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श्री दसम ग्रन्थ साहिब 3

जोधसिंह

प्रकाशक : भुवन वाणी ट्रस्ट प्रकाशित वर्ष : 2002
पृष्ठ :710
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2809
आईएसबीएन :81-7951-007-7

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इसमें श्री दसम ग्रन्थ साहिब की तृतीय सैंची का वर्णन है...

Shri Dasam Granth Sahib (3)-A Hindi Book by DR. Jodh Singh

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्रकाशकीय प्रस्तावना
नवीन संशोधित संस्करण


विषय -प्रवेश

भुवन वाणी ट्रस्ट के ‘देवनागरी अक्षयवट’ की देशी-विदेशी प्रकाण्ड शाखाओं में संस्कृत, अरबी, फारसी, उर्दू, हिन्दी, कश्मीरी, गुरुमुखी, राजस्थानी, सिन्धी, गुजराती, मराठी, कोंकणी मलयाळम, तमिल, कन्नड़ तेलुगु, ओड़िया, बँगला असमिया, मैथिली, नेपाली, अंग्रेजी, हिब्रू, ग्रीक, अरामी आदि के वाङ्मय के अनेक  अनुपम ग्रन्थ-प्रसून और किसलय खिल चुके हैं, अथवा खिल रहे हैं। इस नगरी अक्षयवट की गुरमुखी शाखा में प्रस्तुत यह ‘दसम ग्रन्थ साहिब’ ग्रन्थ तीसरा पल्लव-रत्न है।

गुरुमुखी लिपि की अलौकिकता

विश्व की प्रायः सभी लिपियाँ अपने निजी क्षेत्र के नाम पर प्रसिद्ध हैं। कितु संस्कृत, देवनागरी और गुरुमुखी इसका अपवाद हैं। ये संस्कृति और धर्म का प्रतीक हैं। बल्कि गुरुमुखी का तो नाम ध्यान में आते हैं सन्तों और गुरुजनों का स्मरण हो आता है। रोम-रोम में एक पवित्रता छा जाती है। वैसे तो गुरुमुखी में सभी प्रकार का साहित्य मौजूद है, परन्तु गुरुमुखी का नाम लेते ही ‘श्री आदि गुरुग्रन्थ साहिब’ का पवित्र स्मरण मूर्तमान हो जाता है।

श्री दसम गुरुग्रन्थ की तीसरी सैंची का नागरी में अवतरण

लोकप्रख्यात धर्मग्रन्थ ‘श्री गुरूग्रन्थ साहिब’ का पावन ग्रन्थ 3764 पृष्ठों और चार सैंचियों में पहले ही प्रकाशित होकर हिन्दी जगत के सम्मुख अवतीर्ण हुआ और जनता ने बड़ी उत्कण्ठा और भावावेश में उसका स्वागत किया। इस सोल्लास प्रतिक्रिया से प्रोत्साहित होकर हमने तत्काल श्री दसमग्रन्थ साहिब के नागरी रूपान्तर की योजना बनायी और उसी के फलस्वरूप श्री दसमग्रन्थ साहिब की यह प्रथम सैंची पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत है। शेष तीन सैंचियाँ मुद्रित हो रही हैं।


प्रथम सैची में दी प्रकाशकीय प्रस्तावना

ट्रस्ट का भाषाई उद्देश्य, लिप्यन्तरण की महिमा अब तक का कार्यकलाप, पवित्र गुरुवाणी की भाषा, श्रीआदि गुरुग्रन्थ साहिब का अति विशुद्ध नागरी लिप्यान्तरण तथा सर्वप्रथम हिन्दी अनुवाद का अवतरण, हिन्दी-जगत में उनका स्वागत, राष्ट्रीय एकता और विश्वबन्धुत्व की भावना, गुरुवाणी की अमृतवर्षा, दशगुरु—अवतार, क्रमषः शान्त-रस से वीर और वीर से रौद्र-रस के प्राकट्य, गुरुमुख मनमुख ज्योति से ज्योति का समावेश आदि पर एक विशद प्राक्कथन, श्री दशम ग्रंथ साहिब की प्रथम सैंची में दिया जा चुका है। अब प्रकाशकीय प्रस्तावना का परिशिष्टांश चौथी सैंची में प्रस्तुत किया जाएगा।

श्री दसम गुरुग्रंथ साहिब नगरी लिप्यान्तरण


दसम ग्रन्थ की भाषा ‘‘आदि गन्थ’’ की भाषा से पृथक् है। इसमें प्राचीन ब्रजभाषा में कवित्तो की रचना है। मूल पाठ गुरुमुखी लिपि से पृथक् न हो और काव्य के पढ़ने के धारा-प्रवाह में विघ्न् न हो इसके लिए नागरी लिप्यान्तरण में विशेष सतर्कता रखी गई है। ग्रन्थ का नागरी लिप्यान्तरण ट्रस्ट के कुशल विद्वानों ने बड़े श्रम और अनन्य निष्ठा से किया है।

