लोगों की राय

स्वास्थ्य-चिकित्सा >> प्रकृति द्वारा स्वास्थ्य मूली,गाजर,अदरक

प्रकृति द्वारा स्वास्थ्य मूली,गाजर,अदरक

राजीव शर्मा

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :63
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3496
आईएसबीएन :81-288-0914-8

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

37 पाठक हैं

मूली गाजर और अदरक के गुणों का वर्णन....

Prkrati Dwara Swastha Muli, Gazar, Adrak

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


प्रकृति हम सबको सदा स्वस्थ बनाए रखना चाहती है और इसके लिए प्रकृति ने अनेक प्रकार के फल, फूल, साग, सब्जियां, जड़ी-बूटियां, अनाज, दूध, दही, मसाले, शहद, जल एवं अन्य उपयोगी व गुणकारी वस्तुएं प्रदान की हैं। इस उपयोगी पुस्तक माला में हमने इन्हीं उपयोगी वस्तुओं के गुणों एवं उपयोग के बारे में विस्तार से चर्चा की है। आशा है यह पुस्तक आपके समस्त परिवार को सदा स्वस्थ बनाए रखने के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
प्रकृति ने हमारे शरीर-संरचना एवं स्वभाव को ध्यान में रखकर ही औषधीय गुणों से युक्त पदार्थ बनाए हैं। शरीर की भिन्न-भिन्न व्याधियों के लिए उपयोगी ये प्राकृतिक भोज्य पदार्थ, अमृततुल्य हैं।
इन्हीं अमृततुल्य पदार्थों जैसे-तुलसी, अदरक, हल्दी, आंवला, पपीता, बेल, प्याज, लहसुन, मूली, गाजर, नीबू, सेब, अमरूद आदि के औषधीय गुणों व रोगों में इनके प्रयोग के बारे में जानकारी अलग-अलग पुस्तकों के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास है यह पुस्तक।

प्रस्तावना


प्रकृति ने हमारे शरीर, गुण व स्वभाव को दृष्टिगत रखते हुए फल, सब्जी, मसाले, द्रव्य आदि औषधीय गुणों से युक्त ‘‘घर के वैद्यों’’ का भी उत्पादन किया है। शरीर की भिन्न-भिन्न व्याधियों के लिए उपयोगी ये प्राकृतिक भोज्य पदार्थ, अमृततुल्य हैं। ये पदार्थ उपयोगी हैं, इस बात का प्रमाण प्राचीन आयुर्वेदिक व यूनानी ग्रंथों में ही नहीं मिलता, वरन् आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी इनके गुणों का बखान करता नहीं थकता। वैज्ञानिक शोधों से यह प्रमाणित हो चुका है कि फल, सब्जी, मेवे, मसाले, दूध, दही आदि पदार्थ विटामिन, खनिज व कार्बोहाइड्रेट जैसे शरीर के लिए आवश्यक तत्त्वों का भंडार हैं। ये प्राकृतिक भोज्य पदार्थ शरीर को निरोगी बनाए रखने में तो सहायक हैं ही, साथ ही रोगों को भी ठीक करने में पूरी तरह सक्षम है।
तुलसी, अदरक, हल्दी, आँवला, पपीता, बेल, प्याज, लहसुन, मूली, गाजर, नीबू, सेब, अमरूद, आम, विभिन्न सब्जियां, मसाले व दूध, दही, शहद आदि के औषधीय गुणों व रोगों में इनके प्रयोग के बारे में अलग-अलग पुस्तकों के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास ‘मानव कल्याण’ व ‘सेवा भाव’ को ध्यान में रखकर किया गया है।
उम्मीद है, पाठकगण इससे लाभान्वित होंगे।
सादर,

-डॉ. राजीव शर्मा
आरोग्य ज्योति
320-322 टीचर्स कॉलोनी
बुलन्दशहर, उ.प्र.


