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सचित्र आरतियाँ

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :19
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1113
आईएसबीएन :81-293-0059-1

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प्रस्तुत है विभिन्न देवी देवताओं की आरतियाँ...

Sachitra Artiyan a hindi book by Gitapress - सचित्र आरतियाँ - गीताप्रेस

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


भगवान् श्रीगणेशजी


आरति गजवदन विनायककी।
सुर-मुनि-पूजित गणनायककी।।टेक।।
एकदंत शशिभाल गजानन,
विघ्नविनाशक शुभगुण कानन,
शिवसुत वन्द्यमान-चतुरानन,
दु:खविनाशक सुखदायककी।।सुर.।।
ऋद्धि-सिद्धि-स्वामी समर्थ अति,
विमल बुद्धि दाता सुविरल-मति,
अघ-वन-दहन, अमल अबिगत गति,
विद्या-विनय-विभव-दायककी ।।सुर.।।
पिंगलनयन विशाल शुंडधर,
धूम्रवर्ण शुचि वज्राकुश-कर,
लम्बोदर बाधा-विपत्ति-हर,
सुव-वन्दित सब विधि लायककी।।सुर.।।


श्रीगणेश वन्दना


गाइये गनपति जगबंदन।
संकर-सुवन भवानी-नंदन।।
सिद्धि-सदन, गज-बदन, बिनायक।
कृपा-सिंधु, सुंदर, सब-लायक।।
मोदक-प्रिय, मुद-मंगल-दाता।
बिद्या-बारिधि, बुद्धि-बिधाता।।
माँगत तुलसिदास कर जोरे।
बसहिं रामसिय मानस मोरे।।


श्रीलक्ष्मीजी



ॐ जय लक्ष्मी माता, (मैया) जय लक्ष्मी माता।
तुमको निसिदन सेवत हर विष्णू-विधाता।।ॐ।।
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग माता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता।।ॐ।।
दुर्गारूप निरंजनि, सुख-सम्पति दाता।
जो कोइ तुमको ध्यावत, ऋधि-सिधि-धन पाता।।ॐ।।
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता।।ॐ।।
जिस घर में तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता।।ॐ।।
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता।
खान-पान का वैभव सब तुमसे आता।।ॐ।।
शुभ-गुण-मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता।।ॐ।।
महालक्ष्मी (जी) की आरति, जो कोई नर गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता।।ॐ।।


श्रीलक्ष्मी वन्दना



महालक्ष्मि नमस्तुभ्यं सुरेश्वरि।
हरिप्रिये नमस्तुभ्यं दयानिधे।।


भगवान् श्रीलक्ष्मीनारायणजी



जय लक्ष्मी-विष्णो।
जय लक्ष्मीनारायण, जय लक्ष्मी-विष्णो।
जय माधव, जय श्रीपति, जय जय जय विष्णो।।1।।जय.।।
जय चम्पा सम-वर्णे जय नीरदकान्ते।
जय मन्द-स्मित-शोभे जय अद्भुत शान्ते।।2।।जय.।।
कमल वराभय-हस्ते शंखादिकधारिन्।
जय कमलालयवासिनि गरुडासनचारिन्।।3।।जय.।।
सच्चिन्मयकरचरणे सच्चिन्मयमूर्ते।
दिव्यानन्द-विलासिनि जय सुखमयमूर्ते।।4।।जय.।।
तुम त्रिभुवन की माता, तुम सबके त्राता।
तुम लोक-त्रय-जननी, तुम सबके धाता।।5।।जय.।।
तुम धन-जन-सुख-संतति-जय देनेवाली।
परमानन्द-बिधाता तुम हो वनमाली।।6।।जय.।।
तुम हो सुमति घरों में, तुम सबके स्वामी।
चेतन और अचेतन के अन्तर्यामी।।7।।जय.।।
शरणागत हूँ, मुझ पर कृपा करो माता।
जय लक्ष्मीनारायण नव-मंगल-दाता।।8।।जय.।।


सर्वरूप हरि-वन्दन



यं शैवा: समुपासते शिव इति ब्रहेति वेदान्तिनो
बौद्धा बुद्ध इति प्रमाणपटव: कर्तेति नैयायिका:।
अर्हन्नित्यथ दैनशासनरता: कर्मेति मीमांसका:
सोऽयं वो विदधातु वांचितफलं त्रैलोक्यनाथो हरि:।।






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