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मैं और मेरा छपास रोग

पूरन सरमा

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :216
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 12142
आईएसबीएन :9789380839707

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हिंदी व्यंग्य में भी ऐसे कितने लेखक आपको मिलेंगे, जिनकी किताब आप खरीदकर पढ़ने की इच्छा रखते हैं ? पूरन सरमा ऐसे लेखक हैं।

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

हिंदी व्यंग्य में दो तरह के लोग व्यंग्य लिख रहे हैं — एक वे, जिन्हें व्यंग्य की व्याकरण तथा सौंदर्यशास्त्र की समझ है और दूसरे वे, जिन्हें इस चीज की कोई समझ नहीं। इसी दूसरे वर्ग में आप एक उपवर्ग उन लोगों का भी कर सकते हैं, जिन्हें खुद तो समझ है नहीं पर साथ ही वे ऐसे लोगों के खिलाफ हैं, जिन्हें व्यंग्य के सौंदर्यशास्त्र की समझ और परवाह है।...इसी तरह से आप हिंदी व्यंग्य को दो तरह से लेखन में बाँट सकते हैं — पहला वह, जो वास्तव में व्यंग्य लेखन है और दूसरा वह, जो व्यंग्य लेखन है ही नहीं, परंतु व्यंग्य के नाम पर न केवल परोसा जा रहा है, वरन् उसको शोध, समीक्षा, पुरस्कारों तथा चर्चाओं के गले उतारा भी जा रहा है। जाहिर है कि इस परिदृश्य में भ्रम और आपाधापी जैसा माहौल बनना है। वह बना भी है। इस भ्रम के कुहासे में जो गिने-चुने लोग व्यंग्य को उसके व्याकरण, सौंदर्यशास्त्र तथा बनावट के सिद्धांतों पर रच रहे हैं उनमें पूरन सरमा का नाम मैं बेहद सम्मान से लेता हूँ।

विसंगतियों को सूक्ष्म नए कोण से देखने की क्षमता पूरन सरमा में है और वे बेहद महीन मार करने में माहिर व्यंग्यकार हैं, जो हिंदी व्यंग्य में दुर्लभ सा होता जा रहा है। वे व्यंग्य को कहीं भी सपाट नहीं होने देते और पाठक को बाँधे रखनेवाली किस्सागोई वाली भाषा उन्हें आती है। वे रोचक हैं। वे विविधतापूर्ण भी हैं। वे नए प्रयोग भी कर लेते हैं।

हिंदी व्यंग्य में भी ऐसे कितने लेखक आपको मिलेंगे, जिनकी किताब आप खरीदकर पढ़ने की इच्छा रखते हैं ? पूरन सरमा ऐसे लेखक हैं।

— डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी

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