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फलों और सब्जियों से चिकित्सा

हरिकृष्ण बाखरू

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2661
आईएसबीएन :81-7315-488-0

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फलों और सब्जियों से चिकित्सा से संबंधी जानकारियाँ...

Phalon Aur Sabjiyon Se Chikitsa

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

विश्व की अधिकांश चिकित्सा पद्धतियों- आयुर्वेद, यूनानी, होम्योपैथी, तिब्बती, एलोपैथी आदि में- अनेक प्रकार की वनस्पतियों यानी फलों-सब्जियों एवं उनके अवयवों आदि का उपयोग ही अधिक होता है। आयुर्वैदिक चिकित्सा में प्रमुख बात यह होती है कि इसमें उपयुक्त दवाओं में रोग के मारक गुण कम और शोधक अधिक होते हैं।

वैसे तो क्या गरीब, क्या अमीर-सभी लोग फलों एवं सब्जियों का उपयोग अपने सामर्थ्य के अनुसार करते ही हैं, लेकिन इनका उपयोग यदि चिकित्सा की दृष्टि से किया जाए तो अनेक छोटे बड़े रोगों से छुटकारा मिल सकता है। फल एवं सब्जियाँ स्वास्थ्य के रक्षक हैं।

डॉ. हरिकृष्ण बाखरू की एक प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ तथा बहुआयामी लेखक के रूप में देश भर में प्रतिष्ठा है।
न्यूरोपैथी में डिप्लोमा प्राप्त डॉ. बाखरू की सभी पुस्तकों को लोगों की व्यापक प्रशंसा प्राप्त हुई है और उनके कई-कई संस्करण हुए हैं। लखनऊ विश्वलिद्यालय से इतिहास में प्रथम श्रेणी प्रथम स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त डॉ.बाखरू ऑल इंडिया आल्टरनेटिव मेडिकल प्रक्टिशनर्स एसोसिएशन के एसोसिएट सदस्य।

अंगूर

अंगूर मानव जाति के लिए प्रकृति के बहुमूल्य उपहारों में से एक है। यह अत्यधिक उपयोगी फलों में से एक है। यह स्वादिष्ट, पोषक और आसानी से पचनेवाला फल है। अंगूर की कई किस्में हैं जो आकार, रंग सुगंध और स्वाद में भिन्न होती हैं। यह हरे, काले, लाल और बैगनी रंगों में पाया जाता है।
अंगूर की खेती प्राचीन समय से ही होती आ रही है। मानव द्वारा उगाई जानेवाली अति प्राचीन फलों की बेलों में से यह एक है। मिस्र के आठ हजार वर्ष पुराने शिलाखंडों में अंगूर की नक्काशी पाई गई है। ‘बाइबल’ में भी इस फल के कई संदर्भ मिलते हैं।

माना जाता है कि यह काकेशिया (caucasia) और उसके आस-पास के क्षेत्रों में उद्गमित हुआ है। यहाँ से यह धीरे-धीरे उष्ण क्षेत्रों-पश्चिम एशिया, दक्षिण यूरोप, अल्जीरिया और मारकोस में क्रमिक रूप से फैला। भारत में यह बहुत पहले से पहुँच चुका था। अब इस फल को दक्षिण यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और मध्य-पूर्व के देशों में व्यापक पैमाने पर उत्पन्न किया जाता है।

आहार मूल्य


प्रमुखतः इसमें शर्करा की मात्रा अधिक होने के कारण, जो कि पूर्णतया ग्लूकोज से बनती है, यह बहुत उपयोगी फल है। अंगूर की विभिन्न किस्मों में ग्लूकोज की मात्रा 15 से 25 प्रतिशत तक रहती है। ग्लूकोज पूर्व पचित आहार है और यह रक्त में जल्दी ही घुलनशील है। यह थोड़े समय में ही शरीर को ऊर्जा देता है।

