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असम्भव सम्भव

बिस्वरूप रॉय चौधरी

प्रकाशक : फ्यूजन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4686
आईएसबीएन :81-288-0336-0

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सफल व्यक्ति की क्षमताओं का उल्लेख

Asambhav Sambhav

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

सफल व्यक्ति अपनी क्षमताओं का हर समय भरपूर प्रयोग करते हैं। यह पुस्तक आपको अपने मौजूदा हालात को बदलने में मदद करेगी। ताकि आप अपनी कमजोरियों पर जीत हासिल कर सकें और अपना तौर तरीका बदल कर असंभव को संभव कर दिखाएं। इसके लिए चाहिए विश्वास जो सिखाएगी यह पुस्तक।
यह पुस्तक आपका अपना जीवन बदल सकती है। अक्सर हम चीजों को हू-ब-हू स्वीकार कर लेते हैं ; क्योंकि हमें उन्हें बदलने से डर लगता है। हम बिना कोशिश के यह मान लेते हैं कि यह तो असंभव है। जबकि थोड़े से प्रयास से हम उसे संभव बना सकते हैं। जरूरत अपनी पुरानी आदतों में मामूली-सा फेर-बदल करने की है। यह सारा मामला विश्वास का है। यह विश्वास कि चीजें बदल सकती हैं, आपके अनुकूल हो सकती हैं और अंततः आप सफल हो सकते हैं। पढ़िए, बदलिए और सफल हो जाइए।
यह पुस्तक आपका जीवन बदल सकती है। अक्सर हम चीजों को हू-ब-हू स्वीकार कर लेते हैं; क्योंकि हमें उन्हें बदलने से डर लगता है। हम बिना कोशिश के यह मान लेते हैं कि यह तो असंभव है। जबकि थोड़े-से प्रयास से हम उसे संभव बना सकते हैं। जरूरत अपनी पुरानी आदतों में मामूली-सा फेर-बदल करने की है। यह सारा मामला विश्वास का है। यह विश्वास कि चीजें बदल सकती हैं, आपके अनुकूल हो सकती हैं और अंततः आप सफल हो सकते हैं। पढि़ए, बदलिए और सफल हो जाइए।

आगे बढ़ने से पहले इसे जरूर पढ़े

हर घटना की कोई न कोई वजह अवश्य होती है। अगर यह पुस्तक आपके हाथ में है तो इसका भी एक कारण है, क्योंकि मैं गंभीरता से सोचने पर मजबूर हुआ हूं कि क्यों कुछ लोग अपनी जिंदगी बदल डालते हैं, जबकि ज्यादातर लोग जो कुछ घट रहा है उसकी दया पर रहते हैं। क्यों कुछ लोग घटनाओं को अपने अनुकूल बना लेते हैं जबकि दूसरे लोग मात्र दर्शक बने रहते हैं। क्यों कुछ लोग गिलास को आधा खाली कहते हैं ? जबकि अन्य उसी गिलास को आधा भरा कहते हैं। क्यों कुछ अपनी जिंदगी को खूबसूरत बना लेते हैं ? जबकि दूसरे लोगों की जिंदगी दुखद कहानी बनकर रह जाती है।
मैंने इन प्रश्नों पर विचार किया तथा मुख्य कारण यह पाया कि सफल व्यक्ति क्या करते हैं। इसके विपरीत दूसरे क्या नहीं करते। यह पुस्तक सफल व्यक्तियों द्वारा उठाए गए कदमों का आईना है।

लेकिन आगे बढ़ने से पहले नीचे लिखे किस्से को अवश्य पढ़े। इस पुस्तक की इससे बेहतर भूमिका नहीं हो सकती थी तथा पूरी पुस्तक पढ़ने के लिए इससे बेहतर कारण भी नहीं।
मैं चन्द्रशेखर तिवारी हूं। भारतीय वायुसेना में कार्यरत हूं लेकिन कैंसर पीड़ित हूं। कैंसर का पता नवम्बर 1998 में चला, 20 दिनों के अंदर मेरे दो ऑपरेशन हुए। ऑपरेशन के बाद चार कीमोथेरेपी भी हुईं जिस वजह से मेरे सभी बाल झड़ गए। मेरे शरीर में सूजन आ गई तथा मेरा रूप बिल्कुल बदल गया।

