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संघर्ष

शिवाजी सावंत

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2002
पृष्ठ :114
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1269
आईएसबीएन :81-263-0777-3

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प्रस्तुत है मराठी नाटक का हिन्दी रूपान्तर.....

Sangharsh

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


इसमें मराठा साम्राज्य के रोमांचक इतिहास को रूपाकार देने की सफल कोशिश की गयी है। इसमें छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र सम्भाजी का जीवन-संघर्ष और उनका समय पूरी प्रामाणिकता और हार्दिकता के साथ प्रस्तुत है। यह एक जीवन्त राजगाथा है जिसमें एक मराठा शूर राजा अपने मूल्यों और अपनी आस्थाओं को बचाये रखने के लिए साक्षात् मृत्यु का भी सहज स्वागत करता है।


पात्र-परिचय


सम्भाजीराजे: छत्रपति शिवाजी के ज्येष्ठ पुत्र। ‘बुधभूषणम्’ काव्य के रचियता है। इनकी माताजी का नाम सईबाई साहिबा था।
सोयराबाई: छत्रपति शिवाजी (कालखण्ड-1631 से 1680) की पत्नी। मराठा साम्राज्य की अभिषिक्त महारानी साहिबा। छत्रपति शिवराय के देहान्त के बाद अपने नाबालिग पुत्र राजाराम को उत्तराधिकारी बनाने के लिए डटी हुई, महत्त्वाकांक्षी राजमाता। छत्रपति सम्भाजी की सौतेली माँ।
अण्णाजी दत्तो (प्रभुणीकर): मराठा साम्राज्य के छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा नियुक्त सुरनीस।
प्रह्लाद विराजी: मराठा साम्राज्य के न्यायाधीश।
हम्बीरराव: मराठा साम्राज्य के सरलष्कर (सेनापति)। महारानी सोयरबाई के सगे छोटे भाई। छत्रपति शम्भू राजा (सम्भाजी) के सौतेले मामा। महाराष्ट्र के कराड प्रान्त के अन्तर्गत ग्राम तलबीड़ महारानी सोयराबाई और हम्बी राव का जन्मग्राम था।
रायाजी गाड़े: छत्रपति सम्भाजी के दूधमाता धाराऊ गाड़े का पुत्र, अन्ताजी गाड़े का सगा भाई।
कवि कुलेश: छत्रपति शम्भूराजा के अष्टप्रधान मण्डल के छन्दोगामात्य। कन्नौज निवासी। सम्भाजीराजे को आगरा से छुड़ाने की मुहिम में सहभागी। उनके अष्टप्रधान मण्डल के एक विश्वासपात्र और कवि-मन्त्री।
नीलोपन्त: मराठा साम्राज्य के पेशवा मोरोपन्त के सुपुत्र।
रूपाजी भोसले: एक मराठा सरदार।
बहिर्जी: जासूस विभाग का प्रमुख। बहुआयामी प्रसिद्ध जासूस।
मल्होजी घोरपड़े : सरलष्कर सन्ताजी घोरपड़े के पिताश्री।
धाराऊ: नाट्य-नायक छत्रपति सम्भाजी की दूध-माता। जब सईसाहिबा का सन् 1959 में निधन हुआ तब सम्भाजी महाराज दो वर्ष के थे। जिजाऊ साहिबा ने किले पुरन्दर के पास के पूरहोल नामक ग्राम की धाराऊ गाड़े पर बाल सम्भाजी की जिम्मेदारी सौंपी थी।
गणोजी शिर्के: सम्भाजी की पत्नी महारानी येसूबाई के सगे भाई। गणोजी शिर्के रिश्ते का वास्ता देकर राजा से वतन की माँग करता था। छत्रपति सम्भाजी को शिवाजी महाराज की नीतियों के अनुसार यह माँग स्वीकार नहीं थी, इस कारण गणोजी शिर्के नाराज हुआ था। इसने स्वयं को शरकाण प्रान्त का अधिकारी घोषित कर दिया था।
येसाजी दाभाडे: महारानी सोयराबाई काल भूत पूर्व दीवान।
शहजादा अकबर: शहंशाह औरंगजेब का विद्रोही पुत्र। राजपूत दुर्गादास राठोड़ के साथ छत्रपति सम्भाजी के पास आश्रय में महाराष्ट्र के कोंकण प्रान्त के घोंडसे नामक ग्राम में आया था। सम्भाजी और अकबर की भेंट भारत के इतिहास पर एक नया प्रकाश डालती है।
येसूबाई: छत्रपति सम्भाजी की धर्मपत्नी महारानी येसूबाई। श्रृंगारपुर के पोलोजीराव शिर्के की यह पुत्री गणोजी शिर्के की भागिनी थी। मार्च 1689 में औरंगजेब मे छत्रपति सम्भाजी राजा को ‘तुलापुर’ (वढ़ू) रायगढ़ किले पर कब्जा किया। महारानी येसूबाई, सम्भाजी के पुत्र छोटे युवराज शाहू के साथ औरंगजेब की कैदी हो गयी। येसूबाई के छत्तीस वर्ष औरंगजेब की कैद में इज्जत से बिताये। भारतीय इतिहास की एक स्वर्ण-पात्र।
रघुनाथ पन्त: रघुनाथपन्त हनुमन्ते। मराठा साम्राज्य के कर्नाटक के प्रमुख।
करीम, रसूल : मुगल सैनिक।
मुकर्रब खाँ, इखलास खाँ, रुहुल्ला खाँ: छत्रपति सम्भाजी महाराज को औरंगजेब द्वारा घोषित सजा का अमल करने वाले मुगल सेनाधिकारी।
वर्दीदार: एक मराठा सैनिक।
औरंगजेब: शाहजहाँ-पुत्र शहंशाह औरंगजेब, आलमगीर गाज़ी।

