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भाषा एवं साहित्य >> नवशती हिंदी व्याकरण

नवशती हिंदी व्याकरण

बदरीनाथ कपूर

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :234
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14089
आईएसबीएन :9788126711855

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हिन्दी का यह सर्वथा नवीन व्याकरण सिर्फ छात्रों के लिए ही उपयोगी नहीं होगा, यह उन जिज्ञासुओं को भी राह दिखाएगा जो भाषा की आत्मा तक पहुँचना चाहते हैं।

हमारी भाषा की सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि इसमें भाषा को निर्मित और विकसित करने वाले देशज तत्त्वों की घोर उपेक्षा की जाती है। रचनात्मक साहित्य का एक हिस्सा भले ही ऐसा नहीं हो लेकिन, शेष लेखन पर तो अंग्रेजी भाषा का प्रभाव साफ दिखलाई पड़ता है। कहन और शैली ही नहीं, भाषा के स्वरूप का ज्ञान कराने वाला हमारा व्याकरण भी अंग्रेज़ी भाषा के व्याकरणिक ढाँचे से आवश्यकता से अधिक जकड़ा हुआ है। हालांकि, पिछले कुछ दशकों से हिन्दी की प्रकृति और प्रवृत्ति के अनुरूप व्याकरण प्रस्तुत करने के प्रयास होने लगे हैं। लेखक की इस पुस्तक को इसी प्रयास के क्रम में देखा जाना चाहिए। भाषाविद् तथा कोशकार के रूप में ख्यातिप्राप्त कर चुके बदरीनाथ कपूर ने हिन्दी की स्वाभाविक प्रकृति के अनुरूप व्याकरण की रचना करके यह प्रमाणित किया है कि हिन्दी दुनिया की अन्य विकसित भाषाओं की तुलना में अधिक व्यवस्थित होने के साथ-साथ सरल और लचीली भी है। यह एक मात्र ऐसी भाषा है जिसके अधिकतर नियम अपवादविहीन हैं। इस पुस्तक से गुजरते हुए सहज ही यह एहसास होता है कि व्याकरण नियमों का पुलिंदा भर नहीं होता, वह भाषा-भाषियों की ज्ञान-गरिमा, बुद्धि-वैभव, रचना-कौशल, संदर्भबोध और सर्जनक्षमता का भी परिचायक होता है। हिन्दी का यह सर्वथा नवीन व्याकरण सिर्फ छात्रों के लिए ही उपयोगी नहीं होगा, यह उन जिज्ञासुओं को भी राह दिखाएगा जो भाषा की आत्मा तक पहुँचना चाहते हैं।

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