                पुरानी व नई माप

       8 रत्ती           -        1 माशा
     12 माशा         -        1 तोला
     1 तोला           -        12 ग्राम
     5 तोला           -        1 छटांक
     16 छटांक        -        1 कि.ग्रा.
       1 छटांक        -        लगभग 60 ग्राम



मूली : सामान्य परिचय



मूली में मिर्च सी तीव्रता होती है जो कभी-कभी काफी तीव्र हो सकती है। इनकी तीव्रता इनके प्रकारों पर ही नहीं, वरन् इस बात पर भी निर्भर करती है कि इन्हें किस मिट्टी में उगाया गया है। ताजी उखड़ी हुई मूली अधिक कुरकुरी और तीखी होती है और उसके गुण भी ज्यादा होते हैं।


लाल मूली


देखने में लाल मूली बड़ी सुन्दर दिखाई पड़ती है। इसे चेरी बेल, स्कार्लेट ग्लोब आदि नामों से भी पुकारा जाता है, लेकिन अधिकांश लोग इसको साधारण नाम लाल मूली से ही जानते हैं। ये साल भर मिलती है। इनका छिलका गुलाबी, लाल होता है और गूदा सफेद। इसकी महक अपेक्षाकृत कम तीखी होती है। इसे प्राय: कच्चा ही खाया जाता है।


सफेद मूली


यह सफेद, लम्बी और चमकदार होती है एवं दुनिया के अधिकांश भागों में पाई जाती है। यह मूली, लाल मूली की अपेक्षा कम तीखी होती है। इसे कच्ची, सलाद या अचार के रूप में खाया जाता है।
भारत में भी यह मूली सर्वत्र पाई जाती है। मूली प्राय: हर मौसम में मिलती है, किन्तु सर्दी में उत्तम किस्म की पाई जाती है।


मूली में मौजूद विभिन्न तत्त्व और गुण



मूली अनेक खनिज पदार्थों की खान है। यह मनुष्य की लिए अमृत तुल्य है।
मूली रक्तशोधक है यह न केवल रक्त साफ करती है, बल्कि रक्त का संचार भी ठीक करती है। साथ ही त्वचा के दाग-धब्बे दूर करती है। मूली में गन्धक होने से इसकी गन्ध ही अनेक रोग दूर करने में सहायक होती है। इससे हाजमा ठीक होता है और शरीर में मौजूद अनेक बीमारियों के कीटाणुओं को यह निकाल बाहर करती है।
आयुर्वेद में मूली को पाचक कहा गया है। मूली भोजन को पचाती है और मूली को पचाने का कार्य उसके पत्ते करते हैं। अत: मूली के साथ-साथ उसकी जड़ और मुलायम हरे पत्तों को भी अवश्य खाना चाहिए।
विटामिन ‘ए’ की भरपूरता होने के कारण मूली आंखों के लिए भी बहुत लाभकारी है। आयुर्वेदाचार्यों का मत है कि पूरी सर्दी में प्रात: नियमित एक मूली खाने वालों की आंखों की रोशनी वृद्धावस्था तक ठीक बनी रहती है और आंखों के अन्य रोग भी परेशान नहीं करते।
आयुर्वेद में बताया गया है कि मूली के नियमित सेवन से व्यक्ति स्वस्थ, उत्साहित व उमंग से भरा-पूरा रहता है। इससे व्यक्ति की खोई ऊर्जा वापस आ जाती है। जिनकी त्वचा में झुर्रियां सिकुड़न आदि आ जाएं उन्हें नियम से हर मौसम में मूली खानी चाहिए। इस प्रकार उनकी समस्या समाप्त हो सकती है।


प्रति 100 ग्राम मूली में पाए जाने वाले पोषक तत्व

प्रोटीन          0.7 ग्राम        कार्बोहाइड्रेट              3.4 ग्राम

वसा        0.1 ग्राम             ऊर्जा                        17 मि.ग्रा.

खनिज       0.6 ग्राम         कैल्शियम                    35 मि.ग्रा.