यहां तक कि मेरा भाई जब मुझे रेलवे स्टेशन पर लेने पहुंचा तो वह मुझे बिल्कुल पहचान नहीं पाया। अपने इलाज के दौरान मैंने कैंसर वार्ड में मरीजों को अपने सामने मरते देखा था। मैंने ऐसे मरीजों को भी देखा जो ठीक हो सकते थे लेकिन इस सोच के कारण कि कैंसर एक घातक बीमारी है तथा यह कभी ठीक नहीं हो सकती, इस कारण मौत के मुंह में चले गए। उन्होंने यह सोच लिया कि दवा लेने से कोई फर्क नहीं पड़ता। इस सोच में व विश्वास के कारण उनका अवचेतन मन इस प्रकार का हो गया कि किसी भी दवा ने असर करना बंद कर दिया तथा अपनी सीमित सोच के कारण अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए। लेकिन मैंने जो कुछ देखा, व सुना, उस आधार पर अपनी सोच नहीं बनाई। क्योंकि मैं जानता था कि जैसा भी विश्वास स्थापित करूंगा, उसका व्यापक असर मेरी मानसिक स्थिति पर और फिर शरीर पर पड़ेगा। इस प्रकार मैंने यह गांठ बांध ली कि मुझे बेहतर दवाई दी जा रही है तथा मैं ठीक हो रहा हूं। कुछ दिनों में मैं बिल्कुल ठीक हो जाऊंगा। इस विश्वास ने न केवल मुझे स्वस्थ कर दिया बल्कि हर समय मुझे ऊर्जावान बनाए रखा। समयबद्ध पुनर्जाच के दौरान यह पता चला कि मैं जिगर की बीमारी (हैपेटाईटस-सी) से पीड़ित हूं। दोबारा से मैं दवाइयों के जंजाल में फंस गया, लेकिन मैंने अपनी सोच को प्रभावित नहीं होने दिया तथा पहले की तरह रोजमर्रा का काम करता रहा। अपनी दिनचर्या में परिवर्तन नहीं होने दिया। चुस्त-दुरुस्त महसूस करता रहा। मेरे अंदर सब्र की ऐसी शक्ति थी कि मैं लगातार चार घंटों से ज्यादा क्लास लेता पाठकों के लाभ के लिए मैं यह बताने जा रहा हूं कि किस तरह सोच तथा विश्वास प्रणाली को विकसित किया जाता है।

विश्वास प्रणाली-चेतन मन द्वारा मजबूत सोच का लगातार दोहराया जाना, फिर उस सोच का मानसिक चित्रण हमारे अवचेतन मन पर अमिट छाप छोड़ देता है। यह छाप ही सोच या विश्वास कहलाती है. यह सोच किस प्रकार काम करती है ? इसका वर्णन निम्नलिखित है-

लेखक परिचय

बिस्वरुप रॉय चौधरी ने इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त की है तथा राष्ट्रीय मेमोरी रिकार्ड विजेता है। मेमोरी प्रशिक्षण के क्षेत्र में उनका जाना माना नाम है। उनकी तकनीक को सभी वर्ग के लोगों ने सराहा है। इतना ही नहीं, प्रिंट मीडिया तथा इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ने उनकी काबिलीयत को देखते हुए अपने समाचारों में उन्हें विशेष स्थान दिया है। द टाइम्स ऑफ इंडिया, द हिन्दुस्थान टाइम्स, द ट्रिब्यून, द इंडियन एक्सप्रेस, द हिन्दू, जनसत्ता, पंजाब केसरी, नवभारत टाइम्स, सांध्य टाइम्स, दैनिक जागरण, जी न्यूज, आंखों देखी, ऑल इंडिया रेडियो, जैन टी.वी. आदि अन्य अनेक समाचार माध्यमों ने उन्हें विशेष तरजीह दी है।

उनके काम के बारे में मीडिया की टिप्पणी-
उनके पास दिमागी विकास का मन्त्र है।’’
2 अक्टूबर, 1997, दैनिक ट्रिब्यून।

‘‘रिकॉर्ड तोड़ने की प्रवृत्ति के लिए बिस्वरूप एक मेमोरी जीनियस हैं।’’
-18 मई 1997, इंडियन एक्सप्रेस

‘‘आज की गला-काट प्रतियोगिता के बीच बिस्वरूप ने मेमोरी विकास की तकनीक विकसित की है, जो निश्चित रूप से किताबों के बोझ तले दबे विद्यार्थियों को राहत पहुंचाएगी।
-4 अगस्त, 1999 युववाणी, आल इंडिया रेडियो