अंगूर में कई अन्य खाद्य तत्त्व भी पाए जाते हैं। हलके हरे अंगूरों में प्रति 100 ग्राम में लगभग आर्द्रता 79.2, प्रोटीन/वसा 0.3, खनिज 0.6, रेशा 2.9 और कार्बोहाइड्रेट 16.5 प्रतिशत रहता है। इसके प्रति 100 ग्राम गूदे में कैल्सियम 20 मि.ग्रा., फॉस्फोरस 30 मि.ग्रा. लौह 0.5 मि.ग्रा. और विटामन ‘सी’ 1 मि.ग्रा. रहता है। इसका कैलोरिक मूल्य 71 है।

औषधीय उपयोग


अंगूर में ग्लूकोज की मात्रा पर्याप्त परिणाम में होती है। अध्ययनों से ज्ञात होता है कि हृदय और शरीर के महत्त्वपूर्ण अवयवों को उचित प्रकार से कार्य करने के लिए आवश्यक ऊर्जा ग्लूकोज के मेटाबोलिज्म पर आधारित है। अतः अंगूर आसानी से घुलनशील होने के कारण शरीर को शक्ति प्रदान करता है। इसलिए यह कमजोर पाचन, सामान्य कमजोरी और बुखार में बहुत उपयोगी है।

कब्ज :
अंगूर में सेल्यूलोज, शर्करा और कार्बनिक अम्ल के गुणों का संगम होने के कारण यह जुलाब देनेवाला है। कब्ज से राहत पहुँचाने में यह बहुत लाभकारी है। इसका क्षेत्र आँत को साफ रखने तक की ही सीमित नहीं है, बल्कि यह पेट और आँत को साफ करके पुरानी कब्ज को भी दूर करता है। वांछित परिणाम के लिए प्रतिदिन कम-से-कम 350 ग्राम अंगूर सेवन करना चाहिए। ताजे अंगूर न मिलने पर किशमिश को पानी में भिगोकर उपयोग में लाया जा सकता है।

बदहजमी :
 बदहजमी में अंगूर उपयोगी है। यह हलका आहार है, जो थोड़े समय में ही अपचन दूर करता है तथा पेट की जलन दूर करता है और गरमी में राहत पहुँचाता है।

दमा :
अंगूर दमे में उपयोगी समझा जाता है। डॉ. ओल्डफील्ड के अनुसार, अंगूर और उसका रस दमे के उपचार में उपयोगी हैं। उनका मानना है कि यदि रोगी को अंगूरों के बगीचे में रखा जाए तो शीघ्र स्वास्थ्य-लाभ होगा।

मिरगी :
 मिरगी में अंगूर बहुत लाभकारी है। लगभग 500 ग्राम ताजा अंगूरों का रस दो या तीन महीने दिन में तीन बार सेवन करने से बहुत लाभ पहुँचता है। यूरोपीय और यूनानी चिकित्सक पुराने समय से इसका उपयोग उपचार में करते रहे हैं।

हृदय रोग :
 अंगूर हृदय रोग में बहुत लाभकारी है। यह हृदय को स्वस्थ रखता है और हृदय-शूल और हृदय संबंधी विकारों में उपयोगी है। मरीज को यदि कुछ दिनों तक केवल अंगूर ही दिए जाए तो इस रोग को शीघ्रता से नियंत्रित किया जा सकता है। हार्ट अटैक में अंगूर का रस बहुत उपयोगी होता है। यह हृदय के दर्द और तीव्र धड़कन को कम कर हृदयाघात के परिणामों से बचा सकता है।

