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विचित्र किन्तु सत्य

मीना अग्रवाल

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2002
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3607
आईएसबीएन :81-284-0018-5

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प्रस्तुत है श्रेष्ठ संकलन...

Vichitra kintu satya

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

जीवन में जहाँ कहीं दृष्टि जाती है विचित्रताएं ही विचित्रताएं दिखाई देती हैं। इनमें से कितनी ही हमारी निगाह में आ जाती हैं और वे समाचारों के रूप में प्रकाशित भी हो जाती हैं। ऐसी ही विचित्र किन्तु सत्य घटनाओं और समाचारों का यह अद्भुत् संकलन आपके लिए प्रस्तुत है।

विचित्र का तात्पर्य होता है असाधारण, चकित या विस्मित करने वाला और हम विस्मित तब होते हैं, जब कोई अद्भुत या चमत्कृत करने वाली घटना हमारी आँखों के सामने आ जाए अथवा उसे जानने या सुनने का अवसर मिल जाए।
ये रंगबिरंगी प्रकृति हर दिन कुछ न कुछ नया काम करती रहती है। कभी-कभी तो लगता है कि जीवन का उद्गम और अंत भी विचित्रताओं से भरा हुआ है।

इस प्रकार जीवन में जहाँ कहीं भी दृष्टि जाती है, विचित्रताएँ ही विचित्रताएँ दिखाई देती हैं।
इनमें से कितनी ही विचित्रताएँ हमारी दृष्टि में आ जाती हैं और कितनी ही अनजाने हमारी आँखों के सामने ओझल हो जाती हैं।

संसार में घटित होने वाली अनेकानेक विचित्र घटनाएँ प्रायः समाचारपत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं। इनमें से कितनी ही घटनाएँ चर्चा का विषय बन जाती हैं और लोग जिज्ञासा पूर्वक उनके विवरण को जानने की चेष्टा करते हैं।
इस पुस्तक में मैंने प्रायः ऐसी विचित्र और असाधारण घटनाओं का विवरण देने का प्रयत्न किया है, जो अनेकानेक समाचारपत्रों की सुर्खियों में प्रकाशित हुई हैं।

आशा है, ये समाचार आपको गुदगुदाएँगे, आश्चर्यचकित करेंगे, विस्मय में डालेंगे, साथियों को सुनाने के लिए प्रेरित करेंगे। ऐसा होने पर ही मेरा श्रम सार्थक हो सकेगा।
डॉ. मीना अग्रवाल

रावण फरार

रामलीलाएँ तो भारत-भर में प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में होती ही हैं, किंतु कभी-कभी उनमें ऐसी अप्रत्याशित घटनाएँ भी घट जाती हैं, जिनकी कल्पना भी करना मुश्किल है। ऐसी ही एक घटना मेरठ में देखने को आई। यहाँ के रंजन बाजार में रामलीला हो रही थी। रावण से युद्ध करने के बजाय अपने साथी अहिरावण से ही तलवारबाजी करने लगा और उसको घायल कर दिया।

जब रावण की खोज की गई तो पता चला कि वह अपना काम करके फरार हो गया है।
हुआ यह कि रामलीला मैदान में रावण और अहिरावण ने खूब शराब पी; फिर दोनों में किसी बात को लेकर विवाद हो गया। इस प्रकार राम-रावण-युद्ध के स्थान पर लोगों को रावण-अहिरावण युद्ध देखने को मिला।
रामलीला-प्रेमी दर्शकों ने बहुत देर तक रावण के लौटने की प्रतीक्षा की, लेकिन जब रावण नहीं लौटा तो बिना राम-रावण युद्ध के रावण का पुतला जला दिया गया।
पुलिस रावण की तलाश में है।

बिजनौर टाइम्स, 22 अक्टूबर 1980

कौन शिकारी ?

