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नारी विमर्श >> नारी कभी न हारी

नारी कभी न हारी

पवित्र कुमार शर्मा

प्रकाशक : आत्माराम एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4068
आईएसबीएन :81-89356-07-0

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नारी जीवन पर आधारित पुस्तक....

Nari Kabhi Na Hari

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

मध्यकाल की विचारधारा ने नारी के मनुष्योचित अधिकारों पर आक्रमण किया और पुरुष की श्रेष्ठता एवं सुविधा का पोषण करने के लिए उस पर अनेक प्रतिबंध लगाकर शक्तिहीन, साहसहीन, विद्याहीन बनाकर इतना लुंज-पुंज कर दिया कि बेचारी नारी समाज के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकना तो दूर, आत्म-रक्षा के लिए भी दूसरों की मोहताज हो गई। पुराहितों ने शोषितों और शोषकों को अपना-अपना भाग्य, ईश्वर की इच्छा-विधि का विधान आदि कहकर यथास्थिति अपनाये रहने के लिए रजामंद किया। उसी प्रकार श्लोक भी बना दिये गए। उस समाज ने अपनी इच्छाओं, स्वार्थों की पूर्ति के सभी साधन जुटाए एवं नारी को दिया ‘संरक्षण’।

 इस सत्तात्मक व्यवस्था में दया, माया, ममता, सेवा, त्याग, करुणा आदि गुणों से विभूषित होते हुए भी नारी को प्राणी के स्थान पर ‘पदार्थ’ अधिक समझा गया। तब से लेकर अब तक नारी चरण दासी बनकर रह गयी और नर, नारी के लिए सर्वशक्तिमान, कर्ता, भर्ता, हर्ता, पति परमेश्वर बना चला आ रहा है।
समाज जो हमेशा परिवर्तनशील रहा और नारियों में भी वीरता जागी। स्वतंत्रता आंदोलन में कूद कर देश की रक्षा के लिए हँसते-हँसते फाँसी के फन्दे को गले से लगा लिया।
प्रस्तुत पुस्तक परम्परागत नारी से लेकर आज तक की हिम्मतवान नारियों की गाथा है।

 

नारी की पीड़ा

नारी के दिल का दर्द क्या है, उसके मन की पीड़ा क्या है-इसे भला एक नारी से अधिक अच्छा कौन समझ सकता है ? पुरुष यदि नारी के मन की पीड़ा को समझेगा तो हमेशा दया-भावना से ही समझेगा अथवा वह उसके प्रति उपेक्षा का भाव रखेगा, लेकिन नारी आज की जिन्दगी में किन-किन समस्याओं से होकर गुजर रही हैं, कौन-कौन सी बातें उसके मन को दुःखी करती हैं तथा उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाती हैं-यह एक पुरुष गहराई से कभी नहीं जान सकेगा-जब तक कि वह खुद किसी जन्म में स्त्री न बन जाए।

तसलीमा नसरीन बांग्लादेश की प्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका रह चुकी हैं। उन्होंने बांग्लादेश में जन्म लिया और वहीं के मैमनसिंह मेडिकल कॉलेज में एम.बी.बी.एस. की डिग्री हासिल करके उच्च शिक्षा प्राप्त की।
अपनी पुस्तक में तसलीमा नारी के जीवन के दर्द की बात कहती हैं। वे खुद कई बार पुरुष-वर्ग के अत्याचारों से पीड़ित हुई हैं और जब पुरुषों के विरोध में कड़वी परन्तु सच्ची बात कहती हैं तो पुरुष पाठकों को बुरा लगता है। अपने जीवन के अनुभवों पर आधारित एक पुस्तक उन्होंने ‘निर्वासित कॉलम’ के नाम से बांग्ला भाषा में लिखी थी। उस पुस्तक का अनुवाद ‘औरत के हक में’ नाम से किया गया। इस पुस्तक में उन्होंने अपने खुद के जीवन के ऐसे कई उदाहरण पेश किए हैं जिनमें बार-बार पुरुषों की शोषक प्रवृत्ति को दर्शाया गया है। कुछेक उदाहरण देखिये-

(1)    उस समय मेरी उम्र अठारह-उन्नीस की होगी। मयमनसिंह शहर के एक सिनेमा हॉल में दोपहर का ‘शो’ खत्म हुआ। कतारों में रिक्शे खड़े हैं। मैं एक रिक्शे पर चढ़ी। भीड़ के कारण रिक्शा एक जगह रुक गया था। कभी थोड़ा चलता फिर रुक जाता। इसी दौरान मुझे अपनी दाहिनी बाँह में अचानक तेज दर्द महसूस हुआ। मैंने पाया कि बारह-तेरह साल का एक लड़का मेरी बाँहे में जलती सिगरेट दागे हुए हैं।....मैं दर्द के मारे कराह उठी।

