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शक्तिपुंज भारतवासी

वाइ सुंदर राजन

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1727
आईएसबीएन :8173156387

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वे कौन से कारक हैं जिनके कारण प्रतिभावान, क्षमतावान् व शक्तिपुंज भारतवासियों के होते भारत विश्व की प्रतिस्पर्धात्मक व्यवस्था में उभरकर नहीं आ पा रहा।

Shakti punj bharatvasi

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भारतवासियों ने कृषि, विज्ञान, चिकित्सा, अभियांत्रिकी, प्रौधोगिकी, कला, व्यापार, युद्ध और प्रशासन से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ठ प्रदर्शन किया है। हमारे चिकित्सकों ने विभिन्न रोगों के इलाज एवं मानव अंगों के प्रत्यारोपण में महान् उपलब्धियाँ अर्जित की हैं। हमारे वैज्ञानिकों ने  क्रायोजेनिक इंजन, सुपर कंप्यूटर एवं ‘अग्नि’ व ‘पृथ्वी’ जैसी शक्तिशाली प्रक्षेपास्त्रों के निर्माण के साथ ही देश को परमाणु शक्ति बनाने में अनुपमयोगदान दिया है। भारतीय किसानों ने अपने कृषि क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन किया है और अपने देश को ऐसी स्थिति में ले आए हैं जहाँ कई अकालों के बावजूद खाद्यान्न के मामले में हम आत्मनिर्भर बन चुके हैं इतना ही नहीं, भारतीय इंजीनियर, डाक्टर, वैज्ञानिक, कंप्यूटर विशेषज्ञ विदेशों में जाकर वहाँ तकनीकी प्रौद्योगिक, चिकित्सा एवं विज्ञान के क्षेत्र में उन देशों को आत्याधुनिक स्वरूप देने के प्रयासों में सहयोग दे रहे हैं। भारत प्रतिभावान मानव संसाधन का अजस्र स्रोत है।

किंतु यह तथ्य हमें याद रखना चाहिए कि देश के करोड़ों लोगों को अपने कौशल और प्रतिभा को उनन्त बनाने का उचित अवसर नहीं मिलता। हालाँकि वे मूलतः प्रतिभाशाली होते हैं, और उनके पास नाना प्रकार के कौशल होते हैं, तब भी वे उनका उपयोग रचनात्मक कार्यों के लिए नहीं कर पाते; क्योंकि अर्थव्यवस्था की धीमी गति के कारण उनके लिए रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध नहीं हैं।  

वे कौन से कारक हैं जिनके कारण प्रतिभावान, क्षमतावान् व शक्तिपुंज भारतवासियों के होते भारत विश्व की प्रतिस्पर्धात्मक व्यवस्था में उभरकर नहीं आ पा रहा। प्रस्तुत पुस्तक में इस संबंध में व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए बेबाक चर्चा की गई है और भारत के नवनिर्माण तथा उसके विकसित स्वरूप के बारे में सुचिंतित व सुविचारित तथ्य प्रस्तुत किए गये हैं।
विश्वास है, कि यह पुस्तक वैज्ञानिकों, प्रौद्योगिकी-विदों, व्यापारियों तथा प्रशासकों के लिए लाभकारी परियोजनाओं के कार्यान्वयन में प्रगतिगामी दृष्टिकोण विकसित करेगी और महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शन व सन्दर्भ सामग्री सिद्ध होगी।

यह पुस्तक समर्पित है मेरी स्वः माँ श्रीमती विशालाक्षी की स्मृति को तथा मेरे मामा-मामी स्व. श्री एस. शंकर अय्यर एवं श्रीमती सुब्बालक्ष्मी  को जिन्होंने मुझे अपने प्यार, ममत्व और सपनों के साथ पाला-पोसा।

यह पुस्तक उन लाखों अभिभावकों और दत्तक अभिभावकों को भी समर्पित है, जो तमाम विषमताओं का सामना करते हुए अनेक भारतीय लड़के और लड़कियों के जीवन को सँवार रहे हैं।
मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि भविष्य के प्रति उनकी आकांक्षाएँ और सपने साकार हों तथा इन सब आकांक्षाओं एवं सपनों के इस छोटे से योगदान के लिए मैं स्वयं को भी समर्पित कर रहा हूँ।


