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सफलता के सूत्र

कपिल कक्कड़

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :138
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4824
आईएसबीएन :81-89182-69-2

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भगवद्गीता का दर्शन तथा उपदेश ही इस पुस्तक की आधारभूमि है।

Saflata Ke Sootra

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भगवद्गीता का दर्शन तथा उपदेश ही इस पुस्तक की आधारभूमि है। यह पुस्तक जीवन में तनाव, उत्तेजना तथा हीनभावना को मिटाने के उद्देश्य से लिखी गई है। इसके नियमों पर चलकर आप जीवन में धन, यश, शांति तथा समृद्धि का उपहार पा सकते हैं। इसकी व्यावहारिकता में कोई सन्देह नहीं है। कुरुक्षेत्र में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को जो अमृतमय उपदेश दिया। उसके अध्ययन-मनन से आप भी आध्यात्मिक विकास कर सकते हैं। यह पुस्तक कर्म की महत्ता, मस्तिष्क व विश्वास के बीच सम्बन्ध, ज्ञान व इसके उद्देश्य तथा अनासक्ति से प्राप्त सफलता को पूरी तरह परिभाषित करती है।

ईश्वर ने स्पष्ट कहा है कि वे किसी भी व्यक्ति को अच्छे अथवा बुरे कर्म के लिए प्रेरित नहीं करते। आप स्वयं ही कर्म करते हैं तथा उनके अनुसार दण्ड पुरस्कार के भागी होते हैं। संसार कामना तथा मोह-माया से इतना परिपूर्ण है कि आप आध्यात्मिक ज्ञान के अभाव में अच्छे अथवा बुरे काम की पहचान नहीं कर पाते। अतः इसमें ईश्वर का कहीं कोई दोष नहीं है अपितु आप खुद दोषी हैं।
इसी पुस्तक से

लेखकीय

यह कहने की आवश्यकता नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति जीवन में धन, मान तथा सफलता चाहता है, परंतु बहुत कम व्यक्ति इसे प्राप्त कर पाते हैं। व्यक्ति यह सोचने पर विवश हो जाता है कि सर्वशक्तिमान प्रभु धन, आनंद, प्रसन्नता तथा यश देते समय कृपण क्यों हो जाते हैं। इस पुस्तक के माध्यम से आप वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक जानकारी पाएँगे। यह आध्यात्मिक ज्ञान भगवद्गीता पर आधारित है। मैंने विज्ञान तथा अध्यात्म के अंतर को करने का प्रयत्न किया है क्योंकि मेरी धारणा है कि मानव विज्ञान आध्यात्मिक विज्ञान का एक छोटा-सा भाग है।

भगवद्गीता ही क्यों ?
जैसा कि आप सब जानतें है कि भारतीय धर्मों तथा पुराणों में अनेक देवी-देवताओं का वर्णन मिलता है, परंतु किसी भी देवता ने संपूर्ण सृष्टि का सर्जक होने की घोषणा नहीं की। यह सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण ने ही कहा है। भगवद्गीता के श्लोकों के अध्ययन से आप जानेंगे कि प्रभु ने केवल सच्चा ज्ञान दिया, अपितु संपूर्ण सृष्टि का नियंता होने की घोषणा भी की है। यह कोई धार्मिक पुस्तक नहीं है क्योंकि धर्म तथा अध्यात्म में पर्याप्त अंतर है। धर्म मनुष्य ने बनाया परंतु अध्यात्म तो प्रभु की देन है।

प्रभु ने भगवद्गीता में स्पष्ट रूप से कहा है कि वे न तो पक्षपाती हैं और न ही कृपण। नौवें अध्याय की श्लोक संख्या 9 में वे कहते है ‘‘ये सभी कृपण। नौवे अध्याय की श्लोक संख्या 9 में वे कहते हैं-‘‘ये सभी कर्म मुझे बांध नहीं सकते। मैं इन भौतिक गतिविधियों से अनासक्त हूँ।
आप पूछ सकते हैं कि यदि प्रभु पक्षपाती नहीं है तो संसार में कुछ व्यक्ति धनी अथवा निर्धन क्यों हैं ?
विगत जीवन के कर्मों के आधार पर ही मनुष्य विभिन्न वातावरणों में जन्म लेता है, परंतु यदि हम प्रकृति के नियमों का पालन करें तो सफल अवश्य होंगे, फिर चाहे हमारा जन्म कहीं भी हुआ हो।

एक व्यक्ति ने दूसरे की तुलना में कड़ा परिश्रम किया होगा संभवताः इसलिए उसने बेहतर परिणाम पाया।

मस्तिष्क से निकले विचारों को मूर्त रूप देकर ही हम इच्छित परिणाम पा सकते हैं। इस पुस्तक में आप मस्तिष्क के वैज्ञानिक भाग तथा श्रीकृष्ण के वचनों की जानकारी पाएंगे। इस पुस्तक में सम्मिलित सभी विषय जीवन पर ही आधारित हैं। यदि आपका आधार ही दुर्बल है तो प्रार्थना से भी कोई अंतर नहीं पड़ने वाला।
सभी आयु वर्गों के लिए लिखी गई यह पुस्तक छात्रों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है क्योंकि इसके द्वारा उनके व्यक्तित्व का विकास होगा तथा तनाव में कमी आएगी। चुनौतीप्रद कार्य दशाओं, राजनीति, कार्यजनित तनाव तथा मानसिक थकान से बोझिल व्यक्तियों के लिए भी यह सहायक सिद्ध होगी। यह पुस्तक उन गृहिणियों के लिए लिखी गई है जो असंतुष्ट, तनावयुक्त, उपेक्षित तथा कार्य के अतिरिक्त भार से त्रस्त हैं।
मैं श्रीमती रचना भोला ‘यामिनी’ की ओर अपनी कृतज्ञता प्रकट करता हूँ जिन्होंने इस पुस्तक को हिन्दी पाठकों के लिए तैयार करने में मेरी सहायता की।
कपिल कक्कड़

