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छुपा सत्य

रवीन्द्र लाखोटिया

प्रकाशक : रजत प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :92
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 316
आईएसबीएन :81-7718-173-8

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समाज के कड़वे सत्य को उजागर करती पुस्तक...

Chupa Satya - A Hindi Book by - ravindra lakhotiya छुपा सत्य - रवीन्द्र लाखोटिया

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

एक अच्छे लेखक की लेखनी से निकले विचार लोगों के दिलों को छूते हैं। आत्मा को हिलाते हैं और मष्तिष्क को छिंछकोर देते हैं। वे विचार जो सत्य पर आधारित होते हैं उनमें पीड़ा, दर्द, बेचैनी व एक अजीब सी कशमकश होती है।
इस पुस्तक में लेखक ने साफ साफ किसी व्यक्ति विशेष का नाम लिये बगैर अपनी कलम व कला द्वारा अपने विचारों को जनता के सामने रखने का प्रयास किया है।

लेखक ने इस पुस्तक में विशेष रूप से यह समझाने का प्रयत्न किया है कि हमें किन किन बातों पर ध्यान देना चाहिए और किन विचारों को अपनाना और किन विचारों को छोड़ना चाहिए, ताकि हमारे परिवार की आन्तरिक सुरक्षा - समृद्धि बनी रहे और हम अपने सुविचारों के द्वारा इस संसार की बगिया में फूल की तरह महकते रहे। यही इस पुस्तक को प्रकाशित करने का मूल उद्देश्य है।

आभार

मानवता की सेवा में प्रयासरत एवं स्वयं में एक सर्वोत्तम उदाहरण...जिन्होंने छोटी उम्र में ही अपने जीवन को गौरवशाली बनाया। ऐसे हैं दो सुदृढ़ एवं सफल व्यक्तित्व के धनी

श्री आदिष सी. अग्रवाल

समर्पण


यह पुस्तक मेरी प्रिय धर्मपत्नी हेमलता एवं लाडली बिटिया तृप्ती को समर्पित है। जिनके अथाह स्नेह और मौन उत्साह से मेरा जीवन निरन्तर प्रगतिशील है। जिन्होंने भी इन दोनों को गहराई से परखा व समझा तो हमेशा इन दोनों को उनकी आशाओं के अनुरूप से कहीं अधिक पाया।

रवीन्द्र लाखोटिया

प्रार्थना


हे माँ, तेरी इच्छा के विरूद्ध इस पृथ्वी पर ही नहीं वरन पूरे सौरमण्डल में भी कुछ नहीं हो सकता। अतः मेरा भला कर या बुरा, मुझे कुबुद्धि दे या सुबुद्धि...ये सोचना तेरा काम है, मेरा धर्म तो कर्म के साथ-साथ तेरा स्मरण निरन्तर करते रहना है।

रवीन्द्र लाखोटिया

आशीर्वाद


सागर की लहरें मन में उठती रहती हैं,
ठीक उसी तरह जैसे किनारों को छूती हैं,
लगता है कभी उठता हुआ तूफान तो कभी शान्त।।

विधाता का भी देखो कमाल, आने वाला पत्येक तूफान, पहले वाले तूफान से ज्यादा दिखाता है धमाल।
मैं भी तूफानों से जूझता हुआ आगे बढ़ता जा रहा हूँ,
जैसे सागर में जहाज

है यकीं मुझकों देवी माँ पर,
जो विभिन्न रूपों में बहिन-बेटी बनकर दे रही है मुझे आशीर्वाद।
एक दिन वो भी आयेगा जब उसके तेज से होंगे सभी मेरे साथ।।

रवीन्द्र लाखोटिया

जीवन परिचय


नाम-रवीन्द्र लाखोटिया

बतौर लेखक
*छुपा सत्य
* रत्न, रूद्राक्ष और आप
* प्रसन्न मन व स्वस्थ शरीर के रहस्य
* SECRET OF HEALTH
* आनन्दमय जीवन की कला-रेकी
* GEME & RUDRAKSHA
* पिरामिड हीलिंग
* चाईनीज वास्तु और आप
* क्रिस्टल एवं फ्लावर हीलिंग
* लेख व समीक्षाओं के देश के प्रमुख समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशन

शोध व कार्य - न्यूमरोलोजिस्ट, डाउजर, यूरोपियन वास्तुकार, रेकी-क्रिस्टल, रूद्राक्षा-पिरामिड-मंत्र–एवं फ्लावर हिलर।
सामाजिक कार्य - वन्य जीव-जन्तु की सुरक्षा, गर्भपात विरोध अभियान, चिन्ता मुक्त व्यक्तित्व का विकास।

प्रशिक्षण केन्द्र - ज्योतिष, वास्तु, हस्तरेखा, अंक विद्या एवं वैकल्पिक चिकित्सा आदि विषयों का प्रशिक्षण दिया जाता है।
आशीर्वाद - लेखक आस्थाशील व शोध की मनोवृत्ति वाला है। इसलिए इनका लेखन जनता के लिए कल्याणकारी होगा।–(श्रद्धेय आचार्य महाप्रज्ञ जी)

विशेष - रविन्द्र लाखोटिया वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के क्षेत्र में उत्तर भारत में एक प्रमुख स्थान रखते हैं। इन्होंने 50 माह के दौरान लगभग 40,000 मरीजों का वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति जैसे-रेकी हीलिंग, पिरामिड हीलिंग, रूद्राक्षा हीलिंग, क्रिस्टल हीलिंग, मंत्र हीलिंग तथा फ्लावर थेरेपी द्वारा निःशुल्क उपचार करके पूरे भारत में एक कीर्तिमान स्थापित किया है।

