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हास्य-व्यंग्य >> यार सप्तक

यार सप्तक

काका हाथरसी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4725
आईएसबीएन :81-7182-756-X

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काका हाथरसी के द्वारा संपादित, देश की शीर्षस्थ 12 कवियों की चुनी हुई कविताओं का अनूठा संकलन ‘यार सप्तक’।

Yar Saptak

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

हास्यरसावतार काका हाथरसी ने कवि सम्मेलनों में, गोष्ठियों में, रेडियो और दूरदर्शन पर, अर्थात् हर जगह अपने श्रोताओं का मन मोह लिया था। दुनिया का शायद ही कोई विषय उनकी निगाह से चूका होगा।

काकाजी के काव्य में हास्य-व्यंग्य की जो झंकार है, उसका पूरा आनन्द उठाने के लिए पढ़िए उन्हीं के द्वारा संपादित, देश की शीर्षस्थ 12 कवियों की चुनी हुई कविताओं का अनूठा संकलन ‘यार सप्तक’। आप इन कविताओं को पढ़ते-पढ़ते हँसी से लोट-पोट हो जाएँगे।

काकाजी के इस संकलन में हैं-अल्हण बीकानेरी, अशोक चक्रधर, ओमप्रकाश आदित्य, जैमिनी हरियाणवी, डॉ. बरसानेलाल चतुर्वेदी, माणिक वर्मा, शैल चतुर्वेदी, सुरेन्द्रमोहन मिश्र, सुरेश उपाध्याय, सूंड फैजाबादी, और हुल्लड़ मुरादाबादी।

यार सप्तक


‘तार सप्तक’ के उन आदरणीय कवियों की मैं वंदना करता हूँ, जिनको न तार का ज्ञान है, न सप्तक का फिर भी ‘तार सप्तक’ के द्वारा साहित्य-सागर से तर गए और ‘यार सप्तक’ की प्रेरणा मेरे हृदय में भर गए।
संगीत-कला में प्रायः सप्तक तीन ही होते हैं; मंद्र सप्तक, मध्य सप्तक और तार सप्तक। नीची आवाज़ में गायन-वादन की पेशकश मंद्र, बीच की आवाज में मध्य और ऊँची आवाज में तार सप्तक के अंतर्गत मानी जाती है। कोई-कोई संगीत के महारथी चौथा सप्तक भी पेश करते हैं, जिसे वे ‘अति तार सप्तक’ कहते हैं।

हमारे ‘यार सप्तक’ में सभी सप्तकों के स्वर हैं। सप्तक चाहे जितने हो जाएँ किन्तु मुख्य स्वर सात ही होते हैं-यथा
स रे ग म प ध नि
फिर इनके लिए एक-एक सहयोगी की आवश्यकता हुई तो 5 और बढ़कर 12 स्वरों को कल्पना की बन गई—यथा
स रे रे ग ग म म प ध ध नि नि
इनमें स और प अचल स्वर हैं, शेष श्वरों के दो-दो रूप हो गए, कोमल और तीव्र अथवा शुद्ध और विकृत। इस प्रकार 12 स्वरों पर भारतीय संगीत की इमारत खड़ी हो गई।
स्वरों का यह मामला कहीं तूल न पकड़ जाए, इसलिए हम इस संगीत समस्या पर यहीं ब्रेक मारकर अपनी काव्य-समस्या को आगे बढ़ाते हैं।
हमने 12 स्वरों का ‘यार सप्तक’ मानकर 12 कविगण हास्य-व्यंग्य के ऐसे पटा लिए, जिनकी आज कवि-सम्मेलनों के मंच पर तूती बोल रही है। नाम भी बता दें आपको लगे-हाथों।

सर्वश्री
1.    अल्हड़ बीकानेरी (स) अचल
2. अशोक चक्रधर (रे) कोमल
3 ओमप्रकाश आदित्य (रे) तीव्र
4. काका हाथरसी (ग) कोमल
5. जैमिनी हरियाणवी (ग) तीव्र
6 डा. बरसानेलाल चतुर्वेदी (म) कोमल
7. माणिक वर्मा (म) तीव्र
8 शैल चतुर्वेदी (प) अचल
9. सुरेंद्रमोहन मिश्र (ध) कोमल
10. सुरेश उपाध्याय (ध) तीव्र
11 सूँड़ फैजाबादी (नि) कोमल
12. हुल्लड़ मुरादाबादी (नि) तीव्र
कोई कवि यह देखकर संपादक को यह बुरा भला न कहे  कि हमको अमुक जी से ऊँचा या नीचा क्यों रख दिया है; इस चकल्लस से बचने के लिए हमने ‘अकारादि क्रम’ की शरण लेकर पिंड छुड़ा लिया, इसमें न कोई तुष्ट होगा न असंतुष्ट। सभी अपने-आपको मानेंगे परिपुष्ट।
हँसने-हँसाने वालों की अलग दुनिया होती है। उनकी भाषा, उनके रंग-ढंग और उनकी नीति सामान्य से हटकर असामान्य लीक पर चलती है।

