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श्री रामचरितमानस

रामनरेश त्रिपाठी

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :743
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 11008
आईएसबीएन :9789352211944

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

रामचरितमानस एक चरित-काव्य है, जिसमे राम का सम्पूर्ण जीवन वर्णित हुआ है। इसमें ‘चरित’ और ‘काव्य’ दोनों के गुण सामान रूप से मिलते हैं। इस काव्य के चरितनायक कवि के आराध्य भी हैं, इसलिए वह ‘चरित’ और ‘काव्य’ होने के साथ-साथ कवि की भक्ति का प्रतीक भी है। रचना के इन तीनो रूपों में नीचे उसका संशिप्त विवेचन किया जा रहा है। ‘चरित’ की दृष्टि से यह रचना पर्याप्त सफल हुई है। इसमें राम के जीवन कि समस्त घटनाएँ आवश्यक विस्तार के साथ एक सुसंबद्ध रूप में कही गयी हैं। रावण के पूर्वभव तथा राम के पूर्वाकार की कथाओं से लेकर राम के राज्य-वर्णन तक कवि ने कोई भी प्रासंगिक कथा रचना में नहीं आने दी है। इस सम्बन्ध में यदि वाल्मीकीय तथा अन्य अधिकतर राम-कथा ग्रंथो से ‘रामचरितमानस’ की तुलना की जाय तो तुलसीदास की विशेषता प्रमाणित होगी। ‘काव्य’ की दृष्टि से ‘रामचरितमानस’ एक अति उत्कृष्ट महाकाव्य है। भारतीय साहित्य-शास्त्र में ‘महाकाव्य’ के जितने लक्षण दिये गये हैं, वे उसमे पूर्ण रूप से पाये जाते है। तुलसीदास की ‘भक्ति’ की अभिव्यक्ति भी इसमें अत्यंत विषद रूप में हुई है। अपने आराध्य के सम्बन्ध में उन्होंने ‘रामचरितमानस’ और ‘विनय-पत्रिका’ में अनेक बार कहा है कि उनके राम का चरित्र ही ऐसा है कि जो एक बार उसे सुन लेता है, वह अनायास उनका भक्त हो जाता है। वास्तव में तुलसीदास ने अपने आराध्य के चरित्र की ऐसी ही कल्पना की है।

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