1.ईश्वर

जिस प्रकार आकाश में उत्पन्न हुआ, सर्वत्र विचरण करने वाला महान वायु सदा आकाश में ही स्थित है, उसी प्रकार संपूर्ण प्राणी मुझसे स्थिति हैं। जो मुझे अजन्मा, आनादि तथा लोकों के महान ईश्वर तत्त्व से जानता है, वह मनुष्यों में ज्ञानवान पुरुष संपूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है।

इस अखिल ब्रह्मांड में प्रत्येक व्यक्ति उत्तेजना, तनाव  घृणा व लोभ आदि नकारात्मक भावों से पीड़ित है। यह एक ऐसी स्थिति सामान्य जानकारी है जिसे पाने के लिए हमें किसी ज्योतिषि के पास नहीं जाना पड़ता। क्या किसी ने भी नकारात्मक विचारों से लड़ने का प्रयास किया ? मैं जानता हूं कि आप सब सफलता के सूत्र आकांक्षी हैं परंतु चाहने पर भी इसे प्राप्त नहीं कर पाते। इस संसार में कौन नाम, धन तथा यश का भागी नहीं बनना चाहता, परंतु दुर्भाग्यवश बहुत कम व्यक्तियों की इच्छा पूर्ण हो पाती है। प्रायः वे जीवन में लक्ष्य प्राप्ति के पश्चात भी असंतुष्ट ही रहते हैं। ऐसा क्यों है ? इस प्रश्न का  उत्तर दे पाना कठिन नहीं है। यद्यपि इस प्रश्न का उत्तर उनके जीवन से कभी लुप्त नहीं होता, परंतु इसे खोजना कठिन है क्योंकि उनमें अहंकार, लोभ, घृणा, ईर्ष्या आदि मनोभावों का अंत ही नहीं है। यदि उन्हें इच्छित वस्तु न मिल पाए तो वे तत्क्षण नकारात्मक चिंतन से ग्रस्त हो जाते हैं। अनेक पीड़ित तथा दुःखी व्यक्तियों के बीच केवल कुछ ही ऐसे होंगे जो अपनी अवस्था पर विचार करते हैं, वे जानने का प्रयास करते हैं कि नकारात्मक परिस्थितियों पर किस तरह नियंत्रण रख सकते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति प्रारंभ में पीड़ा  को उपेक्षित कर देता है और समय बढ़ जाये तो उसके समाधान का कोई उपाय खोज ही निकालता है।

आप विश्वास करें अथवा नहीं, जब तक आप ईश्वर तथा प्राकृतिक नियमों को जान नहीं लेते, तब तक न तो आप संतुष्ट हो सकते हैं और न ही अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकते हैं अर्थात इनके अभाव में सफलता असंभव है। हो सकता है कि आप आजीवन प्रयोग करते रहें। अपने जीवन को जानने व समझने में व्यर्थ ही समय नष्ट करें अथवा अपने अनुभवों से  सबक लें व तथाकथित पंडितों तथा आधुनिक गुरुओं के कहे पर चलें। तथ्य यही कहता है कि यह सारी प्रक्रिया अपने-आप में लंबी तथा थका देने वाली है, जिससे समय, धन तथा ऊर्जा का अपव्यय होता है तथा सकारात्मक परिणाम भी प्राप्त नहीं होते। जब तक आपको वास्तविकता का अनुभव होता है तब  तक तो आयु ही अंतिम चरण में पहुँच जाती है।

आप सब जानते हैं कि मानव जीवन सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। अतः इसे यूं ही व्यर्थ करने से क्या लाभ ? जीवन की अल्प तथा अनिश्चय अवधि तथा साधनों की दुर्बलता के कारण जीवन का महत्त्व समझना और भी आवश्यक हो जाता है प्रभु ने आपको जो जीवन  रूपी उपहार सौंपा है, उसे प्रभु के बनाए नियमों के अनुसार ही चलने दें। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि प्रभु नियमों के आधार पर ही कोई व्यक्ति सफलता और समृद्धि अर्जित कर सकता है।

प्रभु ने हमें वेद तथा भगवद्गीता जैसे ग्रन्थ दिए, किंतु दुर्भाग्य ऐसा कि हमारे पास उन्हें पढ़ने व मनन करने का समय ही नहीं है क्योंकि हम अपने ही जीवन में व्यस्त हैं। आप बाल्यकाल से इन पवित्र ग्रन्थों के विषय में सुनते आए हैं तथा कल्पना कर ली होगी कि आप इनके विषय में सब कुछ जानते हैं।
इस पुस्तक में पाठकों के लिए ज्ञान का अथाह भंडार छिपा है, यदि आप धार्मिक रूप से इनका पालन करेंगे तो अपने उद्देश्य तक पहुँचने में अधिक समय नहीं लगेगा।
यह पुस्तक श्री कृष्ण तथा अर्जुन के वार्तालाप पर केन्द्रित है जिससे आपको मानवीय स्वभाव का भी ज्ञान होगा।

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