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आदर्श जीवन कैसे जिएँ

पवित्र कुमार शर्मा

प्रकाशक : एम. एन. पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4940
आईएसबीएन :81-7900-030-3

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आदर्श जीवन जीने के उपाय...

Aadarsh Jivan Kaise Jiye

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

इस पुस्तक में आदर्श-जीवन जीने से सम्बन्धित जो बातें बताई गई हैं, वे महानता की प्राप्ति के प्रमुख सोपान हैं। इन सोपानों के सहारे मनुष्य, जीवन की सारी अच्छाइयाँ तथा मन की सम्पूर्ण सुख-शान्ति प्राप्त कर सकता है।
मानव के आदर्श-जीवन के बारे में मैं पहले भी कई बार सोचता रहा हूँ और प्रत्येक बार सोचने पर मुझे एक ऐसी पुस्तक लिखने की आवश्यकता महसूस हुई है जिसमें मानव जीवन के आदर्श या महानता की सभी बातें हों।
मेरे अन्दर इस विषय की पुस्तक लिखने की प्रेरणा जाग्रत हुई। इसमें मैंने मानव के आदर्श-जीवन या महान व्यक्तित्व की सभी बातों को शामिल करने का प्रयास किया है। मैं अपने इस प्रयास में कहाँ तक सफल हुआ हूँ, यह तो पाठक कृति को पढ़ने के बाद ही निर्धारित करेंगे।

हो सकता है पुस्तक के अगले संस्करण में मैं आदर्श-जीवन की कुछ अन्य बातों को भी शामिल करूँ। मेरी पाठकों से गुजारिश है कि मुझे पुस्तक के सम्बन्ध में प्रकाशन के पते पर अपनी राय देने की अवश्य कृपा करें।
धन्यवाद।
पवित्र कुमार शर्मा ‘पवित्र’

अध्याय 1

संयमित दिनचर्या

जीवन तो सभी जीते हैं। मनुष्य भी और कीट, पशु भी। मनुष्यों के जीवन जीने में और अन्य जीव-जन्तुओं के जीवन जीने में बहुत अन्तर है। मानव का हर कार्य हमेशा पहले से सोचा हुआ होता है। हाँ, यह बात अलग है कि कुछ लोग जल्दबाजी में काम करते हैं जिनके बारे में उन्हें काफी समय पूर्व पता नहीं रहता। जल्दी का काम हमेशा शैतान का होता है। आदर्श-जीवन जीने वाला व्यक्ति ऐसा कोई काम नहीं करना चाहता, जिसके बारे में उसने पहले से सोचा न हो। किए जाने वाले कार्य को ऐसे लोग एक-दो दिन पहले से सोचकर चलते हैं।

मनुष्य की दिनचर्या में उसके सुबह से लेकर शाम तक के सारे क्रिया-कलाप या गतिविधियाँ आती हैं। हमें अपने दिन-भर के कार्यक्रमों के बारे में पूरा पता होना चाहिए। व्यक्ति की आदर्श दिनचर्या में निम्नलिखित बातें शामिल की जाती हैं-
(1) प्रातःकाल शीघ्र उठना
(2) शौच इत्यादि से निवृत्त होना एवं स्नान करना
(3) प्रभु-स्मरण
(4) चाय-नाश्ता
(5) कार्य क्षेत्र पर जाना
(6) दोपहर-भोजन
(7) सायंकालीन पुरुषार्थ
(8) दैनिक चार्ट भरना या डायरी लिखना
(9) शयन

1. प्रातःकाल शीघ्र उठना

सूर्योदय से पूर्व का समय बड़ा ही स्वास्थ्यप्रद और आनन्दकारी होता है। उस समय चारों ओर के वातावरण में पवित्र ठण्डी हवाएँ चलती हैं तथा मनुष्य के अन्दर श्रेष्ठ संस्कारों का उदय होता है ऐसे सुहावने समय में जो लोग बिस्तरों में सोए रहते हैं वे अपने भाग्य से वंचित हो जाते हैं। योगी-तपस्वियों एवं भक्तों के लिए साधना करने का यही तो समय होता है।
महापुरुषों का कथन है कि प्रातः जल्दी उठने से मनुष्य दीर्घायु को प्राप्त होता है। जिसे सौ वर्ष तक जीना हो वह जल्दी उठना सीखे। बहुत से लोग सर्दियों के अतिरिक्त गर्मियों के दिनों में भी छत पर काफी देर तक सोए रहते हैं। जब तक कि धूप सिर पर नहीं चढ़ आती, ये लोग करवट भी नहीं बदलते। सुबह देर तक सोने के कारण उनके अन्दर उबासी तथा आलस्य समाया रहता है। यह आलस्य उन्हें काफी देर तक उदास बनाए रहता है।