सिरदर्द (आधा सीसी) :
पके अंगूरों का रस माइग्रेन यानी आधा सीसी के लिए बहुत उपयोगी घरेलू उपचार है। कहा जाता है कि किंग जमशेद, जिन्हें अंगूरों का बहुत चाव था, ने अंगूरों का रस बोतलों में अच्छी तरह पैक करके यह प्रचारित कर दिया कि इसमें विष है, ताकि अन्य लोगों से इसे बचाया जा सके। किंतु इस प्रचार के पश्चात् एक रोचक घटना घटित हुई। हुआ यों कि किंग जमशेद की पत्नी माइग्रेन से पीड़ित हो गई और किसी भी उपचार से फायदा न पहुँचने पर दुःखी होकर सोचा कि इस विष को पीकर अपने जीवन का अंत कर लूँ। रानी ने डरते-डरते उसे थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कई बार पिया-और आशा के विपरीत, उसे मरने के बजाय इससे बहुत राहत पहुँची।

गुरदे की बीमारी :
अंगूर में आर्द्रता और पोटैशियम लवण की मात्रा अधिक होने से यह मूत्रवर्धक होता है। इसमें अल्ब्यूमिन और सोडियम क्लोराइड की मात्रा कम होने से गुरदे की बीमारियों में इसका महत्त्व बढ़ गया है। यह पुराने नेप्थ्राइटिस, गुरदे तथा गुरदे की पथरी के लिए उत्कृष्ट आहार-ओषधि है।

यकृत की गड़बड़ी :
यह हेपेटिक कार्यों को क्रियाशील करता है तथा ग्लाइकोजेनिक कार्यों और पित्त के स्राव को उद्दीप्त करता है। अतः यह यकृत की अनियमितताओं के लिए बहुत लाभकारी है।

शराब की आदत :
 यह शराब की आदत छुड़ाने के लिए बहुत प्रभावी उपचार है; क्योंकि इससे उसका शुद्ध रूप मिलता है। शराब पीनेवालों के उपचार में केवल अंगूर की खुराक देनी चाहिए।

सामान्य उपयोग


अंगूर का उपयोग कई प्रकार से किया जाता है। साधारणतया इन्हें फल के रूप में खाया जाता है। इन्हें सुखाकर किशमिश के रूप में भी उपयोग में लाया जाता है। इससे जैम और जैली भी बनते हैं। यही मीठी चटनी, रायता, खीर आदि व्यंजनों में भी उपयोग में लाया जाता है।

अनन्नास


अनन्नास उष्णकटिबंधीय क्षेत्र के उत्कृष्ट फलों में से एक है। अपनी विशेष सुगंध और उत्तम स्वाद के कारण यह सार्वभौमिक रूप से लोकप्रिय फल है। यह फल पोषक तत्त्वों से परिपूर्ण है।
अनन्नास का उद्गम स्थान ब्राजील है। कोलंबस और उसके साथी पहले यूरोपियन थे, जिन्होंने इसे चखा, सन् 1493 में गौडेलोप के द्वीप पर उतरने पर उन्होंने इस फल को देखा।

अब अनन्नास बहुत से उष्णकटिबंधीय और उप उष्णकटिबंधीय देशों में बहुतायत से उगाया जाता है। भारत में असम और केरल उत्पादन में अग्रणी हैं। पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, उड़ीसा गोवा कर्नाटक और तटवर्ती आंध्र प्रदेश में भी इसे उगाया जाता है।

आहार मूल्य


अनन्नास में उच्च आहार मूल्य समाहित हैं। खाद्य भाग ताजा फल का 60 प्रतिशत रहता है। अनुमानतः इसमें प्रति 100 ग्राम में जल 87.8 प्रोटीन 0.4, बसा 0.1 खनिज पदार्थ 0.4 रेशा 0.5 और कार्बोहाइड्रेट 10.8 प्रतिशत रहता है। इसके खनिज पदार्थ और विटिमिन पदार्थ की मात्रा कैल्सियम 20, फॉस्फोरस 9, लौह 1.2 कैरोटीन 18, थायमिन 0.20, रिबोफ्लोविन 0.12 नायमिन 0.1 और विटामिन ‘सी’ 39 मि.ग्रा. रहता है। इसका कैलोरिक मूल्य 46 है।

