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बाल एवं युवा साहित्य >> अकबर बीरबल के मनोरंजक किस्से

अकबर बीरबल के मनोरंजक किस्से

अनिल कुमार

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :40
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3972
आईएसबीएन :81-8133-365-9

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जो हंसी-हंसी में दे अनूठी सीख.....

Akbar Birbal Ke Manoranjak Kissey a hindi book by Anil Kumar - अकबर बीरबल के मनोरंजक किस्से (अनिल कुमार)

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

पंडित जी

शाम ढलने को थी। सभी आगंतुक धीरे-धीरे अपने घरों को लौटने लगे थे। तभी बीरबल ने देखा कि एक मोटा-सा आदमी शरमाता हुआ चुपचाप एक कोने में खड़ा है। बीरबल उसके निकट आता हुआ बोला, ‘‘लगता है तुम कुछ कहना चाहते हो। बेहिचक कह डालो जो कहना है। मुझे बताओ, तुम्हारी क्या समस्या है ?’’
वह मोटा व्यक्ति सकुचाता हुआ बोला, ‘‘मेरी समस्या यह है कि मैं पढ़ा-लिखा नहीं हूं। मैंने अपनी शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया जिसका मुझे खेद है। मैं भी समाज में सिर उठाकर सम्मान से जीना चाहता हूं। पर अब नहीं लगता है ऐसा कभी नहीं हो पाएगा।’’

‘‘नहीं कोई देर नहीं, ऐसा जरूर होगा यदि तुम हिम्मत न हारो और परिश्रम करो। तुममें भी योग्यता है’’ बीरबल ने कहा।
‘‘लेकिन ज्ञान पाने में तो सालों लग जाएंगे।’’ मोटे आदमी ने कहा, ‘‘मैं इतना इंतजार नहीं कर सकता। मैं तो यह जानना चाहता हूँ कि क्या कोई ऐसा तरीका है कि चुटकी बजाते ही प्रसिद्धि मिल जाए।’’
प्रसिद्धि पाने का ऐसा आसान रास्ता तो कोई नहीं है।’’ बीरबल बोला, ‘‘यदि तुम वास्तव में योग्य और प्रसिद्ध कहलवाना चाहते हो, तो मेहनत तो करनी ही होगी। वह भी कुछ समय के लिए।’’
यह सुनकर मोटा आदमी सोच में डूब गया।

‘‘नहीं मुझमें इतना धैर्य नहीं है।’’ मोटे आदमी ने कहा, ‘‘मैं तो तुरंत ही प्रसिद्धि पाकर ‘पंडित जी’ कहलवाना चाहता हूं।’’
‘‘ठीक है।’’ बीरबल बोला, ‘‘इसके लिए तो एक ही उपाय है। कल तुम बाजार में जाकर खड़े हो जाना। मेरे भेजे आदमी वहां होंगे, जो तुम्हें पंडित जी कहकर पुकारेंगे। वे बार-बार जोर-जोर से ऐसा कहेंगे। इससे दूसरे लोगों का ध्यान इस ओर जाएगा, वे भी तुम्हें पंडित जी कहना शुरू कर देंगे। ऐसा होना स्वाभाविक भी है। लेकिन हमारा नाटक तभी सफल होगा जब तुम गुस्सा दिखाते हुए उन पर पत्थर फेंकने लगोगे या हाथ में लाठी लेकर उनको दौड़ाना होगा तुम्हें। लेकिन सतर्क रहना, गुस्से का सिर्फ दिखावा भर करना है तुम्हें। किसी को चोट नहीं पहुंचनी चाहिए।’’
उस समय तो वह मोटा आदमी कुछ समझ नहीं पाया और घर लौट गया।

अगली सुबह वह मोटा आदमी बीरबल के कहेनुसार व्यस्त बाजार में जाकर खड़ा हो गया। तभी बीरबल के भेजे आदमी वहां आ पहुंचे और तेज स्वर में कहने लगे- ‘‘पंडितजी...पंडितजी...पंडितजी...।’’
मोटे आदमी ने यह सुन अपनी लाठी उठाई और भाग पड़ा उन आदमियों के पीछे। जैसे सच ही में पिटाई कर देगा। बीरबल के भेजे आदमी वहां से भाग निकले, लेकिन पंडितजी..पंडितजी...का राग अलापना उन्होंने नहीं छोड़ा। कुछ ही देर बाद आवारा लड़कों का वहां घूमता समूह ‘पंडितजी...पंडितजी...’ चिल्लाता हुआ उस मोटे आदमी के पास आ धमका।
बड़ा मजेदार दृश्य उपस्थित हो गया था। मोटा आदमी लोगों के पीछे दौड़ रहा था और लोग ‘पंडितजी...पंडितजी...’ कहते हुए नाच-गाकर चिल्ला रहे थे।

