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शिक्षा क्या है ?

जे. कृष्णमूर्ति

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3980
आईएसबीएन :9788170286691

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"शिक्षा क्या है?" में जीवन से संबंधित युवा मन के पूछे-अनपूछे प्रश्न हैं और जे.कृष्णमूर्ति की दूरदर्शी दृष्टि इन प्रश्नों को मानो भीतर से आलोकित कर देती है पूरा समाधान कर देती है।

Shiksha kya hai

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

‘शिक्षा क्या है’ में जीवन से संबंधित युवा मन के पूछे-अनपूछे प्रश्न हैं और जे.कृष्णमूर्ति की दूरदर्शी दृष्टि इन प्रश्नों को मानो भीतर से आलोकित कर देती है पूरा समाधान कर देती है। ये प्रश्न शिक्षा के बारे में हैं, मन के बारे में हैं, जीवन के बारे में हैं, विविध हैं, किन्तु सब एक दूसरे से जुड़े हैं।

"गंगा बस उतनी नहीं है, जो ऊपर-ऊपर हमें नज़र आती है। गंगा तो पूरी की पूरी नदी है, शुरू से आखिर तक, जहां से उद्गम होता है, उस जगह से वहां तक, जहां यह सागर से एक हो जाती है। सिर्फ सतह पर जो पानी दीख रहा है, वही गंगा है, यह सोचना तो नासमझी होगी। ठीक इसी तरह से हमारे होने में भी कई चीजें शामिल हैं, और हमारी ईजादें सूझें हमारे अंदाजे विश्वास, पूजा-पाठ, मंत्र-ये सब के सब तो सतह पर ही हैं। इनकी हमें जाँच-परख करनी होगी, और तब इनसे मुक्त हो जाना होगा-इन सबसे, सिर्फ उन एक या दो विचारों, एक या दो विधि-विधानों से ही नहीं, जिन्हें हम पसंद नहीं करते।"

प्राक्कथन


जिड्डू कृष्णमूर्ति (1895-1986) ने धर्म, अध्याय, दर्शन, मनोविज्ञान व शिक्षा को अपनी अंतदृर्ष्टि के माध्यम से नये आयाम दिए। छः दशकों से भी अधिक समय तक विश्व के विभिन्न भागों में, अलग-अलग पृष्ठभूमियों से आए श्रोताओं के विशाल समूह कृष्णमूर्ति के व्यक्तित्व तथा वचनों की ओर आकर्षित होते रहे, पर वे किसी के गुरू नहीं थे। अपने ही शब्दों में वे तो बस एक दर्पण थे जिसमें इंसान खुद को देख सकता है। वे किसी समूह के नहीं, सच्चे अर्थों में समस्त मानवता के मित्र थे।

शिक्षा कृष्णमूर्ति के प्रमुख रसोकारो में से एक थी, और प्रतिवर्ष वे ब्रिटेन, यू. एस ए, व भारत स्थिति कृष्णमूर्ति फाउंडेशन द्वारा संचालित शिक्षा-संस्थानों में जाकर पर्याप्त समय रहते थे। वहां जीवन के विविध प्रश्नों पर विद्यार्थियों व शिक्षकों के साथ नियमित रूप से उनका संवाद होता था। 1934 में स्थापित ‘‘राजघाट बीसेंट स्कूल’ भी इन्हीं शिक्षा-संस्थानों में से है।
युवा मन में जो प्रश्न उठते हैं, उनका सीधा संबंध दैनिक जीवन से होता है। कृष्णमूर्ति की शिक्षाओं की अर्थवत्ता को भी दैनिक जीवन की कसौटी पर ही परखा जा सकता है। दार्शनिक अवधारणओं, आध्यात्मिक संकल्पनाओं एवम् धार्मिक मनोविज्ञान तथा शैक्षिक रूढ़ियों के सुलझाने वाले घेरे से हटकर ठेठ ज़िंदगी से जुड़े हुए प्रश्नों की पड़ताल ही ‘शिक्षा क्या है’ की विषय-वस्तु है।
कृष्णमूर्ति के उत्तर बंधे—बँधाए नहीं होते, अपितु वे उस प्रश्न की यात्रा में आपके साथ-साथ वहां तक चलते हैं। जहाँ प्रश्न और उत्तर एक हो जाते हैं, प्रश्न में छिपे उत्तर से आपकी मुलाकात हो जाती है।
प्रश्नों-उत्तरों का यह अपूर्व संगम वाराणसी के गंगा तट पर स्थिति राजघाट के सुरम्य वातावरण में हुआ था। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रांगण में दी गईं कृष्णमूर्ति की तीन वार्ताएं भी प्रस्तुत कृति में संकलित हैं।

वार्ताएं, राजघाट
शिक्षा क्या है ?


