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दो प्रेमियों का अजीब किस्सा

सेस नोटेबोस

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :111
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3143
आईएसबीएन :81-8143-072-7

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सुप्रसिद्ध डच उपन्यासकार सेस नोटेबोस का उपन्यास ‘अगली कहानी’ का हिंदी अनुवाद...

Do Premiyon Ka Qissa

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

यह दो आदर्श प्रेमियों की विचित्र कहानी है जो अपने शारीरिक सौन्दर्य में ही नहीं हैं किन्तु जो एक दूसरे के प्रति अपने प्रेम में भी सम्पूर्ण हैं। सर्कस करने वाले माता पिताओं की संतानें काइ लूसिआ एक ऐसे जादू का खेल दिखाते हैं जो सुपरिचित और लोकप्रिय है लेकिन ‘शो-बिजनेस’ के षड्यंत्र उन्हें अपने देश के पिछड़े हुए और खतरनाक दक्षिणी इलाके में भेजे देते हैं जहाँ एक रहस्यमय, संगठित अपराधों के संसार की रानी काइ का अपहरण करवा लेती है और दोनों प्रेमियों की अजीब दास्तान शुरु होती है जिसमें एक विदूषक, जो दरअसल एक बुढ़िया है, और एक घुमंतू, बाउल जैसा आदमी विचित्र भूमिकाएँ निभाते हैं।

जिन्होंने सुप्रसिद्ध डच उपन्यासकार सेस नोटेबोस का उपन्यास ‘अगली कहानी’ हिंदी अनुवाद में पढ़ रखा है वे जानते हैं कि यह लेखक कथ्य और शिल्प दोनों के स्तर पर कितना मौलिक और जटिल है लेकिन इस उपन्यास में वे पाएँगे कि लेखक ने यथार्थ और फ़ंतासी, उपन्यास और परी-कथा, क़िस्सागोसाई और निजी लेखकीय टिप्पणियों के ऊपरी तौर से गम्भीर लेकिन मूलतः शरारती कभी-कभी खिझाने वाले मिश्रण से एक चुनौती-भरी कृति हमें दी है, जिसकी स्तरबहुल सार्थकता कभी कम नहीं होती।

काइ और लूसिआ ‘संपूर्ण’ अवश्य हैं लेकिन शारद यह कहना चाहता है कि आदर्श संपूर्णता में एक होती है-कि उसमें कोई कमी, कोई संदेह, कोई कटु या वयस्क बनानेवाले नहीं होते। इसीलिए जब बर्फ की मालिका जब काइ को अपनी वासना और अपराध की दुनिया में ले जाती है या सुनहरी दाढ़ीवाला खानाबदोश लूसिआ को एक दिन के लिए एक उन्मुक्त जीवन में ले जाता है या विदूषक बुढ़िया लूसिआ को जिन्हें दोनों प्रेमी जानते भी न थे, वे शायद सचमुच संपूर्ण होकर दुनिया के पेचीदा खेल में पुनःप्रवेश करते हैं। और पाठकों के दिमाग में यदि कोई कसर रह जाती है तो उसे इस समसामयिक परी-कथा का ‘लेखक’ तिबूरोन बार-बार कहानी में दखल देकर पूरी करता चलता है।

1


एक वक़्त की बात है जब ऐसा वक़्त था जो कुछ लोग कहते हैं कि अब भी चल रहा है। तब हॉलैंड, जो समुद्र की सतह से नीचा होने की वजह से ‘नेदरलैंड’ (निचला देश) कहलाता है, आज के मुकाबिले कहीं ज़्यादा बड़ा था। कुछ लोग इससे इन्कार करते हैं, और कुछ और लोग कहते हैं कि हालाँकि कभी वैसा था ज़रूर लेकिन अब नहीं है। मुझे मालूम नहीं कि इसमें से कौन-सा मत सही है। फिर भी मैंने यूरोप के सबसे ऊँचे दर्रों पर डच, यानी हॉलैंड का झंडा फहराते देखा है। देश का उत्तर तो हमेशा दोक्कुम रोदेस्कोल और पीतरबूरेन के आसपास था लेकिन दक्षिणी सीमा अम्स्तर्दम या हेग से कार से कई दिनों की यात्रा पर आती थी।