आभार

मैं उन सभी का हार्दिक आभारी हूँ, जिन्होंने अपने  प्रकाशनों में पूर्व में छपे मेरे लेखों का उपयोग करने की मुझे अनुमति दी। जैसा प्राक्कथन में भी लिखा है कि उन लेखों में से मैंने कुछ में मामूली संपादन किया है और उन्हें नया रूप दिया है जबकि कुछ अन्य में ज्यादा परिवर्तन भी किए हैं।

मैं आभारी हूं-सेंटर फॉर रिसर्च इन रूरल एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट, चंडीगढ़ का, जिसका मेरे तीन आलेख ‘मैन एंड डेवलपमेंट’ में प्रकाशित किए और  जो पुस्तक में अध्याय 1 और 10 में क्रमशः ‘प्रौद्योगिकियों की झलकः भारत के लिए दूर-दृष्टि’ और ‘मानवीय खुशहालीः विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका’ शीर्षक से प्रकाशित हुए हैं।
मैं नरोसा पब्लिशिंग हाउस द्वारा प्रकाशित अपने आलेख ‘भारत 2020 के लिए प्रौद्योगिकीय संकल्पना’ के लिए आभारी हूँ, जो इस पुस्तक में प्रकाशित हुआ है। यह आलेख सन् 1996 में ‘ऐश पाण्ड्स एंड ऐश डिस्पोजल सिस्टम’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ है और इस पुस्तक में अध्याय 2 के अंतर्गत रखा गया है।
‘नेशनल इंस्टीट्यूट आफ पुस्तक डेवलपमेंट’ (खंड 17, अंक 2) अप्रैल, जून 1998 में मेरा लेख ‘रूरल डेवलपमेंट थ्रू साइंस एंड टेक्नोलाजी’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ और इस पुस्तक में 3 के रूप में इसे शामिल किया गया है।

न्यू एज इंटरनेशनल पब्लिशर्स ने मेरा लेख ‘आर एंड डी इंस्टीट्यूशंस एंड इंडस्ट्री लिंकेजेज’ शीर्षक से अपने प्रकाशन ‘फ्यूचर डायरेक्शंस फॉर इंडियन इकोनॉमीः टेक्नोलॉजी, ट्रेड एंड इंडस्ट्री’ में प्रकाशित किया, जो इस पुस्तक के अध्याय 4 में दिया गया है।
 
मैं आभार व्यक्त करता हूँ- एशियन पैसिफिक सेंटर फॉर टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का, जिन्होंने मेरा लेख ‘टेक्नोलजी एसेसमेंट–ए टूल फॉर एस.एम.ई.’ शीर्षक से प्रकाशित किया, जो इस पुस्तक के अध्याय 5 में शामिल है।

मैं आभारी हूँ औद्योगिकी पत्रिका ‘एम.एम.’ का, जिसने मेरा लेख ‘आर एंड डी इंपेरेटिव्स फॉर इंडियन कैपिटल गुड्स’ शीर्षक से अपने नवम्बर-दिसम्बर 1998 के अंक में प्रकाशित किया और यह पुस्तक के अध्याय 6 में है।

वाई सुंदर राजन

भूमिका

 जब किसी बच्चे के विकास के विभिन्न चरणों अभिभावकों द्वारा सशक्तीकरण किया जाता है तो वह बच्चा एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में सामने आता है। इसी प्रकार जब अध्यापक ज्ञान और अनुभवों से परिपूर्ण है तो जीवन-मूल्य और उच्च शिक्षा से युक्त मेधावी युवा सामने आते हैं। जब किसी संस्थान का नेता अपने अधीनस्थ कार्यरत लोगों को शक्ति-संपन्न बनाता है तो ऐसे नेता उभरते हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्र का कायाकल्प करने की योग्यता रखते हैं। भारतीय इतिहास इसका साक्षी रहा है जब किसी देश के नेता गण अपनी जनता को दीर्घकालिक नीतियों से शक्ति-संपन्न बनाते हैं तो ऐसे राष्ट्र की समृद्धि सुनिश्चित है।