अब मोटा आदमी पंडितजी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। जब भी लोग उसे देखते तो पंडितजी कहकर ही संबोधित करते। अपनी ओर से तो लोग यह कहकर उसका मजाक उड़ाते थे कि वह उन पर पत्थर फेंकेगा या लाठी लेकर उनके पीछे दौड़ेगा। लेकिन उन्हें क्या पता था कि मोटा तो चाहता ही यही था। वह प्रसिद्ध तो होने ही लगा था।
इसी तरह महीनों बीत गए।

मोटा आदमी भी थक चुका था। वह यह भी समझ गया था कि लोग उसे सम्मानवश पंडितजी नहीं कहते, बल्कि ऐसा कहकर तो वे उसका उपहास करते हैं। लोग जान गए थे कि पंडित कहने से उसे गुस्सा आ जाता है। वह सोचता था कि शायद लोग मुझे पागल समझते हैं।
यह सोचकर वह इतना परेशान हो गया कि फिर से बीरबल के पास जा पहुंचा।
वह बोला, ‘‘मैं मात्र पंडितजी कहलाना नहीं चाहता। वैसे मुझे स्वयं को पंडित कहलवाना पसंद है और कुछ समय तक यह सुनना मुझे अच्छा भी लगा। लेकिन अब मैं थक चुका हूं। लोग मेरा सम्मान नहीं करते, वो तो मेरा मजाक उड़ाते हैं।’’
मोटे आदमी को वास्तविकता का आभास होने लगा था।

मोटे आदमी को यह कहता देख बीरबल हंसता हुआ यह बोला, ‘‘मैंने तो तुमसे पहले ही कह दिया था कि तुम बहुत समय तक ऐसा नहीं कर पाओगे। लोग तुम्हें वह सब कैसे कह सकते हैं, जो तुम हो ही नहीं। क्या तुम उन्हें मूर्ख समझते हो ? जाओ, अब कुछ समय किसी दूसरे शहर में जाकर बिताओ। जब लौटो तो उन लोगों को नजरअंदाज कर देना जो तुम्हें पंडितजी कहकर पुकारें। एक अच्छे, सभ्य व्यक्ति की तरह आचरण करना। शीघ्र ही लोग समझ जाएंगे कि ‘पंडितजी’ कहकर तुम्हारा उपहास करने में कुछ नहीं रक्खा और वे ऐसा कहना छोड़ देंगे।’’
मोटे आदमी ने बीरबल के निर्देश पर अमल किया।
जब वह कुछ माह बाद दूसरे शहर से लौटकर आया तो लोगों ने उसे पंडितजी कहकर परेशान करना चाहा, लेकिन उसने कोई ध्यान न दिया।

अब वह मोटा आदमी खुश था कि लोग उसे उसके असली नाम से जानने लगे हैं। वह समझ गया था कि प्रसिद्धि पाने की सरल राह कोई नहीं है।

बादशाह की दूसरी शादी

बादशाह अकबर और उनकी बेगम का अक्सर छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा हो जाता था। एक दिन ऐसे ही दोनों आपस में झगड़ रहे थे तो बेगम बोली, ‘‘आपको सबूत देना होगा कि मुझे वास्तव में प्रेम करते हैं आप। इसके लिए जैसा मैं कहती हूं, वैसा ही करिए। बीरबल को उसके ओहदे से हटाकर मेरे भाई शेरखान को रखें।’’
बादशाह ने अपनी बेगम को समझाने की बहुतेरी कोशिश करी कि बीरबल को ऐसे ही अकारण नहीं हटाया जा सकता। लेकिन बेगम ने एक न सुनी। तब अकबर बोले, ‘‘तुम खुद ही बीरबल से बात कर लो।’’

बादशाह की यह बात सुन बेगम के दिमाग में एक योजना जन्मी।
बेगम खुश होते हुए बोली, ‘‘मेरे पास एक तरीका है। कल हम दोनों यूं ही आपस में झगड़ने लगेंगे। तब आप बीरबल से कहेंगे कि यदि बेगम ने आप से माफी नहीं मांगी तो उसे उसके पद से हटा दिया जाएगा। इस तरह आप पर कोई इल्जाम भी नहीं आएगा।’’
अगले दिन योजना के अनुसार बादशाह और उनकी बेगम आपस में झगड़ पड़े। इससे नाराज होकर नकली गुस्से से भरे अकबर दूसरे महल में जाकर रहने लगे।
बीरबल को भी इस झगड़े की खबर लगी।