‘‘एक बार आप डॉयनैमिक मेमोरी मेथड्स को पढ़ जाएं, आप बेहतर मेमोरी पाने की दिशा में होंगे।
-लाइफ पॉजीटिव, अगस्त 1999

‘‘बिस्वरूप जानता है कि दिमाग के तंतुओं से किस प्रकार काम लें ?
-7 जंवरी 2001 द टाइम्स ऑफ इंडिया

‘‘बिस्वरूप ने 600 सालों का कैलेंडर याद किया’’
-22 जनवरी 2001 इंडिया टुड

‘‘बिस्वरूप ने बिखेरा स्मरण शक्ति का जादू’’
-13 नवम्बर 2002, आज

‘‘मेमोरी खेल का मास्टर’’
-11 जनवरी 2003, द हिन्दू

‘‘गिनीज का सपना लिए मेमोरी का बादशाह’’
-ट्रिब्यून, 12 जनवरी 2003

‘‘मेमोरी बढ़ाने के नुस्खे बताए चौधरी ने’’
-दैनिक जागरण, 9 फरवरी 2003

इस पुस्तक को कैसे पढ़े ?

‘‘अगर कोई अपने सपनों की दिशा को साकार करने में आत्मविश्वास से बढ़े तथा जीवन को इच्छानुसार जीने की कोशिश करे तो निःसंदेह वह सामान्य कोशिश से अविश्वसनीय सफलता पा सकता है।’’
पुस्तक का प्रथम भाग समझ-बूझ पैदा करने के बारे में है तथा उपरोक्त वाक्य का जो भाव है, उसे कैसे सार्थक बनाया जाए, इस बारे में है।

मेरा आपसे सुझाव है कि आगे बढ़ने से पहले पुस्तक के पिछले कवर तथा शुरू के पृष्ठ को ध्यानपूर्वक पढ़े।
अब प्रथम भाग को धीरे-धीरे समझते हुए चलें, कोशिश करें कि प्रथम भाग पांच से सात दिन में समाप्त हो जाए। अगर आप विद्यार्थी हैं तथा परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो आप दूसरे तथा तथा पांचवें भाग पर विशेष ध्यान दें, जबकि अन्य लोग पुस्तक के तीसरे, चौथे तथा छठे भाग पर विशेष ध्यान दें। प्रथम भाग सबके लिए जरूरी भी है तथा सामान्य भी है। अगर आप पुस्तक के बारे में अपनी राय बनाना चाहते हैं तो स्टार चिह्नित अध्यायों को सबसे पहले पढ़ें।

खंड-एक

इसे संभव बनाएं

(1)

हमारा दिमाग कैसे काम करता है ?

कई बार आप नई पुस्तकें तथा नए कपड़े खरीदने के बाद तुरंत इन्हें ढूंढ़ नहीं पाते। आप घर का कोना-कोना छान मारते हैं ! अभी तो यहां रखा था। फिर क्यों नहीं ध्यान आ पाता ?
दिमाग का एक भाग ऐसी सूचनाओं तथा योजनाओं को इकट्ठा करता है जो अस्तित्व बनाए रखने के लिए आवश्यक है। अगर आपने अपने उद्देश्य को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया है, इसका मतलब अपने सपनों को साकार करने के लिए अपने दिमाग को ठीक से कार्यबद्ध नहीं किया है।
जब आप अपने मस्तिष्क को प्रशिक्षित करते हैं तो आप रेक्टिकुलर को चुम्बक की तरह बन जाता है जो सूचनाओं तथा अवसरों को आकर्षित करता है। अपने जीवन का कायाकल्प करने के लिए अपने मस्तिष्क के स्विच को ट्रिप देना सीखें।

(2)

अपने उद्देश्य को सामने रखें

कल्पना करें कि अब से एक साल में आपने अपने मुख्य उद्देश्यों में सफलता पा ली है। ऐसा सोचकर आप अपनी जिंदगी के बारे में कैसा अनुभव करते हैं ? ये प्रश्न आपको उद्देश्यों को सफल बनाने में सहायक होंगे। आपको क्यों की जरूरत है तथा ‘कैसे’ आपके अपने आप मिल जाएगा।
आप सालभर के लिए चार उद्देश्यों को पहचानें फिर कारणों अपनी प्रतिबद्धता के स्तर एवं इन उद्देश्यों को पहचानें फिर कारणों, अपनी की जरूरत है, पर एक पैराद्राफ लिखें।

