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सांझ की बेला में

शीलभद्र

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :122
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4874
आईएसबीएन :81-237-2642-2

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मानव जीवन के आदि अंत की दार्शनिक बुनियाद पर आधारित पुस्तक...

Sanjh Ki Bela Mein

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

सांझ की बेला में प्रख्यात असमिया उपन्यासकार शीलभद्र के महत्वपूर्ण उपन्यास गोधूलि का हिन्दी अनुवाद है। उपन्यास की कथाभूमि मानव जीवन के आदि अंत की दार्शनिक बुनियाद पर तलाशी गई हैं। उपन्यास की कथा एक ऐसे सेवामुक्त भूदेव चौधुरी की जीवन-कथा में रची गई है, जो जीवन की सांझ आने पर पूरे जीवन का लेखा-जोखा करते हैं और परिणाम निकालते हैं कि संपूर्ण जीवन बिताकर इन्होंने कोई उल्लेखनीय काम नहीं किया। जीवन और मृत्यु से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण पहलुओं के दार्शनिक प्रश्नों को विषय बनाकर कथात्मक सृजन कर पाना और उसमें सफलता पा लेना, सामान्य पाठकों को आकर्षित कर पाना, बहुत बड़ी बात, बहुत बड़ा जोखिम है। यह बड़ी बात और यह बड़ा जोखिम इस उपन्यास में उठाया गया है। यही इसकी सफलता है।

उपन्यासकार शीलभद्र असमिया साहित्य के महत्वपूर्ण कथाकारों में से हैं। इनका मूल नाम रेवती मोहन दत्त चौधुरी है। पांचवें दशक के बाद से ही तीव्र सामाजिक चेतना, तीक्ष्ण कथन भंगिमा, सावधान शब्द प्रयोग और निरासक्त वस्तुनिष्ठता के साथ ये असमिया साहित्य का भंडार भरते आ रहे हैं। कथ्य और शिल्प के क्षेत्र में इन्होंने कई एतिहासिक कदम उठाए। इनकी कुछ महत्वपूर्ण कृतियां हैं-मधुपुर, तरंगिणी, आगमनीर घाट, आंहतगुणी, गोधूलि आदि।

अनुवादक महेन्द्रनाथ दुबे बहुभाषविद् हैं। फिलहाल आगरा विश्वविद्यालय के हिन्दी तथा भाषविज्ञान विद्यापीठ के निदेशक हैं।

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