जब बीरबल बादशाह से मिलने गया तो वह बोले, ‘‘बीरबल ! बेगम को मुझसे माफी मांगनी ही होगी। वरना तुम्हें अपनी कुर्सी से हाथ धोना होगा।’’
एकबारगी तो बीरबल यह समझ ही न पाया कि बेगम यदि माफी नहीं मांगती तो उसका क्या दोष है ?
बीरबल वहां से बाहर निकला और एक सैनिक को पास बुलाकर उसके कान में कुछ फुसफुसाया। फिर वह बेगम से बात करने जा पहुंचा। उसने ऐसा आभास दिया कि जैसे उनके झगड़े के बारे में कुछ जानता ही नहीं।
कुछ देर बाद बीरबल की योजनानुसार वह सैनिक भीतर प्रविष्ट होता हुआ बोला, ‘‘हुजूर ! बादशाह सलामत का कहना है कि सब कुछ आपकी योजनानुसार ही चल रहा है। बादशाह इस समय बेहद बेचैन हैं और चाहते हैं कि आप तुरंत उसे लेकर उनके पास पहुंचें।’’
सुनते ही बीरबल तुरंत जाने के लिए खड़ा हो गया।
तब बेगम ने पूछा, ‘‘बीरबल ! माजरा क्या है ? हमें भी तो कुछ पता चले।’’
‘‘माफी चाहूंगा बेगम साहिबा।’’ बीरबल बोला, ‘‘लेकिन मैं ‘उस’ व्यक्ति के बारे में आपको बता नहीं सकता।’’ कहकर वह चला गया।

अब तो बेगम बहुत ही बेचैन और परेशान हो गई। उनके मन में बुरे-बुरे विचार आने लगे। उन्हें लगा कि जरूर कुछ गलत होने जा रहा है। उन्होंने सोचा, ‘हो न हो जरूर वह कोई दूसरी औरत ही होगी। बादशाह शायद उससे शादी करने वाले हैं। या खुदा ! अपने भाई को वजीर बनाने की चाहत तो मेरा ही घर बर्बाद करने पर तुली है।’
वह तुरंत बादशाह के पास पहुंची और घुटनों के बल बैठ कर रोने लगी। बादशाह बोले, ‘‘क्या बात है ? तुम इस तरह रो क्यों रही हो ?’’
आंखों में आँसू भरकर बेगम बोली, ‘‘मुझे माफ कर दें। मैं गलती पर थी। लेकिन दोबारा शादी न करें।’’
बादशाह यह सुनकर हैरान रह गए। वह बोले, ‘‘तुमसे किसने कहा कि मैं दूसरी शादी करने जा रहा हूं ?’’
तब बेगम ने वह सब दोहरा दिया जो बीरबल ने कहा था। यह सुनकर अकबर जोर से ठहाका लगाकर हंसते हुए बोले, ‘‘बीरबल ने तुम्हें बुद्धू बनाया है। चतुराई में उसे हराना असंभव है-यह तो अब तुम अच्छी तरह समझ ही गई होगी।’’
‘हां’ कहती हुई बेगम मुस्करा दी।

जब बीरबल बच्चा बना

एक दिन बीरबल दरबार में देर से पहुंचा। जब बादशाह ने देरी का कारण पूछा तो वह बोला, ‘‘मैं क्या करता हुजूर ! मेरे बच्चे आज जोर-जोर से रोकर कहने लगे कि दरबार में न जाऊं। किसी तरह उन्हें बहुत मुश्किल से समझा पाया कि मेरा दरबार में हाजिर होना कितना जरूरी है। इसी में मुझे काफी समय लग गया और इसलिए मुझे आने में देर हो गई।’’
बादशाह को लगा कि बीरबल बहानेबाजी कर रहा है।
बीरबल के इस उत्तर से बादशाह को तसल्ली नहीं हुई। वे बोले, ‘‘मैं तुमसे सहमत नहीं हूं। किसी भी बच्चे को समझाना इतना मुश्किल नहीं जितना तुमने बताया। इसमें इतनी देर तो लग ही नहीं सकती।’’
बीरबल हंसता हुआ बोला, ‘‘हुजूर ! बच्चे को गुस्सा करना या डपटना तो बहुत सरल है। लेकिन किसी बात को विस्तार से समझा पाना बेहद कठिन।’’