मैं एक विदेशी हूँ, लेकिन मुझे वह सब कुछ याद है, और मेरा उसके बारे में चुप्पी साध लेने का कोई इरादा नहीं है। मेरा नाम अल्फ़ोंज़ो तिबूरोन दे मेंदोसा है। मैं सारागोसा इलाके में सड़कों का निरीक्षक हूँ, जो स्पेन की एक प्राचीन रियासत अरागोन से मैंने एक वजीफ़े पर सड़कों और पुल बनाने की पढ़ा़ई करते हुए कुछ वर्ष देल्फत में बिताए थे और अच्छा होगा कि मैं फौरन कह दूँ कि उत्तरी हॉलैंड ने हमेशा मुझमें भय पैदा किया है, एक ऐसा भय जिसे मोटे अक्षरों में लिखा जाना चाहिए, जैसे वह उन मौलिक तत्त्वों में से एक हो जिनसे पृथ्वी का सारा जीवन निर्मित हुआ है, जैसे कि प्रारंभिक प्राकृतिक दार्शनिकों के उपदेशों में जल और अग्नि। इन मोटे अक्षरों से ऐसी भावना जुड़ी हुई है जैसे कोई एक काली टंकी में डाल दिया गया हो, जिससे निकल पाना कोई आसान काम नहीं है।

मुझमें यह भावना ठीक-ठीक किसने जगाई थी यह मैं नहीं जानता लेकिन इसका संबंध कुछ न कुछ वहाँ के प्राकृतिक दृश्य और लोगों से था। रेगिस्तान की तरह उत्तरी परिदृश्य भी एक चरमता का अहसास दिलाता है। यही है कि इस मामले में रेगिस्तान हरा है और पानी से भरा है। कहीं कोई आकर्षण, गोलाइयाँ, घुमाव नहीं हैं। जमीन सपाट है, लोगों को उघाड़ती हुई और यह समूचा दिखना उनके व्यवहार में प्रतिबिंबित होता है।

डच लोग सिर्फ मिलते नहीं हैं, वे एक दूसरे का सामना करते हैं। वे अपनी चमकदार आँखों को दूसरे आदमी की आँखों में गड़ा देते हैं और उसकी आत्मा को तौलते हैं, कहीं छिपने की जगह नहीं होती। उनके घरों तक को वैसा नहीं कहा जा सकता। वे अपने पर्दों को खुला छोड़ देते हैं और इसे एक सद्गुण समझते हैं। मैंने उनकी विचित्र भाषा सीखने का कष्ट उठाया था, जिसमें कटु ध्वनियों की बहुतायत है जिनके लिए गले के ऊपरी हिस्से का काफ़ी ज़्यादा इस्तेमाल किया जाता है। मैं सोचता हूँ कि यह उन ख़राब स्थितियों के कारण हुआ होगा, जैसे कटे हुए पुश्ते, पूर्वी हवाएँ और बर्फ़ जो उन्हें अतीत में सताया करती थीं।

मुझे यह जल्दी पता चल गया कि वे किसी विदेशी द्वारा अपनी भाषा बोले जाने को गिरी हुई चापलूसी समझते थे और मुझसे एक बिल्कुल अलग, तीसरी भाषा में बोलना पंसद करते थे। मैं उसकी वजह कभी भी ठीक से समझ नहीं पाया लेकिन ऐसा मानता हूँ कि इसका संबंध संकोच और उदासीनता की मिली-जुली भावना से है।