फ्लैश बैक


[परदे के पीछे गँवई चरवाहे की जानवर हाँकने की आवाजें सुनाई देती हैं। परदा अभी उठा नहीं है।]
येऽऽ भिल्ला ऽर- मेरी गुणवन्ती- अरी, उधर, कहाँ मुड़ रही है खाई की ओर ? पीछे मुड़ ऽ-हॉऽ हॉऽ–क-ऽऽ च्चऽऽ क-हॉऽ हॉऽऽ अरी, येऽ चन्दऽऽर- मेरी अम्मा कितनी रुकती है तू ? अभी तेरा पेट भरा नहीं क्या ? च्चऽऽल-च्चऽऽल री चुपचाप-हॉऽऽ-हॉऽऽ-येऽ हैबत्या ऽऽ अरे कैसे कहूँ रे तूऽऽ च्च-च्चलो-सब ठीक से च्चलो.....!!
(थोड़ी देर ‘गोपाल की बाँसुरी’ की मधुर ध्वनि निनादती है)
(परदा उठता है)

[गहरे नीले रंग के आकाश की पार्श्वभूमि के साथ-सह्याद्रि की पर्वत श्रृंखला व पहाड़ी किलों के घुमावदार रेखाओं का जीवित आभास लिये हुए रंगमंच के बीचोंबीच एक ‘प्रशस्त’ समाधि दिखाई देती है। स्पॉटलाइट केवल समाधि पर पल-भर ठहर जाती है। झींगुरों की किर्राहट उभरती है। एक विंग से अब तक आवाज देनेवाला ‘जिवा’ चरवाहा प्रवेश करता है। वेशभूषा-सिर कपड़े से बँधा, गमछे की धोती, कम्बल और चरवाहे की लाठी लिये बाल-गोपाल कृष्ण की तरह। उसके साथ की अँजुरी में अनन्त फूल बेल-पत्र हैं। समाधि की ओर भावुक होकर देखता है। तभी सम्बाजी के जीवन का एक आक्षेपक प्रातिनिधिक ‘राहगीर’ प्रवेश करता है। जिवा को टोकता हुआ।]

राहगीर: क्यों जिवा ? अरे, जंगल-पहाड़ों पर जानवर चराना छोड़कर इधर कहाँ भटक गया तूँ ? आँऽ और यह क्या है हाथ में.....अनन्त के सफेद फल और बेल के पत्ते ? क्यों, शिवशम्भू के दर्शनों के लिए निकाल है क्या ?
जिवा: जीऽ हम गँवई चरवाहे लोग-हमारे लिए कहाँ है देवदर्शन ! बस जा रहा हूँ, जैसा आप कहते हैं वैसा ही राह भटका हुआ-अपने राजा की समाधि की ओर। ये बेल-फूल उस समाधि पर अर्पण कर पल-भर माथा टेकने के लिए.....
(अँजुरी माथे से लगाता है। भावावेश में समाधि की ओर देखता है।)
राहगीर: (समाधि और जिवा की ओर संशक होकर देखते हुए) समाधि ? राजा की समाधि ? जिवा, किस राजा की कहते हैं रे यह समाधि ?