फाइबर     0.8 ग्राम          फॉस्फोरस                    22 मि.ग्रा.

नायसिन    0.5 मि.ग्रा.      विटामिन C                 15 मि.ग्रा.

आयरन     0.4 मि.ग्रा.        कैरोटीन                      3.0 मि.ग्रा.

थायमीन    0.06 मि.ग्रा.      राइबोफ्लोविन             0.02 मि.ग्रा.

जल        94.4 ग्राम


दांतो के रोग



 पीले दांतों को चमकाने के लिए मूली की फांकों में नीबू निचोड़कर 4-5 मिनट तक चबाते रहें और फिर बाहर उगल दें। इसी प्रकार रोज एक मूली चबाएं। नियमपूर्वक यह मंजन करते रहें। इससे दांतों पर चढ़ी मोटी से मोटी परत भी छूट जाएगी।

 दांत हिलने लगे तो मूली से आप उन्हें वापस मजबूती से जमा सकते हैं। हल्के गर्म पानी में बराबर मात्रा में मूली का रस मिलाएं और दिन में तीन बार नियमपूर्वक कुल्ला करें। इसके लिए पानी व रस को काफी देर तक मुंह के अन्दर ही घुलाते रहें ताकि रस दांतों की जड़ों पर अपना प्रभाव छोड़ सके। मूली की चटनी बनाकर एक-एक चम्मच का दिन में चार बार सेवन करें।

 दांत निकलते समय बच्चे को प्राय: दस्त व पेट के अन्य रोग सताने लगते हैं। इससे बचने के लिए बच्चे को आधा चम्मच शहद व आधा चम्मच मूली का रस मिलाकर दिन में दो खुराक रोज पिलाएं। इस प्रकार बच्चा बिना कष्ट के दांत निकाल लेगा और आप यहां-वहां की दवा-दारू से बच जाएंगे।


पायरिया


पायरिया दांतों का एक घातक रोग है। एक भी दांत में यह रोग हो जाए तो उचित इलाज के अभाव में यह शीघ्र ही पूरे दांतों को अपनी गिरफ्त में ले लेता है।

मूली पायरिया को जड़ से खत्म करने की ताकत रखती है। पायरिया होने पर मूली के रस से खूब कुल्ले करें और फिर आधा रस पी जाएं। दिन में चार बार कुल्ले करें और चार बार रस पीएँ। इस प्रकार 10-12 दिन करें। आप देखेंगे कि दर्द गायब हो गया है और दांत जमने लगे हैं। अब मूली की चटनी खाएं और जब दांत जम जाएं तो मूली चबाना शुरू कर दें। मूली इसी प्रकार प्रतिदिन पूरे साल चबाने की आदत बनाए रखें और अपने दांतों को मजबूत बनाए रखें।


उदर रोग


‘पेट दुरूस्त, तो रहे तंदुरुस्त’ कहावत स्वास्थ्य का मूल मंत्र है। खाने-पीने में गड़बडी हो या फिर मानसिक तनाव, सभी का असर पाचन क्रिया पर पड़ता है।


अजीर्ण



मूली के चार सौ ग्राम रस में बीस ग्राम सेंधा नमक, सौ ग्राम देसी अजवायन और दो सौ मि.ली. नीबू का रस डाल दें और सूखने के लिए रख दें। तीन-चार सप्ताह में या जब रस सूख जाए तो खरल करके शीशी में भर लें। इसी बीच कच्चे पपीतों को काटकर उनका दूध कप में एकत्रित कर लें। कढ़ाई में रेत बिछाकर गर्म करें और दूध का कप उस पर रखकर दूध सुखा लें। सूखने पर दूध का चूर्ण इकट्ठा कर शीशी में भर लें। दो ग्राम मूली का चूर्ण और एक रत्ती पपीते का सत्व पानी से सुबह-शाम एक हफ्ते तक लें। इससे वर्षों पुराना अजीर्ण गायब हो जाएगा।