अकबर बोले, ‘‘मूर्खों जैसी बात मत करो। मेरे पास कोई भी बच्चा लेकर आओ। मैं तुम्हें दिखाता हूं कि कितना आसान है यह काम।’’
‘‘ठीक है, जहांपनाह !’’ बीरबल बोला, ‘‘मैं खुद ही बच्चा बन जाता हूँ और वैसा ही व्यवहार करता हूं। तब आप एक पिता की भांति मुझे संतुष्ट करके दिखाएं।’’
फिर बीरबल ने छोटे बच्चे की तरह बर्ताव करना शुरू कर दिया। उसने तरह-तरह के मुंह बनाकर अकबर को चिढ़ाया और किसी छोटे बच्चे की तरह दरबार में यहां-वहां उछलने-कूदने लगा। उसने अपनी पगड़ी जमीन पर फेंक दी। फिर वह जाकर अकबर की गोद में बैठ गया और लगा उनकी मूछों से छेड़छाड़ करने।
बादशाह कहते ही रह गए, ‘‘नहीं...नहीं मेरे बच्चे ! ऐसा मत करो। तुम तो अच्छे बच्चे हो न।’’
सुनकर बीरबल ने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया। तब अकबर ने कुछ मिठाइयां लाने का आदेश दिया, लेकिन बीरबल जोर-जोर से चिल्लाता ही रहा।

अब बादशाह परेशान हो गए, लेकिन उन्होंने धैर्य बनाए रखा। वह बोले, ‘‘बेटा ! खिलौनों से खेलोगे ? देखो कितने सुंदर खिलौने हैं।’’
बीरबल रोता हुआ बोला, ‘‘नहीं, मैं तो गन्ना खाऊंगा।’’
अकबर मुस्कराए और गन्ना लाने का आदेश दिया।
थोड़ी ही देर में एक सैनिक कुछ गन्ने लेकर आ गया। लेकिन बीरबल का रोना नहीं थमा। वह बोला, ‘‘मुझे बड़ा गन्ना नहीं चाहिए, छोटे-छोटे टुकड़े में कटा गन्ना दो।’’
अकबर ने एक सैनिक को बुलाकर कहा कि वह एक गन्ने के छोटे-छोटे टुकड़े कर दे। यह देखकर बीरबल और जोर से रोता हुआ बोला, ‘‘नहीं, सैनिक गन्ना नहीं काटेगा। आप खुद काटें इसे।’’
अब बादशाह का मिजाज बिगड़ गया। लेकिन उनके पास गन्ना काटने के अलावा और कोई चारा न था। और करते भी क्या ? खुद अपने ही बिछाए जाल में फंस गए थे वह।

गन्ने के टुकड़े करने के बाद उन्हें बीरबल के सामने रखते हुए बोले अकबर, ‘‘लो इसे खा लो बेटा।’’
अब बीरबल ने बच्चे की भांति मचलते हुए कहा, ‘‘नहीं मैं तो पूरा गन्ना ही खाऊंगा।’’
बादशाह ने एक साबुत गन्ना उठाया और बीरबल को देते हुए बोले, ‘‘लो पूरा गन्ना और रोना बंद करो।’’
लेकिन बीरबल रोता हुआ ही बोला, ‘‘नहीं, मुझे तो इन छोटे टुकड़ों से ही साबुत गन्ना बनाकर दो।’’
‘‘कैसी अजब बात करते हो तुम ! यह भला कैसे संभव है ?’’ बादशाह के स्वर में क्रोध भरा था।
लेकिन बीरबल रोता ही रहा। बादशाह का धैर्य चुक गया। बोले, ‘‘यदि तुमने रोना बन्द नहीं किया तो मार पड़ेगी तब।’’
अब बच्चे का अभिनय करता बीरबल उठ खड़ा हुआ और हंसता हुआ बोला, ‘‘नहीं...नहीं ! मुझे मत मारो हुजूर ! अब आपको पता चला कि बच्चे की बेतुकी जिदों को शांत करना कितना मुश्किल काम है ?’’
बीरबल की बात से सहमत थे अकबर, बोले, ‘‘हां ठीक कहते हो। रोते-चिल्लाते जिद पर अड़े बच्चे को समझाना बच्चों का खेल नहीं।’’

कल, आज और कल

एक दिन बादशाह अकबर ने ऐलान किया कि जो भी मेरे सवालों का सही जवाब देगा उसे भारी ईनाम दिया जाएगा।
सवाल कुछ इस प्रकार से थे-
1. ऐसा क्या है जो आज भी है और कल भी रहेगा ?
2. ऐसा क्या है जो आज भी नहीं है और कल भी नहीं होगा ?
3. ऐसा क्या है जो आज तो है लेकिन कल नहीं होगा ?