सुबह देर तक सोये रहने का रोग प्रायः उन लोगों के अन्दर पनपता है जो देर रात अपने-अपने घरों में टी.वी. देखते रहते हैं या किसी अन्य कारण से रात में काफी देर तक जागते रहते हैं। ऐसे लोग शारीरिक व मानसिक रूप से प्रायः दुर्बल देखने में आते हैं। निद्रा का असन्तुलन उनके स्वास्थ्य को चिड़चिड़ा बना देता है। रात्रि दस बजे से लेकर सुबह 3-4 बजे तक का समय भगवान ने मनुष्य को सोने के लिए दिया है। उस समय सभी दफ्तर, दुकानें तथा बाजार बन्द रहते हैं।
सुबह के समय हमें जल्दी उठाने वाले हमारे कई मित्र हैं। इनमें से एक तो मुर्गा है, पेड़ों की चिड़ियाएँ हैं तथा मस्जिद के मौलवी साहब भी अजान लगाकर सोए हुए मनुष्य को जगाने की कोशिश करते हैं। मन्दिर का पुजारी घण्टा बजाकर हमें जगाता है, घर में बड़े-बूढ़े एवं माता-पिता बच्चों को शीघ्र उठाने की कोशिश करते हैं।

जिन लोगों को दिन में कोई काम नहीं करना होता या जिनके सिर पर कोई जिम्मेवारी नहीं होती वे ही अधिक देर तक सोना चाहते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि सुबह भगवान भाग्य बाँटने के लिए पृथ्वी पर आता है किन्तु जो लोग सोए रहते हैं वे ईश्वर से कुछ भी प्राप्त किए बिना रह जाते हैं। आगे चलकर ऐसे लोगों को बहुत पछताना पड़ता है। बहुत सोने वाले या देर तक सोने वाले लोग अपने जीवन का कोई भी काम नहीं कर सकते ! उनके पास समय का प्रातः अभाव ही बना रहता है।
डॉ. बी.एल. वत्स ने अपनी पुस्तक ‘सफल जीवन कैसे जिएँ’ में समय के महत्त्व को लेकर लिखा है-
‘‘विधाता ने जब मानव को जन्म दिया तो उसने 92 करोड़ साँसों का वरदान देकर पृथ्वी पर भेजा-
‘क्रोड बानवे चलत हैं, उम्मर भर की स्वाँस।’
उसने इसके साथ ही साथ-
‘बैठे बारह, चले अठारह, सोवत में बत्तीस।’
का विधान बना दिया अर्थात् बैठे हुए व्यक्ति की एक मिनट में बारह श्वासें चलती हैं। चलते हुए व्यक्ति की एक मिनट में अठारह और सोते हुए व्यक्ति की एक मिनट में बत्तीस श्वासें चलती हैं। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि सोने से जीवन जल्दी समाप्त होता है। कार्यशील होने से आयु बढ़ती है। सीधा सिद्धान्त है कि जब कम श्वासें खर्च होंगी तो आयु बढ़ेगी ही।’’

उपर्युक्त कथन का यह मतलब नहीं है कि हम बिलकुल सोना ही छोड़ दें किन्तु अधिक न सोएँ तथा सुबह शीघ्र उठे। इससे हम हमेशा चुस्त-स्फूर्त, तन्तुरुस्त और प्रसन्नचित बने रहेंगे।

2. शौच इत्यादि से निवृत्त होना एवं स्नान करना

सुबह उठने के पश्चात शौच इत्यादि से निवृत्त होना आवश्यक है तत्पश्चात् मंजन, स्नान करना। शारीरिक शुद्धिकरण का यह सबसे पहला चरण है। उत्तम स्वास्थ्य के लिए स्नान करना अनिवार्य है। जिन घरों में बच्चे आलसी होते हैं, उनके माता-पिता को चाहिए कि वे उन्हें सुबह के स्नान के महत्त्व के बारे में समझाएँ तथा स्वयं जल्दी नहाकर बच्चों को भी नहलाएँ। इससे घर का वातावरण स्वच्छ और खुशबूदार बनेगा।