कब्ज


कब्ज होने पर मूली काटें, उस पर काला नमक व नीबू निचोड़े और सुबह खाली पेट सेवन करें। दिन में प्लेट भरकर मूली का सलाद खाएं। शाम को एक कप मूली का रस पीएं। इस प्रकार नियमित सेवन से पुराने से पुराना कब्ज, उखड़ जाता है। इस उपचार के दौरान हलका भोजन जैसे दही, खिचड़ी, सूप आदि लेना परम हितकर होता है।


अम्लपित्त


इसके तीव्र और कारगर उपचार के लिए मूली और टमाटर, मूली और पत्तागोभी या मूली और गाजर का रस बराबर मात्रा में, लगभग पौन-पौन कप निकालकर ताजा पी जाएं। रस में और कुछ न डालें। जल्दी ही आराम मिल जाएगा। इस प्रकार पंद्रह दिन नियमित सेवन से यह रोग जड़ से उखड़ जाएगा।
खट्टी डकारें
तेज, चटपटे, खट्टे पदार्थ खाने से पेट में अम्ल बनने लगता है जिससे दम-सा घुटने लगता है और घबराहट होने लगती है। आधी मूली को नमक लगा-लगाकर चबा जाइए। फौरन असर होगा और घबराहट शांत हो जाएगी।
इस प्रकार दिन में तीन बार लगातार एक सप्ताह तक सेवन करने से सारा तेजाबी तत्त्व-मूत्र-मार्ग से बाहर हो जाएगा और भूख भी खुलकर लगने लगेगी।


अरुचि


खाने-पीने की इच्छा मर जाए तो मूली के टुकड़ों पर पुदीने की चटनी लगाकर खाएं। कुछ ही दिनों में भूख लगने लगेगी।


गैस से घबराहट


पेट में बनने वाली गैस शरीर के किसी भी भाग में घुसकर सूई की तरह चुभने लगती है और रोगी मछली की तरह तड़प उठता है।
चटपटा और अनियमित भोजन, सूखी-तली सब्जियां, मांस, चाय-कॉफी की अधिकता से अक्सर गैस से परेशानी हो जाती है। अपना खान-पान नियमित कीजिए और भोजन में कच्चा सलाद, फल, पत्तेदार सब्जियों की मात्रा बढ़ाइए।
मूली, मूली के पत्ते और खीरे का सलाद बनाकर खाली पेट, नियमपूर्वक खाइए। इस प्रकार गैस रोग से आपको छुटकारा मिल जाएगा।



जलोदर में पेट में अनावश्यक रूप से अतिरिक्त जल का भराव हो जाता है और पेट मशक के समान फूल जाता है। ऐसे हालात में नमक का सेवन अत्यन्त कम कर दें, यदि पूरी तरह बंद कर दें तो और बढ़िया होगा। नमक पेट में जल को और बढ़ाता है। आपने देखा होगा, नमक की कटोरी में एक बूंद जल डालने से ही पूरी कटोरी में सीलन आ जाती है। पुड़िया में नमक बांध कर रख दें तो बरसात के दिनों में पूरी पुड़िया ही पानी से भीग-सी जाती है।
इसके कारगार उपचार के लिए एक बड़े चम्मच मूली के रस में, एक छोटा चम्मच अदरक का रस मिलाएं और पी जाएं। दिन में दो खुराक लें। नियमित सेवन से जल्दी ही रोग ठीक हो जाता है।


पित्त-शोध


खान-पान में बदपरहेजी से रक्त में पित्त (गर्मी) फूंक जाती है और शरीर पर शोध (सूजन) फोड़े-फुंसियां दाने आदि निकल आते हैं।
इसके उपचार के लिए मूली को कुचलिए और रस निकालकर पी जाइए। बाकी बची मूली के मरहम को फोड़े-फुंसियों आदि पर लगा दीजिए। ठीक होने तक रोज करिए।