सामान्यतः इसमें स्टार्च नहीं रहता, क्योंकि जैसे ही फल पकता है, तने का स्टार्च शर्करा में बदल जाता है। अनन्नास में क्षारीय प्रतिक्रिया होती है। फल का गूदा एक प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करता है और कठोर छिलका इसे महामारी एवं कीटनाशकों दोनों से सुरक्षित रखता है।

औषधीय उपयोग


चिकित्सा की दृष्टि से अनन्नास अति महत्त्वपूर्ण फलों में से एक है। इसमें ब्रोमोलिन नामक रस उपस्थित रहता है, जो काफी हद तक पपैन के समान होता है। और यह पाचक और पोषक तत्त्वों के घुलने में मदद करता है और शरीर के तरल पदार्थ को बहुत अम्लीय या क्षारीय होने से रोकता है। यह मांस, अंडे की सफेदी, दूध के केसिन, मछली और दालों को पचाने में मदद करता है। अतः यह प्रोटीनयुक्त भोजन के अंत में लेना बहुत फायदेमंद है।
अनन्नास का रस महत्त्वपूर्ण फलों के रसों में से एक है। सौभाग्य से यह रस डिब्बाबंद रसों के रूप में हमेशा उपलब्ध रहता है, जो उतना ही गुणकारी होता है। जितना ताजे फल का रस। जब ताजा रस में शहद मिलाया जाता है तो यह कमजोर मरीजों का अति पोषक स्फूर्तिदायक पेय बन जाता है।

बदहजमी :
अनन्नास बदहजमी में टॉनिक के रूप में उपयोगी है। इसके रस का सेवन पाचन अवरोधों को दूर कर बदहजमी ठीक करता है। सामान्य अवस्था में आधा गिलास रस भोजन के बाद लेना चाहिए।

गले के विकारों में : अनन्नास के ताजा रस से गले में उपशामक प्रभाव रहता है। यह स्वर-तंत्रिका के संक्रमण को रोकने में उपयोगी है। यह गायकों के लिए बहुत उपयोगी है, जो गले को स्वस्थ रखने के लिए बहुधा इसका सेवन करते हैं। डिफ्थीरिया में गले की मृत झिल्लियों को हटाने के लिए इसके रस की कुल्ली करते हैं।

गुरदे की अनियमितताएँ :
इसके रस में चूँकि पर्याप्त मात्रा में क्लोरीन रहता है, अतः यह गुरदे की गतिविधियों को उत्तेजित करता है और शरीर से बहुत से अनुपयोगी पदार्थ बाहर निकालने में मदद करता है। इसी कारण रोग में काफी राहत पहुँचाता है। नैसर्गिक पोटैशियम प्रचुर मात्रा में होने के कारण गुरदे की बीमारियों, अल्पमूत्र और मासिक धर्म में होनेवाली जलन आदि में में इसका उपयोग लाभदायी होता है।

त्वचा संबंधी शिकायतें :
गोखरू (corn) और मस्से पर इसका रस लगाने से वे धीरे-धीरे घुल जाते हैं। कई गंभीर त्वचा रोगों (कुष्ठ रोग सहित) के उपचार में भी यह उपयोगी है। कच्चे फल का ताजा रस यदि घाव पर लगाया जाए तो घाव भरने का कार्य करता है।

क्षय रोग :
अनन्नास का रस क्षय रोग के उपचार में सहायक है। पहले, जब क्षय रोग की चिकित्सा विकसित नहीं थी तब, जब यह रोग किसी व्यक्ति को होता था उसे अनन्नास के रस का सेवन कराया जाता था। उसका रस रोगी के बलगम के शमन में प्रभावकारी असर करता है और इससे स्वास्थ्य लाभ में बहुत अच्छी सहायता मिलती है।

