तो सिंड्रेला को खरी-खोटी सुनाने से बाज नहीं आतीं थीं। इस प्रकार घर में सौतेली माँ और सौतेली बहनों के आने से सिंड्रेला का खराब समय शुरू हो गया। दोनों बहनें घर का कुछ भी काम नहीं करती थीं, पर सिंड्रेला को कभी आराम से नहीं बैठने देती थीं। कभी उसे मूर्ख और गँवार कहकर उसका अपमान करतीं, तो कभी कहतीं, ‘जो रोटी खाना चाहेगा तो उसे इसके लिए काम भी करना पड़ेगा।

तू तो रसोई में ही ठीक रह सकती है। जा रसोई में, यहाँ क्यों बैठी है ?’ उन दोनों बहनों ने सिंड्रेला के सारे खिलौने और सुंदर-सुंदर कपड़े भी उससे छीन लिये तथा अपने पुराने तथा भद्दे से कपड़े उसे पहनने के लिए दे दिए और उसके सुंदर से जूतों की जगह उसे लकड़ी के जूते बनवाकर दिए, ताकि जल्दी-जल्दी वह जूते न तोड़े। उसे भद्दे और मैले कपड़ें पहनाकर दोनों सौतेली बहन जी भरकर उसका मजाक बनातीं। अपने पिता से भी अपना दुःख कह नहीं सकती थी, क्योंकि एक तो वह सारा दिन व्यापार में व्यस्त रहता और दूसरे, वह अपनी दूसरी पत्नी के मामले में दखल देना नहीं चाहता था। इसलिए जैसा उसकी सौतेली माँ और बहनें करतीं या कहतीं, वह भी चुपचाप सहन करती रहती। अब रसोई के सारे काम उसे ही करने पड़ते। उसे सुबह-सुबह जल्दी उठा दिया जाता, क्योंकि उसके सोने का स्थान अब उसका रसोईघर ही था। रोज सुबह-सुबह वह पानी भरकर लाती, घर के सभी लोगों के लिए नाश्ता-खाना बनाती, उनके कपड़े धोती और पूरे घर की सफाई करती। इन सब कामों के बाद भी उसकी सौतेली माँ और दोनों बहनें खरी-खोटी सुनाती रहतीं।

जरा सा भी नुकसान होने पर उसे मार भी पड़ती। घर का सारा काम खत्म करने के बाद अगर कुछ समय बचता तो सौतेली माँ उसके आगे अनाज और दालें साफ करने को रख देती। पानी की कमी की वजह से सिंड्रेला रोज-रोज स्नान भी नहीं कर पाती थी। इसलिए गंदे कपड़ों और उलझे हुए बालों से उसकी शक्ल एक नौकरानी जैसी हो गई। उसे देककर कोई भी यह नहीं कह सकता था कि वह किसी अमीर बाप की बेटी है।
एक बार उसका पिता एक मेले में जाने के लिए तैयार हुआ तो उसने पहले अपनी दोनों सौतेली बेटियों से पूछा, ‘तुम्हें मेले से क्या मँगाना है ?’ बड़ी लड़की ने कहा, ‘मुझे सुंदर-सुंदर कपड़े चाहिए।’ दूसरी लड़की ने कहा, ‘मुझे मोतियों और बहुमूल्य पत्थरों की मालाएँ चाहिए।’ आखिर में उसने सिंड्रेला से पूछा, ‘तुम मेले से अपने लिए क्या मँगाना चाहती हो ?’ सिंड्रेला बोली,‘पिताजी, मेरे लिए आप चिलगोजे का एक छोटा सा पौधा लाइएगा। जब आप वापस घर आएँगे तो रास्ते में जरूर मिल जाएगा।’