स्नान से तन-मन तरोताजा होता है। रोज सुबह नहाने वाले व्यक्तियों के चेहरों पर ताजगी, स्फूर्ति तथा प्रसन्नता दूर से ही दिखाई देती है। आजकल नहाने के बहुत अच्छे और खुशबूदार साबुन बाजार में चले हैं जिन्हें सूँघते ही स्नान करने की इच्छा प्रबल हो उठती है। सम्पन्न परिवार के लोग अपने बच्चों में नहाने की आदत डालने के लिए ऐसे साबुन अवश्य मँगाएँ। गरीबों के लिए तो जल ही सबसे बड़ा साबुन है। उन्हें चाहिए कि वे प्रातः स्वच्छ जल से खूब मलमल कर नहाएँ। वैसे अधिक साबुन-प्रयोग भी शरीर त्वचा के लिए तथा बालों के लिए हानिकारक होता है, क्योंकि साबुनों में ऐसे रासायनिक तत्त्व होते हैं जिनका यदि अधिक मात्रा में प्रयोग किया जाए तो शरीर को नुकासान पहुँचाते हैं तथा एलर्जी उत्पन्न करते हैं। जिन लोगों को खुजली आदि की शिकायत रहती है वे नीम के सोप या अन्य मेडिकर साबुनों का इस्तेमाल करें। बालों के लिए शैम्पू का प्रयोग भी किया जा सकता है।

स्नान करने के पश्चात् बालों में तेल का प्रयोग करना व कंघी करना न भूलें। बच्चों के लिए यह सब आदतें शिष्टाचार को बताती हैं। भगवान ने मानव जीवन दिया है तो उसे बहुत सभ्य तरीके से जीना चाहिए। स्नानोपरान्त हमेशा साफ धुले हुए कपड़े पहनने चाहिए। स्वच्छ वस्त्रों से मन में हमेशा अच्छे विचार उठते हैं। जो लोग मलीन कपड़ों में रहते हैं उनको मंदिर तथा विद्यालय जैसे पवित्र स्थानों पर जाने में शर्म महसूस होती है।
पुराणों में लिखा है कि असुर लोग कई-कई दिन तक, कई महीने तक और कई वर्ष तक नहीं नहाते थे। जबकि देवता लोग रोज सुबह खुशबूदार जल तथा चन्दन के लेप से स्नान करते थे। आजकल चन्दन इतना मँहगा हो गया है कि माथे पर तिलक लगाने के लिए भी मुश्किल से नसीब होता है। चन्दन पदार्थ का स्थान आज चन्दन जैसे खुशबूदार साबुनों व अगरबत्तियों ने ले लिया है। सभ्य मानव को चाहिए कि वह अपने मन को पवित्र बनाने के लिए इन सब चीजों का ठीक ढंग से उपयोग करना सीखें तथा बुद्धिमत्ता व प्रसन्नता से जीवन जीएँ।

3.प्रभु-स्मरण

जब आप स्नानादि इत्यादि से निवृत्त हो जाएँ तो कुछ समय खड़े होकर अथवा बैठकर ईश्वर का स्मरण करें। इससे आपके मन को शक्ति मिलेगी। ईश्वर की स्मृति से मनुष्य का आत्मविश्वास एवं आत्मबल बढ़ता है।
इस संसार में आस्तिक और नास्तिक, दोनों ही प्रकार के लोग हैं। आस्तिक लोगों की ईश्वर पर अटूट श्रद्धा होती है। ईश्वर पर भरोसा करना किसी भी मायने में बुरा नहीं है। परमेश्वर सद्बुद्धि तथा सच्ची प्रेरणाओं का दाता है। आज तक जितने भी महापुरुष हुए हैं लगभग सभी ने ईश्वर को माना है। इनमें महावीर, हनुमान विभीषण, नारद, मीरा, कबीर, नानक, जैसे भक्त और संतजन, महात्मा गांधी जैसे प्रबल अहिंसावादी देशभक्त तथा शंकराचार्य जैसे विशिष्ट ज्ञानी पुरुष हुए हैं।
ऐसे बात नहीं है कि ईश्वर को मानना केवल बड़ी उम्र के लोगों के लिए है। हमारे देश में अटल भक्त ध्रुव तथा प्रह्लाद जैसे बाल भक्त भी हुए हैं जिन्होंने अपनी ईश्वर-भक्ति से भगवान का हृदय जीता है। अतः हर माता-पिता को चाहिए कि वह अपने साथ अपने बच्चों के अन्दर भी ईश्वर प्रेम की लहर जाग्रत करें। भगवान के हृदय पर बच्चों का भी उतना ही हक है, जिनता कि बड़ों का। ईश्वर बाल, युवा वृद्धा आदि सभी की मनुष्यात्माओं का पिता है। वह हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई सभी धर्मों के लोगों का आराध्य है। इसलिए उसे मानने का सभी को हक है।