मैं यह मान कर चल रहा हूं कि आपमें से अधिकांश अंग्रेजी समझ लेते होंगे। और यदि कुछ नहीं समझ पाते हों तो भी कोई हर्ज नहीं क्योंकि यह उपस्थित आपके शिक्षकगण एवं अन्य बड़े लोग अंग्रेजी समझते हैं। मैं जिस बारे में बात कर रहा हूँ, जरूरत पड़ने पर उसे स्पष्ट करने के लिए उनसे पूछ ही सकते हैं; आप उनसे इस बारे में ज़रूर पूछिएगा, ठीक है ‍? क्योंकि आगामी तीन-चार सप्ताहों में हम जिस विषय पर बात करने जा रहे हैं, वह बड़ा ही महत्त्वपूर्ण है। हमारी चर्चा इस बारे में होगी कि शिक्षा क्या है तथा इसमें क्या-क्या शामिल है-केवल परीक्षा पास करना ही नहीं बल्कि शिक्षित होने का पूरा तात्पर्य क्या है। चूंकि हम इन सब चीजों के बारे में प्रतिदिन वार्ता करने वाले हैं, अतः जो कुछ भी मैं कह रहा हूँ उसे यदि आप नहीं समझ पा रहे हैं तो कृपया अपने अध्यापकों से कहें कि वे आपको इत्मीनान से ये बातें समझाएं। चूँकि इन बातों का संबंध प्रमुख रूप से छात्रों से लिया जाता है, अतः बड़े लोग यदि कुछ पूछना चाहें तो वे केवल प्रमुख प्रश्नों को पूछें जिसमें छात्रों को अपनी समस्याओं के स्पष्टीकरण में सहायता मिले। यदि वे अपनी व्यक्तिगत सस्याओं के बारे में प्रश्न पूछेंगें तो छात्रों को कोई लाभ नहीं होने वाला।
क्या आप स्वयं से यह नहीं पूछते कि आप क्यों पढ़-लिख रहे हैं ? क्या आप जानते है कि आपको शिक्षा क्यों दी जा रही है और इस तरह की शिक्षा का क्या अर्थ है ? अभी की हमारी समझ में शिक्षा का अर्थ है स्कूल जाना पढ़ना लिखना सीखना, परीक्षाएं पास करना कालेज में जाने लगते हैं। वहाँ फिर से कुछ महीनों या कुछ वर्षों तक कठिन परिश्रम करते हैं, परीक्षाएं पास करते हैं और कोई छोटी-मोटी नौकरी पा जाते हैं, फिर जो कुछ आपने सीखा होता है भूल जाते हैं। क्या इसे ही हम शिक्षा कहते हैं ? क्या आप समझ रहे हैं कि मैं क्या कह रहा हूँ ? क्या हम सब यही नहीं कर रहे हैं ?

लड़कियां बी. ए. एम.ए. जैसी कुछ परीक्षाएं पास कर लेती हैं, विवाह कर लेती हैं, खाना पकाती हैं या कुछ और बन जाती हैं, बच्चों को जन्म देती हैं और इस तरह से अनेक वर्षो में पाई जाने वाली शिक्षा पूर्णतः व्यर्थ हो जाती है हां, यह जरूर जान जाती हैं कि अंग्रेजी कैसे बोली जाती है, वे थोड़ी-बहुत चतुर, सलीकेदार, सुव्यवस्थित हो जाती हैं और अधिक साफ सुथरी रहने लगती हैं, पर बस उतना ही होता है, है न ? किसी तरह लड़के कोई तकनीकी काम पा जाते हैं, क्लर्क बन जाते हैं या किसी तरह शासकीय सेवा में लग जाते है इसके साथ ही सब समाप्त हो जाता है। ऐसा ही होता है न ?