इन तीनों सवालों के उदाहरण भी देने थे।
किसी को भी चतुराई भरे इन तीनों सवालों का जवाब नहीं सूझ रहा था। तभी बीरबल बोला, ‘‘हुजूर ! आपके सवालों का जवाब मैं दे सकता हूं, लेकिन इसके लिए आपको मेरे साथ शहर का दौरा करना होगा। तभी आपके सवाल सही ढंग से हल हो पाएंगे।’’

अकबर और बीरबल ने वेश बदला और सूफियों का बाना पहनकर निकल पड़े। कुछ ही देर बाद वे बाजार में खड़े थे। फिर दोनों एक दुकान में घुस गए। बीरबल ने दुकानदार से कहा, ‘‘हमें बच्चों की पढ़ाई के लिए मदरसा बनाना है, तुम हमें इसके लिए हजार रुपये दे दो।’’ जब दुकानदार ने अपने मुनीम से कहा कि इन्हें एक हजार रुपये दे दो तो बीरबल बोला, जब मैं तुमसे रुपये ले रहा हूंगा तो तुम्हारे सिर पर जूता मारूंगा। हर एक रुपये के पीछे एक जूता पड़ेगा। बोलो, तैयार हो ?’’
यह सुनते ही दुकानदार के नौकर का पारा चढ़ गया और वह बीरबल से दो-दो हाथ करने आगे बढ़ आया। लेकिन दुकानदार ने नौकर को शांत करते हुए कहा, ‘‘मैं तैयार हूँ, लेकिन मेरी एक शर्त है। मुझे विश्वास दिलाना होगा कि मेरा पैसा इसी नेक काम पर खर्च होगा।’’

ऐसा कहते हुए दुकानदार ने सिर झुका दिया और बीरबल से बोला कि जूता मारना शुरू करें। तब बीरबल व अकबर बिना कुछ कहे-सुने दुकान से बाहर निकल आए।
दोनों चुपचाप चले जा रहे थे कि तभी बीरबल ने मौन तोड़ा, ‘‘बंदापरवर ! दुकान में जो कुछ हुआ उसका मतलब है कि दुकानदार के पास आज पैसा है और उस पैसे को नेक कामों में लगाने की नीयत भी, जो उसे आने वाले कल (भविष्य) में नाम देगी। इसका एक मतलब यह भी है कि अपने नेक कामों से वह जन्नत में अपनी जगह पक्की कर लेगा। आप इसे यूं भी कह सकते हैं कि जो कुछ उसके पास आज है, कल भी उसके साथ होगा। यह आपके पहले सवाल का जवाब है।’’
फिर वे चलते हुए एक भिखारी के पास पहुंचे। उन्होंने देखा कि एक आदमी उसे कुछ खाने को दे रहा है और वह खाने का सामान उस भिखारी की जरूरत से कहीं ज्यादा है। तब बीरबल उस भिखारी से बोला, ‘‘हम भूखे हैं, कुछ हमें भी दे दो खाने को।’’

यह सुनकर भिखारी बरस पड़ा, ‘‘भागो यहां से। जाने कहां से आ जाते हैं मांगने।’’
तब बीरबल बादशाह से बोला, ‘‘यह रहा हुजूर आपके दूसरे सवाल का जवाब। यह भिखारी ईश्वर को खुश करना नहीं जानता। इसका मतलब यह है कि जो कुछ इसके पास आज है, वो कल नहीं होगा।’’
दोनों फिर आगे बढ़ गए। उन्होंने देखा कि एक तपस्वी पेड़ के नीचे तपस्या कर रहा है। बीरबल ने पास जाकर उसके सामने कुछ पैसे रखे। तब वह तपस्वी बोला, ‘‘इसे हटाओ यहां से। मेरे लिए यह बेईमानी से पाया गया पैसा है। ऐसा पैसा मुझे नहीं चाहिए।’’