एक ही परमेश्वर को हिन्दू लोग ‘ईश्वर’ कहकर पुकारते हैं, मुस्लिम लोग उसे ‘अल्लाह’ तथा ईसाई’ ‘गॉड’ कहकर पुकारते हैं। उसी ईश्वर के लिए गुरुनानक देव जी ने ‘ओंकार’ नाम दिया है। इस प्रकार अलग-अलग नामों से विश्व के प्रायः सभी लोग भगवान के प्रति अपनी आस्था प्रकट करते हैं।
भगवान का स्मरण प्रातःकाल करना अति उत्तम है। इसलिए सुबह हमें शीघ्र ही उठकर नहा-धो लेना चाहिए। ताकि हम चढ़ती धूप से पहले ही ईश्वर-आराधना से निबट जाएँ।

एक आदर्श व्यक्ति के लिए सच्चा आस्तिक होना तथा ईश्वर को निष्ठापूर्वक याद करना बहुत जरूरी है। भगवान को सुबह कुछ देर याद कर लेने से मन को शान्ति मिलती है तथा सारा दिन अच्छा बीतता है। भगवान को याद करते समय आप उनके गुणों का चिन्तन कीजिए। जैसे कि ‘‘वह सुख शान्ति का दादा, त्रिकालदर्शी पवित्रता व ज्ञान का सागर, सर्वशक्तिमान एवं मुक्तिदादा है। भगवान भोलानाथ है, वह हमारी मुश्किलों को दूर करने वाला है’’-इस प्रकार के प्रभु-चिन्तन से मनुष्य की आत्मा में शुद्धता आती है। ईश्वर को याद करने के साथ-साथ आप यह भी न भूलें कि आप नश्वर देह से भिन्न एक शक्ति आत्मा हैं तथा संसार के सारे लोग भी मूल रूप से आत्मा ही हैं। इस प्रकार के आत्म-ज्ञान से आप कई प्रकार की चिन्ताओं से मुक्त हो जाते हैं।

4. चाय-नाश्ता

अब आती है चाय-नाश्ते की बात। मनुष्य की दिनचर्या में भोजन एवं नाश्ता एक अनिवार्य विषय है। हमारा शरीर एक यन्त्र की तरह है। यदि हम समय-समय पर इसे खुराक देते रहेंगे तो यह ठीक रहेगा। शरीर को खुराक हम सुबह, दोपहर शाम तथा तीनों समय दे सकते हैं। सुबह यदि चाय नाश्ता या हलका फुलका भोजन कर लिया जाए तो ठीक है। पूरा भोजन हमें दोपहर के समय करना चाहिए। खासकर गर्मियों के दिनों में जब दिन लम्बे होते हैं। सर्दियों में भूख जल्दी लग आती है अतः सुबह लोग भोजन कर लेते हैं।

डॉक्टरी राय के मुताबिक अगर दो समय के भोजन को तीन समय पर लिया जाए तो स्वास्थ्य की दृष्टि से ठीक रहता है। इससे हृदय के रोग कम होने की सम्भावना रहती है इसलिए हमें चाहिए कि हम सुबह पेट भरकर भोजन न कर हलका भोजन या चाय नाश्ता करें। दोपहर को जब भूख अधिक लगने लगे, तो भोजन करें। इससे हमारा स्वास्थ्य बिलकुल ठीक रहेगा।
आहार कब और कितनी मात्रा में लिया जाए, यह हम पाठकों को अगले अध्याय में बताएँगे।