पेट दर्द


पेट दर्द का मुख्य कारण खान-पान का सुचारु न होना है। सबसे पहले खान-पान सुधारिए क्योंकि इलाज तो आप कर लेंगे किन्तु खान-पान नहीं सुधरने से रोग फिर आ खड़ा होगा। पेट दर्द होने पर निम्न में से कोई एक उपाय अपनाएं-

 मूली को कद्दूकस करके उस पर थोड़ा नीबू निचोड़िए और खा जाइए।

 यह न हो सके तो मूली का अचार खा जाइए। पेट दर्द होने पर फौरन आराम मिलेगा।

 आधा कप मूली के रस में एक चुटकी नमक डालकर पी जाइए। डकार आते ही पेट दर्द गायब।

 पुदीने की चटनी में मूली को डुबोकर खाने से मुंह का जायका बदल जाता है।

मूली हर प्रकार से पाचक और लाभकारी है। पेट के सभी रोगों का यह दुश्मन है।


पेट में कीड़े


मूली की गंध से तो सांप-बिच्छू भी बिदकते हैं फिर पेट के कीड़े इसके आगे कैसे ठहरेंगे। आधा कप मूली के रस में चुटकी भर काला नमक डालकर दिन में दो बार सेवन करें। नमक कृमि-नाशक है। यह दो खुराक एक सप्ताह तक नियमित लें। कीड़े मरकर निकल जाएंगे और भूख भी खुलकर लगेगी


पित्त विकार


बदहजमी अथवा उलटा-सीधा खाने से पित्त उत्तेजित हो जाता है और उसका प्रकोप शरीर के कई भागों पर प्रकट होता है। इसे गर्मी का विकार भी कह सकते हैं। क्योंकि उष्णता तीव्र होकर पित्त को उबाल देती है। इससे सारा शरीर सूज जाता है, त्वचा पर फोड़े-फुंसिया फूट पड़ती हैं और खुलजी भी तंग करती है।

पित्त विकार का शीघ्र दमन करने के लिए मूली खाइए। इसमें मूली का रस अधिक महत्वपूर्ण है। मूली का रस निकाल कर पीएं। मूली के शेष पिसे हुए गूदे को फुंसियों, खुजली और सूजन की जगह पर लेप दीजिए।
2-4 दिनों तक पित्त विकार का इसी प्रकार नियमित इलाज करें। आप देखेंगे कि मूली के रस व गूदे ने पित्त की उत्तेजना पर काबू पा लिया है। पित्त के शांत पड़ते ही न फोड़े रहेंगे, न खुजली। शरीर की सूजन भी जाती रहेगी।


दस्त


एक पाव मूली के टुकड़े करके आधा लीटर पानी में उबलने के लिए चढ़ा दें। इसी में तीन पीपल के पत्ते तोड़कर डाल दें। ढककर उबलने दे। जब पानी एक चौथाई बचे तो छानकर अलग कर लें और रोगी को पिला दें। इस काढ़े की चार बराबर खुराक बनाएं और दिन में चार बार पिला दें। एक ही दिन में आराम पड़ जाएगा।

बालों के रोग


गंजापन


सल्फर, आयोडीन, फॉस्फोरस आदि लवणों की कमी से बालों की जड़े कमजोर हो जाती हैं और बाल झड़ने लगते हैं, व सिर गंजा हो जाता है। इससे बचने के लिए पूरे साल अपने भोजन में मूली, प्याज, शलजम, लहसुन आदि को भरपूर स्थान दीजिए। सिर में रात को, तिल के तेल में बराबर मात्रा में मूली का रस मिलाकर, अच्छी तरह मालिश करें। लगातार एक वर्ष तक इसका प्रयोग करने से बाल गिरने बंद हो जाते हैं।