अब बीरबल बोला, ‘‘हुजूर ! इसका मतलब यह हुआ कि अभी तो नहीं है लेकिन बाद में हो सकता है। आज यह तपस्वी सभी सुखों को नकार रहा है। लेकिन कल यही सब सुख इसके पास होंगे।’’
‘‘और हुजूर ! चौथी मिसाल आप खुद हैं। पिछले जन्म में आपने शुभ कर्म किए थे जो यह जीवन आप शानो-शौकत के साथ बिता रहे हैं, किसी चीज की कोई कमी नहीं। यदि आपने इसी तरह ईमानदारी और न्यायप्रियता से राज करना जारी रखा तो कोई कारण नहीं कि यह सब कुछ कल भी आपके पास न हो। लेकिन यह न भूलें कि यदि आप राह भटक गए तो कुछ साथ नहीं रहेगा।’’
अपने सवालों के बुद्धिमत्तापूर्ण चतुराई भरे जवाब सुनकर बादशाह अकबर बेहद खुश हुए।

जंगल का देवता

एक दिन बादशाह अकबर के मन में आई कि क्यों न बीरबल को ही बुद्धू बनाया जाए। अपनी योजना पर अमल करते हुए उन्होंने एक ऐसा पिंजरा बनवाया, जो पहली नजर में बाहर से देखने पर कहीं से पिंजरे जैसा नहीं दीखता था। फिर बादशाह ने एक कश्मीरी सेब उस पिंजरे में रखवा दिया था और वहीं पिंजरे के पास छिप कर बीरबल का इंतजार करने लगे। कुछ देर बाद बीरबल वहां आ पहुंचा। उसने सेब पड़ा देखा तो उसे उठाने को हाथ बढ़ाया। जैसे ही हाथ सेब से छुआ कि पिंजरा बंद हो गया और बीरबल का हाथ उसमें फंस गया। तभी पर्दे के पीछे छिपे अकबर सामने आते हुए बोले, ‘‘अरे ! यह तुम हो बीरबल ! मेरे महल से बहुत सी छोटी-छोटी चीजें चोरी हो रही थीं। चोर को पकड़ने के लिए ही मैंने यह जाल बिछाया था। लेकिन तुम कैसे फंस गए इसमें ? तुम पर मुझे पूरा विश्वास है कि तुम चोर नहीं हो सकते। लेकिन आगे से ऐसा न करना।’’ फिर बादशाह मुस्कराते हुए आगे बढ़े और बीरबल का हाथ पिंजरे से मुक्त करा दिया। तब बीरबल बोला, ‘‘हुजूर ! मैंने यह बढ़िया कश्मीरी सेब यहां पड़ा देखा तो उसे उठाने को आगे बढ़ा। इसमें गलत कुछ भी नहीं, यह तो आदमी की फितरत है। सेब चुराने की मेरी कोई मंशा न थी।’’

तब बादशाह ने बीरबल से कहा कि जो कुछ भी हुआ उसे भूल जाए और उसे सफाई देने की भी कोई जरूरत नहीं। लेकिन बीरबल बेहद शर्मिन्दगी महसूस कर रहा था। यह वाकया उसके दिलो-दिमाग से निकल ही नहीं रहा था।
बादशाह बीरबल की इस हालत का मजा लेने के लिए बीरबल से पूछते रहे ‘‘कहो बीरबल, पिंजरे में रखा सेब कैसा था ?’’
बादशाह के इन व्यंग्य बाणों को सुनकर बीरबल का दिल और भी छलनी हो जाता। वह सोचता रहता कि इस हालत से छुटकारा कैसे पाया जाए। आखिरकार उसे एक उपाय सूझ ही गया। एक दिन बादशाह का मन हुआ कि शिकार के लिए जंगल में जाया जाए। यूं तो बीरबल भी अकबर के साथ जाया करता था, लेकिन उस दिन वह जानबूझकर गायब हो गया और बादशाह को अकेले ही जाना पड़ा। जंगल में शिकार की तलाश करते हुए अकबर काफी भीतर तक सुनसान में चले गए। इधर रात ढलने को थी, तभी उनके कानों में गरजती तेज आवाज सुनाई दी, ‘‘रुको ! कौन हो तुम ? घोड़े से नीचे उतरो...जल्दी।’’