वजह जो भी हो, मैंने उनके देश के उत्तरी हिस्से में कभी बहुत सुकून महसूस नहीं किया; इसके विपरीत, मैं अपने वतन लौटते समय जिंदा होने लगता या, तब जब राइन घाटी के बीच से गाड़ी चलाते हुए मैं दूर उन पहाड़ों की पहली हल्की नीली रुपरेखाएँ देखता जो ठंढे, सपाट उत्तरी इलाके को उन ज़्यादा बीहड़ इलाकों से अलग करते थे जिन्हें डच लोग दक्षिणी हॉलैंड या ‘नेदरलांद’ कहते हैं। क्योंकि हालाँकि मैं मुश्किल से उन बोलियों को समझ सकता था जो ऊँचे दर्रों में बोली जाती हैं, और वहाँ रहनेवाले कुछ नाटे, कुछ ज़्यादा गहरे रंग वाले लोग उत्तर में रहने वाले अपने अधिक प्रबुद्ध हमवतनों सरीखी शक्ल वाले नहीं हैं, फिर भी मुझे वहाँ घर-सरीखा लगता था। दक्षिण में जीवन पर कम कानून और प्रतिबंध थे, और हालाँकि संघराज्य की केंद्रीय सरकार एक सख़्त नियंत्रण रखने की कोशिश करती थी, वह केवल आंशिक रूप से सफल थी। ज़्यादा दूरियों के कारण, निवासियों के स्वतंत्र व्यक्तित्व तथा अपने शासकों के प्रति उनकी स्वाभाविक चिढ़ की वजह से उत्तर में उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक समझा जाता था कई बार उनके उच्चारण के कारण उनकी खुल्लमखुल्ला हँसी उड़ाई जाती थी और अक्सर उन्हें ज़्यादा निचले कामों के लायक ही समझा जाता था जो उन्हें अपनी ग़रीबी की वजह से लेने ही पड़ते थे। ऐसी चीज़ें सालती हैं।

इसके उलटे, अधिकांश उत्तरवासी-कुछ कलाकारों को छोड़कर-दूर दक्षिण में उतने ही दुखी रहते थे। वहाँ सरकारी मुलाज़िम एक दूसरे का साथ चाहते थे, ‘अँधियारे दक्षिण’ की बर्बरों और भ्रष्टाचार की, एक बेवकूफ़ और अराजक भीड़ की बात करते थे। क्योंकि वे अपनी दमघोंटू ज़्यादा घनी आबादी और उससे उपजने वाले ज़रूरी सामाजिक नियंत्रणों के आदी थे इसलिए वे अकेलापन महसूस करते थे और अपने दिलों में डरे हुए थे। वे ऐसा कहते थे कि हेग का केंद्रीय प्रशासन, राष्ट्रीय सरकार, उनकी सुरक्षा की हमेशा गारंटी लेने में सक्षम नहीं था; ऐसा आरोप था कि कुछ इलाकों पर गिरोहों का राज था, और वसूली का खूब चलन था। इसके अलावा, दक्षिण, में सिर्फ़ सस्ती शराब और फल होते थे, और वह मात्र सरकारी पैसे पर चलता था। सच तो यह है कि उत्तरी औद्योगिक शहरों को सस्ती मज़दूरी मुहय्या करने के अलावा उसका कोई उपयोगी उद्देश्य नहीं था-उन शहरों में ये दक्षिणवाले भूतपूर्व मलिन बस्तियों में बस जाते थे और स्थानीय निवासियों द्वारा आधे दिल से बर्दाश्त किए जाते थे, उस वक़्त तक जबकि किसी आर्थिक मंदी के दौरान यह आवाज़ न उठने लगे कि उनकी बदबू और शोर-शराबे के साथ उन सबको उसी जंगली जगह पर वापस भेज दिया जाए जहाँ से वे आए थे। फिर भी, राष्ट्रीय सरकार बढ़ते हुए अलगाववादी आंदोलन पर पैनी निगाह रखती थी।

2


मैं तो दक्षिण को चाहता था। हो सकता है इसका संबंध उस इलाके से हो जहाँ का मैं ख़ुद हूँ, हालाँकि दक्षिणी नेदरलैंड के नज़ारे स्पेन के मेरे प्रदेश से नहीं मिलते, अनंत काल से अरागोन कहलाता रहा है। दक्षिण। ज़्यादा अँधियारा है, छिपे हुए कोनों से भरा हुआ, किसी ऐसे पुराने उकेरे हुए चित्र की तरह जिसे बहुत ज़्यादा स्याही से छापा गया हो। उसमें उफनती हुई नदियाँ हैं और ज़बर्दस्त अनमने जंगल हैं। उत्तर से विपरीत, अरागोन सपाट नहीं है हालाँकि वह चौड़ा और खुला, कभी-कभी लगभग चमकदार है। उत्तर के हरे, आत्मतुष्ट, पालतू दृश्यों से मुझमें एक दुख-भरी ऊब पैदा होती थी जिसकी बराबरी वह हिकारत ही करती थी जो मैं उसके निवासियों के प्रति उनकी वजह से महसूस करता था।