(3)

असफलता में ही सफलता छिपी है

अगर आप अपनी पहली कोशिश में अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाए तो क्या आपको खयाल छोड़ देना चाहिए या अपनी कोशिश में डटे रहना चाहिए। जी हां, आपको जब तक सफलता न मिल जाए पीछा नहीं छोड़ना चाहिए।
दृढ़ता एवं प्रतिबद्धता आपके व्यक्तित्व की महत्त्वपूर्ण स्त्रोत होती है। किसी चीज में रूचि लेनी ही काफी नहीं होता बल्कि भविष्य की सफलता के लिए आपके दृढ़ निश्चयों का विकास करे।
अपनी असफलताओं का मूल्यांकन कीजिए कि आपने उनसे क्या सीखा है ? आप बेहतर सफलता के लिए मूल्यांकन को ध्यान में रखते हुए प्रयास करते रहें।
हमारे अंदर क्या है, इसकी तुलना में ज्यादा महत्त्वपूर्ण है कि हमारे सामने इस समय क्या है ?
-रल्फ वाल्डो इमरसन

(4)

प्रत्येक क्षण का आनंद लें

खुशी तथा प्रसन्नता को नजरंदाज न्हीं किया जा सकता। आपको जिंदगी का आनन्द लेने के लिए उद्देश्य की प्राप्ति तक इंतजार करने की आवश्यकता नहीं। हर क्षण को उसकी सीमा तक जिएं।
आपके जीवन में खुशी एवं उन्नति किसी एक उद्देश्य की सफलता की मोहताज नहीं है। आपका उद्देश्य उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है जितना कि उसको पाने के लिए चुना गया रास्ता।
अपनी दिशा पहचानिए तथा अपने उद्देश्यों की तरफ चल पड़िए।

(5)

लक्ष्य पाने के लिए खुद को प्रोत्साहित कैसे करें ?

अपने उस उद्देश्य को याद करें जिसमें आपने सफलता पाई है। किस तरह रास्ते में रुकावटें आई थीं ओर आपने दृढ़ता से उन रुकावटों का मुकाबला करके रास्ते से हटा दिया था।
जब आप नए सपनों तथा इच्छाओं को अनुभव करें तो रुकावटों के वारे में चिंता करना छोड़ दें, क्योंकि आप पहले भी रास्ते में आने वाले बड़े-बड़े पत्थरों को हटा चुके हो।
आपको जीतने की प्रबल इच्छा, सफलता का निर्णय, अपने जीवन पर नियंत्रण तथा मास्टरी से अवश्य सुसज्जित रहना होगा। सबसे पहले अपने उद्देश्यों को पहचानें तथा मन में यह विश्वास लाएं कि कोई रुकावट आपको रोक नहीं सकती। अपने उद्देश्य की सफलता के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ बनें।
हमारी सोच हमारे ऊपर निर्भर करती है। हमारे साथ जो कुछ घटता है, उसका हमारे व्यक्तित्व में योगदान 10 प्रकिशत होता है। हम किस तरह प्रतिकार करते हैं, उसका योगदान 90 प्रतिशत है।
-चक स्वीन्डॉल

(6)

जीवन सुख-दुःख का खेल है

दुःख तथा सुख किस प्रकार हमारे भाग्य की दिशा तय करते हैं ? हमारे पास दुख का सामना करने के सरल उपाय हमेशा मौजूद होते हैं। कभी हम शराब पीते हैं तो कभी सिगरेट। कभी ज्यादा खाने लगते हैं।
जबकि कुछ ऐसे भी लोग हैं जो मानसिक दबाव का मुकाबला व्यायाम, सैर, मधुर संगीत सुनकर, सीखकर आदि उपायों द्वारा करते हैं। अपनी परेशानियों को दूर करने वाले तथा आनन्द बढ़ाने वाले उपायों को पहचानकर उनकी एक सूची बनाएं।
क्या और भी ऐसे सकारात्मक उपाय हैं जो हमें आनन्द दिलाने में सहायक हो सकते हैं ?

