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प्रकृति द्वारा स्वास्थ्य सब्जियां

राजीव शर्मा

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :63
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3488
आईएसबीएन :81-288-0915-6

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सब्जियों के गुणों का वर्णन....

Prakrati Dwara Swasth Sabjiyan

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


प्रकृति हम सबको सदा स्वस्थ बनाए रखना चाहती है और इसके लिए प्रकृति ने अनेक प्रकार के फल, फूल, साग, सब्जियां, जड़ी-बूटियां, अनाज, दूध, दही, मसाले, शहद, जल एवं अन्य उपयोगी व गुणकारी वस्तुएं प्रदान की हैं। इस उपयोगी पुस्तक माला में हमने इन्हीं उपयोगी वस्तुओं के गुणों एवं उपयोग के बारे में विस्तार से चर्चा की है। आशा है यह पुस्तक आपके समस्त परिवार को सदा स्वस्थ बनाए रखने के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
प्रकृति ने हमारे शरीर-संरचना एवं स्वभाव को ध्यान में रखकर ही औषधीय गुणों से युक्त पदार्थ बनाए हैं। शरीर की भिन्न-भिन्न व्याधियों के लिए उपयोगी ये प्राकृतिक भोज्य पदार्थ, अमृततुल्य हैं।
इन्हीं अमृततुल्य पदार्थों जैसे-तुलसी, अदरक, हल्दी, आंवला, पपीता, बेल, प्याज, लहसुन, मूली, गाजर, नीबू, सेब, अमरूद आदि के औषधीय गुणों व रोगों में इनके प्रयोग के बारे में जानकारी अलग-अलग पुस्तकों के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास है—यह पुस्तक।

प्रस्तावना


प्रकृति ने हमारे शरीर, गुण व स्वभाव को दृष्टिगत रखते हुए फल, सब्जी, मसाले, द्रव्य आदि औषधीय गुणों से युक्त ‘‘घर के वैद्यों’’ का भी उत्पादन किया है। शरीर की भिन्न-भिन्न व्याधियों के लिए उपयोगी ये प्राकृतिक भोज्य पदार्थ, अमृततुल्य हैं। ये पदार्थ उपयोगी हैं, इस बात का प्रमाण प्राचीन आयुर्वेदिक व यूनानी ग्रंथों में ही नहीं मिलता, वरन् आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी इनके गुणों का बखान करता नहीं थकता। वैज्ञानिक शोधों से यह प्रमाणित हो चुका है कि फल, सब्जी, मेवे, मसाले, दूध, दही आदि पदार्थ विटामिन, खनिज व कार्बोहाइड्रेट जैसे शरीर के लिए आवश्यक तत्त्वों का भंडार हैं। ये प्राकृतिक भोज्य पदार्थ शरीर को निरोगी बनाए रखने में तो सहायक हैं ही, साथ ही रोगों को भी ठीक करने में पूरी तरह सक्षम है।
तुलसी, अदरक, हल्दी, आँवला, पपीता, बेल, प्याज, लहसुन, मूली, गाजर, नीबू, सेब, अमरूद, आम, विभिन्न सब्जियां, मसाले व दूध, दही, शहद आदि के औषधीय गुणों व रोगों में इनके प्रयोग के बारे में अलग-अलग पुस्तकों के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास ‘मानव कल्याण’ व ‘सेवा भाव’ को ध्यान में रखकर किया गया है।
उम्मीद है, पाठकगण इससे लाभान्वित होंगे।
सादर,

-डॉ. राजीव शर्मा
आरोग्य ज्योति
320-322 टीचर्स कॉलोनी
बुलन्दशहर, उ.प्र.