गर्भपात :
 अनन्नास में गर्भपात करवाने के गुण विद्यमान हैं। इसमें पाया जानेवाला ब्रोमेलिन नामक रस-यह ट्रिप्सिन के काफी करीब है, जो कि साधारणतया शरीर के पाचन रस में पाया जाता है-भ्रूण कोशिकाओं के लिए विनाशकारी है। कच्चा अनन्नास लेने पर जोरदार गर्भाशय संकुचन होने की संभावना रहती है। गर्भपात करवाने के गुणों के कारण कुछ औरतें इसकी पत्तियों के रस का भी उपयोग करती हैं।

धूमपान के दुष्प्रभाव :
अनन्नास का नियमित रूप से सेवन करने से अत्यधिक धूमपान का दुष्प्रभाव कम हो जाता है। यह सिद्ध हो चुका है कि धूमपान से रक्त में विटामिन ‘सी’ का  स्तर कम हो जाता है। अनन्नास का सेवन करने से अपेक्षित विटामिन ‘सी’ की प्राप्ति होती है।

सामान्य उपयोग


आमतौर पर अनन्नास का उपयोग उष्णकटिबंध और उप उष्णकटिबंध में किया जाता है। अनन्नास का रस व्यापक पैमाने पर उपयोग में लाया जाता है। अनन्नास का गूदा विभिन्न रूपों में डिब्बाबंद किया जाता है। इसका जैम और मार्मलेड भी बनाया जाता है।

सावधानियाँ


कच्चा अनन्नास गेस्ट्रो इंटेस्टीनल उद्दीपक है। यह पेट के लिए हानिकर है और इससे अपचन होती है। कच्चा फल खाने से दस्त भी लग जाते हैं और जीभ पर दरारें पड़ जाती हैं।

अमरुद


प्रसिद्ध अंग्रेजी कहावत-‘एन एप्पल अ डे कीप्स द डॉक्टर अवे’ अमरूद के लिए भी लागू होती है। अमरूद में कई विटामिन्स और खनिज लवण अधिक मात्रा में रहते हैं, जो स्वास्थ्य रक्षण के लिए आवश्यक हैं।
अमरूद  मूलतः दक्षिण अमेरिका का फल है। ऐसा कहा जाता है कि सन् 1526 में वेस्टइंडीज के कई भागों में यह बहुत प्रचलित था। इसे स्पेनिशों द्वारा पेसिफिक से फिलिपींस ले जाया गया और पुर्तगालियों द्वारा पश्चिम से भारत लाया गया, जिससे यह पूरे उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में फैल गया। अब यह फल अधिकतर उष्णकटिबंधीय देशों में स्थानीय माँग की पूर्ति के लिए उगाया जाता है। संपूर्ण भारत में यह व्यापक पैमाने पर उगाया जाता है।

आहार मूल्य


अमरूद खाद्य गुणों में अधिक धनी है। इसफल के गूदे और बीज के प्रति 100 ग्राम में आर्द्रता 81.7, प्रोटीन 0.9, वसा 0.3, खनिज, 0.7, कार्बोहाइड्रेट 11.2 तथा रेशा 5.2 प्रतिशत रहता है। प्रति 100 ग्राम फल में कैल्सियम 10, फॉर्फोरस 28, और लौह 1.4 मि.ग्रा. रहता है।

अमरूद विटामिन ‘सी’ के प्रचुरतम स्रोतों में से एक है। आँवले के बाद इसका स्थान दूसरा है। इसमें विटामिन ‘सी’ की मात्रा प्रति 100 ग्राम में 212 मि.ग्रा. है। इसकी तुलना में चूने में 63, नींबू में 39 और संतरे में 30 मि.ग्रा. प्रति 100 ग्राम है। इसकी कुछ किस्मों में इस विटामिन की 450 मि.ग्रा. तक मात्रा रहती है। इसमें विटामिन ‘सी’ और थायमिन का कुछ अंश रहता है। इसका कैलोरिक मूल्य 51 है।