(2)    मेरी आँखों के सामने एक लड़का मेरी सहेली की (....?) में चिकोटी काटकर भाग गया था। एक बार एक अपरिचित युवक मेरी बहन का दुपट्टा खींचकर भाग गया था। भीड़ के बीच (....और....?) स्पर्श करने के लिए एक सौ एक हाथ अँधेरे में अपने-अपने पंजे बढ़ाये रहते हैं। ये सब हाथ अनपढ़ों के नहीं होते। इनमें अनेक हाथ पढ़े-लिखे लोगों के भी होते हैं।

(3)    मैं अपने आपको खुशनसीब समझती हूँ कि अब तक किसी ने ‘एसिड बल्ब’ मारकर मेरा चेहरा नहीं जलाया, मेरी आँख फोड़कर मुझे अंधा नहीं किया। यह मेरा सौभाग्य है कि वहशी मर्दों के किसी गिरोह ने अब तक मेरा बलात्कार नहीं किया।

(4)    जो भी लड़कियाँ घर से बाहर निकलती हैं, उनमें मैं अकेली नहीं हूँ। बल्कि सभी लड़कियाँ रास्ते में होने पर अश्लील घटनाओं को चुपचाप झेलती हैं। कोई लड़का उनके कपड़े पर पान थूककर अपने गन्दे दाँत चमकाता, हँसता हुआ निर्लिप्त भाव से निकल जाएगा। ये लड़कियाँ एसिड बल्ब, अपहरण, बलात्कार तथा हत्या जैसी दुर्घटनाएँ भी झेलती हैं।

(5)    रास्ते में निकलने पर बदन पर दो एक कंकड़ गिराना तो मामूली बात है। सरेराह फेंकी गयी जलती सिगरेट से रिक्शे में जा रही युवती के कपड़ों में झाग लग जाती है और वह अर्धनग्न अवस्था में जब घर लौटती है तो युवक उसका शरीर देखकर चटखारा लेते हैं।

(6)    मयमनसिंह शहर के विभिन्न स्थानों पर-विशेष रूप से लड़कियों के स्कूल, कॉलिज, सिनेमा हॉल के बगल में लकड़ी के खम्बों पर एक तरह से सूचनापट्ट पर लिखा रहता था-‘‘गुंडों की हरकतों के खिलाफ पुलिस की सहायता लें।’’ परन्तु यह सूचनापट्ट गर्ल्स स्कूल-कॉलिज के खम्बों और छविगृहों पर अधिक दिनों तक नहीं टिक पाया। वे गुंडे उन खम्बों को ही उखाड़ ले गये। लड़कियाँ जब अपने स्कूल आती-जाती थीं तो बदमाश लड़के उसी सूचनापट्ट पर कमर टेककर सीटी बजाते थे। सबसे मजे की बात तो यह है कि एक बार पुलिस वालों की हरकतों से बचने के लिए लड़कियों को उन्हीं गुंडों की मदद लेनी पड़ी थी।

(7)    विश्वविद्यालय के महिला छात्रावास के दरवाजे शाम होते ही उसी प्रकार बंद हो जाते थे, जैसे मुर्गी, बतख़ वगैरह को शाम होते ही दड़बे में डाल दिया जाता है।

(8)    जर्मन ग्रीयर की पुस्तक ‘फिमेल यूनाफ’ में लड़कियों के ऊँची एड़ी वाले सैंडिल के आविष्कार के पीछे एक बहुत अच्छी बात कही गयी है। पुरुष जब किसी लड़की पर आक्रमण करता है, तब वह खुद को बचाने के लिए दौड़ती है। वह ज्यादा तेज न दौड़ सके इसलिए उसके पाँवों में ‘हाई हील’ यानी ऊँची एड़ी वाली सैंडिल की व्यवस्था की गयी।

(9)    लड़कियाँ अब बड़े शौक से पायल-पाजेब पहनती हैं। पर इस पायल के आविष्कार और लड़कियों के पहनने के पीछे एक उद्देश्य है। पायल पहनने से लड़कियों की गतिविधि यानी वे कहाँ जा रही हैं, क्या कर रही हैं-इसकी आवाज सुनाई पड़ती रहती है और बेवकूफ लड़कियाँ उसकी पायल को जो उसे एक निश्चित दायरे में बाँधे रखता है, पहनकर फूली नहीं समातीं कि उनके पैरों की खूबसूरती काफी बढ़ गयी है।