                पुरानी व नई माप
     8 रत्ती        -        1 माशा
     12 माशा    -        1 तोला
     1 तोला      -        12 ग्राम
     5 तोला      -        1 छटांक
     16 छटांक   -        1 कि.ग्रा.
    1 छटांक     -        लगभग 60 ग्राम


सब्जियों के गुण और चिकित्सा



करेला


करेले में जहां भोजन को स्वादिष्ट बनाने के गुण हैं, वहीं इसमें अनेक औषधीय गुण भी हैं। अनेक रोगों में इसका उपयोग किया जाता है। यह पेट के लिए बहुत लाभदायक है। इससे पित्त शान्त होने के साथ-साथ कब्ज भी दूर होता है।
संसार भर में यह कहावत प्रचलित है कि ‘जहर ही जहर को मारता है’ क्योंकि सर्प के काटे का इलाज करने के लिए सर्प के विष का प्रयोग किया जाता है। जो भी हो, करेला स्वाद में भले ही कड़वा होता है, किन्तु मधुमेह के रोगियों के लिए यह रामबाण औषधि है। स्वाद में कड़वा होते हुए भी यह शरीर के लिए मिठास भरा है क्योंकि इसके खाने से अनेक रोग नष्ट हो जाते हैं और शरीर के तमाम विषैले कीटाणु मर जाते हैं। यह केवल कीटाणुओं को ही नहीं मारता बल्कि पाचन-क्रिया को भी ठीक रखता है। आइए, अब इसके कुछ औषधीय गुणों पर प्रकाश डालें।


रोगोपचार



मधुमेह


मधुमेह के रोगियों के लिए करेला प्रकृति का दिया हुआ वरदान है। मधुमेह के रोगियों को करेले का रस 15 ग्राम तक की मात्रा में लगभग 100 ग्राम मिलाकर दिन में दो-तीन बार पीना चाहिए। इससे रोगी को काफी आराम मिलता है।

1. कुछ प्रमुख चिकित्सकों का कहना है कि करेले के रस में इन्सुलिन जैसे तत्व होते हैं, इसलिए इससे रक्त और मूत्र में शर्करा की मात्रा में कमी आती है। इसलिए मधुमेह के रोगियों को चाहिए कि वे अपने भोजन में जहां तक हो सके, किसी भी रूप में करेला खाने का प्रयत्न करें। मधुमेह के रोगी को नित्य प्रात:काल बिना कुछ खायें–पीये 4-5 करेलों का रस नियम से पीना चाहिए। इससे न केवल शरीर ही पुष्ट होता है बल्कि पेशाब में चीनी जाना भी बंद कर देता है।

2. करेले को उबालकर पीने अथवा सूखे करेले का चूर्ण पानी के साथ लेने से भी लाभ होता है। मधुमेह के रोगियों के लिए कष्ट देनेवाली बात यह है कि अपने रोग के कारण वे जो भी भोजन ग्रहण करते हैं, उससे शरीर को पूरे पोषक तत्व प्राप्त नहीं होते। उनके लिए करेला एक ऐसी सब्जी है जिससे उन्हें आवश्यक विटामिन और खनिज प्राप्त हो जाते हैं। विटामिनों में ए, बी और सी आदि होने के कारण रोगी मधुमेह के साथ अन्य अनेक रोगों से भी बचा रहता है। यदि वह करेले का रस नियमित रूप से लेता रहे तो तनाव और आंख में होने वाले कष्टों से भी बचा रहता है। कार्बोहाइड्रेट्स के सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि करेला लेने से चयापचय ठीक ढंग से होता रहता है और रोगी का संक्रमण से बचाव भी होता है।


हैजा


हैजा होने की स्थिति में करेले का रस लेने से फौरन लाभ होता है। चौथाई कप करेले का ताजा रस निकाल कर उसमें उतना ही पानी मिलाकर पीना चाहिए।
1.  हैजे के रोगी को करेले के रस में प्याज का रस और नीबू के रस की कुछ बूंदे मिलाकर देने से भी जल्दी लाभ होता है।


बवासीर


खूनी बवासीर में 1-2 चम्मच करेले के रस में चीनी मिलाकर देते रहने से भी लाभ होता है।


पीलिया


पीलिया के रोगी को एक करेला मिक्सी में पीसकर सुबह-शाम उसका रस पिलाने से शीघ्र लाभ होता है।
1.  गैस और पाचन संबंधी समस्याओं में भी करेला उपयोगी सिद्ध होता है। इसके रस अथवा सब्जी का उपयोग करते रहना चाहिए।
2.  जिन छोटे बच्चों का जिगर खराब रहता है और पेट साफ नहीं रहता तथा पानी पीने से पेट फूल जाता है, उन्हें आयु के अनुसार एक या आधा चम्मच करेले का रस पिलाने से बढ़ा हुआ जिगर ठीक हो जाता है और पेट में भरा हुआ पानी भी साफ हो जाता है। करेले के रस में पानी मिलाकर देना चाहिए।
3.  बढ़ी हुई तिल्ली में करेले के रस का उपयोग करते रहने से वह ठीक हो जाती है। पेट के कीड़े भी करेले के रस के प्रयोग से समाप्त हो जाते हैं।