वैसे तो चाय भी स्वास्थ्य को हानि पहुँचाती है। उसमें एक ऐसा उत्तेजक पदार्थ होता है जो पाचन क्रिया को ठीक प्रकार से चलने नहीं देता। यदि भोजन से पहले चाय पी ली जाए तो भोजन पूरी तरह से नहीं पच पाता। चाय का उत्तेजक पदार्थ हमारे आमाशय की ग्रन्थियों को पेट में भोजन पहुँचने से पहले ही उत्तेजित कर देता है। इससे भोजन-पदार्थ के पाचन हेतु पर्याप्त स्राव-एंजाइम नहीं मिल पाते और भोजन अधपचे रूप में छोटी आन्त्र में पहुँचता है। ऐसे लोगों को पेट कब्ज जैसी अनेक पेट की शिकायतें रहती हैं-अतः चाय का सेवन जहाँ तक हो सके, हमें बहुत कम करना चाहिए। खासकर भोजन से पूर्व तो बिलकुल न पिएँ।
बच्चों को चाय के स्थान पर सुबह के नाश्ते में फूल दूध लेना चाहिए। फल और दूध काफी पौष्टिक पदार्थ होते हैं। उनमें विटामिन भी काफी मात्रा में होते हैं। गाँवों में लोग दूध दही या छाछ की लस्सी पीते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से ये सभी पदार्थ उत्तम होते हैं। स्कूल जाने वाले बच्चों और दफ्तर जाने वाले लोगों को सुबह हलका नाश्ता करना चाहिए। वे दोपहर का भोजन अपने टिफिन या बैग में रखकर ले जा सकते हैं।
सुबह का नाश्ता (Break fast) कभी जल्दबादी में नहीं करना चाहिए। कार्य चाहे कितना भी आवश्यक क्यों न हो लेकिन आप सुबह शान्तिपूर्वक नाश्ता करके अपने घर से निकलिए। आपको अपने कार्य में सफलता अवश्य मिलेगी।

5. कार्यक्षेत्र पर जाना

इस संसार-नायक में अभिनय करने वाले हम सब अभिनेता-अभिनेत्रियाँ या पार्टधारी (पात्र) हैं। यह पृथ्वी एक विशाल रंग-मंच है जिस पर कर्मों का खेल शुरू होता है। सभी लोग भिन्न-भिन्न प्रकार के कर्म इस जगत् में करते हैं। मनुष्य जीवन जीते हुए अगर हमने कर्मों का महत्त्व न समझा तो हमें खुद को अज्ञानी ही समझना चाहिए।
कर्म वह वस्तु है जो व्यक्ति को महान बनाती है। अच्छे कर्म हमेशा समाज को लाभ पहुँचाने वाले होते हैं। हमें अपने दैनिक कर्मों के अलावा परोपकार के कुछ विशेष कर्म भी करने चाहिए जिससे हमारे सौभाग्य का निर्माण हो।

मनुष्य रोजमर्रा के जीवन में जो कर्म करता है वे कम साधारण कहे गए हैं। ऐसे कर्म वह अपनी आजीविका या भविष्य को ध्यान में रखकर करता है। बच्चों का स्कूल पढ़ने जाना, बड़े लोगों का अपने दफ्तर, दुकान या बाजार जाना आदि कर्म ऐसे ही कर्मो की श्रेणियाँ हैं यदि हम इन साधारण कर्मों को भी धैयपूर्वक करें तो समाज में एक आदर्श स्थापित कर सकते हैं।
दूध-नाश्ता करने के बाद स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को चाहिए कि वे शान्तिपूवर्क पैदल या किसी निर्धारित वाहन (रिक्शा या स्कूल बस) से अपने स्कूल जाएँ। बच्चों को स्कूल जाते वक्त कभी भी अपने सहपाठियों के साथ लड़ना-झगड़ना नहीं चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे बिलकुल ठीक समय पर अपने स्कूल पहुँचे और प्रार्थना की लाइन में सम्मिलित हों। जब प्रार्थना प्रतिज्ञा आदि समाप्त हो जाए तो कतार में चलकर धीरे-धीरे अपनी कक्षा में पहुँचे और अनुशासन मे बैठ जाएँ। अध्यापक जो कहे उसे बहुत ध्यान से सुनना चाहिए और विषय-पाठ पढ़ते वक्त आवश्यक नोट्स भी अपनी कॉपी में लेने चाहिए। ये नोट्स विद्यार्थियों के परीक्षाओं में बहुत काम आते हैं। क्योंकि उनमें विषय के कई प्रश्नों का हल होता है।

