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भारत की लोक कथाएँ

रचना भोला

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :237
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3609
आईएसबीएन :81-284-0057-6

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भारत लोक संस्कृति की दृष्टि से एक धनी देश है। प्रस्तुत है भारत की लोक कथाएँ

Bharat Ki Lok Kathayein a hindi book by Rachna Bhola - भारत की लोक कथाएँ - रचना भोला

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भारत लोक संस्कृति की दृष्टि से एक धनी देश है। यहां हर राज्य, हर क्षेत्र की अलग-अलग पहचान है। प्रत्येक क्षेत्र की अपनी लोक कथाएं हैं। प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे ही कुछ लोक कथाओं का संकलन है जो अलग-अलग क्षेत्रों से चुने गए हैं।
इससे पाठकों खासकर बच्चों को शिक्षा तो प्राप्त होगी ही तथा अपनी संस्कृति का भी उन्हें पता चलेगा।

ये लोककथाएँ क्यों


मानव-समाज में बहुत सी कहानियाँ परंपराओं से चली आ रही हैं। वे मूलतः मौखिक रूप में कही जाती रहीं। उन्हें कब लिखा गया अथवा उन्हें किसने लिखा, इसका ज्ञान किसी को नहीं है।

इन कहानियों की विशेषता है कि इनमें जीवन के संचित अनुभवों को प्रतीकों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। समय-समय पर लोक जीवन ने जिन अनुभवों को प्राप्त किया, उन्हें सहज, सरल, स्वाभाविक और रोचक भाषा-शैली में कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत किया। इन कहानियों ने अपनी रोचकता, व्यापकता और सार्थकता के कारण तो लोकजीवन में स्थान प्राप्त किया ही, साथ ही शिक्षा और उपदेश प्रधान होने के कारण ये जनमानस का अंग बन गईं।

विश्वभर की लोक कहानियों के अध्ययन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि इन सबका अभिप्राय या उद्देश्य एक जैसा ही है-जीवन को संस्कार प्रदान करना, शिक्षा देना, नैतिक मान्यताओं को प्रस्तुत करना तथा श्रोता को आनंद से भर देना। भारत के विभिन्न अंचलों और प्रदेशों में अनेक लोककथाएँ सुनी सुनाई जाती हैं। उन सबका संकलन तो संभव नहीं है किंतु यहां विभिन्न प्रदेशों की प्रसिद्ध और ज्ञानवर्धक लोककथाओं को अवश्य प्रस्तुत किया जा रहा है, ताकि हम उन प्रदेशों की संस्कृति, मान्यताओं, प्रथाओं और लोकविश्वासों से परिचित हो सकें।

हमारी मान्यता है कि भारत की लोककथाओं का यह संकलन बच्चों को संस्कारवान् तथा समाज का जागरूक नागरिक बनाने में सहायक होगा।
निश्चित ही आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।


16 साहित्य विहार
बिजनौर


डा. गिरिराजशरण अग्रवाल


चटोरी भानुमती



वारंगल के समीप एक छोटे से गांव में रामलिंग नाम का एक किसान रहता था। उसकी पत्नी को मरे हुए दो साल हो गए थे। घर में काम करने वाला कोई न था। अतः उसे भानुमती को नौकरानी रखना पड़ा।

भानु एक अच्छी नौकरानी थी। घर की साफ सफाई पशुओं का भोजन कपड़े बर्तन आदि सँभालने में निपुण थी। समस्या केवल एक ही थी। वह बहुत चटोरी थी।
अक्सर रसोईघर में छिपकर कुछ न कुछ खाती रहती थी। रामलिंग ने उसे एक-दो बार रंगे हाथों पकड़ा पर भानु पर कोई असर नहीं हुआ। वह साफ झूठ बोलकर बच निकलती। अंत में तंग आकर रामलिंग ने उससे कहा, ‘अगर आज के बाद मैंने तुम्हें चोरी से कोई चीज खाते पकड़ लिया तो नौकरी से निकाल दूंगा।

नौकरी जाने के भय से भानु थोड़ा सँभल गई। एक दिन रामलिंग अच्छी नस्ल का ‘जहाँगीर’ आम लाया। उसका दोस्त अनंत आने वाला था। उसने भानुमती को बुलाया-सुनो इस आम का छिलका उतारकर टुकड़ों में काट दो। दोनों दोस्त मजे से खाएँगे।"
भानुमती को आम बेहद पसंद थे। मन को लाख समझाने के बावजूद वह रुक न सकी। आम के टुकड़े चखते-चखते पूरा आम ही खत्म हो गया। तभी रामलिंग की आवाज सुनाई दी, ‘भानुमती, आम काटकर ले आ। अनंत आता ही होगा।’
अब तो भानुमती की आँखों के आगे अँधेरा आ गया। उसे नौकरी जाने की चिंता होने लगी। तभी उसे एक योजना सूझी। उसने रामलिंग से कहा, मालिक चाकू की धार बना दो। आम का छिलका बारीक नहीं उतर रहा।