गठिया


गठिया में करेले का रस दर्द और सूजनवाले स्थान पर लगाने से सूजन और दर्द में आराम मिलता है। जोड़ों के दर्द में करेले के पत्तों का रस भी मालिश के लिए उपयोगी है।
1.  करेले के पत्तों का रस भी दर्द वाले स्थान पर लगाने से लाभ होता है। गठिया के रोगी को करेले की सब्जी खानी चाहिए।


कब्ज


करेले से होमियोपैथी में मदर टिंचर का निर्माण किया गया है। प्रतिदिन इसकी 5-7 बूंदे दिन में चार बार पानी में देने से कब्ज दूर हो जाता है।


रक्त और चर्म रोग


बहुत से चर्म रोग रक्त में गड़बड़ी के कारण होते हैं। दाद, खाज, खुजली आदि इसी प्रकार के रोग है। चर्म रोगियों को करेले के रस में नीबू का रस मिलाकर पीने से लाभ होता है। करेले का रस एक कप की मात्रा तक पिया जा सकता है।


दमा और सांस की तकलीफ


दमा और सांस की तकलीफ वाले रोगी को करेले की सब्जी खानी चाहिए। प्राचीन काल से करेले इस रोग के लिए व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता रहा है। दमे के रोगी को करेले की बेल की जड़ के चूर्ण में शहद और तुलसी का रस मिलाकर देने से आराम मिलता है।

रोग प्रतिरोधक:   करेले में खनिज और विटामिन होने के कारण सब्जी अथवा रस के रूप में इसका उपयोग करते रहने से शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता पैदा हो जाती है। करेला भोजन को पचाकर भूख बढ़ाने में सहायक होता है। उन दिनों जब इनका मौसम नहीं रहता, के लिए करेलों के छोटे-छोटे टुकड़े काटकर सुखाए जा सकते हैं और उन्हें समय पर काम में लाया जा सकता है।


कुछ अन्य उपयोग


1. करेले के पत्तों के रस में बच का थोड़ा-सा चूर्ण तथा शहद मिलाकर देने से उल्टी और दस्त होने लगते हैं और ब्रोंकायटिस के रोगी के श्वास नलिका की सूजन कम हो जाती है।
 2. करेले के पत्तों के रस में सैधव मिलाकर पीने से उल्टी होकर पित्त निकल जाता है।
3.  करेले के पत्तों का रस गर्म पानी के साथ पीने से उल्टी होकर पित्त निकल जाता है।
4. करेले के पत्तो का रस गर्म पानी के साथ पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
5.  करेले के पत्तों के रस में काली मिर्च पीसकर मिलाइए। यह लेप आंखों के बाहरी हिस्से पर लगाने से रतौंधी की बीमारी दूर होती है।
6. करेले या उसके पत्तों के रस में एक चम्मच शक्कर मिलाकर दिन में दो बार लेने से बवासीर ठीक हो जाती है।
7. करेले के पत्तों का रस नियमपूर्वक लेने से मधुमेह के रोगी को आराम मिलता है।

ककड़ी


गर्मी के दिनों में टमाटर, प्याज, खीरा आदि के साथ इसका प्रयोग सलाद के रूप में किया जाता है। ज्यादा ककड़ी खाने से पेट में गैस पैदा होती है, किन्तु यदि इसके साथ नमक और काली मिर्च तथा नीबू का रस प्रयोग किया जाए तो गैस पैदा नहीं होती।