गुरुमुखी एवं नागरी गन्थों के पीछे के मिलान की सुविधा

गुरुमुखी और हिन्दी संस्करण में कौन पाठ एक-दूसरे में कहाँ है, यह जानने के लिए प्रथम सैंची के अनुसार इस दूसरी सैंची में भी हिन्दी मूलपाठ के बीच में छोटे आकार में पृष्ठ संख्या दी गयी है।

आभार-प्रदर्शन

सर्वप्रथम हम सरदार डॉ. जोधसिंह जी के कृतज्ञ हैं, जिन्होंने निस्पृह भाव से ट्रस्ट के आग्रह पर अनुवाद जैसे जटिल और गहन कार्य को राष्ट्रहित में अति श्रम एवं तत्परता से किया। सर्वाधिक श्रेय उनको है।


विश्ववाङ्मय से निःसृत अगणित भाषाई धारा।
पहन नागरी पट, सबने अब भूतल-भ्रमण विचारा।।
अमर भारती सलिला की ‘गुरुमुखी’ सुपावन धारा।
पहन नागरी पट, ‘सुदेवि’ ने भूतल-भ्रमण विचारा।।

नन्दकुमार अवस्थी

अनुवादकीय


 इस तीसरी जिल्द में शस्त्रनाममाला और चरित्रोपाख्यान के कुछ भागों का अनुवाद पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। शस्त्रनाममाला दृष्टकूट शैली में रचित गुरु गोविंद सिंह जी की अनुपम कृति है जिसमें शस्त्र और शास्त्रीयता का सुन्दर समन्वय दिखाई पड़ता है। यह सर्वविदित है कि गुरु गोविन्दसिंह शास्त्रों को ही गुरु, पीर और सब कुछ मानते थे। (असि कृपाणा खंडो खड़क तुपक तबर अरु तीर। सैफ सरोही सैहथी यहै हमारे पीर।) इस शस्त्रनाममाला नामक गन्थ में गुरू जी ने जहाँ तलवार, चक्र, तीर, पराश और बंदूक (तुपक) आदि पाँच अस्त्र-शस्त्रों का वर्णन किया है, वहीं साथ ही साथ इन अस्त्र-श्स्त्रों के साथ पौराणिक भारतीय नायकों का संबंध दिखलाकर अपने भारतीय वाङ्मय के गंभीर ज्ञान का भी परिचय दिया है शस्त्र-अस्त्र शक्ति के प्रतीक हैं और यह शक्ति उस परम शक्तिमान से भिन्न नहीं है। भारतीय धर्म-दर्शन में उस शक्ति उस परम शक्ति से भिन्न नहीं है। भारतीय धर्म-दर्शन में उस शक्ति को चंडी दुर्गा आदि स्थूल रोपों में परिकल्पित किया गया है, परन्तु जैसा कि हम जानते हैं कि सिक्ख-धर्म –देवताओं के ठोस-अस्तित्व में विश्वास नहीं करता और इस प्रकार की कल्पनाओं को विभिन्न मत-मतान्तरिक वाद-विवादों की जड़ता मानता है, गुरु गोविन्द सिंह जी ने उस शक्ति का प्रतीक इन अस्त्र-शस्त्र को माना है। इस शस्त्रनाममाला को कुछ विद्वानों ने शस्त्रों के नामों का कोश भी माना है।

इस रचना की भाषा ब्रज है और अड़ियल, सोरठा, चौपाई, दोहा, आदि छन्दों का प्रयोग किया गया। रीतिकालीन परम्पराओं के अनुरूप ही रचयिता ने शब्द-चमत्कार का पूरा-पूरा ध्यान रखा है और बड़े लंबे-चौड़े मोड़ देने के बाद वास्तविक अर्थ तक पहुँचा गया है; जैसे—‘‘तिमिरहा भगति सुत चरपति शत्रु’’—बंदू। दूसरी ओर इस प्रकार से शस्त्रों के नाम लिखना गोपनीयता के दृष्टिकोण से एकत सेनानायक लिए नितांत आवश्यक भी है। गुरु गोविंद सिंह जैसे महान योद्धा की लेखनी से इस प्रकार के साहित्य का सृजन स्वाभाविक ही है। उन्होंने शस्त्र-शास्त्र सब ओर से अपने सिक्खों को निपुण बनाने के लिए कमर कसी थी और अपने 42 वर्ष के स्वल्प जीवनकाल में ही वे अपने उद्देश्य में सफल भी हो गए थे।
चरित्रोपाख्यानों के संबंध में मैं यथासंभव पहली सैंची की भूमिका में काफी कुछ कह चुका हूँ, अतः यहाँ उसे फिर से दुहराना न तो उचित है और न ही संभव है। तीसरी जिल्द के इतने शीघ्र प्रकाशन के लिए भुवन वाणी ट्रस्ट के प्रमुख न्यासी श्री नन्द कुमार अवस्थी जी का मैं हृदय से आभारी हूँ और मुझे आशा है कि चौथी सैंची और अंतिम जिल्द भी इसी वर्ष के अन्त तक छपकर पाठकों तक पहुँच जायगी।

जोधसिंह


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