दक्षिण के लोग ज़्यादा करख़्त थे लेकिन ज़्यादा आज़ाद भी, ठीक जैसे उनके प्राकृतिक दृश्य ज़्यादा रूखे और वीरान थे। जो दूसरों को उचाट करता था वह मुझे खींचता था। दक्षिणी पठार मेरा चहेता मंज़र था। आलसी पत्रकार उसे हमेशा चंद्रमा का दृश्य कहते थे लेकिन मैंने अब तक किसी ऐसे चंद्रमा के बारे में नहीं सुना है जहाँ आप एक दौड़ती हुई पहाड़ी धारा के पास सख़्त पथरीले ढूहों से बनी हुई एक गुफा-जैसी जगह में आसरा पाकर सो सकते हों। यात्रा करना प्रौगैतिहासिक-सा था लेकिन साहसिकताओं-वाला, और स्थानीय अधिकारी आपके वास्ते इतनी डच जानते थे कि आप उन्हें अपनी बात समझा सकें। जिन उत्तरवासियों से आप वहाँ मिलते थे वे हमेशा शिकायत करते रहते थे कि यहाँ डबलरोटी सफ़ेद नहीं मिलती, डाकघर गंदे थे, टेलीविज़न साफ़ दिखाई नहीं देता-मानों ये सब दुखी होने की वजहें हों उनकी शियाकतें ख़त्म होती ही नहीं थीं : बहुत सारे कार्यक्रम क्षेत्रीय बोलियों में प्रसारित होते थे, स्थानीय पुलिस भ्रष्ट थी, उत्तर की ख़बरें दक्षिणवासियों को दिलचस्प नहीं लगती दिखती थीं, और कई कस्बों के नगरपालिका अध्यक्षों से अपने दफ़्तरों में महारानी की तस्वीर लटकाने की जहमत नहीं उठवाई जा सकती थी। वहाँ के ज़ाहिल लोग समुद्र की बात करते वक़्त ‘मारे’ की बात करते थे, अपने सीमा-रक्षकों को वाक्खर’ कहते थे और अपने नन्हें-मुन्नों को वाल्केबादे में लिटाते थे; लेकिन ये शब्द उस वक़्त ख़त्म होते जा रहे थे जिसकी यह कहानी है, इस वजह से उतने नहीं कि केंद्रीय प्रशासन उन्हें सायास दबा रहा था, बल्कि इसलिए कि रेडिओ और टेलीविज़न का असर बढ़ रहा था।

जो कुछ लोग इस पर अफ़सोस जाहिर करते लगते थे वे उत्तर के मुट्ठी-भर कवि थे, जिन्हें ऐसा विश्वास था कि ऐसे शब्दों और मुहावरों में भाषा की समूची आत्मा सुरक्षित रहती है, लेकिन, हमेशा की तरह, किसी और ने इसकी पर्वाह न की। ख़ुद अपने बीच दक्षिणवाले इन शब्दों को बरतते रहे, हालाँकि एक ख़ास तरह की नकली शर्म उन्हें उत्तरवासियों के सामने ऐसा करने से बरजती रही। परिणामस्वरूप दोनों समूहों के बीच संबंध हमेशा कुछ बनावटी रहे और बेशक किसी असली राष्ट्रीय एकता का कोई प्रश्न ही नहीं था। देश को नेदरलैंड की राजशाही कहा जाता था लेकिन वे लोग जो पहाड़ों में ग़रीबी में रहते थे और जिन्होंने समुद्र को कभी देखा न था, सोच नहीं पाते थे कि इन शब्दों के साथ किन भावनाओं का संबंध बैठाल सकें।

उत्तरवासी, जो दक्षिण में सुसंगठन के सम्पूर्ण अभाव पर कुड़कुड़ाना कभी बंद नहीं करते थे, उसी वक़्त उस संगठित अपराध तंत्र की शिकायत भी करते थे जिससे वहाँ कोई भी प्रभावशाली शासन-तंत्र की शिकायत भी करते थे जिससे वहाँ कोई भी प्रभावशाली शासन-तंत्र असंभव बना दिया गया था। दक्षिण का प्रतिनिधित्व करनेवाले सांसद ‘‘सारे के सारे घूसख़ोर और भयानक गिरोहों के चाकर’’ थे, और हालाँकि इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि सरकारहीन दक्षिणी क्षेत्रों में ऐसी चीज़ें होती थीं जो उत्तर की तीखी, खोजी रोशनी को बर्दाश्त नहीं कर सकती थीं, लेकिन मैं फिर भी अपने समूचे दिल से उस उपद्रवी, वेसलीका़ इलाके को चाहता था, भले ही सिर्फ इसलिए कि मैं वहाँ नेक इरादों की उस आबहवा से अपना दम घुटता महसूस नहीं करता था जो उत्तर को असह्य बनाती थी। मुझे लगता है कि मुझे इसके लिए अपने स्पानी मूल का अहसानमंद होना चाहिए।