वे शिकार करने गए थे, पर खुद शिकार बन गए। जी हाँ, गोआ में गुप्तचर अधिकारियों के साथ पिछले दिनों ऐसा ही हुआ। उन्हें कहीं से यह खबर मिली कि मजरिम गाँव में कुछ तस्कर आए हुए हैं, सो उनको धर दबोचने के लिए उन्होंने एकाएक उस गाँव पर धावा बोल दिया। उन्हें उम्मीद थी कि स्थानीय जनता की मदद से वे सारे तस्करों को धर पकड़ेंगे, लेकिन उनके पूछताछ के बेहद जासूसी ढंग ने उन्हें ही कठघरे में खड़ा कर दिया—स्थानी जनता उन्हें ही तस्कर समझ बैठी। बस फिर क्या था, उनकी एकाएक परेड शुरू हो गई। बाद में वे बामुश्किल बच पाए, जब उन्होंने सबको अपने पहचान-पत्र दिखाए कि भइया, हम वो नहीं हैं, जो आप हमें समझ रहे हो।

......और बाली की हड्डियाँ टूट गईं-

बाली-सुग्रीव के युद्ध में सुग्रीव हमेशा से हारते रहे हैं  किंतु इस बार पहली की अपेक्षा सुग्रीव अधिक ताकतवर सिद्ध हुए, जिसका फल यह हुआ कि बाली के प्राण तो बच गए, किंतु वह अपनी हड्डियाँ टूटने से नहीं बचा पाए।
शाहजहाँपुर (उ.प्र.) में रामलीला हो रही थी। इसमें बाली-सुग्रीव का युद्ध भी हुआ। सुग्रीव का अभिनय करने वाले व्यक्ति की लोगों ने काफी प्रशंसा की, परिमामस्वरूप सुग्रीव ने ‘लीला’ करने के स्थान पर बाली की वास्तविक पिटाई करनी शुरू कर दी। बेचारे बाली बचाओ-बचाओ चिल्लाते रहे और लोग तालियाँ पीट-पीट कर उनकी पीड़ा को भावपूर्ण अभिनय समझकर आनंदित होते रहे।
फल यह हुआ कि इस युद्ध में बाली की कई हड्डियाँ टूट गईं।

हिंदुस्तान, 23 अक्टूबर 1980

चीर-हरण

दुःशासन ने एक बार भरी सभा में द्रौपदी का चीर-हरण करने का प्रयास किया था, किंतु द्रौपदी की एक पुकार पर कृष्ण ने उनकी रक्षा की थी। तब से चीर-हरण एक मुहावरा ही बन गया है।
किंतु 19 सितंबर 1976 को न्यूयार्क में इनबुड क्षेत्र में सामूहिक चीर-हरण हुआ और उस समय कोई भी व्यक्ति इन लोगों की सहायता न कर सका।

यहाँ एक मकान में 15 पुरुष और 15 महिलाएँ ताश खेल रहे थे कि अचानक तीन नकाबपोश बंदूकधारी वहाँ आ धमके और उन्होंने सबको अपने-अपने कपड़े उतार देने का आदेश दिया।
आदेश का पालन हुआ और सबने अपने कपड़े उतार दिए। फिर बंदूकधारियों ने सब नंगों को जमीन पर लेट जाने का आदेश दिया। सब लेट गए।
इसके बाद उन्होंने कपड़े को प्लास्टिक के तीन बड़े थैलों में भर लिया और चले गए।
बंदूकधारियों के चले जाने के बाद ताश प्रेमी उठे, तब उन्होंने अपने-अपने कपड़े मँगाने के लिए मित्रों को टेलीफोन किया।

नन्हीं बच्ची ने साँप को कुतर डाला

9 फरवरी 1980। 18 माह की एक नन्हीं बच्ची के माता-पिता जब अपने घर में दाखिल हुए तो भय और स्तब्धता के कारण उनके मुँह से एक शब्द भी न निकल सका। उन्होंने देखा कि उनकी बेटी ने साँप को अपनी मुट्ठी में पकड़ रखा है और बार-बार साँप का मुँह अपने मुँह में देकर उसे दाँतों से काट रही है। डैनी ने साँप को कुछ इस तरह पकड़ रखा था कि वह अपना शरीर इधर-उधर पटक रहा था।

हुआ यह कि डैनी अपने कमरे में खिलौनों के साथ खेल रही थी कि किस्मत का मारा साँप पास के बाग से निकलकर कमरे में आ गया। डैनी ने उसे भी खिलौना समझा। उसे यह खिलौना अच्छा लगा और उसने भपट्टा मारकर उसे पकड़ लिया। संयोग से डैनी का हाथ साँप के पर पर पड़ा। उसने साँप को अच्छी तरह मुट्ठियों में भींच लिया। अपनी आदत के अनुसार उसने साँप को भी मुँह से पकड़ने की कोशिश कर दी और इस तरह साँप के सिर को बार-बार काटने से साँप मर गया।