आप देख सकते हैं कि जिसे आप जीना कहते हैं, वह नौकरी पा लेने बच्चे पैदा करने, परिवार का पालन-पोषण करने, समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं को पढ़ने, बढ़–चढ कर बातें कर सकने और कुशलतापूर्वक वाद-विवाद कर सकने तक सीमित होता है। इसे ही हम शिक्षा कहते हैं-है न ऐसा ? क्या आपने कभी अपने माता-पिता और बडे लोगों को ध्यान से देखा है ? उन्होंने भी परीक्षाएं पास की हैं, वे भी नौकरियां करते हैं और पढ़ना-लिखना जानते हैं। क्या शिक्षा का कुल अभिप्राय इतना है ?
इल्म का मामला कहीं अधिक व्यापक है। इसका इतना ही नहीं कि दुनिया में यह आपको कोई नौकरी दिलाने में सहायक हो, बल्कि यह भी है कि इस दुनिया का सामना करने में आपकी मदद करे। आप जानते हैं कि संसार क्या है। इस संसार में चारों तरफ प्रतिस्पर्धा है। आपको मालूम ही है कि प्रतिस्पर्धा का अर्ध क्या हैः प्रत्येक व्यक्ति केवल अपना ही लाभ देख रहा है, अपने लिए सबसे बढ़िया चीज हथियाने के लिए संघर्षरत है और उसे पाने के लिए वह दूसरे सभी लोगों को एक ओर धकेल देता है। इस दुनियाँ में युद्ध हैं, वर्ग-विभाजन है और आपसी लड़ाई-झगड़े हैं।

इस संसार में हर व्यक्ति अच्छे-से-अच्छा रोजगार पाने के लिए तथा अधिक-से-अधिक ऊपर उठने के लिए प्रयत्न कर रहा है; यदि आप क्लर्क हैं और ऊंचा पद पाने का प्रयत्न कर रहे है, और इसलिए हर समय संघर्षरत रहते है क्या आप यह सब नहीं देखते हैं ? यदि आपके पास एक कार है तो आप उससे भी बड़ी कार चाहते हैं। इस प्रकार यह संघर्ष अनवरत रूप से चलता रहता है, न केवल अपने भीतर बल्कि अपने सभी पड़ोसियों के साथ भी। फिर हम देखते हैं युद्ध जिसमें हत्यायें होती हैं, लोगों का विनाश होता है, जैसा पिछले युद्ध में हुआ जिसमें करोड़ों लोग मारे गए, घायल हुए, अपाहिज बना दिए गए।
यह सारा राजनीतिक संघर्ष हमारा जीवन है। इसके अलावा जीवन धर्म भी तो है, क्या नहीं है ? जिसे हम धर्म मानते हैं वह तो कर्मकांड है, जैसे मंदिरों में चक्कर काटना, जनेऊ या कोई ऐसी चीज़ धारण करना, कुछ शब्द बुदबुदा देना या किसी गुरू का पिछलग्गू बन जाना। मरने का भय, जीने का भय, लोग क्या कहेंगे और क्या नहीं कहेंगे इसका भय, न जाने हम किस ओर जा रहे हैं इसका भय नौकरी छूट जाने का भय और धारणाओं का भय, क्या यही सब जीवन असाधारण रूप से जटिल चीज़ नहीं है ? क्या आप जानते हैं कि ‘जटिल’ शब्द का अर्थ है? –बहुत उलझा हुआ, यह इतना सरल नहीं है कि आप इसे तत्काल समझ लें; यह बहुत ही कठिन है., इससे अनेकों मुद्दे जुड़े हैं।