दुनिया का तमाम होना वहाँ बाद में आएगा और मुझे यकीन था कि वह ठुनककर नहीं होगा। मैं कुतरतन कोई छिछोरा आदमी नहीं हूँ लेकिन मुझे ऐसा लगा कि पहाड़ों के उत्तर के पालतू मानवीय प्राणीघर में सुधार के परे कुछ गड़बड़ हो गया था। वे लोग जो अपने जीवन पर बहुत ज़्यादा नियंत्रण रखना चाहते हैं वे अमर होने की एक नकली लालसा से पीड़ित रहते हैं, और उससे कभी भी कुछ भला नहीं हुआ है।

3


जो कहानी मैं बताना चाहता हूँ वह बहुत पहले नहीं हुई थी, और है वह एक अजीब कहानी। मैं अपनी कहानियाँ खास तौर पर अपने को ही सुनाता हूँ और मैं ऐसा सोचता हूँ कि मेरे दूसरे काम ने, जिससे मैं अपनी रोजी कमाता हूँ, मुझे वैसा कर पाने में मदद की है। कहानियाँ लिखने और सड़कें बनाने में एक समानता है: आप किसी वक़्त कहीं न कहीं पहुँच ही जाते हैं। यह विचार मुझे एक दिन आखुएरोन के पास कालातायुद से कारिन्येना जाने वाले मार्ग सी 221 पर आया। मेरे मातहत शिकायत करते हैं कि यह स्पेन का सबसे ज़्यादा निरीक्षण किया गया मार्ग है, और इसमें, जैसा कि दक्षिण के लोग कहेंगे, सचाई का एक कुंदा है, हालाँकि एक सड़क और है जिसे मैं और भी ज़्यादा चाहता हूँ। लेकिन यह विचार मुझे सी 221 पर आया और वे समानताएँ और कहीं भी स्पष्टतर नहीं है।

यह सड़क ऊँची जमीन पर चलती है और दुनिया दोनों तरफ फैली हुई होती है, आप एक विस्तृत दृश्य देख सकते हैं, जो एक लेखक को करना चाहिए। धातु के भीमकाय खंभे, जो पाँच या छः बहुत मोटे और लम्बे तारों से जुड़े होते हैं, ऐसा आभास देते हैं मानो वे दुनिया को, या कहानी को इकट्ठा थामे हुए हों। मार्ग संकेत आगे आनेवाले किसी झरने की घोषणा करते हैं-पाठक जहाँ रुक सकता है-या सड़क की निचाई या किसी और संकट की। ऐसी जगहों पर बेहतर होगा कि पाठक चौकन्ना रहे। लेखक को उसे सड़क से नीचे लुढ़कने नहीं देना चाहिए, हालाँकि मैं जानता हूँ कि ऐसे लेखक भी हैं जो ठीक यही करना चाहते हैं। शायद मैंने इतने ज़्यादा हादसे देखे हैं कि मैं उनमें से एक नहीं होना चाहता।

मैं पैंसठ का नहीं हुआ हूँ, ठीक-ठाक तगड़ा हूँ और ज़्यादातर ख़ुशमिज़ाज़ हूँ लिखने के अलावा मेरी एकमात्र विचित्रता यह है कि मैं हमेशा नीले कपड़े पहनता हूँ। लेकिन इसका कोई महत्त्व नहीं है इसका मुझे अहसास है इसलिए अपने बारे में मैं और कुछ नहीं कहूँगा। मैं एक दृश्य को एक पुस्तक की तरह पढ़ सकता हूँ, दरअसल मैं यही कहना चाहता था। शायद इसका संबंध लेखकों की कथित सर्वशक्तिमत्ता से, जैसी वे चाहते हैं वैसी दुनिया बना पाने की कूवत से हैं।