मेले में अमीर आदमी ने अपनी पत्नी और दोनों सौतेली बेटियों के लिए वह सबकुछ खरीदा जो उन्होंने मँगाया था, पर अपनी सिंड्रेला के लिए पौधा उसे मेले में कहीं नहीं मिला। जब वह अपने घर जाने लगा तो रास्ते में उसे चिलगोजे का एक छोटा सा पौधा लगा दिखाई दिया, उसने उसे उखाड़ लिया। वह सोचने लगा कि सिंड्रेला ने कोई भी कीमती चीज न माँगकर चिलगोजे का एक नन्हा सा पौधा ही क्यों माँगा ? पर उसकी समझ में कुछ नहीं आया। घर पहुँचकर उसने मेले से लाए उपहार तीनों बेटियों के दिए। सिंड्रेला ने वह नन्हा पौधा ले जाकर अपनी माँ की कब्र के पास लगा दिया। पौधा लगाते समय उसे इतना रोना आया कि पौधे की सारी मिट्टी उसके आँसुओं से गीली हो गई।
धीरे-धीरे वह पौधा बड़ा होने लगा। सिंड्रेला हर रोज सुबह-शाम अपनी माँ की कब्र पर जाती, उसके पास अपने सारे दुःख सुनाती और जी भरकर रो लेती। पौधा बड़ा होने लगा। चिलगोजे के उस छोटे से पेड़ पर एक सफेद चिड़िया आकर रहने लगी। जब कभी सिंड्रेला अपनी माँ की कब्र पर अपनी कोई इच्छा प्रकट करती तब वह सफेद चिड़िया उसकी हर इच्छा को पूरा कर देती।

एक बार की बात है। वहाँ के राजा ने अपने राजकुमार की पसंद की लड़की ढूँढ़ने के लिए एक उत्सव आयोजित किया। यह उत्सव तीन दिनों तक चलना था। इस उत्सव में उसने अपने राज्य की सभी सुंदर और अमीर घरों की लड़कियों को निमंत्रण भेजा। सिंड्रेला की दोनों सौतेली बहनें, जो सुंदर भी थीं और अमीर बाप की बेटी भी, इस उत्सव के लिए आमंत्रित थीं। राजमहल से निमंत्रण पाकर दोनों बहनें खुशी से फूली न समाईं। उन्होंने सिंड्रेला को बुलाकर अपनी कंधी करवाई। फिर उससे अपने जूतों पर पालिश करवाई, उसी से उन जूतों के फीते बँधवाए और फिर अच्छी तरह सज-धजकर दोनों बहनें बोलीं, ‘तू घर का सारा काम ठीक ढंग से करना। हम दोनों राजमहल के उत्सव में जा रही हैं।’
उन दोनों के जाने के बाद सिंड्रेला को बहुत रोना आया, क्योंकि वह खुद भी इस उत्सव में जाना चाहती थी, पर उसके पास न ही सुंदर कपड़े थे और न ही सुंदर जूते। उसने अपनी सौतेली माँ से महल में जाने की अनुमति माँगी, तो वह चीखकर बोली, ‘तू भाग्यहीन तो पूरी तरह से चूल्हे की राख से अटी हुई है। राजकुमार के विवाह में जाएगी ? भाग यहाँ से और चुपचाप घर का काम कर। यह उत्सव तेरे लिए नहीं है।’

सिंड्रेला फिर भी अपनी माँ से अनुनय-विनय करती रही तो सौतेली माँ ने तंग आकर दो-तीन दालें मिलाकर उसे साफ करने के लिए बोली, ‘अगर तू ये तीनों दालें दो घंटे में अलग कर देगी, तो मैं तुझे जाने की अनुमति दे सकती हूं।’ सिंड्रेला ने दालों की वह थाली चुपचाप उठाई और बाहर बाग में बैठकर अपनी माँ को याद करके रोने लगी। वह सोचने लगी कि अगर उसकी अपनी माँ आज जिंदा होती तो वह भी इस उत्सव के लिए जरूर जाती। तभी वह सफेद पक्षी उसके पास आया और थोड़ी ही देर में उसने सारी दालें अलग कर दीं। सिंड्रेला की खुशी का ठिकाना न रहा। वह एक घंटे बाद जब तीनों दालें अलग करके अपनी सौतेली माँ के सामने पहुँची, तो सौतेली माँ हैरान रह गई, क्योंकि उसने तो सोचा था कि सारा दिन लगाने पर भी यह लड़की इन दालों को अलग नहीं कर पाएगी। अब भी वह उसे उस उत्सव में जाने नहीं देना चाहती थी। वह बोली, ‘तू इस राजमहल के उत्सव में कैसे जा सकती है ? न तो तू साफ सुथरी है, न ही तेरे पास सुंदर कपड़े और जूते हैं। राजमहल के सारे लोग तेरा मजाक बनाएँगे और इससे तेरे पिता की भी बदनामी होगी।’ इतना कहकर वह अपनी दोनों बेटियों के साथ घोड़ा गाड़ी में बैठकर राजमहल की ओर चल दी। अब घर में उसके सिवाय और कोई नहीं था, वह दौड़कर अपनी माँ की कब्र पर गई और उस चिलगोजे के पेड़ के नीचे बैठकर रोते हुए बोली-