बादशाह ने पीछे मुड़कर देखा कि आवाज देने वाला कौन है तो उन्हें एक बड़े पेड़ के नीचे शरीर पर शेर की खाल लपेटे एक आदिवासी खड़ा दिखाई दिया।
उसके हाथ में लाठी थी। बादशाह ने उससे बचकर निकलने का प्रयास किया और आगे बढ़ने लगे। तभी वह आदिवासी अपनी लाठी जमीन पर पटकता हुआ चिल्लाया, ‘‘तुम अभी तक घोड़े पर सवार हो...उतरे क्यों नहीं ? मैं इस जंगल का देवता हूं, तुम्हें मेरी आज्ञा माननी ही होगी।’’
अब बादशाह डर गए। घोड़े से उतरे और जंगल के देवता का अभिवादन किया। वह बोले ‘‘ओ जंगल के देवता ! मैं यहां इस जंगल में शिकार खेलने आया था, यह जंगल मेरे राज्य की सीमा के भीतर है। लेकिन अब मैं यहां से जाना चाहता हूं।’’
कहकर वे जैसे ही जाने को तैयार हुए तो जंगल का वह देवता बोला, ‘‘ठहरो ! तुमने मेरे इलाके में मेरी इजाजत के बिना प्रवेश किया है। तुम्हें इसकी सजा मिलेगी।’’
बादशाह अब और भी डर गए। बोले, ‘‘सुनो देवता ! मुझे बख्श दो। यह सब अनजाने में हुआ है।’’

‘‘यदि ऐसा हुआ है तो तुम्हें कड़ी सजा नहीं मिलेगी। दूर उस पेड़ को देख रहे हो न तुम ? उस पेड़ तक दौड़ते हुए जाओ, साथ में यह बोलो, ‘जंगल के राजा का हुक्म है’।’’
बादशाह ने वैसा ही किया जैसा करने को कहा गया था। इसके बाद वह वापस महल में लौट आए।
उनकी समझ में अब तक यह नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हुआ ? वे तो पहले भी कई बार शिकार खेलने उस जंगल में जा चुके थे।
अगले दिन, जब बीरबल रोज की तरह दरबार में आया तो बादशाह बोले, ‘‘कहो बीरबल ! सेब कैसा था ?’’
‘‘वैसा ही जैसा जंगल का देवता था।’’ बीरबल ने तुरंत जवाब दिया। बादशाह हैरान रह गए कि बीरबल को कैसे पता चला कि बीती रात जंगल में उनके साथ क्या हुआ था। हैरानी भरे स्वर में बोले अकबर, ‘‘बीरबल ! तुम्हें जंगल के देवता के बारे में कैसे पता चला ?’’
बीरबल बोला, ‘‘हुजूर ! मुझे रात को सपना आया था और उस सपने में ही मुझे जंगल के देवता के बारे में पता चला।’’ जब कि वास्तविकता याह थी कि जंगल का देवता और कोई नहीं वेश बदले हुए बीरबल ही था। मजाक का बदला उसने मजाक करके ही लिया था।
उसी दिन से बादशाह ने बीरबल का मजाक बनाना छोड़ दिया।

सलाह बीरबल की

एक दिन अपने घर के बाहर बैठा बीरबल पान चबा रहा था। तभी उसने देखा कि बादशाह का एक नौकर तेजी से कहीं दौड़ा जा रहा है। बीरबल ने पुकार लगाई, ‘‘अरे भाई ! कहां जा रहे हो तुम ? इतनी जल्दी में क्यों हो ?’’
नौकर ने उत्तर दिया, ‘‘बादशाह ने मुझे दो ढेरी चूना लाने को कहा है।
यह सुनकर बीरबल को कुछ संदेह हुआ। उसने पूछा, ‘‘बादशाह सलामत उस समय क्या कर रहे थे जब उन्होंने तुमसे कहा कि चूना लेकर आओ ?

‘‘दिन में बादशाह जब खाना खा चुके थे तो मैंने उन्हें पान पेश किया। उन्होंने पान मुंह में रखा ही था कि मुझे हुक्म दिया कि चूना लेकर आऊं।’’
बीरबल कुछ देर सोचता रहा, फिर बोला, ‘‘तुम बिल्कुल मूर्ख हो। तुमने पान में चूना ज्यादा लगा दिया होगा, जिससे बादशाह के मुंह का जायका बिगड़ गया होगा। अब तुम्हें सजा देने का यह तरीका चुना है उन्होंने। अभी जो चूना लेने तुम जा रहे हो, कुछ देर बाद वही चूना तुमसे खाने को कहा जाएगा। जब इतना अधिक चूना तुम्हारे पेट में पहुंचेगा तो तुम जिंदा कहां बचोगे।’’