एक असली भूदृश्य में यह पहले ही हो चुका था। सी 221 पर चलते हुए करीब आधे रास्ते पर, उदाहरणार्थ, सड़क की बायीं ओर काफी नीचे, एक कब्रिस्तान का चौकोर आकार गंदी लाल मिट्टी को काटता था। उसमें कुछ ऐसा है जिसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता : एक यात्री की हैसियत से आपके पास इसे, मृत्यु के लिए आरक्षित इस पट्टे को, स्वीकार करने के अलावा कोई और चारा नहीं है। मुझे लगता है कि कुछ ऐसा ही एक पाठक के साथ होता है। एक किताब एक दस्तावेज़ होती है और इस दस्तावेज़ में अचानक मौत शब्द ले आया जाता है, हालाँकि बेशक आप चाहें तो उसके बारे में कोई भी खयालात रख सकते हैं। लेकिन मैं अपनी कहानी आगे बढ़ाऊँ।

उसमें कई मोड़ हैं, अरागोन की ज़्यादातर सड़कों की तरह; कभी आपको चढ़ना पड़ता है और लिहाज़ा दूसरे वक्तों पर उतरना पड़ता है, क्योंकि जमीन के चढ़ाव और उतार पर मेरा बहुत ज़्यादा ज़ोर नहीं चलता-वह मेरी कूवत में नहीं आता, सड़क की सतहों और ढलानों के ख़िलाफ़ यदि अफ़सरों का बस चले तो सड़कों के किनारे हँसिये से काटे जाएँ-छोटी सड़कों पर हम अब भी हँसिये का इस्तेमाल करते हैं लेकिन यहाँ-वहाँ, उन जगहों में जिन्हें मैं ख़ुद बताता हूँ, मैं हमेशा आदेश देता हूँ कि जितने संभव हों उतने फूल छोड़ दिए जाएँ। यह कोई बहुत महत्त्वपूर्ण मार्ग नहीं है, मंत्रीगण यहाँ से नहीं गुजरते और निरीक्षक का निरीक्षण करने के लिए कौन है ?

मुद्दे पर आएँ। मेरे ये भटकाव उपयोगिता से रहित नहीं हैं। मैं पहले ही कह चुका हूँ कि मेरी कहानी का इलाका क्या है, और वह अपने आप में काफी जटिल था क्योंकि बहुत कम लोग उस जगह को जानते हैं, हालाँकि इसमें मेरा कोई कुसूर नहीं है। लेकिन उस कहानी का विषय-संपूर्ण सौंदर्य और संपूर्ण आनंद-ऐसा नहीं है कि जिसके बारे में मेरे कई प्रसिद्ध सहकर्मी लिखना चाहेंगे। लेकिन यही विषय है जिसे लेकर यह कहानी है। यह इसी से शुरू और ख़त्म होती है, कम से कम अब मैं यही सोचता हूँ। आप देखिए, कि जब मैं शुरू करने वाला हूँ तो अचानक अपने सामने सी 221 का एक हिस्सा देख रहा हूँ, काफी सीधा, जो नुएस्त्रा सेन्योरा दे लास विन्यास के पास है। मैदान, रुपहले जैतून के दरख़्त मिट्टी पर हल्के धब्बे जैसे यहाँ भी कोई जंग लड़ी गई हो, जैसे कि वेर्दून में, और बेशक़ यहाँ भी लड़ी गई है। यह धब्बे हमें अशुभ का स्मरण दिलाने के लिए हैं।

खच्चर पर सवार एक आदमी आता है। बेंत की टोकरियाँ, मिट्टी के बर्तन दोनों तरफ़ एक कुत्ता। हो सकता है कि सारे दिन सड़क पर चला हो, स्वर्ग से एक आकृति की तरह, और यही मेरी कहानी के मुख्य पात्र भी थे। थे नहीं, है, लेकिन जब कहानी शुरू हुई तो वे अम्स्तर्दम के दक्षिणी बाहरी इलाके में फ़्लैटों की ऊँची इमारतों के एक नये उपनगर बीय्लमर में रहते थे और उनके नाम काइ और लूसिआ थे।
संपूर्ण आनंद की धारणा को आप कैसे प्रवेश करवाते हैं ? परेशान मत करो, डामर गर्म और गीला है। उस पर सड़क एंजिन चलाओ ! काइ और लूसिया पूरी तरह से ख़ुश थे...