‘ओ प्यारे नन्हे पेड़,
खुद को थोड़ा हिला-डुला
और मुझपर सोना-चाँदी गिरा।’


इतना कहते ही उस नन्हे से पेड़ से उसकी गोदी में सोने-चाँदी से कढ़े कपड़े आ गिरे और साथ ही मखमल की सुंदर सी जूतियाँ भी, जिनपर चाँदी की कढ़ाई की हुई थी। सिंड्रेला उन दोनों चीजों को लेकर घर की ओर दौड़ी और जल्दी से नहा-धोकर उन कपड़ों और जूतियों को पहनकर महल की ओर चल दी। वह भी पैदलवाले छोटे रास्ते से चलकर नाच शुरू होने से पहले राजमहल में पहुँच गई। उसकी सौतेली माँ और सौतेली बहनों की नजर जब उसपर पड़ी तो वे उसे बिलकुल नहीं पहचान पाईं, क्योंकि वह इस समय सोने-चाँदी से कढ़े कपड़े और मखमली जूते पहनकर पूरी तरह राजकुमारी लग रही थी।

नाच शुरू होने के कुछ देर बाद राजकुमार सिंड्रेला के पास आया और उसके साथ नाचने की इच्छा व्यक्त की। वह खुशी से राजकुमार के साथ नाचने लगी। जब राजकुमार बहुत देर तक सिंड्रेला के साथ ही नाच करता रहा तो उस उत्सव में आई अन्य सभी लड़कियों को राजकुमार पर बहुत गुस्सा आया। जब कोई अन्य लड़की राजकुमार के साथ नाचने के लिए उसके पास जाती तो वह कहता, ‘अभी नहीं, बाद में।’ इस तरह राजकुमार सिंड्रेला के साथ नाचता रहा। धीरे-धीरे शाम होने लगी तो सिंड्रेला का दिल घबराने लगा। वह राजकुमार से अपने घर वापस जाने की आज्ञा माँगने लगी, पर राजकुमार उससे इतना प्रभावित था कि उसका साथ छोड़ने के लिए तैयार नहीं था। वह खुद भी उसके साथ घर जाना चाहता था, क्योंकि वह यह जानना चाहता था कि इतनी सुंदर बेटी किसकी है और कहाँ रहती है ? इधर सिंड्रेला को अपने घर पहुँचने की जल्दी थी, क्योंकि वह अपनी सौतेली माँ और बहनों से पहले घर पहुँचना चाहती थी। वह बहाना बनाकर राजकुमार से हाथ छुड़ाकर चुपचाप महल के पिछले दरवाजे से बाहर निकल गई। अपनी सौतेली माँ और दोनों बहनों के घर पहुँचने से पहले ही वह अपने पुराने कपड़े पहनकर घर के काम में लग गई। अपने सुंदर से कपड़े उसने उसी पेड़ की नीचे रख दिए। वह सफेद पक्षी उसे वापस ले गया।

दूसरे दिन फिर उसकी सौतेली माँ अपनी दोनों बेटियों को पहले से ज्यादा सजा-धजाकर राजमहल ले गई। उन तीनों के जाने के बाद वह दौड़ी-दौड़ी अपनी माँ की कब्र पर गई और उस पेड़ को हिलाती हुई बोली-


‘ओ मेरे प्यारे नन्हे पेड़,
खुद को थोड़ा हिला-डुला
और मुझ पर सोना-चाँदी गिरा।’


उस पेड़ ने उसपर पहले की तरह सोने-चाँदी की कढ़ाई वाले कपड़े गिरा दिए। आज के कपड़े और जूते पिछले दिन के कपड़ों और जूतों से भी सुंदर थे। उन कपड़ों में वह जैसे ही राजमहल में घुसी, सबकी निगाहें उसी पर टिक गईं। राजकुमार भी उसे ढूँढ़ता हुआ उसके पास पहुँच गया। वह उसका हाथ पकड़कर नाचने वाले हॉल में ले गया और उसीके साथ नाचने लगा। आज भी वह केवल उसके साथ नाचना चाहता था। लड़कियों की भीड़ में उसे केवल यही एक लड़की पसंद आई थी। जैसे ही शाम होनी शुरू हुई, वह घबराने लगी। उसे नाचने में कोई आनंद नहीं आ रहा था। वह अपनी माँ और बहनों से पहले अपने घर पहुँचना चाहती थी। जब उसने घर जाने की इच्छा व्यक्त की तो राजकुमार भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। राजकुमार की नजर बचाकर वह पीछे के दरवाजे से झाड़ियों में गुम हो गई। बेचारा राजकुमार अँधेरे में देख नहीं पाया। राजकुमार महल के पीछेवाले बाग में उस सुंदर लड़की को ढूँढ़ता रह गया और इधर सिंड्रेला ने झट से अपने सुंदर कपड़े उतारकर अपनी माँ की कब्र के पासवाले पेड़ के नीचे रखे और वही मैले-कुचैले कपड़े पहनकर अपने दोनों हाथ और मुँह चूल्हे की राख से ऐसे रँग लिये जैसे लगे कि वह सारा दिन रसोई से बाहर ही नहीं निकली है। उसकी सौतेली माँ जब अपनी दोनों बेटियों के साथ घर पहुँची तो उसे बहुत तसल्ली हुई कि वह सुंदर लड़की सिंड्रेला नहीं थी, जबकि उस लड़की की सूरत उससे बहुत मिलती-जुलती थी।

