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आप भी लीडर बन सकते हैं

डेल कारनेगी

प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :235
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5026
आईएसबीएन :9788183221757

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इस पुस्तक में लेखक स्टुअर्ट आर. लेवाइन और माइकल ए. क्रॉम संगठनों के क्षेत्र में लोक व्यवहार के सिद्धांत बताते हैं।...

Aap Bhi Leader Ban Sakte Hain - A Hindi Book - by Dale Carnegie

लगभग एक सदी तक डेल कारनेगी एंड एसोसिएट्स, इंक, के शब्दों और पुस्तकों ने लोगों को ज़िंदगी में सफलता पाने का रास्ता बताया है। इसके सिखाए कोर्स में हर हफ़्ते 3000 से ज़्यादा लोग दाखिला लेते हैं और लाखों संतुष्ट ग्रेजुएट्स इन कोर्सेस की सफलता की पुष्टि करते हैं। इसके अलावा डेल कारनेगी की पुस्तकों की बिक्री के आँकड़े भी गवाह हैं कि ये सिद्धांत कारगर हैं। ज़बर्दस्त बेस्टसेलर हाउ टु विन फ़ेड्स एंड इंफ़्लुएंस पीपुल की तीन करोड़ से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं।

इस पुस्तक में लेखक स्टुअर्ट आर. लेवाइन और माइकल ए. क्रॉम संगठनों के क्षेत्र में लोक व्यवहार के सिद्धांत बताते हैं। इनकी मदद से कोई भी, चाहे उसका पद जो भी हो, रचनात्मकता और जोश का इस्तेमाल करके बेहतर काम कर सकता है—इक्कीसवीं सदी में।

इस पुस्तक में कंपनी जगत् मनोरंजन, खेल, शैक्षणिक और राजनीतिक क्षेत्रों के अग्रणी लोगों ने अपने ज्ञानवर्धक सबक़ बताए हैं। इसके अलावा ली आयाकोका और मार्गरेट थेचर जैसे दिग्गजों के इंटरव्यू और सलाह भी इसमें शामिल हैं। इस विस्तृत, कदम-दर-क़दम मार्गदर्शिका में ऐसी रणनीतियाँ हैं, जो इन क्षेत्रों में आपकी मदद करेंगी :

* अपनी नेतृत्व शक्तियों को पहचानने में।
* अपने लक्ष्य हासिल करने और आत्मविश्वास बढ़ाने में।
* ‘‘हम बनाम वे’’ मानसिकता ख़त्म करने में।
* टीम खिलाड़ी बनने और सहकर्मियों में सहयोग बढ़ाने में।
* काम और आराम के बीच संतुलन लाने में।
* अपनी चिंताओं पर क़ाबू करने और जिंदगी को ऊर्जावान बनाने में और इससे कहीं ज्यादा।

आपका सबसे महत्त्वपूर्ण निवेश स्वयं में होता है—उस कुंजी को पा लें, जिससे आपके भीतर छिपे लीडर का ताला खुल जाएगा।

1

अपने भीतर छिपे लीडर को खोजना


चार्ल्स श्वाब को स्टील व्यवसाय में एक मिलियन डॉलर की सालाना तनख़्वाह मिलती थी। उन्होंने मुझे एक बार बताया कि इतनी मोटी तनख़्वाह मिलने की सबसे बड़ी वजह लोगों के साथ व्यवहार करने की उनकी योग्यता थी। ज़रा कल्पना करें ! एक दिन दोपहर को श्वाब अपनी एक स्टील मिल में घूम रहे थे। उन्होंने कुछ मज़दूरों को वहाँ सिगरेट पीते देखा, जहाँ बोर्ड लगा था : धूम्रपान वर्जित है।

क्या आपको लगता है कि चार्ल्स श्वाब ने उस साइनबोर्ड की तरफ़ इशारा करके यह कहा होगा, ‘‘क्या तुम्हें पढ़ना नहीं आता ?’’

बिलकुल नहीं, लोक व्यवहार में माहिर व्यक्ति भला ऐसा कैसे कर सकता है ?