अब कोई कहेगा कि उन लोगों के बीच संपूर्ण प्रसन्नता जैसी कोई चीज़ नहीं हो सकती जिनके सामने बुढ़ापे, बीमारी और मृत्यु की संभावना हो, लेकिन आप इसे दूसरी तरफ भी घुमा सकते हैं। जो ख़ुद को ऐसी संभावना से परेशान नहीं होने देता वह संपूर्ण आनंद के मार्ग पर बहुत आगे बढ़ चुका है। मैं जानता हूँ कि यह अवधारणा लोकप्रिय नहीं है और हमारे समय की छवि से मेल नहीं खाती, लेकिन इसका कोई इलाज नहीं है। सादा बात तो यह है कि यही सच था। संपूर्ण आनंद, संपूर्ण दुख और उसके समीप पहुँचती किसी भी वस्तु की तरह, सोचने में बहुत भयानक है और इसके अलावा, भले ही मैं कभी यह कहना न चाहूँ कि संपूर्ण आनंद का अस्तित्व कभी कुरूप लोगों में नहीं हो सकता, यह मानना पड़ेगा कि स्तरों में बँटा हुआ एक पैमाना तार्किक रूप से होगा जिसके अनुसार संपूर्ण सुंदर लोगों में संपूर्ण प्रफुल्लता और भी अधिक असह्य है। काई और लूसिआ के साथ यही मामला था, वे जैसा कि दक्षिण में कहा जाता है, ‘ब्लामेलेस’ थे उनमें कोई भी किसी दोष की बात नहीं कर सकता था, संक्षेप में वे सौंदर्यात्मक दृष्टि से किसी भी शिकायत से परे थे। एकमात्र चीज़ जो संभवतः अस्वीकृत की जा सकती थी, उन दोनों को एक बार देख लेने के बाद, और अक्सर दरअसल की भी जाती थी, वह थी स्वयं सौंदर्य की अवधारणा।

लोग सुंदर हो सकते हैं, लेकिन जब बिल्कुल कोई दोष न खोजा जा सके, जब सड़क पर उनसे मिलते वक़्त आदमी इस तरह अपनी राह में रुक जाए कि उस पर बिजली गिर पड़ी हो, तब संपूर्ण सौंदर्य एक ऐसा माप बन जाता है जिससे आदमी ख़ुद अपनी अपूर्णताएँ नापने लगता है, और किसी को भी यह अच्छा नहीं लगता।

4


क्योंकि हमारा निर्माण यूरोपीय साहित्यिक संस्कृति की रूढ़ियों से हुआ है इसलिए एक अकेले लेखक के लिए अपनी कल्पना को सक्रिय कर पाने का बहुत कम अवकाश है; जब से लेखन का प्रारंभ हुआ है, शब्दावली नियत हो चुकी है। लूसिया के केश, निस्संदेह सुनहरे थे (होनीसाइमे’, मधु की मज्जा की तरह, जैसा कि बाद में दक्षिण में किसी ने कहा था)। उसकी आँखें ग्रीष्म के आकाश की तरह साफ नीली थीं, उसके होठ चेरी की तरह लाल थे, उसके दाँत दूध जैसे सफेद। कोई भी जो दूसरे शब्द सोचने की कोशिश करेगा पागल है। संस्कृति एक कूटभाषा है। वह देश जहाँ आड़ू नहीं होते, अभागा है।

क्योंकि वहाँ के लोग नहीं जान पाएँगे कि लूसिया की त्वचा का वर्णन कैसे करें। कोई भी दूसरी तुलना अपर्याप्त होगी क्योंकि उसमें खाने का संकेत नहीं होगा। लूसिया की त्वचा को देखकर मर्दों और औरतों में बराबरी से वह गुप्त नरभक्षी जाग उठता था जो हमारी आत्माओं की प्रागैतिहासिक दलदली मिट्टी में दुबका रहता है। उसके शरीर के परिमान संपूर्ण सामंजस्य में थे, एक ऐसे स्वर्णिम नियम के अनुसार जो उस कारण स्वयं अपनी कसौटी बन गया था। एक फारसी कवि ने एक बार स्त्रियों के स्तनों को जन्नत के माहताब कहा था।