सुनकर वह नौकर भय से थरथर कांपने लगा। बोला, ‘‘या खुदा ! अब मैं क्या करूं ?’’
बीरबल बोला, ‘‘देखो, होश मत खोओ। जैसा मैं कहता हूं, वैसा ही करो। सुनो, मक्खन के साथ चूने का असर लगभग खत्म हो जाता है। बराबर मात्रा में चूने के साथ मक्खन मिला लेना। यानी जितना चूना उतना मक्खन। इसे जब तुम खाओगे तो तुम पर चूने का जरा भी असर न होगा। ऐसा ही मक्खन मिला चूना लेकर तुम्हें बादशाह के पास जाना है। समझ गए न।’’
फिर उस नौकर ने वैसा ही किया जैसा बीरबल ने कहा था। बीरबल का यह सोचना भी बिल्कुल ठीक निकला कि बादशाह उसे चूना खाने का हुक्म देंगे। बादशाह ने उस नौकर से कहा कि यह सारा चूना उसे खाना है। और थोड़ी ही देर बाद सारा चूना उस नौकर के पेट में था। चूना खाकर वह अपने घर चला गया।
अगले दिन जब वह नौकर नियत समय अपने काम पर पहुंचा तो अकबर को लगा कि दुनिया के सात अजूबों में से एक उनके सामने खड़ा है। उस नौकर को देख वह हैरान तो थे ही, साथ ही उन्हें गुस्सा भी आ रहा था कि इतना चूना खाने के बाद भी यह जिंदा कैसे बच गया। तब पसोपेश में पड़े बादशाह ने एक चूना व्यापारी को बुलवा भेजा और उससे बोले, ‘‘कल मैं एक आदमी को तुम्हारे सुपुर्द करूंगा, तुम उसे चूने की भट्ठी में झोंक देना।’’
चूना व्यापारी ने हामी भरी और वहां से चला गया।

तब बादशाह उस नौकर से बोले, ‘‘देखो, तुम कल इस चूना व्यापारी के पास जाना और मेरे लिए पांच ढेरी चूना लेकर आना।’’
अगले दिन, बादशाह के लिए चूना लाने व्यापारी के पास जाने से पहले वह नौकर बीरबल के पास गया और सारी घटना से उसको अवगत कराया।
बीरबल ने उसकी बात ध्यान से सुनी, फिर बोला, ‘‘तुम अभी चूना लेने न जाओ।’’
दरअसल, जब बादशाह व चूना व्यापारी के बीच बातचीत हो रही थी तो बीरबल भी वहां मौजूद था। वह भलीभांति समझ गया कि बादशाह कि क्या मंशा है।

बीरबल ने यह भी देख लिया था कि एक अन्य नौकर ने भी यह सारी बातचीत सुन ली है।
वह नौकर पहले नौकर के प्रति शत्रुता का भाव रखता था। बीरबल जानता था कि यह कुटिल नौकर निश्चित समय पर सारा तमाशा देखने जरूर पहुंचेगा।
यही कारण था कि बीरबल ने पहले नौकर को तुरंत वहां जाने से रोक दिया था।

जैसी आशा थी वैसा ही हुआ। दूसरा कुटिल नौकर ठीक उस समय पर चूना व्यापारी के पास पहुंच गया। जब पहले नौकर को वहां आना था। उस नौकर को देख चूना व्यापारी ने समझा कि यही वह नौकर है, जिसे चूने की भट्ठी में फेंक देने का उसे हुक्म दिया है बादशाह ने। चूना व्यापारी ने उस कुटिल नौकर को गुद्दी से पकड़ा और घसीटकर ले जाते हुए चूने की भट्ठी में फेंक दिया।

थोड़ी ही देर बाद पहला नौकर वहां पहुंचकर बोला कि पांच ढेरी चूना चाहिए।
बादशाह का आदेश मान चूना व्यापारी ने उस नौकर को चूना दे दिया।
चूना लेकर वह नौकर दरबार में वापस आया। उसे सही-सलामत लौटा देख बादशाह की हैरानी सभी सीमाएं तोड़ गई, वे बोले, ‘‘क्या तुम रास्ते में किसी से मिले थे ?’’
‘‘नहीं हुजूर !’’ वह नौकर बोला, ‘‘लेकिन जब मैं जा रहा था तो बीरबल ने मुझे बुलाया था और मैं उसके घर भी गया था।’’
बादशाह समझ गए कि यह माजरा क्या है। उन्होंने नौकर से चूना एक ओर रख देने को कहा और लगे मुस्कराने।

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