श्वाब ने दोस्ताना अंदाज में उन लोगों से बातचीत की। वे इस बारे में एक शब्द भी नहीं बोले कि वे धूम्रपान वर्जित इलाकें, में सिगरेट पी रहे थे।

चलते-चलते श्वाब ने उन लोगों को कुछ सिगार दिए और आँख मारते हुए कहा, ‘‘अगर आप इन्हें बाहर पिएँगे, तो मुझे अच्छा लगेगा।’’

श्वाब ने बस इतना ही कहा। वैसे मज़दूर अच्छी तरह जानते थे कि श्वाब को उनके नियम तोड़ने के बारे में मालूम था। लेकिन वे मन ही मन श्वाब के कृतज्ञ भी थे, क्योंकि उन्होंने उन्हें नीचा नहीं दिखाया। वे उनके साथ इतनी भलमनसाहत से पेश आए कि बदले में वे मज़दूर भी श्वाब के साथ उतनी ही भलमनसाहत से पेश आना चाहते थे।

फ़्रेड विल्पॉन न्यूयॉर्क मेट्स बेसबॉल टीम के प्रेसिडेंट हैं। एक दोपहर को विल्पॉन स्कूली बच्चों के एक मसूह को शिया स्टेडियम की सैर करा रहे थे। उन्होंने उन बच्चों को होम प्लेट के पीछे खड़े होने का मौक़ा दिया। वे उन्हें टीमों के डगआउट्स में ले गए। वे उन्हें क्लबहाउस तक जाने वाले निजी मार्ग से लेकर गए। अंतिम पड़ाव के तौर पर विल्पॉन विद्यार्थियों को स्टेडियम के बुल पेन में ले जाना चाहते थे, जहाँ पिचर्स वार्म अप करते हैं।

लेकिन बुल पेन के गेट पर यूनिफ़ॉर्म वाले एक सुरक्षा प्रहरी ने समूह को रोक दिया।

वह विल्पॉन को नहीं पहचानता था, इसलिए वह बोला, ‘‘बुल पेन में आम जनता को जाने की इजाज़त नहीं है। मुझे अफ़सोस है, लेकिन आप अंदर नहीं जा सकते।’’

देखिए, फ़्रेड विल्पॉन में बेशक वहीं पर अपनी मनचाही चीज़ पाने की शक्ति थी। वे उस सुरक्षा प्रहरी को जमकर फटकार सकते थे कि वह उन जैसे महत्वपूर्ण व्यक्ति को कैसे नहीं पहचान पाया। वे झटके से अपना टॉप लेवर सिक्युरिटी पास निकाल सकते थे और आँखें फाड़कर देखने वाले बच्चों को दिखा सकते थे कि शिया स्टेडियम में उनकी कितनी चलती है।

मगर विल्पॉन ने ऐसा कुछ भी नहीं किया। वे विद्यार्थियों को स्टेडियम के बाज़ू में ले गए और दूसरे गेट से उन्हें बुल पेन में लेकर गए।

उन्होंने ऐसा करने की जहमत क्यों उठाई ? कारण स्पष्ट था : विल्पॉन सुरक्षा प्रहरी को सभी के सामने शर्मिदा नहीं करना चाहते थे। आख़िर, वह आदमी अपना काम कर रहा था और अच्छी तरह कर रहा था। विल्पॉन ने तो उसी दोपहर को बाद में सुरक्षा प्रहरी को हाथ से लिखी एक चिट्ठी भी भेजी, जिसमें सुरक्षा का काम अच्छी तरह करने के लिए उसे धन्यवाद किया गया था।

अगर इसके बजाय विल्पॉन चिल्लाने या बवाल मचाने का विकल्प चुनते, तो क्या होता ? तब सुरक्षा प्रहरी द्वेष पाल लेता और बेशक इससे उसके काम पर भी बुरा असर पड़ता। विल्पॉन की शिष्ट नीति वाक़ई ज़्यादा समझदारी भरी थी। सुरक्षा प्रहरी को अपनी प्रशंसा बहुत अच्छा लगी। और आप शर्त लगा सकते हैं कि अगली बार जब भी विल्पॉन उसके सामने आएँगे, वह उन्हें पल भर में ही पहचान लेगा।

फ़ेड विल्पॉन लीडर हैं। पद के कारण नहीं। ऊँची तनख़्वाह के कारण भी नहीं। उन्हें लीडर बनाने वाली ख़ासियत यह है कि उन्होंने लोक व्यवहार में महारत हासिल की है।

अतीत में व्यवसाय जगत में लोग लीडरशिप के सच्चे अर्थ के बारे में ज़्यादा नहीं सोचते थे। बॉस ही उनका भगवान था और वही दुनिया चलाता था। बात ख़त्म।