(7)

गलत संयोजन

ज्यादातर समय असफलता के बादल हमारे सपनों पर छाए रहने की कोशिश करते हैं। हम अपने सपनों तथा उद्देश्यों के लिए जोखिम उठाने की अपेक्षा अपने पास जो कुछ है, उससे चिपके रहना चाहते हैं। आपके लिए क्या ज्यादा महत्त्वपूर्ण होगा, वह जो आपने पिछले पांच सालों में कमाया है। उस पर कुण्डली मारकर रखवाली करना या अगले पांच सालों में और कमाने के लिए अवसर तलाशना।

(8)

चिंता या आनंद की परिभाषा

परेशानियों/दुःखों को दोस्त के रूप में स्वीकार करें। क्या आप यह सोचते हैं कि कुछ भी करें उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, ऐसा करके आप सिर्फ दुःख ही पाएंगे ? अगर आप संबंधों में बने रहते हैं, यह दुखद तो है लेकिन यदि आप इससे बाहर निकलते हैं तब आप ज्यादा अकेले तथा अभागे हैं।
पुराने दुखद अनुभवों को याद करें। इस बारे में कुछ करने के लिए अपने आपको परेशानी की गंभीरता को महसूस कराऐं। जब आप इस बारे में कुछ नहीं कर पाते तो आप भावुकता की दहलीज पर होते हैं। भावुकता के चरम बिन्दु को छूने के बाद तब आप परेशानियों का सामना करने में समर्थ होते हैं।
दुःख-दर्द की परिभाषा को बदल डालो। कई बार आप खुराक पर ध्यान देने की कोशिश करते हो, उससे भी बात नहीं बनती। भोजन को त्यागना दुखद है तथा दिमाग ज्यादा समय तक यह सब बर्दाश्त नहीं कर सकता।
भूख से लड़ने के बजाय अपने दर्द की जांच करो। अति भोजन के बाद की नकारात्मक सोच को याद करो। एक बार आपको यह अनुभव हो जाएगा कि व्यायाम सुखदायक है तथा अति भोजन दुखदायक है, तब आपकी समझ में आएगा कि क्या सही है और क्या गलत।
विपरीत परिस्थितियों में स्थिर रहना अवश्य आना चाहिए।
-इन्दिरा गांधी

(9)

कृपया ध्यान दें

हम प्रायः टाल-मटोल का रवैया अपना कर कामों को टालने की कोशिश करते हैं, जो बाद में हमारी समस्याओं को सिर्फ बढ़ाने का ही काम करते हैं। अगर आप किसी काम को करने में देरी करते हैं तो अपने लिए और अधिक परेशानी पैदा करने के अलावा कुछ नहीं करते।
ऐसे कौन से चार कार्य हैं जिनपर आज ध्यान देने की जरूरत है लेकिन उन्हें टालते आ रहे हैं ? एक सूची बनाएं, फिर निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दें-
1. मैंने यह काम क्यों नहीं खत्म किया ? ऐसा करने से भूतकाल में किस तरह की परेशानियां पैदा हो गई थीं ?
2. इस तरह के नकारात्मक रवैया अपनाने से क्या पहले कभी मुझे आनंद की अनुभूति हुई है ?
3. अगर मैं कोई बदलाव नहीं लाता हूं तो मेरा कितना नुकसान होगा।
4. अगर अभी मैं इन कार्यों को करना शुरू करता हूं तो मुझे कितना आनंद मिलेगा ?
हम सभी मन में यह आशा संजोए रहते हैं कि एक न ए दिन, जब हमारे पास बहुत-सा पैसा आ जाएगा, जब हमारे सबसे अच्छे रिश्ते होंगे, जब हम पूर्णतया स्वस्थ होंगे, जब हम प्रसिद्ध पाएंगे तो आखिरकार हम बहुत खुश होंगे।
ए सभी लाभप्रद स्थितियां अल्पकालिक हैं जो आपको हमेशा संतुष्ट नहीं करा सकतीं। यह आपकी मानसिक स्थिति है जो आपका चित्त प्रसन्न रखती हैं, तो क्यों न अभी से प्रसन्न रहने की आदत डालें।
तुरंत उपचार के लिए, शांत रहने की कला सीखने का प्रयास करें।
-लिली टमलिन

(10)

