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तिल का ताड़

शेक्सपियर

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :104
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2660
आईएसबीएन :9789350642160

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Much ado about nothing का हिन्दी रूपान्तर.....

Til Ka Taad - A Hindi Book by Shakespeare

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

विश्व साहित्य के गौरव, अंग्रेज़ी भाषा के अद्वितीय नाटककार शेक्सपियर का जन्म 26 अप्रैल, 1564 ई. को इंग्लैंड के स्ट्रैटफोर्ड-ऑन-एवोन नामक स्थान में हु्आ। उनके पिता एक किसान थे और उन्होंने कोई बहुत उच्च शिक्षा भी प्राप्त नहीं की। इसके अतिरिक्त शेक्सपियर के बचपन के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। 1582 ई. में उनका विवाह अपने से आठ वर्ष बड़ी ऐनहैथवे से हुआ। 1587 ई. में शेक्सपियर लंदन की एक नाटक कम्पनी में काम करने लगे। वहाँ उन्होंने अनेक नाटक लिखे जिनसे उन्होंने धन और यश दोनों कमाए। 1616 ई. में उनका स्वर्गवास हुआ।

प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार रांगेय राघव ने शेक्सपियर के दस नाटकों का हिन्दी अनुवाद किया है, जो इस सीरीज में पाठको को उपलब्ध कराये जा रहे हैं।

शेक्सपियर : संक्षिप्त परिचय

विश्व-साहित्य के गौरव, अंग्रेजी भाषा के अद्वितीय नाटककार शेक्सपियर का जन्म 26 अप्रैल, 1564 ई. में स्ट्रैटफोर्ट-ऑन-एवोन नामक स्थान में हुआ। उसकी बाल्यावस्था के विषय में बहुत कम ज्ञात है। उसका पिता एक किसान का पुत्र था, जिसने अपने पुत्र की शिक्षा का अच्छा प्रबन्ध भी नहीं किया। 1582 ई. में शेक्सपियर का विवाह अपने से आठ वर्ष बड़ी ऐन हैथवे से हुआ और सम्भवतः उसका परिवारिक जीवन सन्तोषजनक नहीं था। महारानी एलिज़ाबेथ के शासनकाल में 1587 ई. में शेक्सपियर लन्दन जाकर नाटक कम्पनियों में काम करने लगा। हमारे जायसी, सूर और तुलसी का प्रायः समकालीन यह कवि यहीं आकर यशस्वी हुआ और उसने अनेक नाटक लिखे, जिनसे उसने धन और यश दोनों कमाए। 1612 ई. में उसने लिखना छोड़ दिया और अपने जन्म-स्थान को लौट गया और शेष जीवन उसने समृद्धि तथा सम्मान से बिताया। 1616 ई. में उसका स्वर्गवास हुआ। इस महान् नाटककार ने जीवन के इतने पहलुओं को इतनी गहराई से चित्रित किया है कि वह विश्व-साहित्य में अपना सानी सहज ही नहीं पाता। मारलो तथा बेन जानसन जैसे उसके समकालीन कवि उसका उपहास करते रहे, किन्तु वे तो लुप्तप्राय हो गए; और यह कविकुल दिवाकर आज भी देदीप्यमान है।

शेक्सपियर ने लगभग छत्तीस नाटक लिखे हैं, कविताएँ अलग। उसके कुछ प्रसिद्ध नाटक हैं-जूलियस सीज़र ऑथेलो, मैकबेथ, हैमलेट, सम्राट लियर, रोमियो जूलियट (दुःखान्त), वेनिस का सौदागर, बारहवीं रात, तिल का ताड़ (मच एडू अबाउट नथिंग), जैसा तुम चाहो (एज़ यू लाइक इट), तूफान (सुखान्त)। इनके अतिरिक्त ऐतिहासिक नाटक तथा प्रहसन भी हैं। प्रायः उसके सभी नाटक प्रसिद्ध हैं।

शेक्सपियर ने मानव-जीवन की शाश्वत भावनाओं को बड़े ही कुशल कलाकार की भाँति चित्रित किया है। उसके पात्र आज भी जीवित दिखाई देते हैं। जिस भाषा में शेक्सपियर के नाटक का अनुवाद नहीं है वह उन्नत भाषाओं में कभी नहीं गिनी जा सकती।

भूमिका

इंगलैंड में न तिल होता है, न ताड़। परन्तु हमने शेक्सपियर के नाटक Much Ado About Nothing का तिल का ताड़ ही अनुवाद किया है, क्योंकि तिल का ताड़ मुहावरा इसके विषय को बिलकुल प्रस्तुत कर देता है। आज से लगभग सत्तर वर्ष पूर्व हिन्दी में ‘चार्ल्स लैम्ब कृत चेल्स फ्रॉम शेक्सपियर’ का अनुवाद किया गया था। उसमें Much Ado About Nothing का अनुवाद किया गया मिलता है-व्यर्थ हौरा मचाना। मैं समझता हूँ तुलनात्मक दृष्टि से यह नया नाम अधिक उपयुक्त है।

