लोगों की राय

भाषा एवं साहित्य >> हिन्दी साहित्यः एक परिचय

हिन्दी साहित्यः एक परिचय

फणीश सिंह

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :202
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3024
आईएसबीएन :81-267-1034-9

Like this Hindi book 15 पाठकों को प्रिय

195 पाठक हैं

प्रस्तुत है हिन्दी साहित्य का एक परिचय...

Hindi Sahitya Ek Parichay

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार, ‘प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिम्ब होता है, तब यह निश्चित है कि जनता कि चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ-साथ साहित्य के स्वरुप में भी परिवर्तन होता चला जाता है। आदि से अंत तक इन्हीं चित्तवृत्तियों की परम्परा को परखते हुए साहित्य परम्परा के साथ उनका सामंजस्य दिखाना साहित्य का इतिहास कहलाता है। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का मत है कि साहित्य का इतिहास ग्रंथों और ग्रंथकारों के उद्भव और विलय की कहानी नहीं है वह काल स्रोत में बहे आते हुए जीवन्त समाज की विकास कथा है। हिन्दी के इन दोनों मूर्धन्य विचारकों की परिभाषा से स्पष्ट है कि साहित्य जनता की चित्तवृत्तियों का संचित प्रतिबिम्ब है। चित्तवृत्तियाँ समय और काल के अनुसार परिवर्तित होती रहती हैं। अतएव साहित्य के स्वरूप में भी परिवर्तन होता रहता है।

 इन परिस्थितियों के आलोक में साहित्य की इस विकासशील प्रवृत्ति को प्रस्तुत करना ही साहित्य का इतिहास कहलाता है। कहना न होगा कि साहित्य का विश्लेषण अध्ययन केवल साहित्य एवं साहित्यकार तक सीमित रखकर नहीं किया जा सकता। साहित्य की विभिन्न प्रवृत्तियों की प्रस्तुति के लिए उससे सम्बन्धित राष्ट्रीय परम्पराओं, सामाजिक परिस्थितियों, आर्थिक परिस्थितियों उस युग की चेतना, साहित्यकार की प्रतिभा तथा प्रवृत्ति का विश्लेषण आवश्यक है।

देशकाल परिस्थिति भेद से समाज का स्वरूप परिवर्तित होता रहता है, साहित्य समाज का ही प्रतिबिम्ब होता है। स्पष्टतः समाज के स्वरूप के परिवर्तन का प्रभाव साहित्य पर पड़ता है। इस प्रकार साहित्य का इतिहास न केवल विकासशील प्रक्रिया का उद्घाटन करता है बल्कि इस क्रम में नए और पुराने संघर्ष को भी रेखांकित करता चलता है। इसके अतिरिक्त इसमें साहित्य एवं समाज को प्रभावित करने वाले विभिन्न आन्दोलनों, परिवर्तनों और प्रयोगों के सम्बन्ध का भी विवेचन होता है। साहित्य के इतिहास में रचना और रचनाकार की सृजनात्मक क्षमता को वर्तमान की कसौटी पर कसा जाता है। विश्वम्भर मानव के शब्दों में किसी भाषा में उस साहित्य का इतिहास लिखा जाना उस साहित्य की समृद्धि का परिणाम है। साहित्य के इतिहास को वह भित्तिचित्र समझिए जिसमें साहित्यिकों के आकृति-चित्र नहीं होते, ह्रदय-चित्र और मस्तिष्क-चित्र ही होते हैं।

प्रस्तावना

हिंदी साहित्य ने अपने चौदह सौ वर्षों के लंबे इतिहास में अनेक रत्न प्रस्तुत किए हैं और उसके अनेक आयाम हैं-गद्य, पद्य, निबन्ध, नाटक, उपन्यास कहानियाँ इत्यादि। इन सारी विधाओं में से चयन करके लेखक डॉ. फणीश सिंह ने एक रोचक संकलन प्रस्तुत किया है। इसमें उन्होंने अलग-अलग काल के प्रामाणिक उदाहरण प्रस्तुत किए हैं जो पाठकों के लिए हिंदी साहित्य का संक्षिप्त सिंहावलोकन है।

हिंदी आज केवल राष्ट्रभाषा ही नहीं, भारत के हिंदीतर क्षेत्रों में और विदेशों में भी अधिकाधिक पढ़ाई जा रही है और धीरे-धीरे एक विश्वभाषा का रूप धारण करती जा रही है। डॉ. फणीश सिंह का यह संकलन छात्रों तथा पाठकों के लिए सिद्ध होगा।

वैसाखी, 13 अप्रैल, 2001
नई दिल्ली-110023

-कर्ण सिंह


लेखक की प्रथम पुस्तक के संबंध में



फणीश सिंह की पुस्तक ‘‘प्रेमचंद एवं गोर्की का कथा-साहित्यः एक अध्ययन’’ में मुख्य रूप से प्रेमचंद और गोर्की की कहानियों का तुलनात्मक विश्लेषण किया गया है। महत्त्वपूर्ण यह है कि इस पुस्तक में दोनों लेखकों की यथार्थवाद संबंधी मान्यताओं पर भी तुलनात्मक ढंग से विचार किया गया है, जो दोनों लेखकों के कलात्मक वैशिष्ट्य कहानियों की कलात्मकता आदि पर विचार करने में सहायक है। इस पुस्तक का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष है-उपयुक्त कहानियों का दोनों लेखकों के कथा-संसार से चयन। यहीं लेखक की आलोचनात्मक प्रतिभा पहचानी जा सकती है। इस विश्लेषण से अनेक नए तथ्य और परिप्रेक्ष्य उद्घाटित हो सके हैं। यह विवेचन संकेत है कि आदर्शवाद निराशा से बचाता है और यह यथार्थवाद के निषेध का सूचक नहीं है।