बिजनौर टाइम्स

अर्थी से गाने की आवाज

इक्वेडोर की सड़क पर एक संगीत-प्रेमी महिला की अर्थी जा रही थी कि अचानक अर्थी के भीतर से गाने की आवाज आने लगी। कंधा देने वालों ने इस आवाज को सुना और अर्थी को नीचे रख दिया। वे भय से काँप रहे थे।

सूचना पाकर पुलिस आ गई। अर्थी को एक न्यायालय में ले जाया गया। वहाँ मैजिस्ट्रेट की उपस्थिति में ताबूत खोला गया तो शव के कानों के पास एक ट्रांजिस्टर रखा हुआ था। ज्ञात हुआ कि मृतक की बेटी ने अपना ट्रांजिस्टर अपनी माँ के पास रख दिया था ताकि निर्णय के दिन तक उसकी माँ अपना समय गाने सुन-सुनकर काट सके।
अर्थी के हिलने से ट्रांजिस्टर चालू हो गया और उसमें से गीत की आवाज आने लगी।

......और बालिका जी उठी

प्रतापगढ़ के पास गोवर्धन में एक मुस्लिम बालिका दफनाते समय अचानक जीवित हो उठी।
जब बालिका खेत में काम कर रही थी तो उसे काले नाग ने काट खाया। बालिका ने तत्काल साँप को पकड़ा और दूर फेंक दिया; किंतु साँप फिर वहाँ आया और उसने बालिका को दुबारा काट खाया। इस बार वह बेहोश हो गई।
बालिका के माता-पिता ने जंतर-मंतर, टोने-टोटके करवाए, किंतु बालिका ठीक न हुई। दूसरे दिन उसे कब्रिस्तान ले जाया गया। ज्यों ही उसे दफनाया जाने लगा, वह उठकर खड़ी हो गई यह कहते हुए कि मैं तो गहरी नींद में सोई हुई थी, मुझे यहाँ क्यों लाया गया है, घर की ओर भागी।
लोग आश्चर्य से देखते रह गए और सारा मातम खुशी में बदल गया।

हिन्दुस्तान, 25 सितंबर 1980

मृतक जीवित हो उठा

शवयात्रा में सम्मिलित लोग उस समय आश्चर्य चकित रह गए, जब विषधर साँप के काटने से मरा एक युवक पुनः जीवित हो उठा। मैंनपुरी जिले के एक गाँव में 20 वर्षीय एक युवक को खेत पर जाते हुए काले नाग ने काट लिया। युवक को उपचार हेतु अस्पताल में लाया गया और कुछ समय बाद चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

मृतक के परिवारजन जब उसे घर ले जाने को तैयार हुए, तभी यहाँ के कुछ वैरागी उसे एक मैदान में ले गए और नीम के पत्तों पर लिटाकर दो घंटे तक प्रचलित ग्रामीण पद्धति से ढोल बजाकर उसकी तंद्रा खोलने का प्रयत्न करते रहे। इस प्रयास में एक बार उसके शरीर में हल्की-सी हरकत भी हुई। किंतु सारे प्रयासों के असफल हो जाने पर जब उस व्यक्ति को ट्रेक्टर द्वारा उसके गाँव ले जाया जा रहा था, तभी मार्ग में वह आश्चर्यजनक रूप से जीवित हो उठा।

बिजनौर टाइम्स, 4 सितंबर 1980

रहस्यमय आग

पिलखुवा में एक व्यापारी के घर में चार दिनों से लगी हुई आग ने सबको आश्चर्य में डाल दिया। कई दिन तक इस रहस्यमयी आग पर काबू नहीं पाया जा सका। पंडित-मौलवी अपने-अपने तरीके से पाठ आदि करके हार मान गए।
स्थानीय सीमेंट-व्यापारी के मकान में रखे कपड़ों, कागजातों, रेडियो, पलंगों आदि को इस रहस्यमय आग ने जलाकर राख कर डाला। तांत्रिकों और मौलवियों के जंत्र-मंत्र असफल हो जाने पर परिवार वालों को अपना बचा हुआ सामान ट्रक में भरकर शहर छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा।



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