जिवा: (उसे ऊपर से नीचे तक निहारते हुए) मराठी मुलुक के ही हैं न आप ? नहीं, मेरा मतलब है कि समाधि किसकी है, यह आपको मालूम नहीं-इसलिए पूछा। (फिर भी राहगीर नकारार्थी सिर हिलाता है- वैसा संकेत) अरे यह समाधि राजा की है, राजा की- अपने सम्भराजा की !
राहगीर: (समाधि के पास जाकर और संशक होकर) राजा की....? सम्भू राजा की........??
जिवा: (गर्व से) हाँ ! राजा की। सम्भू राजा की। तुकाराम महाराज को हम लोग अपनत्व से ‘तुकोबा’ कहते हैं- ज्ञानेश्वर को ‘ज्ञानबा’ कहते हैं न-वैसे ही इन्हें भी ‘सम्भूराज’ कहते हैं-पूरे मावल मुलुक में। वैसे तो ये ‘सम्भाजी महाराज’ ही हैं !
राहगीर: (भौंह चढ़ाते हुए) ‘शम्भूराजे’ अर्थात् हमारे शक निर्माता शिवाजी महाराज के बेटे ?
जिवा: हाँ। वही ‘सम्भाजी महाराज !’ (अँजुरी फिर माथे से लगाता है।)
राहगीर: (रोंगटे खड़े कर देनेवाली कुत्सित-कुत्सित हँसी हँसते हुए) जिवा-जिवा, अरे पगले ! कहाँ वह क्षत्रीय कुलश्रेष्ठ, सकल गुणमण्डित, गो-ब्राह्मण प्रतिपालक, ज्ञानवान, वरदवान, पुण्यवान, हिन्दूश्रेष्ठ बादशाह, शक निर्माता, प्रात:स्मरणीय श्रीमन्महाराज छत्रपति शिवाजीराजे और कहाँ उनका यह ‘अभागा’ पुत्र सम्भाजी !!

(झनझनाहट भरा संगीत)
बोल, ‘शम्भूराजे !’ ऐसे कैसे-रे निपट पगले लोग तुम ? चला बेल-फूल चढ़ाने समाधि पर ! हँऽऽ। जिवा, ठीक से कान और मन खोलकर सुन ! अरे क्या कुछ नहीं किया तुम्हारे इस शम्भूराजे ने ?
(पलभर शान्ति। एक से एक बड़े-बड़े आक्षेप सम्भू राजा पर करने लगता है। प्रत्येक आक्षेप के साथ संगीत की झनझनाती लय बढ़ने लगती है। जिवा के एक-एक कदम पीछे हटने पर कम्बल, लाठी, अँजुरी से बेल-फूल क्रमश: नीचे गिरने लगते हैं।) जिवा सुन, ‘युवराज’ होकर भी एक भी एक सुहागन ‘गोदावरी’ पर अत्याचार किये इसने-तीर्थक्षेत्र सरीखे पवित्र रायगढ़ पर......वह भी पुण्यवान के जीवित रहते समय ! (संगीत)
-अपने पिता से झगड़कर यह अविचारी सिरफिरा चला गया सीधे शत्रु के खेमे में-पठान दिलेरखान के छापामार खेमे में ! (वाद्य)

-सिंहासन की राक्षसी हवस के मारे, मराठी साम्राज्य के ईमानदार सेवक इसने शैतानी निर्दयता से हाथी के पैरों से कुचलकर मार डाले-हिरोजी फर्जेन्दा जैसे, चिटगीस बालाजी आवजी जैसै ! (वाद्य)
-जिवा, अरे प्रणाम कर-जिसकी चरणों की धूल माथे पर लगानी चाहिए ऐसी अपने सौतेली माँ को-साक्षात् महारानी सोयराबाई साहिबा को इस शराबी कुलघातक ने दीवारों से चुनवाकर मार डाला !! (तीव्र वाद्य)
(जिवा कानों पर हाथ रख लेता है। वाद्य ही वाद्य बजते हैं।)
-जिवा, सुन यह सूर्यकुल में शनि था ! अभागा था !
-जिवा, यह सिरफिरा, अविचारी था !
-बुरी आदतोंवाला, चरित्रहीन था !
(राहगीर उसी आवेश से चला जाता है। घायल-व्याकुल जिवा घिसेपिटे कदमों से समाधि के निकट आता है। उसकी वेदिका पर सिर रखता है, सर्वांग खौल उठता है, सिर उठाकर)



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