अमरूद के छिलके में सबसे ज्यादा विटामिन ‘सी’ रहता है। इसके छिलके, उसके जरा नीचे के गूदे और पल्प में इस विटामिन का अनुपात 12:5:3 रहता है। अतः इसके गूदे को कभी फेंकना नहीं चाहिए, क्योंकि इसमें उपस्थित लौह तत्त्वों का 4/5 भाग रहता है।

औषधीय उपयोग


पके अमरूद का गूदा दूध व शहद के साथ लेना उत्कृष्ट प्राकृतिक विटामिन ‘सी’ और कैल्सियम टॉनिक है। गर्भावस्था और दुग्ध-स्रवण के दौरान अमरूद का सेवन बहुत फायदेमंद होता है। इससे शक्ति और स्फूर्ति मिलती है। इसके गूदे को मलमल के कपड़े में छानकर सेवन करना चाहिए।

दाँत और मसूड़ों की परेशानियाँ :  
कच्चे अमरूद में टॉनिक गेलिक, ऑक्जेलिक और फास्फोरिक अम्ल के साथ-साथ कैल्सियम, ऑक्जेलेट और मैंगनीज भी रहते हैं। इसका सेवन दाँतों और मसूड़ों के लिए उत्कृष्ण टॉनिक है। यह अपने रक्त-स्तंभक प्रभाव और विटामिन ‘सी’ की प्रचुरता के कारण मसूड़ों से खून निकलने को रोकता है। इसकी कोमल पत्तियों को चबाने से भी मसूड़ों से खून-आना, साँस में बदबू आने इससे राहत मिलती है तथा दाँतों को मजबूती मिलती है। मसूड़ों की सूजन में इसकी जड़ की छाल को उबालकर उस पानी से कुल्ला करना लाभप्रद रहता है।
 
आँव और पेचिश :
कच्चे अमरूद का उपयोग आँव में किया जाता है। छोटे-छोटे फलों के गूदे को छाछ के साथ लेना साधारण आँव, पेचिश और स्प्रू में बहुत प्रभावी आहार ओषधि है। इसकी जड़ की छाल में भी टेनिन अधिक रहता है। बचपन में होनेवाली आँव में इसका काढ़ा बहुत उपयोगी है। हैजे में इसे उलटी और आँव के लक्षणों को रोकने में उपयोगी कहा गया है।

कब्ज :
पका अमरूद विश्वसनीय दस्तावर होता है। प्रतिदिन एक अमरूद सेवन करने से कब्ज दूर होती है, किंतु इसका छिलका व बीज न निकाले जाएँ अन्यथा इसका असर बहुत कम हो जाता है। इसको नाश्ते में लेना बहुत लाभकारी है।
हृदय की धड़कन : हृदय संबंधी विकार और एनीमिया के कारण होनेवाली हृदय की धड़कन की अनियमितता के उपचार में प्रतिदिन खाली पेट एक पका अमरूद खाना बहुत लाभकारी है।

श्वेत प्रदर :
अमरूद की कोमल पत्तियों से बना काढ़ा सूप के रूप में उपयोग करने पर श्वेत प्रदर में लाभ करता है। यह अधिक बच्चों को जन्म देने के कारण होनेवाले योनि-शैथिल्य में भी लाभ पहुँचाता है।

सामान्य उपयोग


अमरूद पका व मीठा खाया जाता है। गूदेदार अच्छे पके अमरूद को ढककर पकाकर उसका पेस्ट बनाना चाहिए। इस फल के बीज निकालकर इसका परिरक्षक, जैम, जैली, पेस्ट रस और सूप बनाया जाता है।
अमरूद का सबसे बड़ा व्यावसायिक उपयोग जैली के लिए होता है और खट्टे जंगली अमरूद से उत्तम जैली बनती है। इस फल को डिब्बाबंद किया जाता है, जिसके लिए इसे छीलकर काटकर, बीज निकालकर हलकी आँच में पकाया जाता है। रस और सूप को भी डिब्बाबंद किया जाता है।