इससे यह प्रश्न उठता है कि क्या संपूर्णता के विभिन्न रूपाकारों का अस्तित्व है, क्योंकि यह बिंब मुझे भारतीय मंदिरों पर बनी लुभावनी मूर्तियों का अधिक स्मरण दिलाता है बजाय बीनस दे मिलो के, जो उनकी छाया से अधिक कुछ भी नहीं है। फिर भी वीनस के समीपतर रहना ही श्रेस्कर है-बहुत अधिक ऐंद्रिकता संपूर्णता की अवधारणा से असंगत लगती है। शायद हमें, क्यों कि हम एक अवधारणा से दो चार हो रहे हैं, आल्बेर्ती और लेओनार्दो जैसे कलाकारों के अमूर्तनों की पड़ताल करनी चाहिए जिन्होंने मानव-शरीर को परस्पर काटती रेखाओं पर बनाया है। मैं लेओनार्दो के उस विख्यात चित्र का उल्लेख कर रहा हूँ जो एक (सौंदर्य वाले) सलीब पर लटका हुआ लगता है जबकि उसके पैर और हाथ कई दूसरी मुद्राओं में उसके आसपास फैले हुए होते हैं। शरीर का दैवीकरण, साथ में प्रकृति और अवधारणा भी, एक ऐसा दोषहीन शरीर जिसके सामने प्रत्येक जीवित शरीर अपूर्ण लगने ही वाला था, भले ही केवल आत्म-रक्षा के कारण-निस्संदेह यह असह्य है।

अपने काम की वजह से मैं संपूर्णता के कुछ स्वरूपों का आदी हूँ। मेरे काम का एक हिस्सा गणित पर आधारित है, जिसका उच्च अध्ययन आदमी को महान काव्य की ऊँचाई खोजने का अवसर देता है, उसके पहले से न बताए जा सकने वाले और, सच कहें तो, अँधियारे पहलू को छोड़कर। दूसरी तरफ हम यहाँ प्रेमियों की चर्चा नहीं कर रहे बल्कि दो जीवित प्राणियों की चर्चा कर रहे हैं, जिन्हें मैं यहाँ सारोगोसा में अपनी कक्षा में वर्णित कर रहा हूँ।
मैं यह कहने की ज़रूरत महसूस कर रहा हूँ कि मेरे अस्तित्व की यही एक विलासिता है। मैं अपनी छुट्टियाँ अकेले बिताता हूँ, अपने परिवार से दूर, लिखने के लिए एक ऐसी मूर्खता जिसके लिए, जैसे जैसे मैं और बूढ़ा होता जा रहा हूँ, मैं और आसानी से माफ कर दिया जाता हूँ क्योंकि मेरे आसपास के लोगों की बहुत ज़्यादा दिलचस्पी मेरे अजीब व्यक्तित्व में नहीं है।
सारागोसा के एक उपनगर के एक प्राथमिक विद्यालय में मेरा भाई प्रधान आवश्यक है और अगस्त के महीने में, जब बेतहाशा गर्मी की वजह से शहर सूना हो जाता है, स्कूल मेरे हवाले कर दिया जाता है। मैं मानता हूँ कि यह कुछ हायास्पद है लेकिन कोई मुझे परेशान नहीं करता और न मैं किसी को परेशान करता हूँ। मेरी पुस्तकें यदि आप उन्हें वह कहना चाहें तो, अस्तूरिआस की राजधानी लेओन का एक छोटा प्रकाशन गृह छापता है, मेरे अपने प्रदेश का कोई नहीं। मेरी पत्नी और बेटे उन्हें कभी नहीं पढ़ते, और उनपर जो भी थोड़ी-सी प्रतिक्रियाएँ मिल पाई हैं वे स्पेन के प्रादेशिक अखबारों में सबसे छोटे टाइप में छपी हैं। यह मेरे लिए काफी है। इससे कुछ भी ज़्यादा से ऐसे तकाजे पैदा होंगे जिनके बग़ैर काइ के अपने वर्णन में, अगर मेरे दिमाग़ में आई पहली चीज़ का ज़िक्र करूँ तो, मेरा काम बख़ूबी चल सकता है।


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