कड़वा सत्य


सत्य कड़वा होता होता है, परन्तु जब उसे लिखा या पढ़ा जाए तो यह भंयकर होता है। सच को परखने के लिए आँखों की वह व्यथित व्यक्ति...वस्तु...जगह आदि के सहारे की आवश्यकता होती है। परन्तु ध्यान रहे कि इन दोनों परख में भी विवेक बुद्धि का सहारा लेना बहुत जरूरी है। जैसे-जज किसी बात को आँखों देखी नहीं, परन्तु सबूतों व अपनी विवेक बुद्धि के आधार पर ही निर्णय देता है।

जब हमें सामने वाले का स्वभाव ज्ञात है-जैसे, वह धूर्त्त या आवारा आदि है लेकिन फिर भी हम उसे गले लगाते हैं, चूँकी वह हमारा नजदीकी रिश्तेदार जो है। लानत है ऐसी रिश्तेदारी पर ! जिसकी छाया से भी बच्चें बिगड़ते हों, कन्यायें मलिन होती हों तथा हमें आर्थिक नुकसान होता हो। ऐसे धूर्त रिश्तेदार हमारे लिए एक साँप के समान हैं जो समय–समय पर जहर उगलने व काटने से बाज नहीं आते। सांप को पालने से वह जहर उगलना तो बन्द नहीं करता !

लानत है ऐसे माँ-बाप पर भी जब उन्हें किसी सच्चाई से अवगत करवाया जाए तो बजाए गम्भीरता से लेने के, उल्टे ही बताने वाले को ही कसूरवार ठहराने का प्रयास करते हैं। जो व्यथित शिकार व्यक्ति है, उसे ही धमकाया और ताने सुनाए जाते हैं। मेरे मतानुसार व्यक्ति बिना रिश्तेदारी के अकेले रह ले, परन्तु ऐसी रिश्तेदारी न निभाए जिससे उसके परिवार पर आँच आती हो, चाहे वह परिवार का सदस्य या रिश्तेदार ही क्यों न हो।

यदि मजबूरी वश व्यापार में रिश्तेदारी निभानी पड़े तो घर तक की न निभाए। जो व्यक्ति समझदार, खानदानी, सरल स्वभाव के होते हैं वह सही बात को समझते हैं। सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करते तथा व्यक्ति को परखना उन्हें आता है। परन्तु जो खाली, धूर्त, दागदार होते हैं उन्हें छल-प्रपंच के सभी तरीके आते हैं। किस तरह से सामने वाले को मूर्ख बनाना या पटाना है, यह तो उन्हें बखूबी आता है।

एक सत्य यह भी है कि जो व्यक्ति जिसके नजदीक ज्यादा रहेगा, चाहे वह कैसा भी हो, कभी न कभी तो उसकी बात दूसरे के मस्तिष्क में बैठेगी। ठीक उसी तरह जैसे प्रतिदिन गिरने वाली पानी की बूंदे पत्थर को भी घिस देती हैं। हमारी भी कमी है-जिस व्यक्ति या रिश्तेदार के स्वभाव के बारे में हमें उच्छी तरह ज्ञात है, उसकी बातों को हम तरजीह दे देते हैं, चूंकी वह हमारे परिवार का सदस्य व रिश्तेदार आदि है।

लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि बिच्छू को कितने भी प्यार से रखा जाए वह अपने स्वभाव वश डंक मारेगा ही मारेगा। अर्थात जिस व्यक्ति का जैसा स्वभाव होगा, वह शादी से पहले क्या और बाद में क्या तथा उम्र छोटी हो या बड़ी, वह अपनी गन्दी हरकतें आदि तथा ईर्ष्या, क्रोध, अहं, धूर्तता आदि उससे नहीं छूटती। परिस्थिति वश कुछ समय के लिए हल्की जरूर पड़ती है, परन्तु जैसे ही उन्हें मौका मिलता है, वे अपनी हरकतों से बाज नहीं आते। ठीक उसी तरह जैसे बबूल के पेड़ पर आम नहीं उग सकते।

सही मौके पर स्पष्ट बोलना अच्छी बात है जबकि उसे सुनना, पढ़ना उत्तम है और सुनकर व पढ़कर उस पर मनन-चिन्तन कर अमल में लाना अति सर्वोत्तम है। स्पष्ट बोलने वाले में सहन-शक्ति का होना भी अति आवश्यक है। जैसे हमें अपनी पीठ दिखाई नहीं देती, अतः हमें अपनी पीठ को देखने के लिए दर्पण का सहारा लेना पड़ता है। जिस तरह हमें अपने शरीर के पसीने या मुँह की बदबू मालूम नहीं पड़ती, परन्तु दूसरा व्यक्ति इसके बारे में बताता है। ठीक उसी तरह हमें अपने परिवार के सदस्यों या रिश्तेदारों आदि की कमियाँ दिखाई नहीं देती हैं दिखाई देती हैं थोड़ी बहुत, यदि ज्यादा भी सच्चाई मामूल पड़े तो भी हमारा तर्क यही रहता है कि ये तो उसने दूसरे के साथ किया है, हमारे साथ ऐसा नहीं करेगा। यह तो हमारा खून है। यही हमारी भयंकर भूल है। जिसे धन या नारी-शरीर का स्वाद मुँह लग जाए तो उसके लिए ईमान; धर्म, परिवार कुछ नहीं होता। उसे बस मौका मिलना चाहिए।

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