अमरूद में पाया जानेवाला विटामिन सी का लगभग 50 से 60 प्रतिशत भाग रस से निकाला जा सकता सकता है। इस प्रयोजन के लिए ताजा अमरूदों को काटकर केतली या मिट्टी के बर्तन में थोड़े पानी में उबालना चाहिए। पंद्रह से बीस मिनट तक पकाने के बाद इसका रस निकालना चाहिए। इस रस को धातु के बरतन, खासकर ताँबे के बरतन, में नहीं रखना चाहिए, क्योंकि धातु के समपर्क में आते विटामिन ‘सी’ की क्षमता खत्म हो जाती है। इसे टमाटर से संतरे के रस के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

सावधानियाँ


अमरूद का ज्यादा सेवन नहीं करना चाहिए। बीज सहित इसका गूदा बहुत अधिक मात्रा में खाने से पेट के लिए हानिकार होता है।

आम


आम फलों का राजा माना जाता है। यह उष्णकटिबंधीय क्षेत्र का सबसे लोकप्रिय फल है और इसे ‘एशियाई फलों का राजाकहा जाता है। इसे आहार की बहुत ही उपयोगी सामग्री समझा जाता है। अनेक रोगों की चिकित्सा में यह बहुत लाभप्रद है

आम भारत का देशी फल है और अति प्राचीन काल से यहाँ इसकी खेती होती है। इसका उल्लेख प्राचीन संस्कृत साहित्य में बहुधा मिलता है। धीरे-धीरे आम की खेती भारत से विश्व के सभी उष्णकटिबंधीय और उप उष्णकटिबंधीय फिलीपींस, मलाया, आर्चीपेलागो, मेडागास्कर, उष्णकटिबंधीय, अफ्रीका मिस्र म्याँमार, ईरान, अमेरिका और ब्राजील में भी उगाया जाता है। अब इन देशों में आमों की कई किस्में उगाई जा रही हैं। भारत में ही इसकी पाँच सौ से अधिक किस्में हैं।
पका आम बहुत स्वास्थ्यवर्धक, पोषक शक्तिवर्धक और चरबी बढ़ानेवाला होता है। आम का मुख्य घटक शर्करा है, जो विभिन्न फलों में 11 से 20 प्रतिशत तक विद्यमान रहती है। शर्करा में मुख्यतया इक्षु शर्करा होती है, जो कि आम के खाने योग्य हिस्से का 6.78 से 16.99 प्रतिशत है।

ग्लूकोज व अन्य शर्करा 1.53 से 6.14 प्रतिशत तक रहती है। अम्लों में टार्टरिक अम्ल व मेलिक अम्ल पाया जाता है, इसके साथ ही साथ साइट्रिक अम्ल भी अलप मात्रा में पाया जाता है। इन अम्लों का शरीर द्वारा उपयोग किया जाता है और ये शरीर में क्षारीय संचय बनाए रखने में सहायक होते हैं।
आम के अन्य घटक इस प्रकार हैं-प्रोटीन 9.6, वसा 0.1, खनिज पदार्थ 0.3 रेशा, 1.1 फॉसफोरस 0.02 और लौह पदार्थ 0.3 प्रतिशत। नमी की मात्रा 86 प्रतिशत है। आम का औसत ऊर्जा मूल्य प्रति 100 में लगभग 50 कैलोरी है। मुंबई की एक किस्म का औसत ऊर्जा मूल्या प्रति 100 ग्राम 90 कैलोरी है। यह विटामिन ‘सी’ के महत्त्वपूर्ण स्रोतों में से एक है और विटामिन ‘ए’ का भी प्रचुर स्रोत है।


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