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अमर चित्र कथा हिन्दी >> बड्डू और छोटू के कारनामे

बड्डू और छोटू के कारनामे

अनन्त पई

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :30
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4778
आईएसबीएन :81-7508-494-4

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इस अमर चित्र कथा में बंगाल की सर्वप्रिय लोक-कथाओं में एक प्रस्तुत है....

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

 

कहानियां बच्चे तो चाव से सुनते ही है, बड़ों को भी उनमें कम दिलचस्पी नहीं होती, खास कर उन कहानियों में जो आदमी के जीवन के नजदीक होती हैं। इस दिलचस्पी के कारण ही हमारे यहाँ जबानी कही–सुनी कहानियाँ पीढि़यों से चली आ रही हैं।

ज़बानी कहानी जितनी बार दोहराई जाती है उतनी बार उसमें कुछ नये-नये रंग भर जाते हैं। आज बूढी दादी जो कहानी अपने नाती पोतों को सुनाती हैं। उसे अपने बचपन में उन्होंने अपनी नानी-दादी से सुना होगा। दूर से आने वाले परदेशी को रास्ते में कोई कहानी सुनने को मिलती है तो वह घर लौटकर अपने संबधियों और साथियों को वही कहानी सुनाता है। परंतु देश काल के अनुसार उसमें कुछ अपनी तरफ से जोड़ देता है। इस तरह कहानियां एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचने के साथ देश-विदेश में भी पहुँचती है। यही कारण है कि विष्णु शर्मा की पंचतन्त्र की कुछ कथाएं ईसप की कथाओं से इतनी मिलती जुलती हैं।
इस अमर चित्र कथा में बंगाल की सर्वप्रिय लोक-कथाओं में एक प्रस्तुत है।

 

बड्डू और छोटू के कारनामे

 

एक दिन दो दोस्त काम की तलाश में निकल पड़े।
बड्डू, उस सामने वाले गाँव में हमें कोई-न-कोई काम मिलना ही चाहिए।
हां छोटू, उम्मीद तो यही है।
बाद में
तुम उस ओर जाओ ....
और मैं इस ओर जाता हूँ। शाम को हम दोनों यहीं पर मिलेंगे
ठीक है

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