अच्छी तरह चलने वाली कंपनियाँ—कोई भी ‘‘अच्छे नेतृत्व वाली कंपनियों’’ के बारे में बात नहीं करता था—वे थीं, जहाँ अमूमन सेना के अंदाज में काम होता था। ऊपर से आदेश दिए जाते थे और श्रेणियों से गुज़रते हुए नीचे पहुँचते थे।

आपको ब्लॉन्डी कॉमिक स्ट्रिप के मि. डिदर्स याद हैं ? वे चीख़ते थे, ‘‘बम-स्टेड !’’ और युवा डैगवुड घबराए हुए पिल्ले की तरह बॉस के ऑफ़िस की तरफ़ दौड़ लगा देता था। असल ज़िंदगी में भी बहुत सी कंपनियाँ बरसों तक इसी अंदाज़ में चलती रहीं। जो कंपनियाँ सेना के प्लाटूनों की तरह नही चलती थीं, वे मुश्किल से आगे बढ़ पाती थी, वे बस धीमी गति से किसी तरह चलती रहती थीं और किसी बाज़ार में ऐसी छोटी जगह पर सुरक्षित बनी रहती थीं, जिसे बरसों से चुनौती नहीं दी गई थी। ऊपर बैठे अफ़सरों का संदेश हमेशा यही होता था, ‘‘अगर स्थिति ख़राब नहीं है, तो फिर बदलने की क्या ज़रूरत है ?’’

जिन लोगों के पास ज़िम्मेदारी थी, वे अपने ऑफ़िसों में बैठते थे और जिन चीज़ों का प्रबंधन कर सकते थे, करते थे। उनसे उम्मीद भी यही की जाती थी—‘‘प्रबंधन करना।’’ शायद वे संगठनों को कुछ डिग्री बाएँ या कुछ डिग्री दाएँ ले जाते थे। आम तौर पर वे अपने सामने आने वाली स्पष्ट समस्याओं से निबटने की कोशिश करते थे और इसके बाद दिन का काम ख़त्म मान लेते थे।

तब दुनिया बड़ी आसान जगह थी, इसलिए ऐसा प्रबंधन अच्छा भी था हालाँकि इसमें कोई भविष्य-दृष्टि नहीं थी, लेकिन यह अच्छा था, क्योंकि इससे ज़िंदगी जाने-पहचाने ढंग से चलती रहती थी।

लेकिन अब सिर्फ़ प्रबंधन ही काफ़ी नहीं है। इस तरह की अप्रेरित नीति अब काम नहीं करेगी, क्योंकि दुनिया ज़्यादा उथलपुथल भरी, अनिश्चित और तेज़रफ़्तार हो गई है। आज किसी ऐसी चीज़ की ज़रूरत है, जिसमें पुरातनपंथी बिज़नेस मैनेजमेंट से ज़्यादा गहराई हो। जिस चीज़ की ज़रूरत है, वह है लीडरशिप। ताकि वह सब हासिल करने में लोगों की मदद की जा सके, जिसमें वे सक्षम हैं। ताकि भविष्य के लिए एक सपना बुना जा सके। ताकि लोगों को प्रोत्साहित किया जा सके, मार्गदर्शन व प्रशिक्षण दिया जा सके और सफल संबंध बनाए तथा क़ायम रखे जा सकें।

हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल के प्रोफ़ेसर जॉन क्वेल्च कहते हैं, ‘‘जब बिज़नेस ज़्यादा स्थिर माहौल में चलता था, तब प्रबंधन की योग्यताएँ ही पर्याप्त थीं, लेकिन जब व्यवसाय का माहौल डाँवाडोल हो जाता है, जब समुद्र अनजान होता है, जब आपके मिशन में आपकी कल्पना से कहीं ज़्यादा लचीलेपन की ज़रूरत होती है—तब लीडरशिप योग्यताएँ अनिवार्य हो जाती हैं।’’