रोगोपचार


1.  ककड़ी के रस का प्रयोग करने से मूत्र खुलकर आता है, इसलिए गर्मियों में होने वाली पेशाब की जलन आदि ककड़ी खाने से दूर होती है। गाजर या ककड़ी अथवा ककड़ी और शलजम का रस पीने से भी मूत्र खुलकर आता है और गुर्दे के रोग दूर होते हैं।
2.  ककड़ी का रस त्वचा पर लगाने से रंग साफ होता है। चेहरे के दाग-धब्बे और मुंहासे में ककड़ी का रस लगाने तथा पीने से चेहरे का रंग निखरता है।
3.  शराब पीने से कोई बेहोश हुआ हो तो उसे ककड़ी खिलाने से नशा उतर जाता है और बेहोशी धीरे-धीरे दूर होने लगती है।
4.  ककड़ी काटकर उसमें शक्कर और नीबू का रस मिलाकर खाइए, इससे भी गर्मी में होनेवाली पेशाब की तकलीफ में राहत मिलती है।


करौंदा


करौंदे का पौधा औसत ऊंचाई का होता है। करौंदे बेर के समान लाल, सफेद और पीले रंग के होते हैं। इन्हें सब्जी के रूप में पकाया जाता है परन्तु दाल, सब्जी आदि के साथ इसका प्रयोग अचार के रूप में अधिक होता है।

रोगोपचार



मिरगी के दौरे


करौंदे के पत्ते छाछ में पीसकर 15-20 दिन तक नित्य सेवन करने से मिरगी के दौरे बंद हो जाते हैं। विशेष रूप से पित्त की अधिकतावाली मिरगी में इसका अधिक उपयोग किया जा सकता है।
 करौंदे प्राय: तेल में छौंककर रख लिये जाते हैं और कई दिन तक खराब नहीं होते। भोजन को पाचक और स्वादिष्ट बनाने में ये बहुत सहायक सिद्ध होते हैं। पेट का अफारा, अरुचि और भोजन पचाने की शिकायतें दूर होती है।


काशीफल (कुम्हड़ा)


कुम्हड़े की सब्जी वायु पैदा करती है। इसलिए इसका छौंक मेथी दाने से लगाया जाता है। कुम्हड़ा खाने में स्वादिष्ट तथा रोचक होता है। बहुत से लोग छिलके समेत काटकर पकाते हैं। बहुत से लोग इसका छिलका उतारकर इसका गूदा पकाते हैं। इसके अन्दर जो बीज होते हैं, वे ऊपर से काफी सख्त परन्तु अन्दर से काफी खस्ता और नरम होते हैं। इसके बीज खरबूजे आदि के बीजों के समान कई औषधियों तथा पेय बनाने के काम आते हैं।
काशीफल में विटामिन ए, बी, सी तथा डी भी काफी मात्र में होते हैं। गर्मियों में लू लगने से बेचैनी अनुभव होने पर रोगी को काशीफल की सब्जी दी जा सकती है।


रोगोपचार



सौंदर्य प्रसाधन


काशीफल के कूदे अथवा इसके रस को सौंदर्य प्रसाधन के रूप में भी काम में लाया जाता है। चेहरे के दाग-धब्बे दूर करने के लिए काशीफल के रस का प्रयोग किया जाता है। इसका रस लगाने से त्वचा कोमल होती है।
काशीफल का फूल गहरे पीले रंग का होता है। शरीर के सफेद दागों को दूर करने के लिए इसके फूल का रस दिन में 2-3 बार लगाने से शरीर के सफेद दाग सरलतापूर्वक हट जाते हैं।


दांतों के रोगों में


काशीफल को गर्म करके उसका रस निकालकर गरारे करने से दांतों के पायरिया आदि रोग दूर हो जाते है।


बवासीर वाले रोगियों के लिए


काशीफल का रस खूनी तथा बादी (खुश्क) बवासीर के लिए उपयोगी है।


नपुंसक व्यक्तियों के लिए


काशीफल में विटामिन ए तथा बी के अतिरिक्त कैल्शियम, प्रोटीन तथा वसा भी काफी मात्रा में होती है। इन तत्वों से पुरुष की जननेन्द्रियों को पुष्टता प्राप्त होती है, जिससे व्यक्तियों की नपुंसकता समाप्त होती है और शरीर में शक्ति आती है। इसी प्रकार जिन स्त्रियों की संतान नहीं होती, उनके लिए भी काशीफल का सेवन बहुत ही उपयोगी है।