तीसरे दिन भी जब सौतेली माँ अपनी दोनों बेटियों को लेकर राजमहल के उत्सव के लिए रवाना हुई तो सिंड्रेला दौड़ी-दौड़ी अपनी माँ की कब्र के पास गई और उसने उस पेड़ के नीचे खड़े होकर अपनी पहलेवाला गाना फिर दोहराया तो फिर से उस पेड़ से चमक-धमक वाले सुंदर कपड़े उसके हाथ में आ गिरे और बाद में असली सोने की बनी हुई सैंडिल भी। जल्दी से नहा-धोकर वह सुंदर कपड़े और सोने की सैंडिल पहनकर राजमहल में पहुँची। आज फिर सब उसकी सुंदरता तथा कपड़ों की देखते रह गए। नाच अभी शुरू नहीं हुआ था, क्योंकि राजुकमार अपनी पसंद की सुंदर और सुकोमल लड़की को ढूँढ़ रहा था। जैसे ही सिंड्रेला नाचवाले बड़े हॉल में घुसी तो राजकुमार तेजी से उसके पास आया और उसे अपने साथ नाचने के लिए आमंत्रित किया। अगर कोई और लड़की उसके साथ नाचने की इच्छा व्यक्त करती तो वह यही कह देता, ‘अभी कुछ इंतजार करो। मैं बाद में तुम्हारे साथ नाचूँगा।’

इसी तरह नाच करते-करते शाम होने लगी और सिंड्रेला को घर जाने की जल्दी होने लगी। राजकुमार के सामने उसने बहाना बनाया और तेजी से राजमहल से गायब हो गई। राजकुमार काफी देर तक उस लड़की के वापस आने की प्रतीक्षा करता रहा। बाद में वह महल के पिछली ओर गया, क्योंकि पहले भी वह लड़की पीछे की ओर से निकलकर कहीं गायब हो गई थी। वहाँ पर उसे सोने की एक सैंडिल मिली। उसने झट से उस सैंडिल को उठाकर देखा कि वह खूबसूरत सैंडिल सोने से बुनी हुई थी। राजकुमार ने अपने पिता के सामने शर्त रखी कि वह उसी लड़की से विवाह करेगा, जिसके पैर में सोने की यह सैंडिल ठीक-ठीक आ जाएगी। राजा ने अपने राज्य में घोषणा करवा दी कि राजकुमार उसी लड़की को अपनी पत्नी बनाएगा, जिसके पैर में वह सोने की सैंडिल ठीक आएगी, जो उसे महल के पीछेवाले बाग में मिला था।

राज्य की सभी सुंदर लड़कियों और सिंड्रेला की दोनों सौतेली बहनों ने भी उस सैंडिल को पहनकर देखा, पर वह किसी के पैर में पूरी तरह ठीक नहीं आई। सिंड्रेला की बड़ी सौतेली बहन ने तो रानी बनने के लालच में अपने पैर की अंगुली भी घायल कर ली, पर सैंडिल पहनकर एक कदम भी आगे नहीं चल सकी, क्योंकि वह उसके पैर के लिए बहुत छोटी थी। फिर भी सौतेली माँ ने राजमहल में खबर भेज दी कि उसकी बड़ी बेटी को वह सैंडिल पूरी आ गई है। राजकुमार खुद आकर देख लें। राजकुमार उस अमीर आदमी के घर पहुँचा, जिसकी बेटी के पैरों में सोने की सैंडिल पूरी आई थी। उसने वहाँ जाकर देखा कि लड़की सचमुच ही वह सैंडिल पहने खड़ी है। वह उस लड़की को अपने घोड़े पर बैठाकर अपने महल की ओर चल दिया; पर जैसे ही उसका घोड़ा सिंड्रेला की माँ की कब्र के पास से गुजरा, तभी उसे पेड़ से एक पक्षी की आवाज सुनाई दी-