एक अग्रणी सेमीकंडक्टर निर्माता एसजीएस—थॉमसन माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स के मानवीय संसाधन निदेशक बिल मकाहिलाहिला कहते हैं, ‘‘यह परिवर्तन शुरू हो चुका है और मुझे यक़ीन नहीं है कि सभी संगठन इसके लिए तैयार हैं।’’ ‘मैनेजर’ का पद शायद ज़्यादा समय तक क़ायम नहीं रहेगा और ‘लीडरशिप’ की अवधारणा को दोबारा परिभाषित करना होगा। आज कंपनियाँ इसी संघर्ष के दौर से गुज़र रही हैं। छँटनी करते वक़्त और ज़्यादा उत्पादकता की ओर बढ़ते समय उन्हें यह एहसास हो रहा है कि उत्प्रेरक योग्यताएँ बुनियादी होती हैं। अच्छा संवाद, लोक व्यवहार में निपुणता, टीमें बनाने, प्रशिक्षण देने व रोल मॉडल बनने की योग्यता—इन कामों के लिए ज़्यादा और बेहतर लीडर्स की ज़रूरत है।

‘‘आप अब सिर्फ़ आदेश देकर परिणाम हासिल नहीं कर सकते। इसके लिए आपका असरदार होना ज़रूरी है। इसके लिए सच्ची ‘लोक व्यवहार योग्यताओं’ की ज़रूरत है।’’

कई लोग अब भी लीडरशिप का बड़ा ही संकीर्ण मतलब निकालते हैं। आप जैसे ही ‘‘लीडर’’ कहते हैं, वे सेनापति, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या बोर्ड के चेयरमैन के बारे में सोचने लगते हैं। ज़ाहिर है, उच्च पदों पर बैठे इन लोगों से नेतृत्व की उम्मीद की जाती है और वे इस उम्मीद को सफलता के विभिन्न स्तरों पर पूरा करते हैं। लेकिन सच तो यह है कि लीडरशिप न तो शिखर में शुरू होती है, न ही वहाँ जाकर ख़त्म होती है। यह उन जगहों पर उतनी ही महत्वपूर्ण है, शायद कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है, जहाँ हममें से ज़्यादातर लोग रहते और काम करते हैं।

छोटी सी कार्यकारी टीम संगठित करना, ऑफ़िस सपोर्ट स्टाफ़ को ऊर्जाबान बनाए रखना, घर का माहौल अच्छा रखना—ये सभी लीडरशिप के ही काम हैं। लीडरशिप कभी आसान नहीं होती। लेकिन ईश्वर का शुक्र है कि एक और बात भी सच है : हममें से हर एक में लीडर बनने की क्षमता होती है।

टीम फ़ेसिलिटेटर, मध्यम मैनेजर, अकाउंट एक्ज़ीक्यूटिव, ग्राहक सेवा ऑपरेटर, डाक कक्ष में काम करने वाला कर्मचारी—जो भी व्यक्ति दूसरों के संपर्क में आता है, उसके पास नेतृत्व करना सीखने का अच्छा कारण है।

उनकी लीडरशिप योग्यताओं से ही काफ़ी हद तक यह तय होता कि वे कितनी सफलता हासिल करते हैं और कितने ख़ुश रहते हैं। कंपनियों में ही नहीं, परिवारों, परोपकारी समूहों, खेल टीमों, सामुदायिक संस्थाओं, सामाजिक क्लबों आदि हर संगठन में प्रगतिशील लीडरशिप की ज़बर्दस्त ज़रूरत है।

स्टीवन जॉब्स और स्टीवन वोज्नियाक कैलिफ़ोर्निया के नीली जीन्स पहनने वाले दो युवक थे। उस वक़्त जॉब्स की उम्र इक्कीस साल वोज़्नियाक की छब्बीस साल थी। वे अमीर नहीं थे, उनके पास बिज़नेस का कोई प्रशिक्षण नहीं था और वे एक ऐसे उद्योग में अपना काम करने का सपना देख रहे थे, जो उस वक़्त बमुश्किल शुरू ही हुआ था।

यह 1976 की बात थी, जब ज़्यादातर लोगों ने अपने घर के लिए कंप्यूटर ख़रीदने के बारे में कभी सोचा तक नहीं था। उन दिनों पूरा होम-कंप्यूटर बिज़नेस कुछ शौकिया लोगों तक ही सीमित था, जो मौलिक ‘‘कंप्यूटर नर्ड्स’’ थे। जब जॉब्स और वोज्नियाक ने एक वैन और कैलकुलेटर बेचकर तेरह सौ डॉलर जुटाए और जॉब्स के गैरेज में एप्पल कंप्यूटर, इंक, की स्थापना की, तो उनकी सफलता की संभावना बहुत धूमिल नज़र आ रही थीं।

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