डॉ. परमानंद श्रीवास्तव


दो शब्द


प्रस्तुत पुस्तक के लिखे जाने का उद्देश्य है हिंदी साहित्य के पाठकों को हिंदी साहित्य के इतिहास संबंधी प्रामाणिक जानकारी प्रदान करना, साथ ही उन्हें अर्द्ध प्रामाणिक एवं अप्रामाणिक समस्याओं से बचाकर आदिकाल से लेकर आज तक की इतिहास संबंधी समस्ययाओं का संक्षिप्त ज्ञान कराना। हमने हिंदी साहित्य के इतिहास के अध्ययन के क्रम में पाया कि भारत के अधिकांश विद्यार्थियों के समक्ष हिंदी साहित्य के सुगम इतिहास का अभाव है। अतएव विद्यार्थियों के हित में इस कमी को पूरा करने का प्रयास भी हमारा लक्ष्य था।

यह संक्षिप्त इतिहास-ग्रंथ परिचयात्मक है। हिंदी भाषी एवं गैर-हिंदी भाषी विद्यार्थियों के अध्ययन की दृष्टि से इसे तैयार किया गया है। हिंदी भाषा और साहित्य का कालखंड अंग्रेजी फ्रेंच एवं रूसी भाषाओं के कालखंड से अधिक व्यापक है। आज हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है एवं संवैधानिक रूप में यह सरकारी कामकाज की भाषा है। इस परिप्रेक्ष्य में विद्यालय एवं विश्वविद्यालय स्तर पर तथा सामान्य ज्ञान के स्तर पर देश के हर व्यक्ति से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वह कम से कम अपनी भाषा राजभाषा हिंदी के कालजयी कवियों, कथाकारों एवं की उनकी कृतियों का सामान्य ज्ञान रखे तथा हिंदी साहित्य की उन प्रवृत्तियों से परिचित हो जिन्होंने देश के सांस्कृतिक इतिहास को एक नया मोड़ दिया है। पुस्तक के परिशिष्ट में हमने कुछ प्रतिनिधि कविताओं का भी समावेश किया है।

कोई रचना अपने आप में सर्वथा नहीं होती। लेखक की अपनी सीमा होती है और उसी सीमा के अंतर्गत वह विषयों को प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। इस क्रम में अभावों का रह जाना स्वाभाविक है। फिर भी जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इस पुस्तक का लेखन हुआ है, उसमें यदि यह पुस्तक सहायक हुई तो मैं अपने प्रयासों को सार्थक मानूँगा इसी विश्वास के साथ आपके हाथों में इस पुस्तक को सौंपते हुए मुझे संतोष का अनुभव हो रहा है। लेखन क्रम में जिन रचनाकारों की कृतियों से हमें परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से सहायता मिली है, उनके प्रति आभार प्रकट करना हमारा दायित्व है।

फणीश सिंह


प्रथम अध्याय


हिंदी साहित्यः एक परिचय


हिंदी का अर्थ है हिंद से संबंध रखने वाली। इस व्यापक अर्थ में भारत की सभी भाषाएँ इसके अंतर्गत आ जाती है। डॉ. धीरेन्द्र वर्मा के शब्दों में ‘‘आजकल वास्तव में इसका प्रयोग उत्तर भारत के मध्यदेश के हिंदुओं की वर्तमान साहित्यिक भाषा के अर्थ में तथा इसी भूभाग की बोलियों और इनसे संबंध रखने वाले प्राचीन साहित्यिक रूप के अर्थ में साधारणतया होता है। मुख्यता हिंदी का अभिप्राय होता है-खड़ी बोली हिंदी। यही देश की राष्ट्रभाषा है और इसी में देश की पत्र-पत्रिकाएँ निकलती हैं, यही उच्च शिक्षा और व्यापक प्रचार का माध्यम है।’’

साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित हिंदी साहित्य का इतिहास के अनुसार, ‘‘हिंदी आज भारतवर्ष के एक विशाल प्रदेश की साहित्य भाषा है। राजस्थान और हरियाणा राज्य की पश्चिमी सीमा से लेकर बिहार के पूर्वी सीमांत तक तथा उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के उत्तरी सीमांत से लेकर मध्य प्रदेश के दक्षिणी छोर तक अनेक राज्यों की साहित्यिक भाषा को हम हिंदी कहते हैं।’’ वस्तुत हिंदी साहित्य के इतिहास में ‘हिंदी’ शब्द का व्यवहार बड़े व्यापक अर्थों में होता रहा है। जिस विशाल भूभाग को आज हिंदी भाषा- भाषी क्षेत्र कहा जाता है। उसका कोई एक निश्चित नाम निर्धारित करना मुश्किल है। परंतु इसके मुख्य  भाग को पहले से ही मध्यदेश कहते रहे हैं। इसे हिंदीप्रदेश कहना अधिक उचित जान पड़ता है।



प्रथम पृष्ठ

लोगों की राय

No reviews for this book