रामलिंग चाकू की धार बनाने लगा। दरवाजे पर अनंत आ पहुँचा। भानुमती उसे एक कोने में ले जाकर बोली, ‘लगता है मालिक तुमसे नाराज हैं। चाकू की धार बनाते-बनाते बुड़बुड़ा रहे थे कि ‘आज तो अनंत की नाक ही काट दूँगा।’
अनंत ने भीतर से झाँककर देखा। रामलिंग मस्ती में गाना गुनगुनाते हुए चाकू तेज कर रहा था। बस फिर क्या था, अनंत सिर पर पाँव रखकर भागा।

भानुमती ने रामलिंग से कहा, ‘मालिक आपका दोस्त मुझसे आम छीनकर भाग गया।’
रामलिंग चाकू हाथ में लिए, अनंत के पीछे तेजी से भागा। अनंत और भी तेज दौड़ने लगा। रामलिंग चिल्ला रहा था-
‘रुक तो जा भई, कम से कम आधा काट के दे जा।’
अनंत ने सोचा कि रामलिंग आधी कटी नाक माँग रहा है। वह बेचारा दोबारा कभी उस तरफ नहीं आया। रामलिंग भी थक-हारकर लौट आया।
स्वादिष्ट आम हजम कर जाने वाली भानुमती अगली चोरी की तैयारी में जुट गई।


मलण्णा का बैल


मलण्या किसान का बैल खो गया। अब बैल जैसे जीव को खोजा भी कैसे जाए ? बेचारे किसान ने जमीन- आसमान एक कर दिया।
कुछ दिन की तंगी के बाद मलण्णा ने पत्नी से कहा-
‘अरी भाग्यवान ! बैल के बिना हल नहीं चलेगा, हल नहीं चला तो खेती नहीं होगी, खेती नहीं हुई तो अनाज कहाँ से आएगा, अनाज न आया तो पेट कैसे भरेगा ?’
मलण्णा की पत्नी बेहद चतुर थी। पति से बोली, ‘बैल तो खरीद ही लेते हैं परंतु तुम ठहरे बुद्धूराम । मैं भी साथ चलूँगी।’
मलण्या को क्या आपत्ति हो सकती थी। दोनों बैल खरीदने जा पहुँचे। मेले में घूमते-घूमते मलण्या की पत्नी ने अपना बैल पहचान लिया। चोर महाशय बैल बेचने आए थे। मलण्या ने बैल पर अपना दाबा जताया तो अच्छी खासी बहस हो गई। चोर अपनी बात पर अड़ा था। बार-बार यही कहता था-
‘तुम्हारा बैल मेरे बैल का हमशक्ल होगा।’

तभी मलण्णा की पत्नी ने बैल की आँखें ढाँपकर कहा-
‘यदि यह तुम्हारा बैल है तो जल्दी बताओ, यह किस आँख से काना है ?’
चोर ने चतुराई दिखाई और झट से बोला, ‘इसकी बाईं आँख खराब है।’
‘अच्छी तरह सोच लो, पछताओगे।’ मलण्णा की पत्नी बोली। अब तो चोर बौखला गया। बैल तो चुरा लिया था पर उसकी शक्ल अच्छी तरह नहीं देख पाया था। वह तो बुरा फँसा। अनुमान से बोला-

‘नहीं-नहीं, इसकी तो दाईं आँख खराब है।’
मलण्णा ने सारे बाजार को बुला लिया। सबके सामने बैल की आँखों के आगे से हाथ हटाया गया। बैल की दोनों आँखें ठीक-ठाक थीं। चोर रंगे हाथों पकड़ा गया। उसकी जमकर पिटाई हुई। मलण्णा और उसकी पत्नी अपने खोए हुए बैल को लेकर खुशी-खुशी घर लौटे।


शिकारी की भक्ति



बच्चो, आज हम तुम्हें आंध्रप्रदेश के श्रीकाल हस्ति मंदिर से जुड़ा एक रोचक प्रसंग सुनाने जा रहे हैं। यह एक शिव मंदिर है।
तेलुगु भाषा में श्री का अर्थ मकड़ी, काल का अर्थ सर्प और हस्ति का अर्थ हाथी होता है। कहते हैं कि इन तीनों ने यहाँ भगवान शिव की पूजा की थी। अतः इस स्थान को श्रीकालहस्ति कहा जाने लगा।
यह मंदिर स्वर्णमुखी नदी के किनारे स्थित है। बहुत समय पहले की बात है कि इसी क्षेत्र में एक शिकारी रहता था। शिकार करना तो उसका पेशा था, किंतु वह शिव का भक्त था। भगवान की पूजा के बिना वह कोई काम आरंभ नहीं करता था। चाहे भोजन छूट जाए किंतु पूजा का नियम नहीं टूट सकता था।



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