शेक्सपियर ने इसे सन् 1597-1600 ई. के बीच लिखा जब ‘ऐज़ यू लाइक इट’ तथा ‘ट्वैल्फ्थ नाइट’, और ‘मेरी वाइव्ज़ ऑफ विंडज़र’ आदि प्रसिद्ध सुखान्त नाटक लिखे गए थे। यह शेक्सपियर के नाट्य रचना-काल में द्वितीय युग था। इस युग के बाद ही कवि में दुःख ने अपना प्रभाव अधिक बढ़ाया और उसके नाटकों में गद्य भी अधिक मिलता है।

स्वयं Much Ado About Nothing इस नाटक का नाम क्यों है, यह भी आलोचकों का सिर-दर्द रहा है और अभी भी वे इस पर एकमत नहीं हो सके हैं। मनुष्य जीवन में पड़ने वाले आन्तरिक विरोधों ने इसमें अभिव्यक्ति पाई है, यही इस शीर्षक को आगे लाने वाला आधार है।

इस कथानक में तीन कथाएँ आपस में गुंथ गई हैं-डॉग-बैरी और वर्गीज़; बैनेडिक और बिएट्रिस; हेरो तथा क्लॉडिओ और डॉन जौन ये तीन कथाएं हैं। इनके लिए कहा जाता है शेक्सपियर विभिन्न स्रोतों का ऋणी है, जिनमें बैण्डैलो और एरिओस्टो प्रमुख माने जाते हैं।

हेरो और बिएट्रिस दो युवतियाँ हैं जो मैसिना में एक महल में रहती हैं। इन्हीं के प्रेम की इस नाटक में कथा है। विद्वानों का मत है कि इस नाटक में जो मूलकथा का अवसाद है, वह इसके सुखान्त तत्त्व पर आघात-सा करता हुआ लगता है। बैनेडिक-बिएट्रिस की अन्तर्कथा का मूल कथा से अन्तर्गठन परिपक्व नहीं हो पाया है, यद्यपि इस कथा में आनन्द अधिक है। उनका कथोपकथन भी उच्चकोटि का नहीं है और बिएट्रिस जैसी कुलीन स्त्री के मुख से वैसे शब्द अच्छे भी नहीं लगते।

शेक्सपियर का महत्त्व समझने के लिए आवश्यक है कि हम उसको उसके पात्रों के माध्यम से समझें। वह अपने पात्रों को स्वतन्त्रता देता है और जीवन के विभिन्न रूपों को अभिव्यक्ति देता है। वह यह नहीं मानता कि जीवन का दर्शन किसी विशेष पात्र के मुख से पूर्णतया कहलाया जा सकता है। पात्र जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न चेष्टाएँ करते हैं। शेक्सपियर ने मनुष्य के रूपों को उनकी विविधता में देखा है। इस दृष्टिकोण से न हमें बिएट्रिस का पात्र खटकता है, न अन्तर्कथा का महत्त्व ही। उसके सम्राटों से लेकर उसके विदूषक तक जीवन-दर्शन व विभिन्न पहलुओं को प्रकट करते हैं। प्रत्येक जीवन को अपने दृष्टिकोण से देखता है। शेक्सपियर की कला आत्मपरक अभिव्यक्ति में नहीं है, उसकी आत्मा जाकर युग सत्य से तादात्म्य करके ही अपने को प्रगट करती है। इस दृष्टि से उसके मानव-जीवन के गम्भीर अध्ययन का पता तिल का ताड़ पढ़कर भी मिलता है।

अपने अन्य नाटकों की भाँति इस सुखान्त नाटक में भी शेक्सपियर अन्तर्कथाओं को संग गूँथे बिना नहीं चलता। यूरोपीय साहित्य पर इतालवी साहित्य का प्रभाव जो महत्त्व धारण कर गया था, उसका प्रभाव हमें यहाँ स्पष्ट दिखाई देता है। विशेष कर उस युग के नाटकों में कवि ने इतालवी स्रोतों को लिया भी अधिक है। किन्तु शेक्सपियर ने प्रत्येक में ही प्रायः 16वीं सदी के इंगलैंड के रीति-रिवाजों को ही रखा है। पात्र नाममात्र को इतालवी-से लगते हैं। वर्गीज़ डॉगबैरी आदि तो नाम से भी इतालवी नहीं है। उनकी स्थिति यहाँ वही है, जो ‘एक सपना’ नामक सुखान्त नाटक की प्राचीन ग्रीक और परियों की कथा के बीच बौटम इत्यादि का है। कथा का विषादमय भाग मूल स्रोत से आया है, आनन्द और उल्लास का भाग शेक्सपियर ने प्रदान किया है। शेक्सपियर का दृष्टिकोण रचना की ऐतिहासिक-सापेक्षता पर नहीं रहता था, वह भावप्रधान था तथा मानवीय जीवन के मूल तत्त्वों को ही अपनी रचना में प्रतिष्ठापित करता था, और यही उसकी कला की सिद्धि थी, क्योंकि इसमें मानव का सांगोपांग रूप देखता था, जिसमें मनुष्य की सामाजिक परिस्थिति उसकी दृष्टि से अलग नहीं रह जाती थी। वह कला के सत्य को अपने विचार-सत्य से दबाता नहीं था।

अन्त में मैं यही कहूँगा कि मानव-जीवन का इतना सफल चित्रण करने वाला शेक्सपियर, मानव-चित्रण के अभावों का बड़ा ही पारदर्शक पारखी था, जो तिल का ताड़ से भी मुखर होता है।

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