खुश रहने की तकनीक

आप कैसे अपने आपको प्रसन्न रख सखते हैं ? क्या आप इस स्थिति में हो कि ठीक अभी परम हर्ष, आनन्द और विशुद्ध प्रसन्नता अनुभव कर सको ?
उस क्षण, उस घटना के बारे में सोचो जिसने आपको पूर्णतया प्रसन्न कर दिया था। उस खास समय का रेखाचित्र अपने मन मस्तिष्क में खींचें, फिर अपने उन हाव-भावों को चेहरे पर लाएं। अपने सांस के आने व जाने की प्रक्रिया वैसे ही जैसे उस समय थी। अपनी नसों के स़्पन्दन को जांचें तथा अपनी शारीरिक क्रियाओं को पूर्ण समयानुसार संचालित करें। क्या आप उसी तरह की चपलता और उत्साह दुबारा कर रहे हैं ? क्या ऐसा संभव है कि उसी तरह के क्षण आप जब चाहो महसूस कर सको ?
जरा अपना ध्यान केन्द्रित करें, आप फौरन प्रसन्नता का अनुभव करेंगे। किसी भी अनुभव को कई तरीकों से महसूस किया जा सकता है। यह सब हमारी सोच पर निर्भर करता है। हमारे पूरे शरीर में उकसाहट, उत्तेजना और चपलता हर समय रहती है।
निम्नलिखित दो रहस्य आपके लिए लाभप्रद हो सकते हैं-
1. अपने ध्यान के केन्द्र बिन्दु में परिवर्तन लाएं।
2. अपनी मूल्यवान स्मृति का मानसिक चित्रण करें।

(11)

भावना शरीर विज्ञान

शारीरिक अवस्था में बदवाल भी महत्त्वपूर्ण होता है। जब कोई गुस्से, तनाव या अवसाद की स्थिति में होता है, प्रायः वह धूम्रपान, मद्यपान आदि नकारात्मक क्रियाओं की तरफ मुड़ जाता है। नकारात्मक अवस्था का इलाज है ध्यान, व्यायाम, संगीत आदि। कंधे बिचकाना, सिर झटकना आदि निम्न भावनात्मक पहलू को दर्शाते हैं। जब हम जोश में होते हैं, प्रसन्न मुद्रा एवं आत्म-विश्वास में होते हैं तो हमारा शरीर गर्व से उठ जाता है, कंधे ऊंचे उठ जाते हैं और सांसें बेहतर हो जाती हैं।
अपनी शारीरिक प्रतिक्रियाओं में बदलाव लाने से आप अपने भावनात्मक पहलू को बदले सकते हैं क्योंकि हमारी प्रत्येक भावना का शारीरिक क्रियाओं से संबंध होता है।
हम कोई बड़े काम नहीं कर सकते, केवल छोटे काम विशाल हृदय से कर सकते हैं।
-मदर टेरेसा

(12)

मुस्कराहट

मुस्कराओ। संसार तुम्हारे साथ मुस्कराने लगेगा।
एक सप्ताह तक, रोजाना गिन में पांच बार एक मिनट के लिए शीशे के सामने खड़े होकर जी भरकर मुस्कराएं। आपको थोड़ा सा अजीब पागलपन तो लगेगा, लेकिन जब आपकी मुस्कराट बनावटी न होकर मौलिक तथा चमकदार होगी तब आप अंदर से अच्छा महसूस करेंगे।

(13)

आपकी भावनाएं आपकी शारीरिक क्रियाओं का हिस्सा हैं ?

महसूस कीजिए, आप अपनी भावनाओं के दायरे को अपनी जरा सी कोशिश तथा उद्गम केन्द्र में बदलाव लाकर, अपनी खुशी को बढ़ा सकते हैं। आप अपनी स्वाभाविक तथा सकारात्मक भावनाओं में से किसी एक को चुनें तथा विभिन्न मुद्राओं, हरकतों एवं अपने हाव-भाव से उस भावना का आनंद लें।

(14)

जब कभी आप चिंतित हों, इसे स्मरण करें

आपने जीवन में कभी न कभी अवश्य क्रुद्ध, कुंठित तथा संकट में पड़ा हुआ महसूस किया होगा। यदि आप उन लम्हों को याद करें तो शायद आपको हंसी आए कि बेकार में परेशान थे जबकि ऐसी कोई बात ही नहीं थी। दोबारा उन भयानक परिस्थितियों पर हंसो। तुम तुरंत ऐसी परिस्थितियों को अपने नियंत्रण में महसूस करोगे।
भगवान् ने हमें सरल तथा साधारण बनाया है लेकिन हमने अपने आपको बहुत पेचीदा बना दिया है।

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