‘गुटर-गूँ गुटर-गूँ,
इसको लेकर जाता कहाँ तू।
सैंडिल छोटी है इसके पैर में,
तेरी रानी बैठी है घर में।’


राजकुमार ने जब यह गाना सुना तो उसने घोड़ा रोककर उस लड़की के पैर को देखा, तो पाया कि सचमुच ही वह सैंडिल उसके पैर के लिए छोटी थी और इसी वजह से उस लड़की के पैर का अँगूठा और अँगुलियाँ घायल हो गई थीं तथा सैंडिल खून से लाल हो गया था। राजकुमार को उस लड़की की धूर्तता पर बहुत गुस्सा आया। उसने झट से अपना घोड़ा सिंड्रेला के घर की ओर मोड़ दिया। वहाँ पहुँचकर बोला, ‘यह मेरी पत्नी नहीं हो सकती, क्योंकि यह सैंडिल इसके पैर में सही नहीं है। शायद इसकी कोई और बहन होगी, जिसे यह जूता पूरा आता हो।’ सौतेली माँ ने झट से अपनी दूसरी बेटी को बुलाया और उसे वह सैंडिल पहनाकर देखा, पर उसके पाँव की अँगुलियाँ कुछ बड़ी थीं, फिर भी लालची माँ ने उस लड़की को यह सैंडिल जबरदस्ती पहना दी। लड़की बड़ी मुश्किल से चार-पाँच कदम चलकर राजकुमार के पास पहुँची। राजकुमार ने उसे अपने घोड़े पर बैठाया और महल की ओर चल दिया। जैसे ही वह सिंड्रेला की माँ की कब्र के पास पहुँचा तो उसे फिर वही गाना सुनाई दिया। वह घोड़ा रोककर नीचे उतरा तो उसने देखा कि बड़ी बहन की तरह उसके पैर से भी खून निकल रहा था। वह फिर अपने घोड़े को वापस उस लड़की के घर ले गया और उसकी माँ से बोला, ‘यह लड़की भी मेरी रानी नहीं बन सकती, क्योंकि यह सैंडिल इसके पैर के लिए भी छोटी है। क्या तुम्हारी और कोई बेटी है ?’
अमीर आदमी बोला, ‘नहीं, पर मेरी पहली पत्नी की लड़की है, जो अब इस घर में नौकरानी का काम करती है। वह तुम्हारी रानी बनने के लायक नहीं है।’

राजकुमार ने जब उस लड़की से मिलने की इच्छा व्यक्त की तो सौतेली माँ बोली, ‘नहीं-नहीं, तुम उस गंदी लड़की से न ही मिलो तो अच्छा है, वह बहुत गँवार है।’ पर राजकुमार उसी क्षण उसी लड़की से मिलना चाहता था। अतः हारकर सौतेली माँ को राजकुमार के सामने सिंड्रेला को उपस्थित करने के लिए तैयार होना ही पड़ा। सिंड्रेला ने झट से अपने हाथ-पैर और मुँह धोया और साफ कपड़े पहनकर राजकुमार के सामने आकर खडी हो गई। राजकुमर को वह चेहरा कुछ जाना-पहचाना लगा, फिर भी वह चुप रहा। उसने सिंड्रेला को सोने की वह सैंडिल पहनने का हुक्म दिया। सिंड्रेला ने अपनी लकड़ी की सैंडिल उतारकर जब उस सोने की सैंडिल में पैर डाला तो उसके पैर में ऐसी सही आई, जैसे यह सैंडिल उसी के लिए बनाई गई हो। अब राजकुमार को पूरा विश्वास हो गया कि यह वही सुंदर लड़की है जिसने तीन दिनों तक उसके साथ नृत्य किया था। वह उसे पाकर बहुत खुश हुआ। राजकुमार ने उस लड़की को अपने घोड़े पर बैठाया और उसके पिता से बोला, ‘मुझे मेरी पसंद की लड़की मिल गई। यही मेरी असली पत्नी है, क्योंकि तीन दिनों तक मैंने इसी लड़की के साथ नृत्य किया था।’


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