(10)     मेरी किशोरावस्था में फल के एक पेड़ पर चढ़ने से माँ ने मुझे रोका था, कहा था-‘‘लड़कियों के पेड़ पर चढ़ने से पेड़ मर जाते हैं।’’ बड़ी होकर जब वनस्पति विज्ञान की पढ़ाई की तो ऐसा कुछ भी नहीं मिला कि नारी के स्पर्श से वृक्षों के जीने-मरने का कोई सम्बन्ध है।

(11)     मैं कई ऐसे शिक्षित पुरुषों को जानती हूँ जिन्होंने पत्नी के साथ सहवास के समय सफेद चादर सिर्फ इसलिए बिछाई थी कि इससे उसके कौमार्य की परीक्षा होगी। चादर में खून का धब्बा न पाकर उन्होंने पत्नी के चरित्र को लेकर सवाल उठाया था।

(12)     जब बलात्कार का शिकार हुई माँ-बहिनों के सम्मान को लेकर राजनीतिक नेतागण चिल्ला रहे थे, उस समय असम्मान के हाथों खुद को बचाने के लिए मेरी खाला ने ‘सीलिंग फैन’ से झूलकर फाँसी लगा ली।

(13)     इलेक्ट्रॉ़निक्स सामान की दूकान खोलने की बात करने वाला एक लड़की का पति रात में दारू पीकर आता है और उसे जी भर के पीटता है। मैं महसूस कर रही थी कि इस लड़की के शरीर पर किसी का लात, किसी का जूता आकर पड़ रहा है। वह शराबी पति की उल्टी साफ कर रही है और काँच के बर्तनों का सपना देख रही है।
एक दिन यह भी सुनने में आया कि उस लड़की को घर से निकालकर उसके पति ने दूसरी शादी कर ली।

(14)     एक तीस वर्षीय लड़की के पति ने उसे संक्रमित किया और अब सिफिलस से उसका स्नायुतंत्र आक्रांत है। वह सुन्न शरीर लिये दुस्सह जीवन बिता रही है। पड़ौसी, रिश्तेदार और शुभचिंतक आकर कहते हैं कि जिन्न के प्रभाव के कारण ऐसा हुआ है। दो महीने बाद एक दिन वह किसी को कुछ बताये बिना दुनिया छोड़ जाती है।

(15)     जो लड़की नाचती है या चित्रकारी करती है-उसका नाचना या चित्रांकन बन्द करके पति महाशय बड़े गर्व के साथ कहते हैं कि शादी के लिए उन्होंने अपनी पत्नी का नृत्य या चित्रांकन बन्द करा दिया है।

(16)     प्रसव कक्ष के बाहर इन्तजार करते पुरुषों में सौ में से एक भी नहीं चाहता कि उसके बेटी हो। उच्चशिक्षित पुरुष भी ‘एक स्वस्थ बच्चे’ के बजाय किसी ‘पुत्र संतान’ को पाना ज्यादा पसंद करता है।

(17)     तलाक शब्द का उच्चारण करने में यदि कोई पुरुष एक स्त्री की प्रसव पीड़ा के सौवें अंश का एक अंश भी अनुभव करे तो इतनी सहजता से तलाक शब्द का उच्चारण नहीं कर पाएगा।

(18)     गारमेंट की फैक्टरी की निम्न आय की लड़कियाँ इस देश में बहुत सस्ते में मिल जाती हैं। अगर तौला जाए तो खस्सी के मांस से भी सस्ती कीमत पर।

(19)     नेलसन मंडेला की रिहाई की माँग को लेकर दिन-भर जो लड़का जुलूस में चिल्लाता रहा, वही लड़का घर लौटकर रुखे स्वर में अपनी माँ से कहता है-गोरी लड़की के अलावा और किसी से शादी नहीं करूँगा।
लड़की शिक्षित है या नहीं, संस्कारवान है या नहीं, लड़की का आचार-विचार अच्छा है या नहीं आदि देखने से पहले लड़के और उसके अभिभावक देखते हैं कि लड़की की खाल सफेद है या नहीं।

(20)     जिस तरह से कोई कपड़ा हैंगर में लटका रहता है-पतियों के घर स्त्रियाँ भी उस तरह हैंगर में लटकी रहती हैं। इस्तेमाल होना ही जिनका मुख्य काम है।

(21)     रतन ना

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