जुएं


मूली प्राकृतिक कीटनाशक है। यह शरीर के भीतरी कीटों को तो मारती ही है, जुओं और लीखों का भी सफाया करती है।
नहाने से एक-डेढ़ घंटा पहले मूली का रस अच्छी तरह सिर पर लगा लें और धूप में बैठ
जाएं। थोड़ी ही देर में जुओ का सफाया हो जाएगा। आधे घंटे बाद बालों को धो लें। सिर जूं-विहीन होकर चमकने लगेगा। मूली के रस से बालों में चमक, कालापन और पुष्टता आती है। यह प्रयोग रोज किया जा सकता है।

बाल झड़ना


छिलकों को हम अपना दुश्मन समझते हैं या कि छिलके हमारी आंखों को अच्छे नहीं लगते तभी तो हम खीरा छीलकर खाते हैं, सेब को भी छील देते हैं, तोरई लौकी आदि को बेदर्दी से छीलते चले जाते हैं। यही कारण है कि हमारे बाल असमय झड़ने पकने लगते हैं। दालें भी हम ज्यादातार धुली (बिना छिलके की) ही खाते हैं। अतः अपने भोजन का स्टाइल बदलें। छिलकों को भोजन का एक महत्वपूर्ण भाग समझकर शामिल कीजिए। बालों का झड़ना दवाओं से नहीं रुक सकता। इसके लिए शरीर के भीतर ही गुण उत्पन्न करने होंगे जो कि बिना किसी लागत के सिर्फ, भोजन में छिलकों को शामिल करने भर से ही पैदा हो जाएंगे।
इसके अतिरिक्त मूली का रस एक कप नियमित पीएं। मूली के ज्यादा से ज्यादा व्यंजन खाएं। इस प्रकार असमय बालों को झड़ने से रोका जा सकता है।


त्वचा रोग


चेहरे पर मुंहासे


चेहरे पर मुंहासे हो जाने पर मूली का एक टुकड़ा काटिए और तुरंत ही मुंहासों पर लगाइए। इसे तब तक मुंह से लगाए रखें, जब तक कि यह खुश्क न हो जाए। मूली के टुकड़े के खुश्क हो जाने पर चेहरे को ठंडे पानी से मलकर धो डालिए।
मुंहासों को पूरी तरह मिटाने के लिए भाप द्वारा पकाई हुई मूली की पत्तों सहित बनी सब्जी खानी चाहिए और मूली का जूस पीना चाहिए। मुंहासे शरीर में रक्त के दूषित हो जाने की वजह से निकलते हैं। अच्छा यह होगा कि जब तक रक्त पूरी तरह साफ न हो जाए, नमक का प्रयोग न करें।


चेहरे के दाग-धब्बे


एक माह तक एक मूली नियमित खाने से चेहरे के काले दाग-धब्बे मिट जाते हैं। इसके साथ ही मूली का जूस भी पीना चाहिए। मूली का जूस निकालने के बाद शेष रहे छिलके को चेहरे पर मलना चाहिए। इसमें पोटाश तथा सल्फर पर्याप्त मात्रा में होता है, जो काले धब्बों को धो डालने में सक्षम है। इसलिए बाजारू लोशन आदि खरीदने में अपने धन को व्यर्थ न गंवाएं। इनसे आपकी त्वचा जल जाएगी। मूली को कुचलकर मलना सबसे श्रेष्ठ और कम खर्चीला है। मूली की कोमल पत्तियां और जूस काले धब्बे दूर करने के लिए अति उत्तम है।


झाइयां


झाइयों में लोग अक्सर, क्रीम, लोशन, मसाज और न जाने क्या-क्या टोटके अपनाते हैं, जो फायदा तो नहीं करते उलटे चेहरे पर स्थायी निशान छोड़ जाते हैं। इनसे बचें। प्राकृतिक कोल्ड क्रीम मूली को अपनाएं।
सुबह नित्यकर्मों से निवृत्त होकर खाली पेट एक ताजा मूली और उसके कोमल पत्ते चबा जाएं। थोड़ी सी मूली को बारीक पीसकर चेहरे पर मल लें। आधे घंटे में चेहरा धो लें। यह दोनों प्रयोग साथ-साथ एक महीने तक करें।




प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book