शब्दों से लय के साथ अठखेलियाँ करता हुआ हास्य-व्यंग्य का कवि अपनी रचना के द्वारा सामाजिक क्रांति के बीज बोता है एवं कृत्रिमता, अराजकता, भ्रष्टाचार आदि विनाशकारी मुखौटों पर तीर चलाकर उनके असली रूप-स्वरूप जनगण के सम्मुख उजागर करता है। मनोरंजन के साथ उसको सोचने के लिए विवश करता है। एक कवि  ने व्यंग्य की परिभाषा इस प्रकार की है :‘‘हमने किसी को तीर मारा, उसे निकाला, फिर मुस्कुराकर कहा—एक और। इस प्रकार कवि को वांछित फल प्राप्त हो गया और जिस पर व्यंग्य किया गया उसको मीठी चुभन तो हुई किंतु कड़वी पीड़ा नहीं पहुँची। यही कारण है जो आज हास्य-व्यंग्य के कवि अन्य रसों के कवियों से अधिक यश और अर्थ प्राप्त करके समर्थ हो रहे हैं।’
हमारे ‘यार सप्तक’ के 12 यार कवि, इस संग्रह के द्वारा पाठकों को प्रसन्न करेंगे और स्वयं को धन्य।

काका हाथरसी


अल्हड़ बीकानेरी


अल्हड़ जी का स्वर मधुर, गोरा-चिट्टा चाम।
‘श्यामलाल’ क्यों रख दिया, घरवालों ने नाम।
घर वालों ने नाम, ‘शकीला’ पीटे ताली।
हमको दे दो, मूँगफली वाली कव्वाली।
इसे मंच पर गाने में जो होगी इनकम।
आधी तुम ले लेना, आधी ले लेंगे हम।


अता-पता : श्याम निकुंज, 9-सी, पॉकिट बी,
मयूर विहार, फेज-2, दिल्ली 110091

मॉर्डन रसिया


असली माखन कहाँ आजकल ‘शार्टेज’ है भारी
चरबी वारौ ‘बटर’ मिलैगो फ्रिज में, हे बनवारी
आधी टिकिया मुख लिपटाय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।

मटकी रीती पड़ी दही की, बड़ी अजब लाचारी,
सपरेटा कौ दही मिलैगो कप में, हे बनवारी
छोटी चम्मच भर कै खाय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।

नंदन वन के पेड़ कट गए, बने पार्क सरकारी
‘ट्विस्ट’ करत गोपियाँ मिलैंगी जिनमें, हे बनवारी
‘‘संडे’ के दिन रास रचाय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।

जमना-तट सुनसान, मौन है बाँसुरिया बेचारी
गूँजत मधुर गिटार मिलैगो ब्रज में, हे बनवारी
फिल्मी डिस्को ट्यून सुनाय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी

कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।
सुखे ब्रज के ताल, गोपियाँ ‘स्विमिंग-पूल’ बलिहारी
पहने ‘बेदिंग सूट’ मिलैंगी जल में, हे बनवारी
उनके कपड़े चुस्त चुराय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।

‘रॉकेट’ बन उड़ गई चाँद पर रंग-भरी पिचकारी
गोपिन गोबर लिए मिलैंगी कर में, हे बनवारी
मुखड़ौ होली पै लिपवाय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।
सूनौ पनघट, फूटी गगरी, मेम बनी ब्रजनारी
जूड़ौ गुंबद-छाप मिलौंगो सिर पै, हे बनवारी
दरसन कर कै, प्यास बुझाय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।


रामा-रामा हरे-हरे



भजन-कीर्तन का इस युग में
बदल चुका है ढर्रा।
चरणामृत की जगह देश में
चरता देशी ठर्रा।
जिसे पी के, हज़ारों नर-नार, भवसागर से तरे।
हरे रामा, हरे रामा, रामा-रामा हरे-हरे !

बाँध, वोटरों की आँखों पर
आश्वासन की पट्टी।
नेता घुस गए बाथ-रूम में
ले साबुन की बट्टी।
जहां अंधों की हो भरमार, काना राज करे।
हरे रामा, हरे रामा, रामा-रामा हरे-हरे !

मटका-टाइप जूड़ा सिर पे
सौ बल खाए गोरी।
पनिया भरन गाँव के पनघट
कैसे जाए गोरी ?
औंधे मटके पे इक गुलनार, दूजा घट कैसे धरे।
हरे रामा, हरे रामा, रामा-रामा हरे-हरे !
छंद फिरें बेकार, तुकों पर
छाई है मायूसी।
उपमाओं पर करे अफसरी
उपन्यास जासूसी।
‘डेली वेजिज’ पे हैं अलंकार, कविता क्लर्की करे।

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