मुझे प्रसन्नता है कि श्री वाई. सुंदर राजन, जिनके साथ मैंने लगभग तीन दशकों तक काम किया है और जिन्हें इसरो, डी.एस.टी., टी. आई. एफ. ए. सी. तथा सी. आई.आई में कार्य करने का पर्याप्त अनुभव रहा है, ने इस पुस्तक के लिए ‘शक्तिपुंज भारतवासी’ शीर्षक उचित ही चुना है। इस पुस्तक के प्रत्येक अध्याय में सिद्धांत, अनुभव तथा इस सबसे अलग हमारी सभ्यता के विचारों का आधुनिक समय के  साथ मेल भी है ।
हमें अपने प्रबुद्ध नागरिकों को प्रौद्योगिकी संबंधी ज्ञान देना चाहिए, ताकि कम-से-कम समय में अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त हो सकें। प्रारंभ में कुछेक लोग ही इसके लिए आगे आते हैं। फिर उनकी सफलता को देखकर कुछ और लोग भी उसमें शामिल हो जाते हैं। जब अधिक लोग आ जाते हैं तो कुछ और नई प्रौद्योगिक की जरूरत पड़ती है। इस मुकाम पर पहुँचकर लोग स्वयं इच्छुक होते हैं।

गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे लोगों के जीवन स्तर को उन्नत बनाने के लिए कुछ हद तक योजनाबद्ध ढंग से उन्हें धनराशि उपलब्ध कराने तथा प्रौद्यौगिकी की दृष्टि से मदद पहुँचाने की जरूरत होती है।

विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को सशक्त बनाने के लिए हमें दूरदृष्टि अभियान लक्ष्य की आवश्यकता है। यह दूरदृष्टि मजबूत और सभी कुछ समेटनेवाली होनी चाहिए। इसमें विकसित भारत का लक्ष्य प्राप्त करने का सामर्थ्य होना चाहिए, एक ऐसे भारत के निर्माण की क्षमता होनी चाहिए, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा में टिक सके। यह दृष्टि विभिन्न क्षेत्रों और पस्थितियों के आधार पर आकार लेनेवाले अभियानों के माध्यम से कार्यान्वित होती है। लक्ष्यों के निर्धारण की आवश्यकता होती है, ताकि छोटी-सी अवधि में ही लोगों को स्पष्ट अंतर दिखायी दे सके। इसलिए उन्नति और प्रगति के लिए होनेवाले परिवर्तन अभियान के साथ अधिक-से-अधिक लोग जुड़ते हैं। परिणामों के साथ तारतम्य बैठाने के लिए लक्ष्यों का तेजी से बदलना भी जरूरी है। मेरा मानना है यदि हम आगामी दशकों में ऐसे कई एकीकृत अभियान शुरू करें तो भारतीय अर्थव्यवस्था को ऐसी गति दी जा सकती है जो इस रफ्तार को जारी रख सके। देश में विभिन्न एजेंसियों के निजी क्षेत्र तथा व्यक्तिगत स्तर पर अनेकानेक प्रयासों को आरंभ करने की जरूरत है।

मैंने श्री वाई, सुंदर राजन को कृषि, वानिकी, भूजल, मृदा परीक्षण आदि के लिए सुदूर संवेदी अनुप्रयोगों के प्रसार में निरंतर लगे हुए देखा है। बाद में जब उन्होंने इसरो छोड़कर टी.आई.एफ.ए.सी. के निर्माण कार्य को सँभाला तो वे आर्थिक क्षेत्रों की तरफ ध्यान देने लगे। हम दोनों के साथ मिलकर भारतीय अर्थव्यवस्था और समाज को विकसित स्वरूप में बदलने संबंधी कई स्वप्न सँजोए थे।

टी.आई.एफ.ए.सी. और इसके अभियानों में समन्वित प्रयासों के अलावा श्री राजन वर्ताओं तथा लेखों के माध्यम से भी अपने रोमांच और उत्साह को साझा करते आए हैं। सी.आई.आई. (भारतीय उद्योग परिसंघ) में अपने कार्यकाल के दौरान वे उद्योग जगत् की विभिन्न समस्याओं को निकट से समझने और उनके समाधान सुझाने की दिशा में सक्रिय रहे।

अर्थव्यवस्था, सुरक्षा और प्रौद्योगिकी संबंधी एकीकृत नीतियों के खंड में व्यापार, प्रौद्योगिक, व्यवसाय और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े महत्त्वपूर्ण मुद्दों को उठाया गया है। ये नीतियाँ केवल सरकार के सरोकार का ही हिस्सा है। इसके अलावा यह भी कि नीतियाँ अपने उद्देश्य में तभी सफल होती हैं जब उन्हें ठीक ढंग से लागू किया जाए। राजन ने इस खंड में भारतीयों की ओर इशारा करते हुए अन्य देशों की नीतियों और उनके अनुभवों पर भी प्रकाश डाला है।

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