अतः शिक्षा का अर्थ क्या यह नहीं है कि इन सभी समस्याओं का सामना करने के लिए वह आपको समर्थ बनाएं। यह आवश्यक है कि इन सभी समस्याओं का ठीक ढंग से सामना करने के लिए आपको शिक्षित किया जाए। यही शिक्षा है कि न मात्र कुछ परीक्षाएं पास कर लेना कुछ बेहुदा विषयों का-जिनमें आपकी रुचि बिलकुल नहीं है, उसका अध्ययन कर लेना। सम्यक शिक्षा वही है जो विद्यार्थी की इस जीवन का सामना करने में मदद करे, ताकि वह जीवन को समझ सके, उससे हार न मान ले उसके बोझ से दब न जाए, जैसा कि हममें से अधिकांश लोगों के साथ होता है। लोग, विचार, देश, जलवायु, भोजन, लोकमत, यह सभी कुछ लगातार आपको उस खास दिशा में ढकेल रहे हैं, जिसमें कि समाज आपको देखना चाहता है। आपकी शिक्षा ऐसी हो कि वह आपको इस दबाव को समझने के योग्य बनाएं इसे उचित ठहराने की बजाए आप इसे समझें और इससे बाहर निकलें जिससे कि एक व्यक्ति होने के नाते, एक मनुष्य होने के नाते, आप आगे बढ़कर कुछ नया करने में सक्षम हो सकें और केवल परंपरागत ढंग से ही विचार करते न रह जाएं। यही वास्तविक शिक्षा है।

आप जानते है कि हममें से अधिकांश के लिए शिक्षा का अर्थ यह सीखना है कि हम क्या सोचें। आपका समाज आपके माता-पिता, आपका पड़ोसी, आपकी किताब, आपके शिक्षक ये सभी आपको बताते हैं कि आपको क्या सोचना चाहिए ‘क्या सोचना चाहिए’ वाली यांत्रिक प्रणाली को हम शिक्षा कहते हैं और ऐसी शिक्षा आपको केवल यंत्रवत, संवेदनशून्य मतिमंद और असृजनशील बना देती है। किंतु यदि आप यह जानते हैं कि ‘कैसे सोचना चाहिए’-न कि ‘क्या सोचना चाहिए’- तब आप यांन्त्रिक परंपरावादी नहीं होंगे बल्कि जीवंत जीवन मानव होंगे; तब आप महान कांन्त्रिकारी होंगे-अच्छी नौकरी पाने या किसी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए लोगों की हत्या करने जैसे मूर्खतापूर्ण कार्य करने के अर्थ में। यह बहुत महत्त्वपूर्ण है। लेकिन जब हम विद्यालय में होते हैं तो इन चीज़ों की ओर कभी ध्यान नहीं देते। शिक्षक स्वयं इसे जानते !

 वे तो केवल आपको यही सिखाते हैं कि क्या पढ़ना चाहिए, कैसे पढ़ना चाहिए, वे आपकी अंग्रेजी या गणित सुधारने में व्यस्त रहते हैं। उन्हें तो इन्हीं सब चीजों की चिन्ता रहती है, और फिर पाँच या दस वर्षों के बाद आपको उस जीवन में धकेल दिया जाता है जिसके बारे में आपको कुछ पता नहीं होता है। इन सब चीज़ों के बारे में आपको किसी ने कुछ नहीं बताया है, या बताया भी है तो किसी दिशा में आपको धकेलने के लिए जिसका परिणाम होता है कि आप समाजवादी, कांग्रेसी या कुछ और हो जाते हैं परंतु वे आपको यह नहीं सिखाते, न इस बारे में आपका सहयोग करते हैं कि जीवन की इन समस्याओं को कैसे सोचा-समझा जाए; और हाँ, कुछ देर के लिए इस पर चर्चा कर लेने से काम नहीं चलेगा, बल्कि इन सारे वर्षों के दौरान बराबर इसकी चर्चा हो, यहीं तो शिक्षा है, है न ? क्योंकि इस प्रकार के विद्यालय में हमें यही बस छोटी-मोटी परीक्षाएं पास कर लें बल्कि इसमें भी आपका सहयोग करना हमारा कार्य है कि जब आप इस स्थान को छोड़कर जाएं तो जीवन का सामना कर सकें, आप एक प्रबुद्ध मानव बन सकें न कि मशीनी इंसान, हिंदू, मुसलमान, साम्यवादी या ऐसा ही कुछ और बन जाएं।

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