वृद्ध लोगों के लिए


वृद्धावस्था में बहुत से लोग प्रोस्टेट-ग्रंथि के विकार से काफी कष्ट उठाते है, अर्थात् उनकी पौरुष ग्रंथि विकृत हो जाती है और मूत्र संबंधी विकार पैदा हो जाते हैं। काशीफल के बीजों का प्रयोग करने से इस रोग में काफी लाभ होता है।
जिन बच्चों के पेट में धागे जैसे पतले कीड़े पैदा हो जाते हैं, उन्हें अगर काशीफल का चूर्ण बनाकर दें तो कीडे़ नष्ट हो जाते है।


खीरा



खीरे में शरीर के पोषण के लिए सभी आवश्यक तत्व विद्यमान रहते हैं, परन्तु कुछ लक्षण और विटामिन खीरे के छिलके के नीचे रहते हैं। इसलिए इसका सबसे अच्छा उपयोग यह है कि अधिक पकने और छिलका पीला होने से पूर्व खीरे को प्रयोग में लाया जाए। ऐसी स्थिति में खीरे को छीलना नहीं चाहिए। इस प्रकार इसके पोषक तत्व स्थिर रहते हैं। खीरे को भोजन के साथ, सब्जियों अथवा फलों की चाट में उपयोग करने से उन्हें पचाने में सहायता मिलती है। खीरे को सलाद के रूप में गाजर, टमाटर, मूली और सलाद के पत्तों को काटकर प्रयोग में लाया जा सकता है। उबले हुए आलू, टमाटर, ककड़ी तथा पपीता आदि कुछ अन्य फलों की चाट के रूप में भी इसे प्रयोग कर सकते हैं। नीबू का रस इसका स्वाद बढ़ा देता है।
खीरे में कुछ क्षार तथा एसिड पैदा करने वाले खनिज काफी मात्रा में होते हैं, जिनके कारण रोगों को दूर करने के गुण इसमें विद्यमान रहते हैं। शरीर में दाह की स्थिति में खीरे का उपयोग करने से शान्ति महसूस होती है तथा पेशाब खुलकर आता है।


रोगोपचार



पेट की गड़बड़ी


पेट की गड़बड़ी में खीरे के रस का प्रयोग करने से लाभ होता है। पेट में अत्यधिक गैस और जकड़न में भी खीरे का रस अत्यधिक उपयोगी है। इन रोगियों को खीरे का रस चार से लेकर छह चम्मच तक की मात्रा में दिन में चार-पांच बार देना चाहिए। आंतों में फोड़े वाले रोगियों के लिए भी खीरे का रस बहुत उपयोगी होता है।
कब्ज में : जिन लोगों को कब्ज रहता है, उन्हें नियमित रूप से खीरे का उपयोग करते रहना चाहिए। इससे कब्ज दूर हो जाता है।


घुटनों के दर्द में


जिन लोगों के घुटने में दर्द में रहता है, उन्हें चाहिए कि वे भोजन में खीरे के रस का प्रयोग करें।
घुटनों के दर्द से पीड़ित व्यक्तियों को गाजर और खीरे का रस मिलाकर पीने से लाभ होता है। यदि उसमें चुकन्दर और अजवाइन के पत्तों का रस मिलाकर प्रयोग करेंगे तो और अधिक लाभ होगा। घुटनों के दर्द में प्राय: यूरिक एसिड शरीर के विभिन्न भागों में इकट्ठा हो जाता है, जिससे गठिया और आर्थराइटिस आदि रोग हो जाते हैं। इस रस का प्रयोग करते रहने से यूरिक एसिड समाप्त करने में सहायता मिलती है और गुर्दों के कष्टों में आराम मिलता है।
खीरे और गाजर आदि के रस को अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए शहद और नीबू का रस मिलाकर भी पी सकते हैं। इसमें नीबू का रस और अधिक लाभदायक होता है तथा इसकी गुणवत्ता को बढ़ा देता है।


मूत्र संबंधी दोषों में


मूत्र संबंधी दोषों अथवा गुर्दे में पथरी हो जाने पर खीरे के बीजों की गिरी से बहुत लाभ होता है। छिले हुए बीजों का काढ़ा पीकर ऊपर से दही अथवा मट्ठा लेने से पथरी के कारण मूत्र नली में होने वाली जलन समाप्त हो जाती है।


पथरी में


खीरे का रस दिन में तीन-चार बार पीने से पथरी में बहुत लाभ होता है। खीरे का रस दो-ढाई सौ ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन प्रयोग करना चाहिए।




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