विद्यार्थियों को अपने स्कूल या कॉलेज की मर्यादा का सदैव ध्यान रखना चाहिए। आजकल बड़े कॉलेजों में धूम्रपान और मादक द्रव्यों के सेवन की लहर फैल रही है। कुसंगवश बिगड़े हुए बड़े घर के छात्र चोरी-छिपे नशीली वस्तुओं का सेवन करते हैं और घातक रोगों का शिकार होते हैं। स्कूल या कॉलेज केवल छात्र-छात्राओं व शिक्षाओं का संगठन ही नहीं बल्कि सरस्वती देवी का एक मन्दिर भी है जिसमें विद्यार्थी का चरित्र और भविष्य बनता है। यह बात विद्यार्थियों को कभी भूलनी नहीं चाहिए और जिनती जल्दी हो सके, नशे की आदत से छुटकारा प्राप्त करने का उपाय सोचना चाहिए। शराब-सिगरेट, अफीम, कोकीन जैसे नशीले पदार्थ बहुत जहरीले तथा खतरनाक किस्म के होते हैं। ये मनुष्य को नर्क जैसी जिन्दगी जीने के लिए मजबूर कर देते हैं। यदि आप अपने आसपास के वातावरण में किसी नशे के आदी व्यक्ति को देखते हैं तो उसे सुधारने का प्रयत्न कीजिए।

कॉलेज में पढ़ने वाले छात्र-छत्राओं को इधर-उधर की गपशप लगाने के बजाय अपनी पढ़ाई पर अधिक ध्यान देना चाहिए। पढ़ाई से विद्यार्थी का भविष्य बनता है। अच्छे अंक लाने के लिए विद्वान लेखकों द्वारा लिखित विषय-पुस्तकों का अध्ययन करने और कक्षा में नियमित रूप से आने की आवश्यकता है। समय की पाबन्दी और नियमितता ही विद्यार्थी को उनके लक्ष्य में सफल बनाती है।
आजीविका की दृष्टि से मनुष्य कई सारे काम करता है। अपनी गृहस्थी पालने के लिए उसे दफ्तर, दुकान या बाजार भी जाना पड़ता है। धन कई तरीकों से कमाया जा सकता है। कई लोग सरकारी दफ्तरों में नौकरी करते हैं, अन्य प्राइवेट फैक्ट्रियों तथा मिल में जाते हैं। जिन लोगों को व्यापार में रुचि होती है, वे कोई न कोई दुकान सँभालते हैं या अन्य कोई धन्धा करते हैं।
जब आप अपने दफ्तर या दुकान जाएँ तो ठण्डा दिमाग लेकर घर से निकलिए। घर से बाहर, कार्यक्षेत्र पर-दिन-भर का काफी समय बिताना होता है अतः वहाँ यदि स्नेह, सहयोग तथा सहानुभूति से काम लिया जाए तो आपका बहुत भला हो सकता है।

कर्मक्षेत्र पर ध्यान रखने के लिए कुछ आवश्यक बातें
(1) आप जितना हो सके, अपने दफ्तर में या दुकान पर ईमानदारी का बर्ताव करें। इससे दूसरे लोगों की नजर में आप विश्वासी साबित होंगे।
(2) कर्मक्षेत्र पर सत्यवादिता तथा स्पष्टवादिता अपनाएँ तथा बिना बात किसी को परेशान न करें।
(3) अपनी दुकान या दफ्तर को मन्दिर समझें तथा उत्साह व लग्नपूर्वक अपना है। दूसरी नजर में कर्म ही पूजा है’-के सिद्धान्त को अपनाएँ।
(4) सभी कार्य समय पर पूरा कीजिए व सफाई से कीजिए।
(5) अपने निर्धारित कर्म के अलावा और किसी बात में रुचि न लें अथवा बेकार की गपशप या ताश-पत्तों में अपना समय बर्बाद न करें।
(6) सदैव उदार व निमित्त भाव मन में रखकर कर्म कीजिए।
(7) अपने सहयोगियों तथा सहभागियों को मदद देने के लिए तत्पर रहिए।
(8) अपने साथ-साथ दूसरों का हित भी ध्यान में रखिए।
(9) स्वयं को व अपने कर्म को मंगलकारी समझिए तथा सदा सकारात्मक दृष्णिकोण अपनाइए।
(10) धैर्य और समझदारी से हर मुश्किल का मुकाबला कीजिए।

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